‘जीएम’ सरसों को मंज़ूरी की सिफ़ारिश के विरोध में उतरे RSS से जुड़े संगठन, निर्णय वापस लेने की मांग

Written by Navnish Kumar | Published on: October 29, 2022
पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों के पर्यावरणीय परीक्षण के लिए बीज जारी करने की अनुशंसा की है। संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय किसान संघ ने इसे ख़तरनाक़ और कैंसरकारक बताते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिख निर्णय वापस लेने की मांग की है। 



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच (SJM) और कृषक विंग भारतीय किसान संघ (BKS) ने नियामक निकाय द्वारा आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (जीएम) सरसों को पर्यावरण मंजूरी देने की अनुशंसा किए जाने का विरोध किया है। भारतीय किसान संघ ने जीएम सरसों की मंजूरी न दिए जाने की मांग की है और कहा है कि सरकार को पहले सभी हितधारकों के साथ सघन बात करने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए। वहीं, एसजेएम ने जीएम सरसों को ‘खतरनाक’ करार देते हुए केंद्र से अपील की है कि वह सुनिश्चित करे कि इसके बीज ‘कभी नहीं बोए’ जाएं।

संघ महासचिव द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि पिछले कई वर्षो से जीएम सरसों चर्चा में है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, कभी बताया जाता है कि यह अधिक उपजाऊ है, लेकिन जब प्रश्न पूछे जाते हैं तो जवाब बदलकर बताया जाता है कि यह पुरूष बांझपन को दूर करने के लिए बनाया गया है। लेकिन थोड़े दिनों के बाद ये भी बताया गया कि जीएम सरसों खरपतवार रोधी है।लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जीएम सरसों को क्यों विकसित किया गया है। अब जेनेटेिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) के अनुमति पत्र में लिखा गया है कि जीएम सरसों के समर्थन में जो भी जानकारियां मिली हैं, वे सभी विदेशों से लाई गयी है। हमारे देश में इसके बारे में अध्ययन करना बाकी है। ज्ञात हो कि सरकार ने अब तक (2002 में) व्यावसायिक खेती के लिए केवल एक जीएम फसल- बीटी कपास को मंजूरी दी है।

भारतीय किसान संघ ने सवाल उठाया है कि अगर ऐसा है तो अनुमति कैसे दी गई? जीईएसी जैसा जिम्मेदार संगठन ने गैर जिम्मेदाराना, अवैधानिक, अवैज्ञानिक निर्णय कैसे लिया? संघ ने आरोप लगाते हुए कहा है कि इसीलिए लोग बोलते हैं कि कहीं कोई सौदेबाजी तो नही हुई? वैसे तो यह विषय हमारा नही है, लेकिन अगर ऐसा है तो इसकी जांच कराई जानी चाहिए। प्रेस विज्ञप्ति में भाकिसं ने कहा है कि इन सभी प्रश्नों के साथ एक बड़ा प्रश्न यह भी है, जीएम सरसों को पहले से किसानों के बीच में भेजकर हंगामा खड़ा करना किसका कार्य था और इसी अवैधानिक कृत्य को हमारी कानूनी व्यवस्था ने अभी तक क्यों दंडित नहीं किया? अगर आम लोगों ने जीएम सरसों का तेल इस्तेमाल नहीं किया तो देशी सरसों की खेती व व्यापार पर भी असर पड़ेगा। यही नहीं, भारतीय किसान संघ का कहना है कि जीएम सरसों का मधुमक्खी और दूसरे परागण के ऊपर क्या प्रभाव पडेगा, इसके बारे में देश में कोई शोध नहीं हुआ है। जीईएसी के अनुमति पत्रों से इस बारे में पता चलता है। अगर ऐसा है तो फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शहद के बारे में की घोषणाओं का क्या होगा? 

