साधो, युद्ध हर मर्ज की दवा है। युद्ध बेरोजगारी भुला देता है, युद्ध भुखमरी भुला देता है, युद्ध महंगाई, भ्रष्टाचार, आर्थिक मंदी, किसान आत्महत्या सब भुला देता है।
साधो युद्ध बड़े काम की चीज है यह चुनाव तक जितवा देता है। युद्ध पर देश की नाक टिकी होती है। एक हमला कर और दूसरा शांति समझौता चाहे तो शांति समझौता चाहने वाले देश की जनता को लगता है कि उसकी नाक कट रही है। युद्ध पर अरबों रुपये का व्यापार टिका होता है। युद्ध न हो तो बड़े बड़े देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है।
एक सज्जन पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर चर्चा के दौरान कहने लगे- एक ही विकल्प अब आर पार की लड़ाई हो जानी चाहिए।
मैंने कहा- आपको लगता है युद्ध के बाद सब शांत हो जाएगा ?
वे बोले- उससे मतलब नहीं। यह प्रतिष्ठा का प्रश्न है। नाक का प्रश्न है।
हमने फिर कहा- युद्ध तो होगा पर लड़ेगा कौन ?
वे जोश में बोले- भारतीय सेना किसलिए है ?
मैंने कहा- और युद्ध में यदि हजारों सैनिक फिर मारे जाते हैं तो ?
वे मुस्कुराते हुए कहने लगे- जब दो हाथी लड़ेंगे तो कुछ तो नुकसान होगा ही।
मैंने कहा- आपके बच्चे भी यही चाहते हैं ?
वे बोले- हमारा तो एक ही लड़का है। वह कनाडा में है।
मैंने कहा- वह कनाडा में क्यों है।
वे बोले- उसे इंडिया नहीं पसंद। वह वहीं सेटल हो गया पढ़ लिखकर। यह घटिया देश है।
फिर वे अंग्रेजी पर आ गए और कहने लगे- ही डोंट लव इंडियन कल्चर.. यहां की गंदगी एंड मेनी मोर थिंग्स... करप्ट लीडर्स एंड पॉलिटिक्स मेड इंडिया आ घटिया कंट्री।
मैंने कहा- पर युद्ध होगा तो जो सैनिक मरेंगे वे भी तो किसी की संतान होंगे। वे ऐसे लोगों के बच्चे होते हैं जो किसान होते हैं, मजदूर होते हैं, मिडिल क्लास से बिलांग करते हैं। ऐसे ही किसी को युद्ध में झोंक देना कहाँ का न्याय है। आखिर जान तो सबकी प्यारी है। चाहे वे सैनिक ही क्यों न हों ?
वे झट से बीच में ही बात काटते हुए कहने लगे- सैनिक लड़ने के लिए ही होता है।
मैंने पूछा- आपको उनके जान की परवाह नहीं ?
वे कहने लगे- और जो देश की प्रतिष्ठा दांव पर है ?
मैंने कहा- देश लोगों से बनता है। जब लोग ही नहीं रहेंगे तो देश का क्या ? और सेना के जवान भी इसी देश के नागरिक हैं। यह कैसे संभव है कि आप देश से प्रेम तो कर रहे पर सेना के जान की फिक्र नहीं आपको !
इतना कहने के बाद भी वे बोले- फिलहाल तो देश मेरे लिए सर्वोपरि है।
साधो, इस बहस से एक बात समझ मे आई। युद्ध लड़ाई-झगड़े बड़ा मजा देते हैं, तबतक जबतक कि कोई अपना न जान गंवा रहा हो। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं। ऐसी कौन सी समस्या है जो बातों से हल नहीं हो सकती ! बस जरूरत होती है सही पहल की जो वाकई समाधान के लिए की गई हो।
साधो, अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने स्तब्ध कर दिया जब उसने कहा कि देश में जंगल में रह रहे अवैध लोगों को बाहर किया जाए। मैं हैरान था कि इतने बड़े फैसले से देश में रह रहे लोगों को गुस्सा क्यों नहीं आया? क्यों लोगों की नाक नहीं कटी और क्यों वे सारा कामधाम छोड़कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उसके अगेंस्ट नहीं हुए ?
