"राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) से जुड़े किसान और मजदूर संगठनों भारतीय किसान संघ (BKS) और भारतीय मजदूर संघ (BMS) मोदी सरकार पर अनदेखी के आरोप लगाते हुए जमकर बरसे। BKS ने सोमवार को राजधानी दिल्ली में बड़ा प्रदर्शन किया। करीब 50 हजार किसानों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रदर्शन कर, केंद्र सरकार पर किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। BKS ने गन्ना किसानों को समय से भुगतान व कृषि सम्मान निधि बढ़ाने आदि की भी मांग की। वहीं, RSS के मजदूर विंग BMS के केरल अध्यक्ष सीयू उन्नीथन ने शुक्रवार को पांच दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियनों को श्रमिक मुद्दों की चर्चा से बाहर करने के केंद्र के प्रयासों का विरोध किया।"
सोमवार को राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में ‘किसान गर्जना’ रैली कर BKS ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो राज्यों और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। BKS से जुड़े किसानों की मांगों में मुख्य रूप से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत आर्थिक सहायता बढ़ाना शामिल है। कहा- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत दी जा रही आर्थिक सहायता को सालाना 6 हजार से बढ़ाकर 12 हजार रुपया किया जाए। साथ ही फसलों के लिए उचित भुगतान की दर (MSP) तय करने की भी मांग की। किसान गन्ना फसलों का समयबद्ध भुगतान, पराली जलाने पर दर्ज हो रहे केसों को वापस लेने और बिजली व जमीन मुआवजा नीति सही करने की भी मांग की। इसके अलावा कृषि उत्पादों पर जीएसटी हटाने और ट्रैक्टर पर खरीद के 10 साल बाद इस्तेमाल पर लगने वाला प्रतिबंध समाप्त करना भी मुख्य मांगों में शामिल है। संगठन ने कहा कि यदि सरकार मांगों को नहीं मानती है तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारतीय किसान संघ के दिल्ली अध्यक्ष हरपाल सिंह डागर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तमाम दावों के बाद भी सच्चाई यह है कि आज भी गन्ना किसानों को उनकी फसल का भुगतान मिलने में आठ से नौ महीनों का समय लग रहा है। कानूनन यह भुगतान 14 दिन के अंदर हो जाना चाहिए व देरी होने पर ब्याज सहित भुगतान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा दिल्ली, राजस्थान और पंजाब के किसानों को पराली जलाने पर केस दर्ज किया जाता है और उनसे जुर्माना वसूला जाता है। अब तक यह स्पष्ट हो चुका है कि कुल प्रदूषण में पराली की हिस्सेदारी केवल छह फीसदी तक सीमित है, यह भी केवल 15-20 दिनों तक सीमित रहता है। उन्होंने कहा कि जीएम सरसों के बीजों को लेकर भी किसानों में नाराजगी है। किसान चाहते हैं कि उन्हें नए बीजों को अपनाने के लिए बाध्य न किया जाए।
BKS नेताओं ने कहा कि वे कृषि गतिविधियों पर जीएसटी वापस लेने और ‘पीएम-किसान’ योजना के तहत प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता में वृद्धि सहित सरकार से राहत उपायों की मांग करते हैं। इस दौरान किसानों ने अपनी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग भी उठाई। संगठन ने कहा, ‘किसानों को एमएसपी से लागत और लाभ नहीं मिलता है, जबकि किसान की उपज से बने उत्पाद से कंपनियां एमआरपी यानी अधिकतम खुदरा मूल्य तय कर लाभ कमाती हैं। किसानों को भी लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए। ’बीकेएस ने एक ट्वीट में कहा, ‘लाभकारी मूल्य न मिलने के कारण किसान और गरीब तथा कर्जदार होता जा रहा है। उसके बच्चों का जीवन अंधकारमय और स्वयं का जीवन नरकमय बन चुका है। ’संगठन ने कहा, ‘आज फसल के लिए इस्तेमाल होने वाले खाद, बीज, डीजल, कीटनाशक के दाम बेतहाशा बढ़ गए हैं। ऐसे में किसानों को लाभकारी मूल्य न मिलना उनके साथ अन्याय है।
