नोटबंदी का उद्देश्य फेल, चुनावी बेला में फिर बढ़ी जमाखोरी, बैंक-बाजार-एटीएम से गायब हो रहे 2000 के नोट

Written by Sabrangindia Staff | Published on: May 9, 2019
केंद्र सरकार भले ही कालेधन व भ्रष्टाचार पर काबू पाने का दावा करते हुए जनता से वोट अपील करती हो, पर सच्चाई बेहद चौका देने वाली है। चुनाव के दौरान 2000 के नोटों की जमाखोरी पहले से काफी बढ़ गई है। साथ ही इसका असर बैंकों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ने लगा है। 



खबरों के अनुसार कानपुर के कई करेंसी चेस्ट में अब नाम मात्र ही 2000 के नोट बचे हैं। यानी अब 2000 के नोट न तो रिजर्व बैंक के पास है और न ही पब्लिक बैंकों के पास है। जानकारों की माने तो लोकसभा चुनाव के बिगुल बजने के साथ ही करीब एक साल से नोटों की जमाखोरी चल रही है। जिसका असर अब बैंकों पर दिखने लगा है।
इतना ही
नहीं आरबीआई के द्वारा जारी कुल करेंसी का 50 प्रतिशत से अधिक का हिस्सा 2000 के नोटों के रूप में था। जिसमे से कानपुर के करेंसी चेस्ट की बैलेंसशीट बताती है कि लगभग 20 प्रतिशत ही अब शेष है।

बैंकों के सूत्रों के मुताबिक 2000 के नोट बैंक, बाजार और एटीएम से लगातार कम होते जा रहे हैं। इसके स्थान पर 200 और 500 के नोटों का भरपून इस्तेमाल किया जा रहा है। सूत्रों के बताया कि 2000 के नोटों के करीब 80 प्रतिशत नोट लोगों के तिजोरियों में बंद है और इन्हें चुनाव के दौरान अघोषित लेन-देन के लिए प्रयोग किया जा रहा है।


गौरतलब है कि कानपुर में ही चुनाव में चार करोड़ रुपये की नकदी पकड़ी गई थी जिनमें ज्यादातर 2000 के नोट थे। जो इस बाद का बड़ा सबूत है।  वहीं जो नहीं पकड़े जा पा रहे वो कालेधन के तौर पर इस्तेमाल हो रहे हैं।

आइये आपको बताते हैं कि कब क्या हुआ?

नोटबंदी के छः महीने बाद यानी अप्रैल से जून 2017 तक बैंकों में कैश की आवक के तौर पर 2000 रुपये के नोटों की संख्या 35 से 40 फीसदी रहती थी। पर नवंबर 2017 में यह घटकर 20 से 25 फीसदी ही रह गई थी। और मार्च 2018 में यह मात्र 18 से 20 फीसदी ही थी। इसके बाद से 2000 रुपये के नोटों की आवक एकदम थम गई। साथ ही अब लगभग चार से पांच फीसदी नोट ही वापस आ रहे हैं। यह हालात अब और भी गंभीर हो चले हैं।

इस जमाखोरी को रोकने में असफल आरबीआई की बात सुने तो अगस्त 2018 में प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में केंद्र सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया था। रिपोर्ट से यह पता चलता है कि जिन उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए केंद्र सरकार ने नोटबंदी का निर्णय लिया है उसमे सरकार पूरी तरह असफल हुई है। खासकर की जमाखोरी पर लगाम लगाने की कोशिश पूरी तरह नाकाम हुई है। वहीं डिजिटल लेनदेन के स्थान पर कैश लेनदेन में काफी बढ़ोतरी हुई है।    

केंद्र सरकार का नीति फेल, सरकार का दावा झूठा और जमाखोरों की जेब आज भी गरम है। ऐसे में आम आदमी के मन में एक ही ख्याल आयेगा – आखिर सरकार के सारे दाव आम आदमी के ही ऊपर क्यों?

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