एक मेरे परिचित हैं। बड़े भले व्यक्ति हैं। कहने लगे- सही फैसला है सुप्रीम कोर्ट का। हर अवैध कब्जे के खिलाफ सरकार को ऐसे ही एक्शन लेना चाहिए।
साधो, जैसे कि मैंने पहले ही कहा कि वे भले व्यक्ति हैं। उन्होंने अपने दुआर के सामने का ग्राम समाज का गड्ढा पाट लिया है। सड़क जो कि उनके खेत से होकर गुजरती है उसे फावड़े से थोड़ा-थोड़ा काटकर लगभग आधा कर दिया है। प्रदेश सरकार का नियम है कि दलित या आदिवासी की जमीन कोई उच्चवर्ग नहीं खरीद सकता पर उन्होंने अपने भले होने का सबूत देते हुए यह काम किया है।
साधो, जमीन के मामले में इतना सज्जन आदमी जब कहे कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सही है तो अपने आप को बस कोड़े मारने का मन करता है।
हां तो बात युद्ध से शुरू हुई थी। साधो, आज देश खुशियां मना रहा है। पुलवामा के बदले एयर स्ट्राइक हो चुकी है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा था- युद्ध बड़े काम का होता है। यह चुनाव तक जितवा देता है। सारे गम की दवा युद्ध में छिपी है।
साधो, पिछले दस दिनों से माहौल तैयार किया जा रहा था। न्यूज़ चैनल से लेकर, अखबार सोशल मीडिया तक सब यूद्ध-युद्ध की हुंकार भरे हुए थे। अब सब शांत हो जाएगा। पिछले दस दिनों में न तो देश में किसानों ने आत्महत्या की, न ही कहीं दलित घोड़ी चढ़ते पिटा, और न ही किसी ने रॉफेल की कीमत पूछी। हां, एक बड़ी ऐतिहासिक घटना जरूर हो गयी। साहेब ने सफाई कर्मियों के पैर धोये।
साधो, एयर अटैक से देश की नाक जुड़ गई। अब कश्मीर में हिंसा नहीं होगी। ईंट का जवाब पत्थर से दिया जा चुका है। उम्मीद ही नहीं यकीन है, चुनाव बेटर रिजल्ट देकर जाएगा।
बाकी मेरा क्या साधो, मैं तो शांति की बात अब भी करूँगा, देशद्रोही जो हूँ।
साधो युद्ध बड़े काम की चीज है यह चुनाव तक जितवा देता है। युद्ध पर देश की नाक टिकी होती है। एक हमला कर और दूसरा शांति समझौता चाहे तो शांति समझौता चाहने वाले देश की जनता को लगता है कि उसकी नाक कट रही है। युद्ध पर अरबों रुपये का व्यापार टिका होता है। युद्ध न हो तो बड़े बड़े देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है।
एक सज्जन पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर चर्चा के दौरान कहने लगे- एक ही विकल्प अब आर पार की लड़ाई हो जानी चाहिए।
मैंने कहा- आपको लगता है युद्ध के बाद सब शांत हो जाएगा ?
वे बोले- उससे मतलब नहीं। यह प्रतिष्ठा का प्रश्न है। नाक का प्रश्न है।
हमने फिर कहा- युद्ध तो होगा पर लड़ेगा कौन ?
वे जोश में बोले- भारतीय सेना किसलिए है ?
मैंने कहा- और युद्ध में यदि हजारों सैनिक फिर मारे जाते हैं तो ?
वे मुस्कुराते हुए कहने लगे- जब दो हाथी लड़ेंगे तो कुछ तो नुकसान होगा ही।
मैंने कहा- आपके बच्चे भी यही चाहते हैं ?
वे बोले- हमारा तो एक ही लड़का है। वह कनाडा में है।
मैंने कहा- वह कनाडा में क्यों है।
वे बोले- उसे इंडिया नहीं पसंद। वह वहीं सेटल हो गया पढ़ लिखकर। यह घटिया देश है।
फिर वे अंग्रेजी पर आ गए और कहने लगे- ही डोंट लव इंडियन कल्चर.. यहां की गंदगी एंड मेनी मोर थिंग्स... करप्ट लीडर्स एंड पॉलिटिक्स मेड इंडिया आ घटिया कंट्री।
मैंने कहा- पर युद्ध होगा तो जो सैनिक मरेंगे वे भी तो किसी की संतान होंगे। वे ऐसे लोगों के बच्चे होते हैं जो किसान होते हैं, मजदूर होते हैं, मिडिल क्लास से बिलांग करते हैं। ऐसे ही किसी को युद्ध में झोंक देना कहाँ का न्याय है। आखिर जान तो सबकी प्यारी है। चाहे वे सैनिक ही क्यों न हों ?
