ओडिशा: कापसवड़ा में आदिवासियों के घरों और मक्का की फसल में आग लगाई

Written by Navnish Kumar | Published on: August 14, 2022
नवरंगपुर, ओडिशा के उमरकोट प्रखंड के कापसवड़ा गांव के आदिवासियों के घरों और मक्का की फसल में आग लगा दी गई। ओडिशा कृषक सभा व ओडिशा आदिवासी अधिकार मंच ने इसे क्रूर अमानवीय कार्रवाई बताते हुए कड़ी निंदा की और विरोध दर्ज कराया।



वन अधिकार अधिनियम 2006 व संशोधन अधिनियम 2012 का उल्लंघन करते हुए और पेसा अधिनियम 1996 को बर्बरतापूर्वक कुचलते हुए, सत्तारूढ़ दलों द्वारा स्थानीय गुंडों को उकसाया गया और तथाकथित वन संरक्षण समिति (वन विभाग द्वारा गठित वीएसएस) ने जहां आदिवासी लोगों की मक्का की फसल को तबाह कर दिया। वहीं, इनके घरों को भी जबरदस्ती आग के हवाले कर दिया, जिसमें उनकी निजी संपत्ति, जो उन्होंने खेती व अन्य स्रोतों से अर्जित की थी, भी स्वाहा हो गई और खासा आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया।

मामला स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या से एक दिन पहले यानी 13 अगस्त का है। शनिवार की सुबह लगभग 10.30 बजे कुसुमगुड़ा और सिसिलगुडा के ग्रामीणों तथा वन विभाग द्वारा गठित वन संरक्षण समिति (वीएसएस) के इशारे पर घटी इस दुखद घटना में आदिवासियों की करीब 30 एकड़ कृषि भूमि में उगाई जाने वाली मक्का की फसल को आग के हवाले कर दिया गया। वन विभाग की इस जमीन को 25 आदिवासी परिवार करीब 25 साल से जोतते आ रहे थे। ये आदिवासी लोग ओडिशा के निवासी हैं। उनके घरों और फसलों में आग लगाने की अमानवीय कार्रवाई ने उन्हें न केवल असहाय छोड़ दिया, बल्कि उनके घरों में रखे भोजन, अनाज, धान, पीने के पानी के बर्तन और बर्तन आदि को भी राख में बदल दिया गया। इससे उनके सामने लंबे समय तक भूखे रहने की नौबत आ गई है।

यही नहीं, इस गंभीर घटना के घटित होने से पहले सत्ता पक्ष के स्थानीय नेताओं और वन विभाग की समिति सदस्यों (वीएसएस) द्वारा उन्हें धमकाया गया। इसी से स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, आदिवासियों ने उन डराने वालों के खिलाफ उमरकोट थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें घरों और मक्का की फसलों की एक साथ सुरक्षा की गुहार भी लगाई थी। इस पर पुलिस ने थाने पर दोनों पक्षों को तलब किया और उन्हें लड़ाई झगड़ा नहीं करने और किसी भी तरह की हिंसक गतिविधियों के लिए चेतावनी भी दी थी। लेकिन शनिवार सुबह अचानक कुसुमगुड़ा और सिलरागुड़ा के लगभग 200-300 उग्र ग्रामीणों ने वन संरक्षण समिति (वीएसएस) और सत्ताधारी दलों के स्थानीय नेताओं के नाम पर, हाथों में लाठी और फावड़े लिए आदिवासी लोगों पर गंभीर हमला बोल दिया। चारों ओर घेर लिया और करीब दो घंटे जमकर उत्पात मचाया।

इन (हिंसक) लोगों के डर और उनके द्वारा की गई हिंसक कार्रवाई के भय से कापसवड़ा के आदिवासियों में खौफ की स्थिति बन गई है। यही नहीं,  भड़काए गए उग्र ग्रामीणों ने, उनकी फसलों को नष्ट करने के बाद, पास के सिमिलीडागरा और सरियावत दो गांवों की मक्का की फसल को भी खराब किया गया। उनकी फसलों को नष्ट करने के लिए, गायों को उनके खेत पर चरने छोड़ दिया जाता है। जबकि मजेदार तथ्य यह है, कि आदिवासी भूख से मर रहे हैं।

यह बहुत ही दयनीय है कि जब हम आजादी के 75वें वर्ष का जश्न मना रहे हैं, तब आदिवासियों पर इस तरह का बर्बर बर्बर हमला हो रहा है। यह बहुत ही हृदय विदारक है।

ओडिशा कृषक सभा और ओडिशा आदिवासी अधिकार मंच ने इस क्रूर और अमानवीय आक्रामक कार्रवाई की निंदा करते हुए, विरोध किया है। उन्होंने कहा कि हम पुरजोर मांग करते हैं कि राज्य सरकार पीड़ित आदिवासी लोगों के लिए तुरंत हस्तक्षेप करे, जिन्होंने इस दुखद घटना के माध्यम से अपनी रोजी रोटी खो दिया है और जल्द से जल्द स्वतंत्र रूप से घटना की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। वहीं, नुकसान के लिए आदिवासियों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए।

सरकार को आदिवासी लोगों की रक्षा के लिए एफआरए-2006 के तहत खेती के लिए वन भूमि की अनुमति देनी चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए। यह भी मांग की गई है कि इस अपराध में शामिल दोषियों को तत्काल सजा दी जाए।

ओडिशा आदिवासी अधिकार मंच के महासचिव साला मरंडी, उपाध्यक्ष राजेश जानी और ओडिशा कृषक सभा के महासचिव सुरेश पाणिग्रही ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से मांग की कि, राज्य सरकार को इस मामले की जांच करने और उनकी मांगों को पूरा करने के लिए जिला प्रशासन को निर्देश देना चाहिए। अन्यथा की स्थिति में राज्य भर में कड़ा विरोध प्रदर्शनो की चेतावनी दी है।

बाकी ख़बरें