नई दिल्ली। केन्द्र के नए कृषि कानूनों को पलटने (बेअसर करने) के लिए पंजाब सरकार द्वारा लाए गए कृषि विधेयक संवैधानिक दृष्टि से कितने सही कितने गलत हैं यह बहस का विषय हो सकता है। वहीं, इन विधेयकों का हश्र क्या होगा, यह भी आने वाला समय बताएगा लेकिन इसके बहाने कांग्रेस ने नए कृषि कानूनों को लेकर एक बार फिर से एमएसपी पर जवाबदेही की गेंद, मोदी सरकार के पाले में डाल दी है। वो भी एक बड़ी थपाक के साथ।
एक तीर से कई निशाने साधने की तर्ज पर, इससे किसानों के मुद्दों पर कांग्रेस ने जहां देशभर में मोदी सरकार पर बड़ी राजनीतिक बढ़त ले ली है। वहीं, केंद्र के साथ गैर कांग्रेस शासित सरकारों पर किसानों को समझाने-मनाने का भारी-भरकम दबाव भी बढ़ा दिया है। यही नहीं, इसे किसान आंदोलन की भी बड़ी नैतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है। पूरे मामले से किसानों को साफ संदेश गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल की बिक्री उनका कानूनी व मौलिक अधिकार है।
खास है कि केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को बेअसर करने के लिए पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में मंगलवार को 4 विधेयक सर्वसम्मति से पारित किए गए। इन विधेयकों में गेहूं और धान की बिक्री या खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम करने पर कम से कम 3 साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।
छोटे किसानों की 2.5 एकड़ (एक हेक्टेयर) तक की जमीन की कुर्की से छूट दी गई है तो कृषि उत्पादों की जमाखोरी व कालाबाजारी पर भी अंकुश लगाया गया है।
हालांकि अभी इन विधेयकों को कानून बनने में लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा। लेकिन साफ तौर से राजनीतिक संदेश देने में कांग्रेस, न सिर्फ कामयाब हो गई है बल्कि भाजपा व केंद्र सरकार को पूरे मामले में और बैकफुट पर धकेलने में भी कामयाब होती दिख रही है।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का कहना है कि ये विधेयक राज्यपाल के पास जाएंगे, जो उन्हें मंजूर या नामंजूर कर सकते हैं। इसके बाद उन्हें राष्ट्रपति के पास जाने की जरूरत होगी। वे भी इन्हें मंजूर या नामंजूर कर सकते हैं। नामंजूर होने पर ‘पंजाब टर्मिनेशन ऑफ वाटर एग्रीमेंट्स एक्ट’ के मामले की तरह ही, राज्य सरकार केंद्रीय कानूनों के विरुद्ध अपनी जंग को कानूनी तौर पर लड़ना जारी रखेगी। इसके लिए वकीलों और माहिरों की एक टीम तैयार है।
केंद्रीय कानून के खिलाफ कानून लाने पर, पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने की संभावना के संबंध में कैप्टन अमरिंदर सिंह का कहना है कि, इंतजार करके देखते हैं.... कदम दर कदम आगे बढ़ेंगे। यदि ऐसी नौबत आई तो केंद्र सरकार को मुझे बर्खास्त करने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि वह अपना इस्तीफा जेब में ही रखते हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब और किसानों के हितों के साथ समझौता करने की जगह वह स्वेच्छा से इस्तीफा देना पसंद करेंगे।
-----केंद्र के कानून से कितने अलग हैं पंजाब सरकार के विधेयक------
देखा जाए तो पंजाब सरकार ने, केंद्र के तीन कृषि कानूनों को प्रभावहीन करने के लिए चार विधेयक पारित किए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन विधेयकों के माध्यम से केंद्र सरकार के कानूनों के प्रावधानों को बेअसर करने के कई प्रावधान किए गए हैं।
