RTI का खुलासा: नोटबंदी पर सहमत नहीं थे RBI के डायरेक्टर, मोदी पर बरसी कांग्रेस

Written by sabrang india | Published on: March 11, 2019
नई दिल्ली। नोटबंदी के मामले में आरटीआई के जरिये सनसनीखेज खुलासा हुआ है। सूचना का अधिकार एक्ट के तहत मिली जानकारी से खुलासा हुआ है कि फायदे के बजाय जनता को नुकसान होने की जानकारी होने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी। घोषणा के दिन हुयी आरबीआई की डायरेक्टोरियल बोर्ड की बैठक में नोटबंदी से कालेधन पर किसी तरह का असर न पड़ने की बात कही गयी थी। साथ ही उसमें कहा गया है कि देश और दुनिया के बाजार में फर्जी नोटों के संचालन पर भी कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है। इसके अलावा बैठक में अर्थव्यवस्था के कैशलेस होने की बात को भी खारिज कर दिया गया था। 

आरटीआई के जरिये सामने आए बैठक के मिनट्स में बताया गया है कि देश में कालेधन का बड़ा हिस्सा नगद की बजाय सोने और रियल इस्टेट या जमीन के रूप में मौजूद है। लिहाजा नोटबंदी से इन दोनों क्षेत्रों पर कम से कम कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है। यह बात आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड के गवर्नरों ने बैठक में कही थी। और यह बैठक घोषणा होने से चंद घंटों पहले हुई थी। खास बात यह है कि इस बैठक में तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के साथ ही मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास भी मौजूद थे।

जहां तक रही फर्जी नोटों की बात तो इस पर पीएम मोदी ने बड़े-बड़े दावे किए थे। साथ ही कैबिनेट के दूसरे मंत्रियों ने इसके देश से समाप्त होने की घोषणा की थी। लेकिन उसकी हकीकत नोटबंदी के दिन ही रिजर्व बैंक के डायरेक्टोरियल बोर्ड के सदस्यों ने दिखा दी थी। मिनट्स में बताया गया है कि तकरीबन 400 करोड़ रुपये के फर्जी नोटों का बाजार में संचालन है। जो कुल 15 लाख करोड़ रुपये के नोटों के मुकाबले बहुत ज्यादा महत्व नहीं रखता है। साथ ही उस बैठक में यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि नोटबंदी से फर्जी नोटों के इस्तेमाल में कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है।

अपने तीसरे निष्कर्ष में बोर्ड के सदस्यों ने कहा था कि नोटबंदी से दिहाड़ी मजदूर, होटलों और टैक्सी चलाने वालों समेत बस, ट्रेन और हवाई यात्रा करने वालों पर सबसे पहले असर पड़ेगा। 

पीएम ने नोटबंदी के जरिये कैसलेश इकोनामी में बड़े स्तर पर कामयाबी हासिल करने की बात कही थी। बोर्ड के सदस्यों ने उसे भी खारिज कर दिया था। सदस्यों ने कहा था कि करेंसी के सर्कुलेशन में बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

सात पन्ने की इस आरटीआई को आज कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने जारी किया। उनका कहना था कि इसको हासिल करने में 26 महीने का समय लग गया। उन्होंने बताया कि नोटबंदी के बाद तत्कालीन रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल तीन अलग-अलग स्टैंडिंग कमेटियों की बैठक में शरीक हुए। लेकिन उन्होंने किसी भी बैठक में डायरेक्टोरियल बोर्ड की इस बैठक में हुई बात का जिक्र नहीं किया। ये बैठक बोर्ड की 561वीं बैठक थी। 

दिलचस्प बात यह है कि इन सभी निष्कर्षों के बाद भी आखिर में बोर्ड ने सरकार के नोटबंदी के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। जयराम रमेश का कहना था कि बोर्ड ने फैसले पर अपनी सहमति पीएम मोदी के दबाव में दी थी।

मिनट्स के सामने आने के बाद यह बात अब साफ तरीके से कही जा सकती है कि रिजर्व बैंक को नोटबंदी के नतीजे उसी समय पता थे और सुधार होने की बजाय परेशानी के बढ़ने की बात उसे पता थी। लेकिन रिजर्व बैंक के अधिकारियों के तर्कों और निष्कर्षों पर गौर करने की जगह पीएम मोदी ने अपने मन से फैसला लिया। 

नोटबंदी इस देश पर किसी कहर से कम नहीं थी। उसके बाद जो अर्थव्यवस्था ध्वस्त हुई तो अभी तक नहीं उबर सकी है। रीयल सेक्टर हो या फिर असंगठित क्षेत्र दोनों इसके सबसे ज्यादा शिकार हुए। 50 हजार से ज्यादा लोग एकमुश्त बेरोजगार हो गए। रीयल सेक्टर की मार न केवल उसमें रोजगारशुदा लोगों पर पड़ी बल्कि एक अदद आशियाने की आस में अपने जीवन भर की कमाई लगा देने वाले इसके सबसे ज्यादा शिकार हुए। उन्हें छत तो नहीं ही मिली पैसा ऊपर से चला गया।

पहले से तबाह हो चुकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था इसलिए और बर्बाद हो गयी क्योंकि शहरों में काम करने वाला मजदूर एक बार फिर लौट कर अपने गांवों में चला गया। जहां भुखमरी पहले से ही उसका इंतजार कर रही थी। नतीजतन कभी पूरे परिवार के पेट का साधन बना शख्स अब खुद ही परिवार पर बोझ बन गया। 

 

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