किसान संघ ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मांग की है कि वे तुरंत इस निर्णय को वापिस लेने का निर्देश जीईएसी को करें। प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि अगर सरकार सरसों जैसे खाद्य तेल में भारत को आत्मनिर्भर करना चाहती है, तो उसका एक सहज उपाय है- उसके लिए अच्छा मूल्य देने की घोषणा करने के साथ उसके खरीददारी की व्यवस्था करें तो दलहन के समान तिलहन में भी एक-दो वर्षों में आत्मनिर्भर बन जाएंगे। इसके लिए जीएम सरसों जैसे वैज्ञानिक धोखाधड़ी की जरूरत नहीं पड़ेगी। और जीईएसी जैसी संस्था को अवैज्ञानिक- अवैधानिक और गैर जिम्मेदाराना निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ेगा, जैसे जीएम सरसों की अनुमति देने की प्रक्रिया में हुआ है।

BKS बोला इससे हो सकता है कैंसर
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, BKS ने इसे लेकर अपनी आपत्ति में कहा है कि इससे कैंसर हो सकता है। केंद्र सरकार को लिखे पत्र में BKS ने आरोप लगाया है कि जीईएसी, दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) खाद्य फसलों में आनुवंशिक संशोधन (जेनेटिक मॉडिफिकेशन) से संबंधित मामलों में मिलीभगत से काम कर रहे हैं। BKS के अखिल भारतीय महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा ने 'हिंदू' को बताया कि जीईएसी ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि जीएम सरसों हर्बिसाइड टॉलरेंट (Herbicide Tolerant) (एचटी) सरसों है। उन्होंने यह जोड़ते हुए कि जीएम सरसों हमेशा जांच के दायरे में रहा है, इसे ‘वैज्ञानिक धोखाधड़ी’ करार दिया।

मिश्रा ने कहा, ‘एचटी तकनीक ज्यादातर कैंसर कारक (carcinogenic) होती है। यह एक घातक तकनीक है जो मिट्टी, रोगाणुओं, पॉलिनेटर्स, और लगभग सभी औषधीय जड़ी-बूटियों को मार देती है और फसल की विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। यह मनुष्यों में कैंसर का कारण भी बन सकती है। मिश्रा ने आगे आरोप लगाया कि जीईएसी भारत की कृषि प्रणाली और खाद्य श्रृंखला में अवांछित, असफल (एचआईवी-हाई इन्वेस्टमेंट ) जीएम खाद्य फसलों के प्रवेश का विरोध करने में सक्षम नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि जीएम फसलों के मामले में जीईएसी की कार्रवाई अवैज्ञानिक है। उन्होंने जोड़ा, ‘हम केंद्र सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस मामले में तत्काल कदम उठाएं और गैर-रासायनिक, आत्मनिर्भर कृषि एजेंडा को ध्यान में रखते हुए अपने फैसले पर फिर से विचार करें ताकि लोगों को पर्यावरण के अनुकूल कृषि तरीकों से स्वस्थ भोजन दिया जा सके।’

उधर, स्वदेशी जागरण मंच (SJM) ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र सिंह को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल समिति (जीईएसी) ‘गैर-जिम्मेदाराना’ तरीके से काम कर रही है। एसजेएम ने कहा है कि जीएम सरसों के समर्थन में किए जा रहे दावे ‘पूरी तरह से झूठे, असत्यापित और गलत तरीके से पेश किए गए तथ्य हैं। ’स्वदेशी जागरण मंत्र के सह-समन्वयक अश्वनी महाजन ने पत्र में कहा, ‘SJM इस खतरनाक और अवांछित जीएम सरसों को पिछले रास्ते से लाने का हमेशा विरोध करता रहा है।’

खास है कि स्वदेशी जागरण मंच द्वारा अपनी चिंताएं जाहिर करने के बाद जीएम सरसों के लिए नियामकीय मंजूरी को पर्यावरण मंत्रालय ने रोक दिया था, ताकि इसकी समीक्षा की जा सके। महाजन ने आरोप लगाया कि जीईएसी ने जैसा कि पूर्वानुमान था, ‘अपनी प्रतिष्ठा’ के अनुरूप कोई समीक्षा नहीं की। उन्होंने पत्र में लिखा है, ‘नियामकों ने जीएम फसल का विकास करने वालों से हाथ मिला लिया है और वे बार-बार नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, जो एक गंभीर मुद्दा है। ’महाजन ने कहा, ‘हमें भरोसा है कि जीएम फसलों के प्रतिकूल असर का सतर्कतापूर्ण अध्ययन करने वाले और पूर्व में समय-समय पर अपने विचारों को प्रकट करने वाले एक व्यक्ति के रूप में आप इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि जीएम सरसों के बीज कभी न बोए जाएं।’

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