लखनऊ। लखनऊ में 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की शहादत की 27वीं बर्सी और बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर रिहाई मंच ने हज़रतगंज में अम्बेडकर प्रतिमा पर एक बैठक और विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जिसमें विभिन्न संगठनों से सैकड़ों लोग शामिल हुए. इस प्रदर्शन में नागरिकता संशोधन विधेयक की विभाजनकारी नीतियों पर चर्चा हुई.
इस अवसर पर रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस करने वाली मनुवादी ताकतें अब नागरिकता संशोधन विधेयक के जरिए संविधान को ध्वस्त करने पर आमादा हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक के संभावित खतरों से आगाह करते हुए रिहाई मंच ने सपा, बसपा, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के प्रमुखों को पत्र लिखकर संसद में विधेयक के खिलाफ वोट करने का आह्वान किया है.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने बताया कि यह विधेयक सभी सम्प्रदाय–जाति के गरीबों, भूमिहीनों और वंचितों पर प्रहार करता है और यह मनुवादी साज़िश का हिस्सा है. विधेयक में मुस्लिम समुदाय को छोड़कर बाकियों को धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
राजीव ने कहा कि विपक्षी दलों के प्रमुखों को पत्र लिखने की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि पिछले सत्र में कई ऐसे विधेयक संसद से पारित हो गए जो संविधान प्रदत्त जनता के कई मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं. राज्य सभा से कई विपक्षी दलों ने वॉक आउट किया और कुछ ने भावनाओं में बहकर यूएपीए जैसे दमनकारी अधिनियम को और क्रूर बनाने वाले संशोधन विधेयक के पक्ष में मतदान कर दिया. इस तरह अल्पमत में रहते हुए विधेयक राज्य सभा से पारित हो गया लेकिन इस बार उसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए.
रिहाई मंच द्वारा भेजे गए पत्र में विपक्ष से संसद में सरकार से सवाल करने को कहा गया है कि भारत में सैकड़ों सालों से कई घुमंतू जातियां रहती हैं जिनके पास न तो अपना घर है न स्थाई पता. अगर वे खुद को नागरिक साबित नहीं कर पाते हैं तो वे किस देश के नागरिक माने जाएंगे. पूंजीवादी नीतियों के चलते जंगल क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को बड़ी संख्या में विस्थापित किया गया। ऐसे में उनको देश का नागरिक माना जाएगा या विदेशी घोषित कर पहले शरणार्थी बनाया जाएगा और फिर नागरिकता देकर भटकने के लिए छोड़ दिया जाएगा. जंगल पूंजीपतियों को आवंटित कर दिया जाएगा और जबरन पुनर्वास के नाम पर उनको अन्यत्र बसाया जाएगा.
मंच महासचिव ने कहा कि नागरिकता के सवाल पर मंच ने गांवों का दौरा किया और आम जनता से बातचीत के बाद पाया कि किसी भी वर्ग के गरीबों, मज़दूरों के साथ दलित और अति पिछड़ा की बहुत बड़ी आबादी भूमिहीन, बेरोज़गार और अशिक्षित होने के कारण अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएगी. क्या उन्हें विदेशी माना जाएगा? क्या उन्हें डराया जाएगा कि वे डिटेंशन कैंपों में जाने के भय से अपने को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश का नागरिक बताएं और स्वीकार करें कि वे उस देश में धार्मिक प्रताड़ना के चलते पलायन कर भारत आ गए। फिर उसी आधार पर सरकार उन्हें शरणार्थी का दर्जा देकर नागरिकता देगी?
रिहाई मंच ने कहा कि ऐसे में संविधान द्वारा प्रदत्त उनके विशेषाधिकारों का क्या होगा? क्या उन्हें पूर्व की भांति आरक्षण मिलेगा, एससीएसटी एक्ट उनके मामले में लागू होगा या संविधान द्वारा प्रदत्त अन्य सुविधाएं और अधिकार प्राप्त होंगे? क्या प्राकृतिक व अन्य आपदाओं में जिनका सब कुछ बर्बाद हो गया जिसके कारण वे कोई दस्तावेज़ नहीं पेश कर सकते, उन्हें निकाल दिया जाएगा. यहां गरीब, कमज़ोर, अनपढ़ भारतीय नागरिकों के अनागरिक घोषित किए जाने का खतरा है और सरकार घुसपैठिया-घुसपैठिया खेल रही है. यही काम उसने असम एनआरसी मामले में भी किया था लेकिन अनापेक्षित आंकड़े सामने आने के बाद गूंगा बन गया.
मंच ने पत्र के माध्यम से विपक्ष के नेताओं को बताने का प्रयास किया है कि यह संशोधन विधेयक न केवल मूल निवासी गरीब जनता के लिए अपमानजनक है बल्कि साम्प्रदायिकता के आवरण में यह देश पर मनुवादी व्यवस्था थोपने के ब्रम्हणवादी एजेंडे को आगे ले जाने का बड़ा कदम है. मंच ने विपक्षी नेताओं से विधेयक के खिलाफ मजबूती से खड़े होने और शत प्रतिशत मतदान करने की अपील की है और अपने दृष्टिकोण को अविलंब सार्वजनिक करने का अनुरोध किया है.
