बीते पांच सालों में किशोरियों में एनीमिया का प्रसार 9% तक बढ़ा, कई राज्यों में 15% तक बढ़ोत्तरी: रिसर्च

Written by Navnish Kumar | Published on: September 13, 2023
"एक अध्ययन के अनुसार, देश में बीते 5 सालों में युवा लड़कियों में एनीमिया का प्रसार 9 फीसदी तक बढ़ा है। यही नहीं असम, त्रिपुरा सहित कई राज्यों में 15% तक की बड़ी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।"



जी हां, भारत में किशोर महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) की दर में भारी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। पीएलओएस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित नवीनतम अध्ययन के अनुसार, एनीमिया का प्रसार 2015 और 2016 में 54.2 प्रतिशत से बढ़कर 2019 से 2021 में 58.9 प्रतिशत हो गया। इस अध्ययन में देश के 21 राज्यों के प्रतिभागियों का विश्लेषण किया गया है।

अध्ययन के अनुसार, खून की कमी या एनीमिया के प्रसार में असम, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पांच प्रतिशत से कम की मामूली वृद्धि दर्ज हुई है।

10 में 6 पीड़ित; BHU सहित देश के कई संस्थानों के शोध में खुलासा  

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। पीएलओएस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 15 से 19 वर्ष की आयु की किशोरियों में एनीमिया बड़ा स्वास्थ्य जोखिम बना हुआ है। स्थिति यह है कि 10 में 6 किशोरी एनीमिया ग्रस्त हैं। देश के 21 राज्यों में हर साल एनीमिया का दायरा बढ़ता जा रहा है। यह जानकारी बनारस हिंदू विवि सहित देश के कई संस्थानों के संयुक्त अध्ययन में सामने आई है।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में 2015-16 और 2019-21 के एचएफएचएस के आंकड़ों को शामिल करते हुए क्रमशः 1,16,117 और 1,09,400 किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर समीक्षा की है। शोधकर्ताओं का कहना है कि देश में अभी भी 18 वर्ष से पहले किशोरियों का विवाह हो रहा है और ऐसे मामलों में एनीमिया की व्यापकता भी सबसे अधिक देखने को मिली है। अध्ययन में शामिल 70 फीसदी किशोरियां ग्रामीण क्षेत्रों से हैं, जो यह बताता है कि एनीमिया की परेशानी शहरों से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रही है।

दो बच्चों वाली माताएं ज्यादा एनीमिक

शोधकर्ताओं ने पाया कि कम से कम दो बच्चों वाली माताएं बिना बच्चों वाली किशोिरयों की तुलना में अधिक एनीमिक मिली हैं। इनका मानना है कि किशोरियों में एनीमिया के बढ़ते दायरे के लिए अशिक्षा एक बड़ा कारण है। शिक्षित किशोरियों में एनीमिया होने की आशंका कम होती है, क्योंकि शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य की जानकारी के जरिए इस स्थिति से बचा जा सकता है। शोधकर्ताओं ने जाति के आधार पर भी परिणाम निकाले हैं। इनका कहना है कि एससी और एसटी से संबंधित किशोरियों में अन्य समूहों की तुलना में एनीमिया होने की संभावना ज्यादा देखने को मिली है।

18 साल से कम उम्र में शादी बड़ा कारण

NFHS-4 (2015-16), NFHS-5 (2019-21) के चौथे और पांचवें दौर के आंकड़ों पर हुए शोध में रुझानों का विश्लेषण करने के लिए क्रमशः 1,16,117 और 1,09,400 किशोरियों पर अध्ययन किया गया। आंकड़ों में सामने आया कि एनीमिया 18 साल से कम उम्र में शादी करने वाली किशोरियों में ज्यादा व्यापक है। NFHS-4 और NFHS-5 में चयनित महिलाओं में से क्रमशः लगभग 10 और 8 प्रतिशत इसी आयुवर्ग से थीं। अध्ययन में कहा गया है कि करीब 70 प्रतिशत किशोरियां ग्रामीण इलाकों में रहती हैं। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि कम से कम दो बच्चों की माता किशोरियों में संतानहीन किशोरियों की तुलना में रक्त अल्पता ज्यादा है। उन्होंने यह भी पाया कि स्तनपान कराने वाली माताओं में रक्त अल्पता ज्यादा व्यापक है। 