मसलन, केंद्र के किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट में कृषि उपज विपणन समितियों के तहत बनी मंडियों के बाहर अगर कोई कंपनी या व्यापारी फसल को खरीदते हैं तो उन्हें टैक्स नहीं देना होगा और वह किसी भी कीमत पर फसल की खरीद कर सकते हैं। जबकि पंजाब सरकार का विधेयक किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (प्रोमोशन एंड फैसिलिटेशन) विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन बिल में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से नीचे धान व गेहूं बेचने या खरीदने पर 3 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
दूसरा, केंद्र के किसानों के (सशक्तिकरण और सुरक्षा) कीमत के भरोसे संबंधी करार और कृषि सेवाएं एक्ट में कांट्रेक्ट (अनुबंध) आधारित कृषि को वैधानिकता प्रदान की गई है। इससे बड़े व्यवसायी और कंपनियां अनुबंध के जरिये ठेका आधारित कृषि कर सकते हैं जबकि पंजाब सरकार का विधेयक किसानों के (सशक्तिकरण और सुरक्षा) कीमत के भरोसे संबंधी करार और कृषि सेवाएं (विशेष प्रस्तावों और पंजाब संशोधन) बिल के तहत किसान और कंपनी में आपसी विवाद होने पर 2.5 एकड़ जमीन वाले किसानों की जमीन की कुर्की नहीं होगी। पशु, यंत्र, पशु बाड़े आदि भी कुर्की से मुक्त होंगे। दूसरा, विवाद के निपटारे के लिए सिविल कोर्ट में भी जाया जा सकेगा। केंद्रीय कानून में कोर्ट की बजाय, एसडीएम के यहां सुनवाई का प्रावधान है।
वहीं केंद्र के अनिवार्य वस्तु अधिनियम में निजी कंपनियां जितना मर्जी अनाज खरीद सकती हैं और उसका भंडारण कर सकती हैं। कितना व कहां भंडारण किया है, यह तक बताने की जरूरत नहीं है। जबकि पंजाब का विधेयक अनिवार्य वस्तु (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) में पंजाब में खरीदी जाने वाली फसल के बारे में निजी कंपनियों को सरकार को बताना होगा तथा सरकार को खास परिस्थितियों जैसे बाढ़, महंगाई और प्राकृतिक आपदा में स्टॉक लिमिट तय करने का भी अधिकार होगा।
एक तीर से कई निशाने साधने की तर्ज पर, इससे किसानों के मुद्दों पर कांग्रेस ने जहां देशभर में मोदी सरकार पर बड़ी राजनीतिक बढ़त ले ली है। वहीं, केंद्र के साथ गैर कांग्रेस शासित सरकारों पर किसानों को समझाने-मनाने का भारी-भरकम दबाव भी बढ़ा दिया है। यही नहीं, इसे किसान आंदोलन की भी बड़ी नैतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है। पूरे मामले से किसानों को साफ संदेश गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल की बिक्री उनका कानूनी व मौलिक अधिकार है।
खास है कि केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को बेअसर करने के लिए पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में मंगलवार को 4 विधेयक सर्वसम्मति से पारित किए गए। इन विधेयकों में गेहूं और धान की बिक्री या खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम करने पर कम से कम 3 साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।
छोटे किसानों की 2.5 एकड़ (एक हेक्टेयर) तक की जमीन की कुर्की से छूट दी गई है तो कृषि उत्पादों की जमाखोरी व कालाबाजारी पर भी अंकुश लगाया गया है।
