उत्तराखंड उच्च न्यायालय का मदरसे की सील खोलने का आदेश, मदरसों के खिलाफ धामी सरकार की कार्रवाई के खिलाफ जमीयत सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

Written by sabrang india | Published on: April 9, 2025
उत्तराखंड में अवैध मदरसों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी गई है। 136 मदरसे सील कर दिए गए। उच्च न्यायालय ने सख्त शर्तों के साथ सील खोलने का आदेश दिया, क्योंकि फंडिंग और शिक्षा के मानक जांच के दायरे में हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि वे निर्णायक कार्रवाई करेंगे। कानूनी लड़ाई के बीच, सर्वोच्च न्यायालय ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका की समीक्षा करने पर सहमति जताई, जबकि यह सुनिश्चित किया कि छात्रों की शिक्षा निर्बाध रहे और नियामक अनुपालन बरकरार रहे।



उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 3 अप्रैल, 2025 को एक मदरसे की सील खोलने का आदेश दिया, जिसे कथित तौर पर "अवैध रूप से" संचालित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा सील कर दिया गया था। अदालत का ये निर्णय इस शर्त पर था कि मदरसा तब तक स्कूल के रूप में काम नहीं करेगा जब तक कि उसे राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता न दी जाए।

यह आदेश राज्य द्वारा एक महीने तक की गई कार्रवाई के बाद आया है, जिसके दौरान 136 से अधिक मदरसों को उचित एफिलिएशन के बिना संचालित करने और मदरसा बोर्ड द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा न करने के कारण सील कर दिया गया था। इसके अलावा, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इन संस्थानों के वित्तपोषण स्रोतों की जांच शुरू की।

मदरसा मालिकों ने राज्य की कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा कि उनका संस्थान एक पंजीकृत सोसायटी द्वारा संचालित धार्मिक स्कूल है। उन्होंने कहा कि उनके परिसर को सील करने में कानूनी अधिकार और उचित मंजूरी का अभाव था। बदले में, अदालत ने याचिकाकर्ता की संपत्ति को सील करते समय राज्य द्वारा आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने पर सवाल उठाया।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर ने सीलिंग का बचाव करते हुए दावा किया कि मदरसा नियमों का उल्लंघन करके चल रहा था। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि भले ही सोसायटी ने अपने उद्देश्यों को पार कर लिया हो, लेकिन उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना संपत्ति को सील करना अनुचित था।

1 अप्रैल के अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा कि संपत्ति को बिना कारण बताओ नोटिस या याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर दिए सील कर दिया गया था। अंतरिम उपाय के रूप में, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अगली सुनवाई तक मदरसे को सील नहीं किया जाएगा, बशर्ते याचिकाकर्ता संबंधित कानूनों और विनियमों के अनुपालन में राज्य सरकार से आवश्यक मान्यता के बिना मदरसा या स्कूल संचालित न करने पर सहमत हों।

पिछले महीने उत्तराखंड में 136 अवैध मदरसे सील किए गए

उत्तराखंड सरकार ने गैर पंजीकृत मदरसों पर अपनी कार्रवाई तेज कर दी है, राज्य भर में कुल 136 ऐसे संस्थानों को सील कर दिया है, जिसमें उत्तर प्रदेश की सीमा के पास नए स्थापित मदरसों पर विशेष ध्यान दिया गया है। सोमवार को देहरादून जिला प्रशासन ने सहसपुर में एक मदरसे को सील कर दिया, क्योंकि पता चला कि उसने बिना पूर्व अनुमति के अवैध रूप से एक कुछ मंजिल का निर्माण किया था।

हाल ही में खुफिया रिपोर्टों में उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे शहरों में गैर-पंजीकृत मदरसों में वृद्धि की बात कही गई है, जिसके बाद राज्य ने कार्रवाई तेज कर दी है। सील किए गए मदरसों में से 64 उधम सिंह नगर में, 44 देहरादून में, 26 हरिद्वार में और 2 पौड़ी गढ़वाल में हैं। सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि उत्तराखंड में लगभग 500 अवैध मदरसे हैं, जबकि पंजीकृत मदरसे केवल 450 हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, इनमें से कई अपंजीकृत संस्थाएं जसपुर, बाजपुर, किच्छा, काशीपुर, रुद्रपुर, गदरपुर और हरिद्वार जिले के कुछ इलाकों में चल रही हैं। नतीजतन, इन जगहों पर कार्रवाई को प्राथमिकता दी गई है। इसके अलावा, जिला प्रशासन को पंजीकृत और गैर पंजीकृत मदरसों द्वारा प्राप्त धन और दान के बारे में जानकारी जुटाने का काम सौंपा गया है। पंजीकृत संस्थाओं को अब बैंक खाता डिटेल और वित्तीय रिकॉर्ड सहित विस्तृत दस्तावेज जमा करने होंगे।

रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से कई मदरसे अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और उत्तराखंड मदरसा बोर्ड द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करने में विफल रहे हैं। जवाब में, धामी सरकार ने प्रयास तेज कर दिए हैं, जिला प्रशासनों को मदरसा संचालकों की वैधता सत्यापित करने, छात्र नामांकन पर नजर रखने और फंडिंग के स्रोतों की जांच करने का निर्देश दिया है।

यह कार्रवाई मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बयानों के बाद की गई है, जिन्होंने अवैध मदरसों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जारी रखने का संकल्प लिया है। धामी ने जोर देकर कहा कि गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा, जो इस मुद्दे पर सरकार के अडिग रुख का संकेत है।

उत्तराखंड के सीएम धामी ने कथित फंडिंग की जांच के आदेश दिए

विशेष रूप से, राज्य सरकार के अनुमानों से पता चलता है कि उत्तराखंड में लगभग 450 पंजीकृत मदरसे हैं, जबकि लगभग 500 गैर पंजीकृत मदरसे हैं। हाल ही में 136 मदरसों को सील किए जाने के जवाब में, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इन संस्थानों के फंडिंग की गहन जांच के आदेश दिए हैं। मार्च में शुरू हुई यह कार्रवाई खास तौर पर उन मदरसों को निशाना बनाती है जो न तो शिक्षा विभाग और न ही मदरसा बोर्ड के साथ पंजीकृत हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से कई गैर पंजीकृत मदरसे सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत काम करते हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राज्य सचिव खुर्शीद अहमद ने इस अभियान को गैरकानूनी बताया है, उनका तर्क है कि मदरसा प्रशासकों को उनके संस्थानों को सील करने से पहले उचित सूचना नहीं दी गई थी। उन्होंने इस कार्रवाई के समय पर भी प्रकाश डाला, जब रमजान की महीना चल रहा था और परीक्षाएं समाप्त होने वाली थी। इससे बच्चे चले गए और सवाल उठने लगे कि क्या वे स्थानांतरित होने के बाद अन्य स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल हो पाएंगे।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमूम कासमी ने लोगों को आश्वस्त किया कि सील किए गए मदरसों के छात्रों को पास के स्कूलों और मदरसों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। उन्होंने शिक्षा के अधिकार को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी बच्चे की शिक्षा बाधित न हो। पाठ्यक्रम के समन्वय के मुद्दे पर, कासमी ने कहा कि शिक्षा विभाग इस पर काम करेगा, ठीक उसी तरह जैसे उत्तर प्रदेश ने कक्षा 10 और 12 के लिए मुंशी और मौलवी पाठ्यक्रमों को समतुल्यता प्रदान की है।

हालांकि मदरसों का राज्यव्यापी निरीक्षण पूरा हो चुका है, लेकिन इसके निष्कर्ष अभी तक जनता के सामने नहीं रखे गए हैं।

उत्तराखंड में मान्यता प्राप्त मदरसे मदरसा शिक्षा के लिए राज्य बोर्डों द्वारा शासित होते हैं, जबकि गैर पंजीकृत मदरसे आमतौर पर दारुल उलूम नदवतुल उलमा और दारुल उलूम देवबंद जैसे बड़े संस्थानों द्वारा स्थापित पाठ्यक्रम के अनुसार चलते हैं।

मदरसों की सीलिंग के खिलाफ जमीयत की याचिका की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत

इस बीच, 3 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट उत्तराखंड में मदरसों की सीलिंग के संबंध में जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिका की समीक्षा करने के लिए सहमत हो गया। ईटीवी भारत की रिपोर्ट के अनुसार, मामले की सुनवाई जस्टिस एम.एम.सुंदरेश और राजेश बिंदल ने सुनवाई की। मुस्लिम संस्था का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता फ़ुज़ैल अहमद अय्यूबी ने की।

पीठ ने माना कि सरकार द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षा के अधिकार अधिनियम के पालन या मदरसों के वित्तपोषण के बारे में जानकारी मांगने में कोई समस्या नहीं थी। हालांकि, इसने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता अधिकार क्षेत्र वाले उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी परेशानियों को रख सकता है। हालांकि, सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ द्वारा 21 अक्टूबर, 2024 को दिए गए आदेश का हवाला देते हुए असहमति जताई, जिसमें शिक्षा के अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करने वाले सरकारी वित्त पोषित मदरसों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी गई थी।

दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने आगे के विचार के लिए जमीयत की याचिका को पिछले साल अक्टूबर में दायर मुख्य मामले के साथ जोड़ने का फैसला किया।

रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की एक सिफारिश पर रोक लगा दी थी, जिसमें गैर पंजीकृत मदरसों को बंद करने की मांग की गई थी। न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों की बाद की कार्रवाइयों पर भी रोक लगा दी। इसके अलावा, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों के ऐसे ही निर्देशों पर भी रोक लगा दी, जिनमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों से छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था।

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