हाथरस मामला: पीड़ित परिवार को सरकारी जांच एजेंसी पर विश्वास नहीं- AIPF

Written by Sabrangindia Staff | Published on: October 9, 2020
लखनऊ। पीड़िता के परिवार के लोगों का राज्य व केन्द्र सरकार पर बिल्कुल विश्वास नहीं है। इसलिए वे किसी सरकारी एजेंसी से जांच कराने को तैयार नहीं हैं। ये बातें हाथरस के बूलगढ़ी गांव में बर्बर हमले का शिकार हुई पीड़िता के परिवारजनों ने ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की जांच टीम से कहीं। एआईपीएफ के नेता दिनकर कपूर, मजदूर किसान मंच के महासचिव डॉ. बृज बिहारी, वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश उपाध्यक्ष इंजीनियर दुर्गा प्रसाद, युवा मंच के नागेश गौतम की टीम ने 5 अक्टूबर को हाथरस घटना की जांच की थी। टीम ने पीड़िता के परिवारजनों से अपनी संवेदना व्यक्त की और उनके माता, पिता, दोनो भाईयों व परिवार के अन्य सदस्यों से बातचीत की। जिसकी रिपोर्ट एआईपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी को सौंपी गई। 



टीम की रिपोर्ट के आधार पर प्रेस को जारी अपने बयान में दारापुरी ने कहा कि मरने से पहले मजिस्ट्रेट के सामने पीड़िता का यह बयान कि उसके साथ रेप हुआ स्वतः प्रमाणित करता है कि उत्तर प्रदेश सरकार के उच्चस्तरीय अधिकारी पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने और अपराधियों को दण्ड़ित कराने की जगह पीड़िता के साथ रेप नहीं हुआ ऐसा कहकर पूरे मामले की हो रही जांच की दिशा को ही भटका रहे हैं।

जांच टीम की रिपोर्ट के आधार पर एआईपीएफ का यह मानना है कि जांच अब इस बात की होनी चाहिए कि रेप जैसे आपराधिक कृत्य करने वाले लोगों को कौन संरक्षण दे रहा है और अभी भी पीड़ित परिवार की सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है। जांच रिपोर्ट के आधार पर एआईपीएफ ने पुनः यह तथ्य रेखांकित किया कि बलात्कार के दोषियों के पक्ष में भारतीय जनता पार्टी से सम्बद्ध लोग जातीय उन्माद पैदा कर रहे हैं और प्रदेश सरकार व मीडिया का एक हिस्सा भी पूरे घटनाक्रम को साम्प्रदायिक दिशा देने में लगा हुआ है। जो लोकतंत्र के लिए कतई शुभ नहीं है।

जांच टीम ने पुनः यह नोट किया कि सामंती अवशेष और विकास मदों की लूट से बनी माफिया पूंजी का गठजोड़ दलित समेत समाज के सभी शोषित, दमित लोगों का उत्पीड़न करती है। योगी सरकार में जिसका मनोबल बहुत बढ़ा हुआ है। यही वह ताकतें है जो सोनभद्र के उभ्भा से लेकर हाथरस के बूलगढ़ी तक हमले करवाती हैं। यह ताकतें निचले स्तर पर राजनीतिक दलों के पक्ष में काम करती हैं और समाज के जनवादी विकास को रोकती हैं और सामाजिक तनाव को बढ़ाती हैं। बूलगढ़ी में दमन झेलते हुए विरोध करने वाले राजनीतिक दलों को इन ताकतों के प्रति अपना रूख साफ करना चाहिए। साथ ही टीम ने यह भी नोट किया कि दलितों के नाम पर बन रही सेनाओं से दलितों का भला नहीं होने जा रहा क्योंकि उनके पास दलित मुक्ति की न तो नीति है और न ही नियत।

दारापुरी ने हाईकोर्ट की लखनऊ खण्ड़पीठ द्वारा हाथरस की पीड़िता के मामले पर स्वतः संज्ञान लेने का स्वागत करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह माना है कि यदि आवश्यकता हुई तो वह अपनी निगरानी में जांच करायेगा इसलिए हमें उम्मीद है कि हाईकोर्ट की निगरानी में पूरे घटनाक्रम की जांच होगी और पीड़िता के साथ न्याय होगा। उन्होंने यह भी कहा कि 14 सितम्बर को पीड़िता के भाई की तहरीर पर थाने में लिखी गई एफआईआर में आईपीसी धारा 354 (सी) तक का दर्ज न करना एससी-एसटी एक्ट की धारा 4(2)(ख) और 166 सी आईपीसी के अंतर्गत दण्ड़नीय अपराध है। इसी प्रकार पीड़िता को पुलिस द्वारा अस्पताल जाने के लिए वाहन न देना एससी-एसटी एक्ट की धारा 4 (1) के तहत दण्डनीय अपराध है इसलिए इन धाराओं में तत्कालीन थानाध्यक्ष पर मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही होनी चाहिए। पीड़िता के परिवारजनों को धमकाना, उनका फोन रखना, उन्हें घर में बंद रखना एससी-एसटी एक्ट की धारा 4 (2) (ध) के तहत दण्डनीय अपराध है और मृतका की लाश परिवारजनों को न देकर रात में ही जबरन उसका दाह संस्कार कर देना मौलिक अधिकार का उल्लंधन तो है ही साथ ही एससी-एसटी एक्ट की धारा 3 (द) के तहत दण्डनीय अपराध भी है। इसलिए इससे सम्बंधित पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों पर भी एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की जानी चाहिए।
 

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