यूपी के सहारनपुर के शिवालिक वन क्षेत्र में अरसे से रहते आ रहे वनगुर्जर परिवारों ने वनाधिकार कानून (FRA) के तहत सुरक्षा और संरक्षण की मांग की है। दरअसल राज्य सरकार ने उन्हें बेदखली के नोटिस जारी किए हैं। खास है कि पिछले दिनों राज्य सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए सेना को प्रशिक्षण के प्रयोजनों के लिए शिवालिक रेंज की 28,000 हेक्टेयर वन भूमि में से करीब 25,000 हेक्टेयर का उपयोग करने की अनुमति दे दी थी, जिससे यहां रह रहे 1800 पशुपालक (घुमंतू) परिवारों का जीवन अधर में फंस गया है।
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पिछले हफ्ते शिवालिक वन प्रभाग की बादशाही बाग रेंज में "वन गुर्जर ट्राइबल युवा संगठन" के बैनर तले आयोजित बैठक में मुख्य अतिथि और सांसद हाजी फजलुर्रहमान एवं बेहट विधायक उमर अली खान को समस्याओं से संबंधित ज्ञापन सौंपा। बैठक में संगठन सचिव शमशाद बानिया ने कहा कि शिवालिक पहाड़ियों में रह रहे वन गुर्जरों को सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने गजट प्रकाशित कर वन क्षेत्र, सेना को फायरिंग के लिए दे दिया है, जबकि इस वन क्षेत्र में क़रीब 1800 वन गुर्जर परिवार रहते हैं जो सभी परमिट धारी हैं। सभी का गुजर बसर वनों में रहकर पशुपालन से ही चलता है परंतु सरकार ने इनसे कोई बातचीत किए बिना ही सभी को बेघर करने की योजना बना डाली है। वन गुर्जर गुलाम नबी ने कहा कि पूर्व में भी सेना की फायरिंग में यहां हादसे हो चुके हैं। एक वनगुर्जर महिला की मौत हो गई थी परंतु इस और कोई ध्यान नहीं दिया गया।
सांसद हाजी फजलुर्रहमान ने वन गुर्जरों को जंगल से निकालने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट व केंद्र सरकार के वनाधिकार कानून 2006 का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि जंगल में दशकों से रहते आ रहे इस समुदाय के लोगों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस समुदाय के जंगल में रहने को उनका अधिकार माना है और उन्हें जंगल से बेदखल करने पर रोक लगाई है।
शिवालिक वन प्रभाग सहारनपुर में प्रस्तावित टाइगर रिजर्व तथा फायरिंग रेंज के संबंध में प्रशासन ने वन गुर्जरों को जंगल खाली करने का नोटिस दिए हैं और इसे लेकर लगातार दबाव भी बनाया जा रहा है। कहा केंद्र व प्रदेश सरकार पहले इन लोगों को जमीन देकर, उसका मालिकाना हक दें और इनका पुनर्वास करें। अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी ने कहा कि प्रशासन और सरकार के पास वन गुर्जरों को जंगल से बेदखल करने का कोई अधिकार नहीं है। यदि प्रशासन ने समुदाय पर दबाव बनाया और इन्हें प्रताड़ित किया तो सुप्रीम कोर्ट की शरण ली जाएगी।
