मध्यप्रदेश कांग्रेस का ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए महासचिव पद आरक्षित कर सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम

Written by sabrang india | Published on: May 15, 2025
यह निर्णय न केवल समावेशी राजनीति की ओर बढ़ता हुआ संकेत है, बल्कि भारतीय संविधान की मूल भावना विशेष रूप से अनुच्छेद 15(1) और 15(4) की पुष्टि भी करता है, जो राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।



मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव में एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए संगठन ने प्रदेश महासचिव का एक पद ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षित किया है जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक बेहतर कदम है। यह फैसला न केवल राजनीतिक समावेशन के लिहाज से अहम है, बल्कि समाज के वंचित समुदायों के अधिकारों की भी सशक्त पैरवी करता है।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, 13 मई की शाम 5 बजे तक नामांकन प्रक्रिया पूरी की गई। यूथ कांग्रेस के भीतर यह पहली बार है जब ट्रांसजेंडर वर्ग को नेतृत्व के पद पर प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की जा रही है। राजनीतिक दलों में आमतौर पर हाशिए के वर्गों के लिए आरक्षण की मांग लंबे समय से चल रही है, लेकिन व्यवहार में ऐसे उदाहरण दुर्लभ हैं। यूथ कांग्रेस का यह फैसला इस दिशा में एक प्रेरणादायी शुरुआत बन सकता है।

ट्रांसजेंडर समुदाय लंबे समय से पहचान, सम्मान और समान अवसरों के लिए संघर्ष करता आया है। हालांकि साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 'थर्ड जेंडर' को कानूनी मान्यता दी थी, इसके बावजूद मुख्यधारा की राजनीति में इस समुदाय का प्रतिनिधित्व अब भी बेहद सीमित रहा है। ऐसे में यूथ कांग्रेस द्वारा महासचिव पद को ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षित करना इस बात का संकेत है कि संगठन अब इस वर्ग को नेतृत्व में शामिल कर बदलाव की दिशा में ठोस पहल करना चाहता है।

समाजशास्त्रियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने यूथ कांग्रेस के इस फैसले की सराहना की है।'द मूकनायक' से बातचीत में समाजशास्त्री डॉ. इम्तियाज खान ने कहा, "राजनीति में प्रतिनिधित्व ही असली भागीदारी की बुनियाद होता है। ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षण देकर यूथ कांग्रेस ने संविधान में निहित सामाजिक न्याय के सिद्धांत को जमीनी हकीकत में बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।"

मध्यप्रदेश की राजनीति में ट्रांसजेंडर समुदाय का योगदान ऐतिहासिक और प्रेरणादायक रहा है, हालांकि वर्तमान में उनकी राजनीतिक उपस्थिति लगभग शून्य हो गई है। साल 2000 में शबनम मौसी ने सोहागपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में जीत दर्ज कर देश की पहली ट्रांसजेंडर विधायक बनने का गौरव प्राप्त किया था। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते हुए भाजपा और कांग्रेस जैसे प्रमुख दलों के प्रत्याशियों को हराया और लगभग 40.8% वोट हासिल किए। उनकी यह ऐतिहासिक जीत न केवल राजनीतिक क्षेत्र में बल्कि सामाजिक स्तर पर भी ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक नई दिशा की शुरुआत थी। अपने कार्यकाल के दौरान शबनम मौसी ने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और गरीबी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर जोर दिया और ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की मजबूती से पैरवी की।

मध्यप्रदेश ने देश को न केवल पहली ट्रांसजेंडर विधायक, बल्कि पहली ट्रांसजेंडर महापौर भी देने का गौरव प्राप्त किया है। साल 1999 में कमला ने कटनी नगर निगम के महापौर पद का चुनाव जीतकर यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की थी। हालांकि बाद में अदालत ने यह कहते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया कि वे महिला आरक्षित सीट के लिए पात्र नहीं थीं। इसके बावजूद, कमला 'बुआ' ने हार नहीं मानी और 2009 में सागर नगर निगम के महापौर पद पर जीत हासिल की। यह जीत ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई, जिसने न केवल उनकी राजनीतिक भागीदारी को मजबूत किया बल्कि समाज में उनकी भूमिका को भी मान्यता दिलाई।

इन उपलब्धियों ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए राजनीति में भागीदारी के नए द्वार खोले और समाज में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ावा दिया। लेकिन फिर ट्रांसजेंडर्स प्रतिनिधित्व देखने को नहीं मिला।

भोपाल की शोधकर्ता प्रज्ञा शर्मा ने ट्रांसजेंडर समुदाय की स्थितियों पर द मूकनायक से बातचीत में कहा कि इस समुदाय की सबसे बड़ी समस्या समाजिक तिरस्कार है। समाज की मुख्यधारा से दूर रखा जाना, भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार उनके जीवन में पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण बना है। शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं तक उनकी पहुंच बेहद सीमित है।

प्रज्ञा शर्मा का मानना है कि ट्रांसजेंडर समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलना इस स्थिति को बदलने की दिशा में एक बड़ी पहल साबित हो सकती है। यदि उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर मिले तो वे न सिर्फ अपनी आवाज़ उठा सकेंगे, बल्कि नीति निर्माण में भी सक्रिय भूमिका निभा सकेंगे, जिससे उनके अधिकार और गरिमा सुनिश्चित की जा सकेगी।

संविधान में है अधिकार

संविधान का अनुच्छेद 15(1) और 15(4) राज्य को यह अधिकार देता है कि वह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान करे। ट्रांसजेंडर समुदाय को आरक्षण प्रदान किया जाना इसी संवैधानिक भावना की पुष्टि करता है। यह निर्णय केवल राजनीतिक प्रतिनिधित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी क्षमता समाज में व्यापक स्तर पर बदलाव लाने की भी है जहां समानता, समावेश और सम्मान को वास्तविक रूप में साकार किया जा सकता है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि सरकारों और संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि वे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में विशेष अवसर सुनिश्चित करें। यूथ कांग्रेस ने इस संवैधानिक और कानूनी दायित्व को समझते हुए नेतृत्व की भूमिका में आरक्षण देकर एक सशक्त और प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है।यह पहल न केवल राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देती है, बल्कि समावेशी लोकतंत्र की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

ट्रांसजेंडर संजना सिंह ने कांग्रेस पार्टी के फैसले का स्वागत करते हुए द मूकनायक को कहा कि केवल राजनीतिक क्षेत्र ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में ट्रांसजेंडर समुदाय को समान अवसर मिलने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कदम समावेशिता और समानता की दिशा में एक सराहनीय पहल है, जो समाज में ट्रांसजेंडरों की भागीदारी को बढ़ावा देगा।

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