संगठन ने कहा, ‘कृषि उत्पादों का मूल्य नियंत्रण सदा ही रहा है। इस कारण स्वतंत्र बाजार व्यवस्था विकसित नहीं हो सकी। कृषि आदान महंगे होते जा रहे हैं, परंतु न्यूनतम समर्थन मूल्य बहुत पीछे है।’ बीकेएस द्वारा जारी एक नोट में कहा गया, ‘यदि समय पर किसानों की मांग पर ध्यान नहीं दिया गया तो राज्य और केंद्र सरकारों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।’
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बीकेएस के अखिल भारतीय अभियान प्रमुख राघवेंद्र पटेल ने कहा, पिछले चार महीनों के दौरान लगभग 20,000 किमी पैदल मार्च, 13,000 किमी की साइकिल रैलियां और 18,000 सड़क सभा बीकेएस द्वारा देशभर में आयोजित की गई हैं जिसके बाद आज दिल्ली के रामलीला मैदान में इस विशाल रैली का आयोजन किया गया है। किसानों ने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (जीएम) के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति को खत्म करने और लागत के आधार पर उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य का भी आह्वान किया है।
मध्य प्रदेश के इंदौर से आए नरेंद्र पाटीदार ने कहा कि खेती से जुड़ी मशीनरी और कीटनाशकों पर जीएसटी हटाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘बढ़ती लागत और मुद्रास्फीति के साथ हमें कोई लाभ नहीं होता है। सरकार को हमारी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। डेयरी उद्योग पर भी जीएसटी नहीं लगाया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि जो पेंशन (पीएम-किसान के तहत आय समर्थन) वे प्रदान कर रहे हैं वह पर्याप्त नहीं है। मौजूदा स्थिति में कोई 6,000 रुपये या 12,000 रुपये में परिवार कैसे चला सकता है?’ यह भी कहा गया, ‘देश के सभी किसानों को रकबे के आधार पर प्रति वर्ष सीधे खातों में प्रति एकड़/हेक्टेयर के हिसाब से एकमुश्त राशि अनुदान के तौर पर देनी चाहिए, जिससे किसानों को सहयोग मिलेगा और उत्पादन में वृद्धि होगी।’ कई किसानों ने कहा कि अगर सरकार ने तीन महीने के भीतर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वे विरोध तेज करेंगे।
महाराष्ट्र रायगढ़ के प्रमोद ने सरकार पर किसानों पर जीएसटी थोपने और कंपनियों को सब्सिडी देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘वे बीज पर भी जीएसटी लगाते हैं। कम से कम इसके (जीएसटी) के बारे में कुछ न किया जाना चाहिए। जो पेंशन वे प्रदान करते हैं वह एक मजाक है। केवल 6,000 रुपये से कोई अपने परिवार का पालन कैसे कर सकता है? केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा है इसे बढ़ाकर 12,000 रुपये किया जाएगा, लेकिन यह भी काफी नहीं है।’
इस बीच, पंजाब के फिरोजपुर के सुरेंद्र सिंह ने दावा किया कि सरकार ने पीएम-किसान योजना के तहत पिछली दो किस्त नहीं दी। उन्होंने कहा, ‘पेंशन को न केवल बढ़ाकर 15,000 रुपये किया जाना चाहिए, बल्कि समय पर वितरित भी किया जाना चाहिए। किसान भी कुशल मजदूर हैं, हमें कम से कम सम्मान तो दिया जाना चाहिए।’ नागपुर से आए किसान अजय बोंद्रे ने कहा कि पहले आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीजों के खिलाफ विरोध किया गया था, लेकिन सरकार ने उनकी मांग नहीं सुनी। उन्होंने कहा कि अन्य देशों के शोध कहते हैं कि जीएम बीज न केवल हमारे लिए बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक होंगे। जब तक हमें इस पर अनुसंधान का विवरण प्रदान नहीं किया जाता है और कुछ सबूत नहीं मिलता है कि यह विश्वसनीय है, हम जीएम बीजों का उपयोग करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर के कंचन रॉय ने कहा कि कई लोगों ने खेती छोड़ दी है, क्योंकि वे लागत वहन नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि वे पश्चिम बंगाल से दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश में पलायन कर रहे हैं। क्या सरकार को इस बात का एहसास है कि देश भर में महंगाई कैसे बढ़ रही है और वह अब भी चाहती है कि हम सिर्फ 6,000-12,000 रुपये से गुजारा करें।