उधर न्यूज क्लिक की एक खबर के अनुसार, वन गुर्जर आदिवासी युवा संगठन (वीजीटीवाईएस) की बैठक में 14 किमी दूर शाकंभरी खोल (वन गुर्जर बस्ती) से आए वन गुर्जर आलम गिर ने बताया, "हमें वन विभाग द्वारा नोटिस दिया गया है कि हमें जल्द ही अपने डेरे (लकड़ी और मिट्टी से बने छोटे घर) खाली करने होंगे।" उनका कहना है कि सेना पिछले दो साल से जंगलों का इस्तेमाल फायरिंग की प्रैक्टिस के लिए कर रही है। यह बैठक हाल ही में राज्य सरकार के अध्यादेश से संबंधित थी, जिसमें भारतीय सेना को प्रशिक्षण प्रयोजनों के लिए उत्तर प्रदेश के शिवालिक रेंज में 28,000 हेक्टेयर भूमि में से 25,000 हेक्टेयर का उपयोग करने की अनुमति दी थी। वीजीटीवाईएस के एक सदस्य अमन गुर्जर ने बताया, "वन गुर्जरों के 1,800 परिवारों की अनदेखी करते हुए वन विभाग ने कहा है कि आवंटित 25,000 हेक्टेयर वन भूमि में, कोई भी मौजूद नहीं है। यानी कोई निवास नहीं करता है।"
शिवालिक वन क्षेत्र में 1980 के दशक से भारतीय सेना काम कर रही है। तभी से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के इन जंगलों से स्थानीय समुदायों को विस्थापित करने के लिए राज्य द्वारा बार-बार प्रयास किए गए हैं। वे हमेशा जंगलात, वन विभाग से डरते रहे हैं, जिसने राज्य मशीनरी के रूप में काम किया है और वनों के विकास या संरक्षण के वादे के साथ स्थानीय समुदायों के विस्थापन के छुपे एजेंडे को भी चलता आ रहा है।
वर्तमान बैठक जिस संदर्भ में की गई थी, उसमें वन विभाग और राज्य सरकार ने भारतीय सेना की खातिर इसे (फायरिंग रेंज को) एजेंडे के तौर पर, आगे बढ़ाने में सहयोग किया है, लेकिन एक सदी से भी अधिक समय से शिवालिक वनों में जीवन बसर कर रहे वन गुर्जरों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
"यही हो रहा है, भले हमारे पास 1925 से भी पुराने समय से वन विभाग द्वारा जंगल और उसके संसाधनों का उपयोग करने के लिए दी गई अनुमति हो। आलम के अनुसार हमने डीएम साहब को परमिट दिखाया, लेकिन उन्होंने इसके बारे में कुछ भी करने से इनकार कर दिया।" आलम कहते हैं, उनके खोल में 91 परिवार हैं, और कुछ ही लोग सभा स्थल पर आ पाए हैं क्योंकि वे जंगलों के अंदरूनी हिस्से में रहते हैं। "कुछ के पास आने के लिए वाहन है, दूसरों को यहां पहुंचने के लिए कठिन इलाके से गुजरना होगा।" वहीं अमन कहते हैं कि सेना पिछले 10 वर्षों से अधिक से अभ्यास के लिए शिवालिक रेंज का उपयोग कर रही है, "लेकिन ऑपरेशन का क्षेत्र लगभग 2-3 हजार हेक्टेयर तक सीमित होता था लेकिन अब वे इसका विस्तार करना चाहते हैं"
संगठन में काम कर रहे शिक्षक व कार्यकर्ता शमशाद गुर्जर ने स्थिति की गंभीरता समझाते हुए, वन गुर्जर समुदाय पर राज्य के इस तरह के हमले के खिलाफ, समुदाय के बीच एकजुटता का आह्वान किया। घुमंतू (निचली पहाड़ियों से ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में जाने) जीवनशैली के माध्यम से मवेशियों को चराने और मवेशियों का दूध बेचने का काम करने वाला समुदाय, यदि विस्थापित होता हैं, तो समुदाय न केवल अपने घर बल्कि अपनी आजीविका भी खो देता है, क्योंकि पशु चराई जंगलों पर बहुत अधिक निर्भर है।
