कांट्रेक्ट फार्मिंग के नुकसान गुजरात की इस घटना से समझिए...

Written by Girish Malviya | Published on: September 26, 2020
यदि आप समझना चाहते हैं कि अनुबंध कृषि यानी कांट्रेक्ट फार्मिंग किस हद तक घातक हो सकती है तो गुजरात के पेप्सिको केस के बारे में एक बार जान लें...



पेप्सिको विवाद इस कृषि कानून की विसंगतियों को समझने का बहुत अच्छा उदाहरण है आपने बहुराष्ट्रीय कम्पनी पेप्सिको का सबसे लोकप्रिय प्रोडक्ट पेप्सी पी ही होगी लेकिन पेप्सी ब्रांड के अलावा यह कम्पनी क्वेकर ओट्स, गेटोरेड, फ्रिटो ले, सोबे, नेकेड, ट्रॉपिकाना, कोपेल्ला, माउंटेन ड्यू, मिरिंडा और 7 अप जैसे दूसरे ब्रांड की भी मालिक है। इसका एक अन्य मशहूर प्रोडक्ट है  Lay's चिप्स......
इस चिप्स में जो आलू इस्तेमाल होता है आलू की इस किस्म का पेटेंट पेप्सिको ने अपने नाम पर करवा रखा है, पेप्सिको का दावा है कि अपने ब्रांड के चिप्स के निर्माण के लिये वह स्पेशल आलू इस्तेमाल करती है, इसलिए ऐसे आलुओं पर केवल उसका ही अधिकार है.
पेप्सिको कम्पनी भारत के किसानो से वह स्पेशल आलू उगाने के लिए कांट्रेक्ट करती है बीज भी वह देती है और फसल भी वही खरीदती है यह कांट्रेक्ट फार्मिंग ही है,....  

एक साल पहले पेप्सिको ने गुजरात के तीन किसानों पर मुकदमा दायर किया........ पेप्सिको का आरोप था कि यह किसान अवैध रूप से आलू की एक किस्‍म जो कि पेप्‍स‍िको के साथ रजिस्‍टर है उसे उगा और बेच रहे थे। कंपनी का दावा था कि आलू की इस किस्‍म से वो Lay's ब्रैंड के चिप्‍स बनाती है और इसे उगाने का उसके पास एकल अधिकार है।

पेप्सिको कंपनी के मुताबिक, बिना लाइसेंस के इन आलू को उगाने के लिये गुजरात के तीन किसानों ने वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। ऐसे में पता चलते ही आलू के नमूने एकत्र किए गये और इन-हाउस प्रयोगशाला के साथ-साथ डीएनए विश्लेषण के लिए शिमला स्थित आईसीएआर और केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान में सत्यापन के लिए भेजे। परिणामों से पता चला कि गुजरात के यह किसान पंजीकृत आलू बेच रहे थे।

कंपनी की शिकायत और आलू की किस्‍म के पंजीकरण को देखते हुए वाणिज्यिक अदालत ने तीनों किसान, छबिलभाई पटेल, विनोद पटेल और हरिभाई पटेल को दोषी पाया  और उनके द्वारा आलू उगाने और बेचने पर रोक लगा दी साथ ही कोर्ट ने तीनों किसान से जवाब भी मांगा जवाब आने के बाद उन पर ओर कड़ी कार्यवाही की जा सकती है उन पर इतना जुर्माना भी लगाया जा सकता है कि उन्हें अपना खेत ही बेच देना पड़े.

यहाँ समझने लायक मूल बात यह है किसान कई जगह से बीज लाता है, ऐसे में कंपनी किस तरह से उन पर करोड़ों का दावा कर सकती है और ये कैसे कह सकती है कि छोटे-छोटे किसान उनके लिए ख़तरा हैं.

पेप्सिको कंपनी के खिलाफ गुजरात मे आवाज उठाने वाले किसानों ने कंपनी द्वारा पंजीकृत आलू की किस्म उगाकर बुआई सत्याग्रह भी किया.

पेप्सिको ने प्रत्येक किसान के ख़िलाफ़ क़रीब एक-एक करोड़ का दावा ठोंका लेकिन बाद में बढ़ते हुए विरोध को देखते हुए दावे को वापस ले लिया....

दरअसल इस तरह की संविदा खेती से जुड़े अपने ही खतरे हैं. छोटे और मझोले किसान इन अनुबंध की बारीकियों को समझ नहीं पाएंगे यदि फसल कम्पनी के मानकों के अनुसार नही हुई तो खुले बाजार में उसे बेच भी नही पाएंगे, यदि बेचने गए तो उनका हश्र इस गुजरात के तीन किसानों जैसा हो सकता है.

बहुराष्ट्रीय कंपनी किसी की सगी नही है कांट्रेक्ट फार्मिंग का सीधा अर्थ है बिल्लीयो को दूध की रखवाली सौप देना....

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