वे झट से बीच में ही बात काटते हुए कहने लगे- सैनिक लड़ने के लिए ही होता है।
मैंने पूछा- आपको उनके जान की परवाह नहीं ?
वे कहने लगे- और जो देश की प्रतिष्ठा दांव पर है ?
मैंने कहा- देश लोगों से बनता है। जब लोग ही नहीं रहेंगे तो देश का क्या ? और सेना के जवान भी इसी देश के नागरिक हैं। यह कैसे संभव है कि आप देश से प्रेम तो कर रहे पर सेना के जान की फिक्र नहीं आपको !
इतना कहने के बाद भी वे बोले- फिलहाल तो देश मेरे लिए सर्वोपरि है।
साधो, इस बहस से एक बात समझ मे आई। युद्ध लड़ाई-झगड़े बड़ा मजा देते हैं, तबतक जबतक कि कोई अपना न जान गंवा रहा हो। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं। ऐसी कौन सी समस्या है जो बातों से हल नहीं हो सकती ! बस जरूरत होती है सही पहल की जो वाकई समाधान के लिए की गई हो।
साधो, अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने स्तब्ध कर दिया जब उसने कहा कि देश में जंगल में रह रहे अवैध लोगों को बाहर किया जाए। मैं हैरान था कि इतने बड़े फैसले से देश में रह रहे लोगों को गुस्सा क्यों नहीं आया? क्यों लोगों की नाक नहीं कटी और क्यों वे सारा कामधाम छोड़कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उसके अगेंस्ट नहीं हुए ?
एक मेरे परिचित हैं। बड़े भले व्यक्ति हैं। कहने लगे- सही फैसला है सुप्रीम कोर्ट का। हर अवैध कब्जे के खिलाफ सरकार को ऐसे ही एक्शन लेना चाहिए।
साधो, जैसे कि मैंने पहले ही कहा कि वे भले व्यक्ति हैं। उन्होंने अपने दुआर के सामने का ग्राम समाज का गड्ढा पाट लिया है। सड़क जो कि उनके खेत से होकर गुजरती है उसे फावड़े से थोड़ा-थोड़ा काटकर लगभग आधा कर दिया है। प्रदेश सरकार का नियम है कि दलित या आदिवासी की जमीन कोई उच्चवर्ग नहीं खरीद सकता पर उन्होंने अपने भले होने का सबूत देते हुए यह काम किया है।
साधो, जमीन के मामले में इतना सज्जन आदमी जब कहे कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सही है तो अपने आप को बस कोड़े मारने का मन करता है।
हां तो बात युद्ध से शुरू हुई थी। साधो, आज देश खुशियां मना रहा है। पुलवामा के बदले एयर स्ट्राइक हो चुकी है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा था- युद्ध बड़े काम का होता है। यह चुनाव तक जितवा देता है। सारे गम की दवा युद्ध में छिपी है।
साधो, पिछले दस दिनों से माहौल तैयार किया जा रहा था। न्यूज़ चैनल से लेकर, अखबार सोशल मीडिया तक सब यूद्ध-युद्ध की हुंकार भरे हुए थे। अब सब शांत हो जाएगा। पिछले दस दिनों में न तो देश में किसानों ने आत्महत्या की, न ही कहीं दलित घोड़ी चढ़ते पिटा, और न ही किसी ने रॉफेल की कीमत पूछी। हां, एक बड़ी ऐतिहासिक घटना जरूर हो गयी। साहेब ने सफाई कर्मियों के पैर धोये।
साधो, एयर अटैक से देश की नाक जुड़ गई। अब कश्मीर में हिंसा नहीं होगी। ईंट का जवाब पत्थर से दिया जा चुका है। उम्मीद ही नहीं यकीन है, चुनाव बेटर रिजल्ट देकर जाएगा।
बाकी मेरा क्या साधो, मैं तो शांति की बात अब भी करूँगा, देशद्रोही जो हूँ।