शमशाद ने कहा, "शिवालिक में, जहां हम आज इकट्ठे हुए हैं, हमें एक ठोस रणनीति बनाने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की जरूरत है। उत्तराखंड में, हमारा समुदाय ऐसी रणनीति से लड़ रहा है, और हमें शिवालिक रेंज में भी ऐसा ही करने की जरूरत है।" भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, "हमने देखा है कि हम अपने खोल में रहते हैं। इस प्रकार, इन खोलों के सभी लोगों को एकजुट होने और वन अधिकार अधिनियम, 2006 (एफआरए) के तहत समिति बनाने की जरूरत है।" वन रेंज में रहने वाले 1,800 परिवारों की वनाधिकार समितियों FRC का गठन, वन गुर्जरों को वन विभाग के खिलाफ एफआरए (FRA) के तहत मामला बनाने में मदद करेगी।
बेहट विधायक उमर अली खान ने समुदाय को समर्थन देने के लिए बैठक में भाग लिया। कहा "मैं 2011 से समुदाय के साथ संपर्क में हूं और काम कर रहा हूं, और मैं समुदाय के संघर्ष के साथ एकजुट होने का वादा करता हूं। उमर अली ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने वन गुर्जरों के लिए लेख लिखा है, जिसे आप में से कुछ ने पढ़ा होगा। यह इस पर था। वन गुर्जरों का इतिहास, जहां मैंने भारत की स्वतंत्रता में इस समुदाय की भूमिका पर प्रकाश डाला"
उन्होंने कहा कि हालांकि सेना के लिए जंगलों में अभ्यास करना, सुरक्षा के दृष्टिगत अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि इस तरह के कदम के साथ समुदाय का उचित पुनर्वास हो।
यह भी एक ज्ञात तथ्य है कि वन गुर्जर सेना के मित्र रहे हैं, कभी-कभी घुसपैठियों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए उनके साथ मिलकर काम करते हैं। उमर अली ने कहा, "चूंकि संगठन ने समुदाय की चिंताओं और जीवन को मुख्यधारा में लाने के लिए उत्तराखंड और हिमाचल राज्यों में खासा काम किया है, इसे हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में भी करने की जरूरत है।"
वन गुर्जरों की आजीविका का आधार बताते हुए, शमशाद ने वनों में उनके अधिकारों पर भी प्रकाश डाला। कहा “हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर राज्य, समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता देते हैं, और आरक्षण देते हैं। यही नहीं, राज्य वन क्षेत्र में समुदाय को भूमि अधिकार प्रदान करता है और पशु चराई और दूध के कारोबार की समान अर्थव्यवस्था के लिए समुदाय के घुमंतू प्रवास में आर्थिक मदद भी करता है।
उसी तरह के अधिकार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में मिलना तो दूर की बात है मगर अब समुदाय के लोगों को शिवालिक रेंज से बेदखल करने की वर्तमान व्यवस्था, समुदाय के अधिकारों के ठीक विरोधाभासी है जैसा कि वन अधिकार कानून 2006 (एफआरए) में प्रदान किया गया है। .