हालांकि अभी इन विधेयकों को कानून बनने में लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा। लेकिन साफ तौर से राजनीतिक संदेश देने में कांग्रेस, न सिर्फ कामयाब हो गई है बल्कि भाजपा व केंद्र सरकार को पूरे मामले में और बैकफुट पर धकेलने में भी कामयाब होती दिख रही है।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का कहना है कि ये विधेयक राज्यपाल के पास जाएंगे, जो उन्हें मंजूर या नामंजूर कर सकते हैं। इसके बाद उन्हें राष्ट्रपति के पास जाने की जरूरत होगी। वे भी इन्हें मंजूर या नामंजूर कर सकते हैं। नामंजूर होने पर ‘पंजाब टर्मिनेशन ऑफ वाटर एग्रीमेंट्स एक्ट’ के मामले की तरह ही, राज्य सरकार केंद्रीय कानूनों के विरुद्ध अपनी जंग को कानूनी तौर पर लड़ना जारी रखेगी। इसके लिए वकीलों और माहिरों की एक टीम तैयार है।
केंद्रीय कानून के खिलाफ कानून लाने पर, पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने की संभावना के संबंध में कैप्टन अमरिंदर सिंह का कहना है कि, इंतजार करके देखते हैं.... कदम दर कदम आगे बढ़ेंगे। यदि ऐसी नौबत आई तो केंद्र सरकार को मुझे बर्खास्त करने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि वह अपना इस्तीफा जेब में ही रखते हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब और किसानों के हितों के साथ समझौता करने की जगह वह स्वेच्छा से इस्तीफा देना पसंद करेंगे।
-----केंद्र के कानून से कितने अलग हैं पंजाब सरकार के विधेयक------
देखा जाए तो पंजाब सरकार ने, केंद्र के तीन कृषि कानूनों को प्रभावहीन करने के लिए चार विधेयक पारित किए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन विधेयकों के माध्यम से केंद्र सरकार के कानूनों के प्रावधानों को बेअसर करने के कई प्रावधान किए गए हैं।
मसलन, केंद्र के किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट में कृषि उपज विपणन समितियों के तहत बनी मंडियों के बाहर अगर कोई कंपनी या व्यापारी फसल को खरीदते हैं तो उन्हें टैक्स नहीं देना होगा और वह किसी भी कीमत पर फसल की खरीद कर सकते हैं। जबकि पंजाब सरकार का विधेयक किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (प्रोमोशन एंड फैसिलिटेशन) विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन बिल में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से नीचे धान व गेहूं बेचने या खरीदने पर 3 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
दूसरा, केंद्र के किसानों के (सशक्तिकरण और सुरक्षा) कीमत के भरोसे संबंधी करार और कृषि सेवाएं एक्ट में कांट्रेक्ट (अनुबंध) आधारित कृषि को वैधानिकता प्रदान की गई है। इससे बड़े व्यवसायी और कंपनियां अनुबंध के जरिये ठेका आधारित कृषि कर सकते हैं जबकि पंजाब सरकार का विधेयक किसानों के (सशक्तिकरण और सुरक्षा) कीमत के भरोसे संबंधी करार और कृषि सेवाएं (विशेष प्रस्तावों और पंजाब संशोधन) बिल के तहत किसान और कंपनी में आपसी विवाद होने पर 2.5 एकड़ जमीन वाले किसानों की जमीन की कुर्की नहीं होगी। पशु, यंत्र, पशु बाड़े आदि भी कुर्की से मुक्त होंगे। दूसरा, विवाद के निपटारे के लिए सिविल कोर्ट में भी जाया जा सकेगा। केंद्रीय कानून में कोर्ट की बजाय, एसडीएम के यहां सुनवाई का प्रावधान है।
वहीं केंद्र के अनिवार्य वस्तु अधिनियम में निजी कंपनियां जितना मर्जी अनाज खरीद सकती हैं और उसका भंडारण कर सकती हैं। कितना व कहां भंडारण किया है, यह तक बताने की जरूरत नहीं है। जबकि पंजाब का विधेयक अनिवार्य वस्तु (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) में पंजाब में खरीदी जाने वाली फसल के बारे में निजी कंपनियों को सरकार को बताना होगा तथा सरकार को खास परिस्थितियों जैसे बाढ़, महंगाई और प्राकृतिक आपदा में स्टॉक लिमिट तय करने का भी अधिकार होगा।