पूर्वोत्तर राज्यों में खतरा कम

शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की किशोरियों में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में एनीमिया का खतरा कम है। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसा पौष्टिक आहार के कारण है, जिसमें आयरन से भरपूर लाल चावल शामिल है। शोध के अनुसार, इन राज्यों में पारंपरिक रूप से लाल चावल खाया जाता है और उनकी संस्कृति में स्थानीय स्तर पर उगाए जाने वाले और मौसमी खाद्य पदार्थों पर जोर दिया जाता है। शोध के मुताबिक देश के 21 राज्यों में अलग-अलग स्तर तक एनीमिया के प्रसार में वृद्धि दर्ज की गई। असम, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में 15 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।

अध्ययन के अनुसार, असम, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा की किशोरियों में एनीमिया का दायरा हर साल 15 फीसदी बढ़ रहा है जबकि पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार और मध्य प्रदेश राज्यों में पांच फीसदी वृद्धि देखी गई है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने उत्तराखंड और केरल में अध्ययन अवधि के दौरान एनीमिया के प्रसार में गिरावट दर्ज की है।

क्या होता है एनीमिया या खून की कमी?

एनीमिया शरीर के ऊतकों तक ऑक्सीजन ले जाने के लिए पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की कमी की समस्या है। हीमोग्लोबिन लाल कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है जो फेफड़ों से शरीर के अन्य सभी अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है। एनीमिया होने पर थकान, कमजोरी और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।

क्या कारण है एनीमिया के पीछे?

अध्ययन में कहा गया है कि प्रसार में वृद्धि के पीछे कुछ कारणों में एक से अधिक बच्चे होना, औपचारिक शिक्षा का अभाव, कम वजन होना कुछ प्रमुख कारण हैं। हालांकि, अध्ययन अवधि के दौरान उत्तराखंड और केरल में एनीमिया के प्रसार में गिरावट देखी गई। शोधकर्ताओं ने कहा कि एनीमिया एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बन गया है, खासकर भारतीय महिलाओं के लिए। हालांकि, किशोर महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता समय के साथ गहन शोध का विषय नहीं रही है।

किस तरह से बचा जा सकता है एनीमिया से?

पोषण को लेकर, गर्भवती माताओं के लिए, आयरन और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार महत्वपूर्ण है। स्थिति के आधार पर, चिकित्सा पेशेवर आयरन की खुराक लेने की सलाह दी जा सकती है।

आयरन सप्लीमेंट- स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले आयरन की कमी के आधार पर नवजात शिशुओं के लिए आयरन सप्लीमेंट की सलाह दे सकते हैं। बच्चे को क्या चाहिए, उसके आधार पर खुराक का चयन किया जाएगा।

शुरुआती हस्तक्षेप- यदि आयरन की कमी यानि एनीमिया पाया जाता है तो नवजात शिशु की जरूरतों के लिए विशिष्ट उपचार रणनीति विकसित की जानी चहिए। इसमें आयरन सप्लीमेंट, आहार में संशोधन और निरंतर अवलोकन शामिल हो सकता है।

 वैश्विक स्तर पर भी एनीमिया के प्रसार में बढ़ोत्तरी, 4 में से 1 प्रभावित, महिलाओं में तेजी से वृद्धि: लांसेट 

शोध से पता चला कि प्रजनन आयु की महिलाओं में, स्त्री रोग संबंधी विकार और मातृ रक्तस्राव एनीमिया के बोझ में योगदान देने वाले महत्वपूर्ण कारक थे। द लैंसेट हेमेटोलॉजी में पिछले माह प्रकाशित तीन दशकों के एक अध्ययन के अनुसार, अनुमान है कि वैश्विक आबादी का एक-चौथाई हिस्सा एनीमिया से पीड़ित है, महिलाओं, गर्भवती माताओं, युवा लड़कियों और 5 साल से कम उम्र के बच्चों में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2021 में, वैश्विक स्तर पर 1.92 बिलियन लोगों को एनीमिया था। 1990 के बाद से 420 मिलियन मामलों की वृद्धि। 2021 में, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में सबसे अधिक मामले थे। अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि 1990 और 2021 के बीच कम गंभीर एनीमिया की ओर वैश्विक बदलाव आया है। जबकि वयस्क पुरुषों में बड़ी कमी देखी गई, प्रजनन आयु की महिलाओं और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में प्रगति की धीमी दर पाई गई। 