सांसद हाजी फजलुर्रहमान की मौजूदगी में शमशाद ने समुदाय के बारे में दो बातें कही। सबसे पहले, समुदाय को राज्य द्वारा स्वीकृत योजनाओं के सभी लाभों से वंचित किया गया है। वहीं, मुख्यधारा का समाज ऐसे समुदाय के अस्तित्व को मानने से इंकार करता है जो जंगलों के सुदूर अंदरूनी इलाकों में रहता है। दूसरा यह है कि समुदाय सेना और उसकी प्रथाओं के खिलाफ नहीं है।
"हमने सेना के लिए अपना सम्मान दिखाया है जब 2 साल पहले फायरिंग अभ्यास के दौरान एक गुर्जर महिला मारी गई थी और हमारे समुदाय ने विरोध में आवाज तक नहीं उठाई थी। शमशाद ने कहा कि हमें सेना के होने से से कोई समस्या नहीं है। सेना हो सकती है। "लेकिन सबसे पहले हम मांग करते हैं कि वनों पर हमारे अधिकारों को महत्व दिया जाए और उनकी रक्षा की जाए।"
हाजी फजलुर्रहमान ने कहा कि सेना की जरूरतों के प्रति समुदाय की प्रतिक्रिया सराहनीय है, "राज्य सरकार को वन गुर्जर समुदाय और उनके आवास की रक्षा करने की जरूरत है, उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, रोजगार प्रदान करना चाहिए, जहां कमी हैं।"
अंत में शमशाद ने सभी का आह्वान करते हुए रणनीतिक रूप से स्पष्ट किया कि संगठन के लिए अगला कदम FRC एफआरसी बनाना और उनकी मांगों की सूची जिला मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत करना है। "हमें विश्वास है कि एफआरए के कारण, हमारी दुविधा का समाधान हो जाएगा, और हमारे समुदाय के लोग सुरक्षित रहेंगे। समुदाय मुख्य रूप से अनपढ़ और दुनिया से कटे हुए, अब अधिकारियों के साथ समान स्तर पर बात करने के लिए तैयार हैं, जो उनके लिए भी बहुत आश्चर्य की बात होगी।”
(न्यूजक्लिक से इनपुट के साथ)
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सांसद हाजी फजलुर्रहमान ने वन गुर्जरों को जंगल से निकालने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट व केंद्र सरकार के वनाधिकार कानून 2006 का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि जंगल में दशकों से रहते आ रहे इस समुदाय के लोगों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस समुदाय के जंगल में रहने को उनका अधिकार माना है और उन्हें जंगल से बेदखल करने पर रोक लगाई है।
शिवालिक वन प्रभाग सहारनपुर में प्रस्तावित टाइगर रिजर्व तथा फायरिंग रेंज के संबंध में प्रशासन ने वन गुर्जरों को जंगल खाली करने का नोटिस दिए हैं और इसे लेकर लगातार दबाव भी बनाया जा रहा है। कहा केंद्र व प्रदेश सरकार पहले इन लोगों को जमीन देकर, उसका मालिकाना हक दें और इनका पुनर्वास करें। अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी ने कहा कि प्रशासन और सरकार के पास वन गुर्जरों को जंगल से बेदखल करने का कोई अधिकार नहीं है। यदि प्रशासन ने समुदाय पर दबाव बनाया और इन्हें प्रताड़ित किया तो सुप्रीम कोर्ट की शरण ली जाएगी।
उधर न्यूज क्लिक की एक खबर के अनुसार, वन गुर्जर आदिवासी युवा संगठन (वीजीटीवाईएस) की बैठक में 14 किमी दूर शाकंभरी खोल (वन गुर्जर बस्ती) से आए वन गुर्जर आलम गिर ने बताया, "हमें वन विभाग द्वारा नोटिस दिया गया है कि हमें जल्द ही अपने डेरे (लकड़ी और मिट्टी से बने छोटे घर) खाली करने होंगे।" उनका कहना है कि सेना पिछले दो साल से जंगलों का इस्तेमाल फायरिंग की प्रैक्टिस के लिए कर रही है। यह बैठक हाल ही में राज्य सरकार के अध्यादेश से संबंधित थी, जिसमें भारतीय सेना को प्रशिक्षण प्रयोजनों के लिए उत्तर प्रदेश के शिवालिक रेंज में 28,000 हेक्टेयर भूमि में से 25,000 हेक्टेयर का उपयोग करने की अनुमति दी थी। वीजीटीवाईएस के एक सदस्य अमन गुर्जर ने बताया, "वन गुर्जरों के 1,800 परिवारों की अनदेखी करते हुए वन विभाग ने कहा है कि आवंटित 25,000 हेक्टेयर वन भूमि में, कोई भी मौजूद नहीं है। यानी कोई निवास नहीं करता है।"