RSS का मजदूर विंग BMS भी बरसा
उधर RSS labour wing BMS ने भी मोदी सरकार पर अनदेखी के आरोप लगाए। केरल में चल रहे सीपीआई श्रमिक शाखा अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के राष्ट्रीय सम्मेलन में आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ BMS ने नरेंद्र मोदी सरकार की कई नीतियों का विरोध किया। केरल भारतीय मजदूर संघ (BMS) के अध्यक्ष सी. उन्नीकृष्णन उन्नीथन ने शुक्रवार को पांच दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियनों को श्रमिक मुद्दों की चर्चा से बाहर करने के केंद्र के प्रयासों का विरोध किया।
अध्यक्ष सी. उन्नीकृष्णन उन्नीथन ने भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) आयोजित करने में केंद्र की विफलता का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सभी श्रम मुद्दों पर सरकार, कर्मचारियों और नियोक्ताओं के त्रिपक्षीय मंचों पर चर्चा होनी चाहिए। सी. उन्नीकृष्णन उन्नीथन ने कहा कि 2015 से कोई आईएलसी बैठक आयोजित नहीं की गई है। यह इतिहास में पहली बार है कि ट्रेड यूनियनों को (ऐसे परामर्श से) बाहर रखा जा रहा है। उन्होने आगे कहा कि भारतीय मजदूर संघ का मानना है कि परामर्श तंत्र को कमजोर किया जा रहा है। सरकार बातचीत नहीं कर रही है। जबकि श्रम संहिता 2019 में संसद में पारित की गई थी, अन्य को अगले वर्ष पारित किया गया था। लेकिन उद्योग जगत के कड़े विरोध के कारण आंशिक रूप से उनके लागू किए जाने में देरी हुई है।
मजदूर संघ का कहना है कि हम विरोध करने के लिए सरकार का विरोध नहीं करते हैं। लेकिन हम कभी भी मजदूर संघों के मुद्दों से पीछे नहीं हटते हैं। राज्यसभा सांसद और सीपीआई के केंद्रीय सचिवालय सदस्य बिनॉय विश्वम ने श्रम अधिकारों से संबंधित कुछ मुद्दों पर भारतीय मजदूर संघ (BMS) का समर्थन किया। हालांकि आरएसएस समर्थित संगठन आम तौर पर आम हड़तालों से दूर रहता है। अलप्पुझा में भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के कार्यक्रम में देश भर से लगभग 2,000 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
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सोमवार को राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में ‘किसान गर्जना’ रैली कर BKS ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो राज्यों और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। BKS से जुड़े किसानों की मांगों में मुख्य रूप से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत आर्थिक सहायता बढ़ाना शामिल है। कहा- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत दी जा रही आर्थिक सहायता को सालाना 6 हजार से बढ़ाकर 12 हजार रुपया किया जाए। साथ ही फसलों के लिए उचित भुगतान की दर (MSP) तय करने की भी मांग की। किसान गन्ना फसलों का समयबद्ध भुगतान, पराली जलाने पर दर्ज हो रहे केसों को वापस लेने और बिजली व जमीन मुआवजा नीति सही करने की भी मांग की। इसके अलावा कृषि उत्पादों पर जीएसटी हटाने और ट्रैक्टर पर खरीद के 10 साल बाद इस्तेमाल पर लगने वाला प्रतिबंध समाप्त करना भी मुख्य मांगों में शामिल है। संगठन ने कहा कि यदि सरकार मांगों को नहीं मानती है तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारतीय किसान संघ के दिल्ली अध्यक्ष हरपाल सिंह डागर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तमाम दावों के बाद भी सच्चाई यह है कि आज भी गन्ना किसानों को उनकी फसल का भुगतान मिलने में आठ से नौ महीनों का समय लग रहा है। कानूनन यह भुगतान 14 दिन के अंदर हो जाना चाहिए व देरी होने पर ब्याज सहित भुगतान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा दिल्ली, राजस्थान और पंजाब के किसानों को पराली जलाने पर केस दर्ज किया जाता है और उनसे जुर्माना वसूला जाता है। अब तक यह स्पष्ट हो चुका है कि कुल प्रदूषण में पराली की हिस्सेदारी केवल छह फीसदी तक सीमित है, यह भी केवल 15-20 दिनों तक सीमित रहता है। उन्होंने कहा कि जीएम सरसों के बीजों को लेकर भी किसानों में नाराजगी है। किसान चाहते हैं कि उन्हें नए बीजों को अपनाने के लिए बाध्य न किया जाए।
