हाथरस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक नई जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें घटना से जुड़े पुलिसकर्मियों, चिकित्सा कर्मचारियों और अन्य सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों से संरक्षण) कानून के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की गई है। इसके साथ ही याचिका में एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) का गठन कर मामले की जांच कराए जाने की भी मांग की गई है। अदालत इस याचिका पर आज सुनवाई कर सकती है।
बात दें कि हाथरस की घटना ने देश को हिला कर रख दिया था जिसमें एक दलित लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया गया और उसे आई गंभीर चोटों की वजह से उसकी मौत हो गई थी।
यह जनहित याचिका महाराष्ट्र के दलित अधिकारों के कार्यकर्ता चेतन जनार्द्धन कांबले ने दायर की है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश (उप्र) सरकार द्वारा एक अन्य जनहित याचिका में दाखिल हलफनामे से ‘हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में गड़बड़ी करने और साक्ष्य नष्ट करने में शासकीय समर्थन’ के बारे में कुछ ज्वलंत तथ्य सामने आने के बाद वह यह जनहित याचिका दायर करने के लिये बाध्य हुए हैं।
याचिका में कहा गया है कि मीडिया की खबरों में जो अटकलें लगाई जा रही थी कि सरकारी अस्पतालों द्वारा तैयार मेडिकल रिपोर्ट में लीपा-पोती और आरोपी व्यक्तियों को संरक्षण देने के इरादे से पीड़ित के परिवार की आपत्तियों के बावजूद पुलिसकर्मियों द्वारा उसका रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया, अब उनका राज्य सरकार के जवाबी हलफनामे और इसके साथ संलग्न दस्तावेजों से खुलासा हुआ है।
अधिवक्ता विपिन नायर के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि इस घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है कि, "किस तरह से सरकारी तंत्र ने आरोपियों के लिए पूरा संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्यों के साथ हेराफेरी की और उन्हें नष्ट करने सहित सभी तरह के प्रयासों का सहारा लिया, इसकी वजह उसे ही पता होगी।"
याचिका के अनुसार, "तथ्यों से इस अपराध के संबंध में आरोपियों को बचाने और साक्ष्यों को नष्ट करने में उप्र पुलिस और राज्य सरकार की मशीनरी के कतिपय अधिकारियों की संलिप्तता और मिलीभगत के साफ संकेत मिलते हैं।"
बात दें कि हाथरस की घटना ने देश को हिला कर रख दिया था जिसमें एक दलित लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया गया और उसे आई गंभीर चोटों की वजह से उसकी मौत हो गई थी।
यह जनहित याचिका महाराष्ट्र के दलित अधिकारों के कार्यकर्ता चेतन जनार्द्धन कांबले ने दायर की है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश (उप्र) सरकार द्वारा एक अन्य जनहित याचिका में दाखिल हलफनामे से ‘हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में गड़बड़ी करने और साक्ष्य नष्ट करने में शासकीय समर्थन’ के बारे में कुछ ज्वलंत तथ्य सामने आने के बाद वह यह जनहित याचिका दायर करने के लिये बाध्य हुए हैं।
याचिका में कहा गया है कि मीडिया की खबरों में जो अटकलें लगाई जा रही थी कि सरकारी अस्पतालों द्वारा तैयार मेडिकल रिपोर्ट में लीपा-पोती और आरोपी व्यक्तियों को संरक्षण देने के इरादे से पीड़ित के परिवार की आपत्तियों के बावजूद पुलिसकर्मियों द्वारा उसका रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया, अब उनका राज्य सरकार के जवाबी हलफनामे और इसके साथ संलग्न दस्तावेजों से खुलासा हुआ है।
अधिवक्ता विपिन नायर के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि इस घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है कि, "किस तरह से सरकारी तंत्र ने आरोपियों के लिए पूरा संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्यों के साथ हेराफेरी की और उन्हें नष्ट करने सहित सभी तरह के प्रयासों का सहारा लिया, इसकी वजह उसे ही पता होगी।"
याचिका के अनुसार, "तथ्यों से इस अपराध के संबंध में आरोपियों को बचाने और साक्ष्यों को नष्ट करने में उप्र पुलिस और राज्य सरकार की मशीनरी के कतिपय अधिकारियों की संलिप्तता और मिलीभगत के साफ संकेत मिलते हैं।"