शिवालिक वन क्षेत्र में 1980 के दशक से भारतीय सेना काम कर रही है। तभी से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के इन जंगलों से स्थानीय समुदायों को विस्थापित करने के लिए राज्य द्वारा बार-बार प्रयास किए गए हैं। वे हमेशा जंगलात, वन विभाग से डरते रहे हैं, जिसने राज्य मशीनरी के रूप में काम किया है और वनों के विकास या संरक्षण के वादे के साथ स्थानीय समुदायों के विस्थापन के छुपे एजेंडे को भी चलता आ रहा है।
वर्तमान बैठक जिस संदर्भ में की गई थी, उसमें वन विभाग और राज्य सरकार ने भारतीय सेना की खातिर इसे (फायरिंग रेंज को) एजेंडे के तौर पर, आगे बढ़ाने में सहयोग किया है, लेकिन एक सदी से भी अधिक समय से शिवालिक वनों में जीवन बसर कर रहे वन गुर्जरों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
"यही हो रहा है, भले हमारे पास 1925 से भी पुराने समय से वन विभाग द्वारा जंगल और उसके संसाधनों का उपयोग करने के लिए दी गई अनुमति हो। आलम के अनुसार हमने डीएम साहब को परमिट दिखाया, लेकिन उन्होंने इसके बारे में कुछ भी करने से इनकार कर दिया।" आलम कहते हैं, उनके खोल में 91 परिवार हैं, और कुछ ही लोग सभा स्थल पर आ पाए हैं क्योंकि वे जंगलों के अंदरूनी हिस्से में रहते हैं। "कुछ के पास आने के लिए वाहन है, दूसरों को यहां पहुंचने के लिए कठिन इलाके से गुजरना होगा।" वहीं अमन कहते हैं कि सेना पिछले 10 वर्षों से अधिक से अभ्यास के लिए शिवालिक रेंज का उपयोग कर रही है, "लेकिन ऑपरेशन का क्षेत्र लगभग 2-3 हजार हेक्टेयर तक सीमित होता था लेकिन अब वे इसका विस्तार करना चाहते हैं"
संगठन में काम कर रहे शिक्षक व कार्यकर्ता शमशाद गुर्जर ने स्थिति की गंभीरता समझाते हुए, वन गुर्जर समुदाय पर राज्य के इस तरह के हमले के खिलाफ, समुदाय के बीच एकजुटता का आह्वान किया। घुमंतू (निचली पहाड़ियों से ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में जाने) जीवनशैली के माध्यम से मवेशियों को चराने और मवेशियों का दूध बेचने का काम करने वाला समुदाय, यदि विस्थापित होता हैं, तो समुदाय न केवल अपने घर बल्कि अपनी आजीविका भी खो देता है, क्योंकि पशु चराई जंगलों पर बहुत अधिक निर्भर है।
शमशाद ने कहा, "शिवालिक में, जहां हम आज इकट्ठे हुए हैं, हमें एक ठोस रणनीति बनाने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की जरूरत है। उत्तराखंड में, हमारा समुदाय ऐसी रणनीति से लड़ रहा है, और हमें शिवालिक रेंज में भी ऐसा ही करने की जरूरत है।" भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, "हमने देखा है कि हम अपने खोल में रहते हैं। इस प्रकार, इन खोलों के सभी लोगों को एकजुट होने और वन अधिकार अधिनियम, 2006 (एफआरए) के तहत समिति बनाने की जरूरत है।" वन रेंज में रहने वाले 1,800 परिवारों की वनाधिकार समितियों FRC का गठन, वन गुर्जरों को वन विभाग के खिलाफ एफआरए (FRA) के तहत मामला बनाने में मदद करेगी।