इस अवसर पर रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस करने वाली मनुवादी ताकतें अब नागरिकता संशोधन विधेयक के जरिए संविधान को ध्वस्त करने पर आमादा हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक के संभावित खतरों से आगाह करते हुए रिहाई मंच ने सपा, बसपा, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के प्रमुखों को पत्र लिखकर संसद में विधेयक के खिलाफ वोट करने का आह्वान किया है.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने बताया कि यह विधेयक सभी सम्प्रदाय–जाति के गरीबों, भूमिहीनों और वंचितों पर प्रहार करता है और यह मनुवादी साज़िश का हिस्सा है. विधेयक में मुस्लिम समुदाय को छोड़कर बाकियों को धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
राजीव ने कहा कि विपक्षी दलों के प्रमुखों को पत्र लिखने की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि पिछले सत्र में कई ऐसे विधेयक संसद से पारित हो गए जो संविधान प्रदत्त जनता के कई मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं. राज्य सभा से कई विपक्षी दलों ने वॉक आउट किया और कुछ ने भावनाओं में बहकर यूएपीए जैसे दमनकारी अधिनियम को और क्रूर बनाने वाले संशोधन विधेयक के पक्ष में मतदान कर दिया. इस तरह अल्पमत में रहते हुए विधेयक राज्य सभा से पारित हो गया लेकिन इस बार उसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए.
रिहाई मंच द्वारा भेजे गए पत्र में विपक्ष से संसद में सरकार से सवाल करने को कहा गया है कि भारत में सैकड़ों सालों से कई घुमंतू जातियां रहती हैं जिनके पास न तो अपना घर है न स्थाई पता. अगर वे खुद को नागरिक साबित नहीं कर पाते हैं तो वे किस देश के नागरिक माने जाएंगे. पूंजीवादी नीतियों के चलते जंगल क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को बड़ी संख्या में विस्थापित किया गया। ऐसे में उनको देश का नागरिक माना जाएगा या विदेशी घोषित कर पहले शरणार्थी बनाया जाएगा और फिर नागरिकता देकर भटकने के लिए छोड़ दिया जाएगा. जंगल पूंजीपतियों को आवंटित कर दिया जाएगा और जबरन पुनर्वास के नाम पर उनको अन्यत्र बसाया जाएगा.
मंच महासचिव ने कहा कि नागरिकता के सवाल पर मंच ने गांवों का दौरा किया और आम जनता से बातचीत के बाद पाया कि किसी भी वर्ग के गरीबों, मज़दूरों के साथ दलित और अति पिछड़ा की बहुत बड़ी आबादी भूमिहीन, बेरोज़गार और अशिक्षित होने के कारण अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएगी. क्या उन्हें विदेशी माना जाएगा? क्या उन्हें डराया जाएगा कि वे डिटेंशन कैंपों में जाने के भय से अपने को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश का नागरिक बताएं और स्वीकार करें कि वे उस देश में धार्मिक प्रताड़ना के चलते पलायन कर भारत आ गए। फिर उसी आधार पर सरकार उन्हें शरणार्थी का दर्जा देकर नागरिकता देगी?
रिहाई मंच ने कहा कि ऐसे में संविधान द्वारा प्रदत्त उनके विशेषाधिकारों का क्या होगा? क्या उन्हें पूर्व की भांति आरक्षण मिलेगा, एससीएसटी एक्ट उनके मामले में लागू होगा या संविधान द्वारा प्रदत्त अन्य सुविधाएं और अधिकार प्राप्त होंगे? क्या प्राकृतिक व अन्य आपदाओं में जिनका सब कुछ बर्बाद हो गया जिसके कारण वे कोई दस्तावेज़ नहीं पेश कर सकते, उन्हें निकाल दिया जाएगा. यहां गरीब, कमज़ोर, अनपढ़ भारतीय नागरिकों के अनागरिक घोषित किए जाने का खतरा है और सरकार घुसपैठिया-घुसपैठिया खेल रही है. यही काम उसने असम एनआरसी मामले में भी किया था लेकिन अनापेक्षित आंकड़े सामने आने के बाद गूंगा बन गया.
मंच ने पत्र के माध्यम से विपक्ष के नेताओं को बताने का प्रयास किया है कि यह संशोधन विधेयक न केवल मूल निवासी गरीब जनता के लिए अपमानजनक है बल्कि साम्प्रदायिकता के आवरण में यह देश पर मनुवादी व्यवस्था थोपने के ब्रम्हणवादी एजेंडे को आगे ले जाने का बड़ा कदम है. मंच ने विपक्षी नेताओं से विधेयक के खिलाफ मजबूती से खड़े होने और शत प्रतिशत मतदान करने की अपील की है और अपने दृष्टिकोण को अविलंब सार्वजनिक करने का अनुरोध किया है.