मोदी ही बता दें कि नोटबन्दी से देह-व्यापार और गाँधी परिवार को कितना नुकसान हुआ?

Written by Mukesh Kumar Singh | Published on: November 10, 2017
मोदी राज में विश्व गुरु बनने निकला भारतवर्ष दो महान न्यायविदों और एक बड़बोला विदुषी के चंगुल में बहुत बुरी तरह से फँस चुका है। पहले न्यायविद हैं महामहिम अरूण जेटली। जो दुर्भाग्य से अभी देश के वित्त मंत्री हैं। इन्होंने नोटबन्दी और खोटे जीएसटी के रूप में सवा सौ करोड़ भारतीयों पर ऐसा कहर बरपा किया है, जिसकी मिसाल सहस्त्राब्दी (मिलेनियम) में भी मिलना नामुमकिन है! जेटली और इनके मुखिया नरेन्द्र मोदी की करतूतों का अंज़ाम तो भारतवासी भुगत ही रहे हैं। लेकिन, चूँकि देश का बँटाढार करने में इनकी मूर्खताओं में कोई कसर न रह जाए, इसलिए इनके बचाव का मोर्चा जब-तब एक और महान न्यायविद रविशंकर प्रसाद सम्भाल लेते हैं। इतना ही नहीं, रही-सही कसर को देवी-भवानी यानी सुश्री स्मृति इरानी, पूरा कर देती हैं!

Mani Shankar

इत्तेफ़ाक़ से रविशंकर प्रसाद इस देश के क़ानून मंत्री, संचार मंत्री और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्री भी हैं। इनका कामकाज भी इनके सहयोगी अरूण जेटली जैसा ही घनघोर निराशाजनक है। हालाँकि, क़िस्मत के धनी रविशंकर प्रसाद, मोदी सरकार में भी मंत्री बनने और कई अहम मंत्रालयों के मुखिया बनने में सफ़ल रहे हैं।  लेकिन इनकी हालत द्रौपदी रूपी भारतमाता का चीरहरण करने वाले दुस्सासन जैसी है। ये भारत सरकार की ओर से नोटबन्दी के रूप में हुए देशवासियों के चीरहरण को सही ठहराने की भूमिका भी निभाते हैं! रविशंकर प्रसाद का ताज़ा शिगूफ़ा ये है कि उन्हें पुख़्ता जानकारी है कि “नोटबन्दी का सबसे बड़ा फ़ायदा भारतवर्ष में फैले देह व्यापार पर भी पड़ा है!” हाल ही में, ‘आजतक’ के एक कार्यक्रम में रविशंकर प्रसाद ने बेहद सनसनीख़ेज़ ख़ुलासा किया कि “नोटबन्दी के बाद अब देश में देह व्यापार का काला कारोबार ठप पड़ चुका है।”

अब क़ानून, संचार और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्री तथा सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रधान प्रवक्ता के रूप में रविशंकर प्रसाद, जब नोटबन्दी की वजह से देह-व्यापार में आयी गिरावट की जानकारी पूरे देश के साथ साझा करते हैं, तो उस पर संशय या सन्देह की गुंजाइश ही कहाँ रह जाती है! अलबत्ता, उनके बयान से ये कौतूहल ज़रूर पैदा हुआ है कि जिस सरकार को ये नहीं मालूम कि नोटबन्दी की वजह से देश का वो असंगठित क्षेत्र त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा है, जिससे 90 फ़ीसदी आबादी की रोज़ी-रोटी जुड़ी हुई है, उसने उस देह-व्यापार के बारे में सूचनाएँ कैसे एकत्र कर लीं, जो भारत में पूरी तरह से ग़ैरक़ानूनी है!

सार्वजनिक जीवन में शुचिता अपनाये जाने के सबसे बड़े प्रणेता माननीय रविशंकर प्रसाद, क्या देश को ये भी बताएँगे कि उन्हें इतनी सनसनीख़ेज़ जानकारियाँ मोदी सरकार के किस विभाग के प्रतिभाशाली कर्मचारियों से मिली? केन्द्र सरकार का सांख्यिकी मंत्रालय या वित्त मंत्रालय या वाणिज्य मंत्रालय या नीति आयोग, कौन देह-व्यापार के आँकड़ों का भी संकलन करता है? इस काम के लिए क्या गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले ख़ुफ़िया विभाग के अनुभवी कर्मचारियों की भी मदद ली जाती है?

क्या रविशंकर प्रसाद, भारतवासियों को ये बता सकते हैं कि देश में देह-व्यापार से कितने लोग जुड़े हुए हैं? कितने लोग इसी पेशे पर आश्रित हैं? उनकी औसत आमदनी क्या है? देह-व्यापार को अर्थव्यवस्था के किस सेक्टर में रखा गया है? मसलन, ये संगठित क्षेत्र में है या असंगठित? इस सेक्टर का सालाना कारोबार (टर्नओवर) कितना है? क्या इसकी सरकार के राजस्व में भी कोई भूमिका होती है? यानी, क्या इस सेक्टर से सरकार को कोई टैक्स भी प्राप्त होता है? यदि हाँ, तो कितना और यदि नहीं, तो क्यों? क्या देह-व्यापार से जुड़े लोगों को सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजना जैसे भविष्य निधि (ईपीएफओ), पेंशन, कर्मचारी स्वास्थ्य सेवा (ईएसआई) का लाभ दिया जाता है? यदि हाँ, तो उसका ब्यौरा देश के सामने रखिए और यदि नहीं, तो इन सवालों पर स्पष्टीकरण दीजिए। रविशंकर प्रसाद को ये भी बताना चाहिए कि क्या मोदी सरकार, देह-व्यापार को भी एक मान्य कारोबार का दर्ज़ा देना चाहेगी? चूँकि ये एक व्यापार है और सरकार का फ़र्ज़ है कि वो व्यापार को बढ़ावा दे। लिहाज़ा, मोदी सरकार साफ़ करे कि वो देह-व्यापार के चहुमुखी विकास के लिए क्या नीति अपनाना चाहेगी?