बेहट विधायक उमर अली खान ने समुदाय को समर्थन देने के लिए बैठक में भाग लिया। कहा "मैं 2011 से समुदाय के साथ संपर्क में हूं और काम कर रहा हूं, और मैं समुदाय के संघर्ष के साथ एकजुट होने का वादा करता हूं। उमर अली ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने वन गुर्जरों के लिए लेख लिखा है, जिसे आप में से कुछ ने पढ़ा होगा। यह इस पर था। वन गुर्जरों का इतिहास, जहां मैंने भारत की स्वतंत्रता में इस समुदाय की भूमिका पर प्रकाश डाला"
उन्होंने कहा कि हालांकि सेना के लिए जंगलों में अभ्यास करना, सुरक्षा के दृष्टिगत अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि इस तरह के कदम के साथ समुदाय का उचित पुनर्वास हो।
यह भी एक ज्ञात तथ्य है कि वन गुर्जर सेना के मित्र रहे हैं, कभी-कभी घुसपैठियों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए उनके साथ मिलकर काम करते हैं। उमर अली ने कहा, "चूंकि संगठन ने समुदाय की चिंताओं और जीवन को मुख्यधारा में लाने के लिए उत्तराखंड और हिमाचल राज्यों में खासा काम किया है, इसे हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में भी करने की जरूरत है।"
वन गुर्जरों की आजीविका का आधार बताते हुए, शमशाद ने वनों में उनके अधिकारों पर भी प्रकाश डाला। कहा “हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर राज्य, समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता देते हैं, और आरक्षण देते हैं। यही नहीं, राज्य वन क्षेत्र में समुदाय को भूमि अधिकार प्रदान करता है और पशु चराई और दूध के कारोबार की समान अर्थव्यवस्था के लिए समुदाय के घुमंतू प्रवास में आर्थिक मदद भी करता है।
उसी तरह के अधिकार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में मिलना तो दूर की बात है मगर अब समुदाय के लोगों को शिवालिक रेंज से बेदखल करने की वर्तमान व्यवस्था, समुदाय के अधिकारों के ठीक विरोधाभासी है जैसा कि वन अधिकार कानून 2006 (एफआरए) में प्रदान किया गया है। .
सांसद हाजी फजलुर्रहमान की मौजूदगी में शमशाद ने समुदाय के बारे में दो बातें कही। सबसे पहले, समुदाय को राज्य द्वारा स्वीकृत योजनाओं के सभी लाभों से वंचित किया गया है। वहीं, मुख्यधारा का समाज ऐसे समुदाय के अस्तित्व को मानने से इंकार करता है जो जंगलों के सुदूर अंदरूनी इलाकों में रहता है। दूसरा यह है कि समुदाय सेना और उसकी प्रथाओं के खिलाफ नहीं है।
"हमने सेना के लिए अपना सम्मान दिखाया है जब 2 साल पहले फायरिंग अभ्यास के दौरान एक गुर्जर महिला मारी गई थी और हमारे समुदाय ने विरोध में आवाज तक नहीं उठाई थी। शमशाद ने कहा कि हमें सेना के होने से से कोई समस्या नहीं है। सेना हो सकती है। "लेकिन सबसे पहले हम मांग करते हैं कि वनों पर हमारे अधिकारों को महत्व दिया जाए और उनकी रक्षा की जाए।"
हाजी फजलुर्रहमान ने कहा कि सेना की जरूरतों के प्रति समुदाय की प्रतिक्रिया सराहनीय है, "राज्य सरकार को वन गुर्जर समुदाय और उनके आवास की रक्षा करने की जरूरत है, उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, रोजगार प्रदान करना चाहिए, जहां कमी हैं।"
अंत में शमशाद ने सभी का आह्वान करते हुए रणनीतिक रूप से स्पष्ट किया कि संगठन के लिए अगला कदम FRC एफआरसी बनाना और उनकी मांगों की सूची जिला मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत करना है। "हमें विश्वास है कि एफआरए के कारण, हमारी दुविधा का समाधान हो जाएगा, और हमारे समुदाय के लोग सुरक्षित रहेंगे। समुदाय मुख्य रूप से अनपढ़ और दुनिया से कटे हुए, अब अधिकारियों के साथ समान स्तर पर बात करने के लिए तैयार हैं, जो उनके लिए भी बहुत आश्चर्य की बात होगी।”
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