वैश्विक स्तर पर, 2021 में, 17.5 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 31.2 प्रतिशत महिलाओं को एनीमिया था। लिंग अंतर प्रजनन वर्षों (15-49 वर्ष) के दौरान अधिक स्पष्ट था, जहां महिलाओं में एनीमिया का प्रसार 33.7 प्रतिशत था जबकि पुरुषों में 11.3 प्रतिशत था। IHME के शोधकर्ता और मुख्य लेखक विल गार्डनर के अनुसार, "पिछले कुछ वर्षों में, विश्व स्तर पर एनीमिया को कम करने पर बहुत ध्यान दिया गया है, लेकिन एक समूह के रूप में, महिलाओं और बच्चों ने सबसे कम प्रगति दिखाई है।" “यह एक सूक्ष्म स्थिति है जो पोषण तक पहुंच, सामाजिक आर्थिक स्थिति, गर्भनिरोधक की अधूरी आवश्यकता और एनीमिया के अंतर्निहित कारणों की पहचान करने और उनका इलाज करने की क्षमता के इर्द-गिर्द घूमती है। हमारा डेटा दिखाता है कि कैसे एक समूह - वयस्क पुरुष - ने दो अन्य समूहों, महिलाओं (15-49 वर्ष की आयु) और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की तुलना में बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है। 

गार्डनर ने कहा, बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण में यह, बदलाव और बेहतर सांस्कृतिक जागरूकता की आवश्यकता को दर्शाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाएं और बच्चे पीछे न रह जाएं। अध्ययन में पाया गया कि प्रजनन आयु की महिलाओं में एनीमिया के बोझ के लिए स्त्री रोग संबंधी विकार और मातृ रक्तस्राव महत्वपूर्ण योगदानकर्ता थे। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए, एनीमिया का मुख्य कारण आहार में आयरन की कमी थी, लेकिन भौगोलिक स्थानों में जहां ये रोग प्रचलित हैं, हीमोग्लोबिनोपैथी, अन्य संक्रामक रोग, एचआईवी/एड्स और मलेरिया भी महत्वपूर्ण योगदानकर्ता थे।

"कई युवा महिलाओं और लड़कियों के लिए, मासिक धर्म के दौरान खून की कमी के बारे में शिक्षा का अभाव है, जिनके पास मासिक धर्म की समस्याएं हैं उनमें प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए अपर्याप्त विकल्प, और एनीमिया होने पर इसे प्रबंधित करने और/या रिवर्स करने के तरीके के बारे में पर्याप्त ज्ञान नहीं है," ने कहा। आईएचएमई में वैज्ञानिक लेखिका डॉ. थेरेसा मैकहुघ, जो नवजात और बाल स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करती हैं। उन्होंने कहा, "हम जानते हैं कि एनीमिया मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है क्योंकि इससे जुड़ी कमजोरी और थकान वांछित गतिविधियों में बाधा डाल सकती है।" 

शोध से पता चला कि उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया वर्तमान में सबसे अधिक बोझ का सामना कर रहे हैं। 2021 में, पश्चिमी उप-सहारा अफ्रीका (47.4 प्रतिशत), दक्षिण एशिया (35.7 प्रतिशत), और मध्य उप-सहारा अफ्रीका (35.7 प्रतिशत) में एनीमिया का प्रसार सबसे अधिक था। सबसे कम एनीमिया वाले क्षेत्र आस्ट्रेलिया (5.7 प्रतिशत), पश्चिमी यूरोप (6 प्रतिशत), और उत्तरी अमेरिका (6.8 प्रतिशत) हैं।

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