पूंजीपतियों के लिए अधिकतम खुदरा मूल्य और किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, दावा किसान हितैषी होने का

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: September 25, 2020
एमआरपी यानी अधिकतम खुदरा मूल्य के जरिए पूंजीपतियों को ज्यादा कीमत वसूलने से रोका जाता है और एमआरपी कितना ज्यादा होता है यह छूट में सामान खरीदने वाले और खुदरा बेचने वाले भी जानते हैं। दूसरी ओर, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी था (है)। मतलब उसका खराब होने वाला अनाज, जिसे वह रख नहीं सकता समय पर न्यूनतम कीमत में बिक जाए उसकी व्यवस्था थी। और निश्चित रूप से यह किसानों पर सरकारी अहसान है।



सरकार किसी को इसके लिए बाध्य नहीं कर सकती थी कि वह महंगी कीमत में फसल खरीदे। इसलिए वह खुद खरीदती थी। यह मजबूरी में एक वाजिब व्यवस्था थी। कायदे से किसानों के लिए अनाज (फल, सब्जियां, फूल आदि भी) रखने की व्यवस्था करनी थी। और उन्हें यह सुविधा दी जानी चाहिए थी कि वे समय पर वाजिब मूल्य पर अपनी फसल बेच पाएं। इसके लिए सरकारी या निजी क्षेत्र में व्यवस्था की जानी चाहिए थी। कोल्ड स्टोरेज की तरह। पर यह सब नहीं करके बिचौलियों को बढ़ने पनपने दिया गया। वे कमाने लगे तो जमाखोरी रोकने के नाम पर अफसरों नेताओं के कमाने की व्यवस्था हुई। जो सब हुआ (कांग्रेस के शासन में, इमरजेंसी विरोधी जनता पार्टी के शासन में, अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपाई सरकार में और फिर नरेन्द्र मोदी की क्रांतिकारी सरकार के छह साल में) और चलता रहा वह ना आम जनता के हित में था ना किसान-कारोबारी के हित में। जनता के हित के नाम पर ऐसे नियम बनाए गए जिससे अफसरों की कमाई होती है और वह नेताओं तक पहुंचता रहता है। सरकार कोई हो।

अभी भी जो किया गया है वह ना जनता के हित में है ना किसान के हित में है। यह कारोबारियों के हित में है और भ्रष्ट अफसर अगर बीच से बाहर हो भी जाएं तो जनता का भला नहीं होने वाला और नेताओं को चंदा मिलता रहेगा। अभी नए कानून का विरोध इसीलिए है कि नई व्यवस्था में एमएसपी देर-सबेर खत्म हो जाएगा। और सरकारी व्यवस्था वैसे भी लचर है। जब निजी क्षेत्र को किसान से अनाज खरीदने की छूट दे दी जाएगी तो सरकारी व्यवस्था को बीएसएनएल होने से कौन रोक पाएगा। इसलिए कई लोगों ने मांग की है कि सरकार एक और अध्यादेश ले आए कि एमआरपी की व्यवस्था चलती रहेगी। 

पी साईनाथ ने ट्वीट कर कहा है कि किसानों का भला करने और उनकी कमाई दूनी करने के लिए जरूरी है कि उन्हें कर्ज मुक्त किया जाए। पुराने नियम निश्चित रूप से पुराने समय के अनुसार बने थे और तबके हैं जब देश अनाज के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था। जब आत्मनिर्भर हो गया तो नियम बदलने चाहिए पर वह सब नोटबंदी या जीएसटी लागू करने की तरह नहीं किया जा सकता है। पर सरकार है कि समझ ही नहीं रही है। संभव है, समझना चाहती ही नहीं हो।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की निन्दा नहीं की जा सकती है या नहीं की जानी चाहिए पर पुराने नियम सोच विचार कर बने थे और किसानों के हित में थे। इससे पहले यह बता दूं कि किसान अपना अनाज कहीं भी बेच सकता है यह सुनने में भले अच्छा लगता हो और बताता हो कि पहले किसानों पर प्रतिबंध था यानी जुल्म था। लेकिन सच्चाई यही है कि किसान अपना अनाज मंडी में तो मुश्किल से ले जा पाता है, बड़े शहरों के बाजार में कैसे ले जाएगा। जीएसटी के बाद जो सख्ती की गई है उसमें तो व्यापारी और कारोबारी के लिए सामान ले जाना मुश्किल हो गया है और खर्च कई गुना बढ़ गया है, सो अलग। किसान अगर बाजार में अपना माल ले भी जाए तो कीमत मिलने की कोई गारंटी नहीं होगी। ऐसे में जोखिम कौन लेगा। फिर भी नरेन्द्र मोदी ने देश को प्रयोगशाला बना रखा है और समर्थकों को एतराज नहीं है तो कोई कर भी क्या सकता है।

बाकी ख़बरें