BKS नेताओं ने कहा कि वे कृषि गतिविधियों पर जीएसटी वापस लेने और ‘पीएम-किसान’ योजना के तहत प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता में वृद्धि सहित सरकार से राहत उपायों की मांग करते हैं। इस दौरान किसानों ने अपनी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग भी उठाई। संगठन ने कहा, ‘किसानों को एमएसपी से लागत और लाभ नहीं मिलता है, जबकि किसान की उपज से बने उत्पाद से कंपनियां एमआरपी यानी अधिकतम खुदरा मूल्य तय कर लाभ कमाती हैं। किसानों को भी लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए। ’बीकेएस ने एक ट्वीट में कहा, ‘लाभकारी मूल्य न मिलने के कारण किसान और गरीब तथा कर्जदार होता जा रहा है। उसके बच्चों का जीवन अंधकारमय और स्वयं का जीवन नरकमय बन चुका है। ’संगठन ने कहा, ‘आज फसल के लिए इस्तेमाल होने वाले खाद, बीज, डीजल, कीटनाशक के दाम बेतहाशा बढ़ गए हैं। ऐसे में किसानों को लाभकारी मूल्य न मिलना उनके साथ अन्याय है।
संगठन ने कहा, ‘कृषि उत्पादों का मूल्य नियंत्रण सदा ही रहा है। इस कारण स्वतंत्र बाजार व्यवस्था विकसित नहीं हो सकी। कृषि आदान महंगे होते जा रहे हैं, परंतु न्यूनतम समर्थन मूल्य बहुत पीछे है।’ बीकेएस द्वारा जारी एक नोट में कहा गया, ‘यदि समय पर किसानों की मांग पर ध्यान नहीं दिया गया तो राज्य और केंद्र सरकारों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।’
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बीकेएस के अखिल भारतीय अभियान प्रमुख राघवेंद्र पटेल ने कहा, पिछले चार महीनों के दौरान लगभग 20,000 किमी पैदल मार्च, 13,000 किमी की साइकिल रैलियां और 18,000 सड़क सभा बीकेएस द्वारा देशभर में आयोजित की गई हैं जिसके बाद आज दिल्ली के रामलीला मैदान में इस विशाल रैली का आयोजन किया गया है। किसानों ने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (जीएम) के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति को खत्म करने और लागत के आधार पर उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य का भी आह्वान किया है।
मध्य प्रदेश के इंदौर से आए नरेंद्र पाटीदार ने कहा कि खेती से जुड़ी मशीनरी और कीटनाशकों पर जीएसटी हटाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘बढ़ती लागत और मुद्रास्फीति के साथ हमें कोई लाभ नहीं होता है। सरकार को हमारी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। डेयरी उद्योग पर भी जीएसटी नहीं लगाया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि जो पेंशन (पीएम-किसान के तहत आय समर्थन) वे प्रदान कर रहे हैं वह पर्याप्त नहीं है। मौजूदा स्थिति में कोई 6,000 रुपये या 12,000 रुपये में परिवार कैसे चला सकता है?’ यह भी कहा गया, ‘देश के सभी किसानों को रकबे के आधार पर प्रति वर्ष सीधे खातों में प्रति एकड़/हेक्टेयर के हिसाब से एकमुश्त राशि अनुदान के तौर पर देनी चाहिए, जिससे किसानों को सहयोग मिलेगा और उत्पादन में वृद्धि होगी।’ कई किसानों ने कहा कि अगर सरकार ने तीन महीने के भीतर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वे विरोध तेज करेंगे।