ये सारे सवाल बहुत अहम हैं। सरकार से इनका ब्यौरा मिलना ही चाहिए। सरकार चाहे तो जानकारी देने की ज़िम्मेदारी केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति इरानी को भी सौंप सकती है। उन्हें मीडिया में सुर्ख़ियाँ बटोरने और रूपहले पर्दे पर तरह-तरह के किरदारों का अभिनय करने में महारथ हासिल है। वो आगे आएँगी तो सरकार का पक्ष बेहद प्रभावशाली तरीके से देशवासियों के सामने रखा जा सकता है। वैसे, देश देख चुका है कि स्मृति इरानी का सूचना तंत्र भी बेहद दमदार है। इन्होंने भी ये धमाकेदार रहस्योद्घाटन किया है कि “नोटबन्दी, गाँधी परिवार के लिए बहुत बड़ा हादसा साबित हुई है!” स्मृति भी कैबिनेट मंत्री के बेहद ज़िम्मेदार और संवैधानिक पद पर शोभायमान हैं। किसी भी तरह का झूठ बोलना या मनगढ़न्त बयान देना, न तो इनसे अपेक्षित है और ना ही इनके स्वभाव में है! ये इतनी संजीदा प्रवृत्ति की जन-नेता हैं कि एक बार ‘मैडम’ कहे जाने से आहत हो चुकी हैं!

लिहाज़ा, मोदी सरकार में मौजूद इस सबसे विदुषी नेता को देश को सामने ये ब्यौरा पेश करना चाहिए कि कैसे नोटबन्दी, गाँधी परिवार के लिए बड़ा हादसा बन गयी? क्योंकि ये महज़ हवाबाज़ी है कि गाँधी परिवार, भ्रष्टाचार और काले धन की गंगोत्री है! कैसे है, ये भी तो बताना पड़ेगा। गाँधी परिवार का कितना पैसा ऐसा है, जिसके बारे में मोदी सरकार जान चुकी है कि वो काला धन है और वो नोटबन्दी में डूब चुका है? क्योंकि अभी तक तो देश को यही पता है कि नोटबन्दी की वजह से बन्द हुए तक़रीबन सारे नोट, बैंकों में जमा होकर सफ़ेद धन बन चुके हैं। तो फिर गाँधी परिवार का काला धन कहाँ है? विदेश में है तो कहाँ? उसका ब्यौरा कौन देगा? 41 महीने से तो सत्ता में आप हैं, आपने ही तो शपथ लेते ही सबसे पहले काले धन को लेकर एसआईटी बनायी थी, आयकर विभाग, सीबीआई, ईडी, एनआईए, आईबी और रॉ, सब कुछ तो आपकी मुट्ठी में है। तो फिर अभी तक देश को बताया क्यों नहीं कि आपने गाँधी परिवार की कितनी दौलत को ज़ब्त किया है? कितने लोगों की गिरफ़्तारी हुई है? किन-किन मामलों में, सरकार का कौन-कौन सा महक़मा, गाँधी परिवार का टेटुआ दबाने की फ़िराक़ में है और किन-किन मामलों में सच्ची या झूठी जाँच पूरी हो चुकी है और आरोपपत्र दाख़िल किये जा चुके हैं?

बहरहाल, इस लेख में पेश सवालों का जबाव यदि देश के सामने नहीं आएगा तो भी क्या देश को ये मानकर ही चलना चाहिए कि रविशंकर प्रसाद और स्मृति इरानी जैसे नेता सच बोलते हैं, सोच-समझकर बोलते हैं और ठोक-बजाकर बोलते हैं। लिहाज़ा, इन्हें मोदी सरकार का नग़ीना बना ही रहना चाहिए। वैसे, ये सवाल इतने अहम और गम्भीर हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को ख़ुद आगे आकर हरेक बात का ब्यौरा देना चाहिए। प्रेस कॉन्फ्रेस में पत्रकारों के सवालों का सामना करने का साहस भले ही इस 56 इंची नेता में नहीं हो, लेकिन चुनावी मंच से वीर-रस में ओत-प्रोत भाषण देने में तो इनका कोई सानी नहीं है। लिहाज़ा, मोदी चाहें तो अपनी चुनावी सभाओं में ही उपरोक्त सवालो को लेकर देश की आँखें खोल सकते हैं। दूसरी ओर, यदि ऐसा कुछ नहीं होता, यदि आपकी राय ऐसी बनती है कि रविशंकर और स्मृति, सरीख़े झूठे और मक्कार नेताओं ने देश का नाम नीचा किया है तो संकल्प लीजिए कि सही वक़्त आने पर आप इन्हें ज़रूर बताएँगे कि आप इनके झाँसे में आकर बार-बार उल्लू बनने के लिए तैयार नहीं हैं!
 

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