महाराष्ट्र रायगढ़ के प्रमोद ने सरकार पर किसानों पर जीएसटी थोपने और कंपनियों को सब्सिडी देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘वे बीज पर भी जीएसटी लगाते हैं। कम से कम इसके (जीएसटी) के बारे में कुछ न किया जाना चाहिए। जो पेंशन वे प्रदान करते हैं वह एक मजाक है। केवल 6,000 रुपये से कोई अपने परिवार का पालन कैसे कर सकता है? केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा है इसे बढ़ाकर 12,000 रुपये किया जाएगा, लेकिन यह भी काफी नहीं है।’
इस बीच, पंजाब के फिरोजपुर के सुरेंद्र सिंह ने दावा किया कि सरकार ने पीएम-किसान योजना के तहत पिछली दो किस्त नहीं दी। उन्होंने कहा, ‘पेंशन को न केवल बढ़ाकर 15,000 रुपये किया जाना चाहिए, बल्कि समय पर वितरित भी किया जाना चाहिए। किसान भी कुशल मजदूर हैं, हमें कम से कम सम्मान तो दिया जाना चाहिए।’ नागपुर से आए किसान अजय बोंद्रे ने कहा कि पहले आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीजों के खिलाफ विरोध किया गया था, लेकिन सरकार ने उनकी मांग नहीं सुनी। उन्होंने कहा कि अन्य देशों के शोध कहते हैं कि जीएम बीज न केवल हमारे लिए बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक होंगे। जब तक हमें इस पर अनुसंधान का विवरण प्रदान नहीं किया जाता है और कुछ सबूत नहीं मिलता है कि यह विश्वसनीय है, हम जीएम बीजों का उपयोग करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर के कंचन रॉय ने कहा कि कई लोगों ने खेती छोड़ दी है, क्योंकि वे लागत वहन नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि वे पश्चिम बंगाल से दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश में पलायन कर रहे हैं। क्या सरकार को इस बात का एहसास है कि देश भर में महंगाई कैसे बढ़ रही है और वह अब भी चाहती है कि हम सिर्फ 6,000-12,000 रुपये से गुजारा करें।
RSS का मजदूर विंग BMS भी बरसा
उधर RSS labour wing BMS ने भी मोदी सरकार पर अनदेखी के आरोप लगाए। केरल में चल रहे सीपीआई श्रमिक शाखा अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के राष्ट्रीय सम्मेलन में आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ BMS ने नरेंद्र मोदी सरकार की कई नीतियों का विरोध किया। केरल भारतीय मजदूर संघ (BMS) के अध्यक्ष सी. उन्नीकृष्णन उन्नीथन ने शुक्रवार को पांच दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियनों को श्रमिक मुद्दों की चर्चा से बाहर करने के केंद्र के प्रयासों का विरोध किया।
अध्यक्ष सी. उन्नीकृष्णन उन्नीथन ने भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) आयोजित करने में केंद्र की विफलता का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सभी श्रम मुद्दों पर सरकार, कर्मचारियों और नियोक्ताओं के त्रिपक्षीय मंचों पर चर्चा होनी चाहिए। सी. उन्नीकृष्णन उन्नीथन ने कहा कि 2015 से कोई आईएलसी बैठक आयोजित नहीं की गई है। यह इतिहास में पहली बार है कि ट्रेड यूनियनों को (ऐसे परामर्श से) बाहर रखा जा रहा है। उन्होने आगे कहा कि भारतीय मजदूर संघ का मानना है कि परामर्श तंत्र को कमजोर किया जा रहा है। सरकार बातचीत नहीं कर रही है। जबकि श्रम संहिता 2019 में संसद में पारित की गई थी, अन्य को अगले वर्ष पारित किया गया था। लेकिन उद्योग जगत के कड़े विरोध के कारण आंशिक रूप से उनके लागू किए जाने में देरी हुई है।
मजदूर संघ का कहना है कि हम विरोध करने के लिए सरकार का विरोध नहीं करते हैं। लेकिन हम कभी भी मजदूर संघों के मुद्दों से पीछे नहीं हटते हैं। राज्यसभा सांसद और सीपीआई के केंद्रीय सचिवालय सदस्य बिनॉय विश्वम ने श्रम अधिकारों से संबंधित कुछ मुद्दों पर भारतीय मजदूर संघ (BMS) का समर्थन किया। हालांकि आरएसएस समर्थित संगठन आम तौर पर आम हड़तालों से दूर रहता है। अलप्पुझा में भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के कार्यक्रम में देश भर से लगभग 2,000 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
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