रवीश का लेख: क्यों नहीं यूपी बिहार में पाक, अफ़ग़ान और बांग्लादेश के हिन्दुओं को बसाया जाए?

Written by रवीश कुमार | Published on: December 14, 2019
असमिया कौन है, क्या है, यह समझने के लिए कौशिक डेका के इस लेख को पढ़िए। बहुत आसान अंग्रेज़ी में है। कौशिक कहते हैं कि हमने अपनी पहचान की ख़ातिर ही भारत का हिस्सा होने के लिए संघर्ष किया। वरना हम बांग्लादेश का हिस्सा होते। हमने भारतीय होने के लिए लड़ा है। हम भारतीय हैं और किसी से भी ज़्यादा भारतीय हैं लेकिन हमारी पहचान मिटेगी तो अस्तित्व मिटेगा। हम मुसलमानों से नफ़रत नहीं करते हैं। हम नहीं चाहते कि असम के कलाकार आदिल हुसैन का नाम एन आर सी में आए और उन्हें बाहर निकाल दिया जाए।हम उस तरह से हिन्दू नहीं हैं जिस तरह से आप हिन्दू धर्म को समझते हैं।क्रोधित ब्रह्मपुत्र तबाही लाता है मगर वो पहचान और परिवार का हिस्सा है। हम असमिया हैं। हमने बांग्लादेश से आए लोगों को भी अपनाया है। मगर हमारी उदारता को नहीं समझा गया। हम अपनी असमिया पहचान नहीं गँवा सकते।



मैं एक बात का प्रस्ताव करना चाहता हूँ। अगर असम में रह रहे हिन्दू बांग्लादेशी प्रवासियों से उनकी पहचान को ख़तरा है तो इन्हें यूपी और बिहार में बसा दिया जाए। दो मिनट में झगड़ा ख़त्म हो जाएगा। बिहार को पुराना बंगाल तो नहीं मिल सकता कुछ अच्छे बंगाली मिल जाएँगे। बिहार और यूपी की उदारता इसे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार भी कर लेगी। गृहमंत्री को बिहार और यूपी के मुख्यमंत्रियों से बात कर एलान कर देना चाहिए। चूँकि ये लोग लंबे समय तक विस्थापित रहे हैं इसलिए इन्हें कमजोर आर्थिक तबके के आरक्षण में भी जोड़ा जा सकता है। इससे असम को अपनी पहचान का संकट नहीं सताएगा। इन दो प्रदेशों ने जिस तरह से नागरिकता क़ानून और रजिस्टर का समर्थन किया है मुझे लगता है वे अपने यहाँ बांग्लादेशी हिन्दुओं का भी खुलकर स्वागत करेंगे। असम भी शांत हो जाएगा और यूपी बिहार को दोगुनी ख़ुशी मिलेगी।
महीने भर में दोनों राज्यों में ज़मीन अधिगृहीत कर ये काम किया जा सकता है।

दूसरा यह क़ानून बना ही है मज़हब का खेल खेलने के लिए। सरकार चाहती तो पुराने नियमों के तहत ही नागरिकता दे सकती थी। दी भी है। अमित शाह ने एक बार भी असम में हुए नागरिकता रजिस्टर का ज़िक्र नहीं किया। जबकि सभी को पता है कि रजिस्टर से बाहर हो गए 19 लाख लोगों में से अधिकतर हिन्दू हैं। तभी असम में बात बीजेपी ने असम के नेशनल रजिस्टर का विरोध किया। दोबारा गिनती की माँग की गई। अब अमित शाह पूरे देश में रजिस्टर लागू करेंगे। आम लोग चाहें वो हिन्दू हैं या मुस्लिम दस्तावेज खोजने में लग जाएँगे और यातना से गुजरेंगे। उन्होंने नागरिकता क़ानून से एक धर्म को अलग कर और कई धर्मों को जोड़ कर खेल खेला है। अगर वे किसी का अधिकार नहीं ले रहे तो बता दें कि फिर किसी को अधिकार देने के लिए मज़हब क्यों जोड़ रहे हैं। तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में हिन्दुओं के उत्पीड़न पर लज्जा लिखा था। उन्हें वहाँ के कट्टरपंथियों से बच कर भारत आना पड़ा। कल अगर ऐसा कोई वहाँ हिन्दुओं के पक्ष में खड़ा हुआ और उसे शरण की ज़रूरत पड़ी तब क्या होगा।

अमित शाह कहते हैं की सामान्य नियमों के तहत आवेदन करेगा। वो खुद कह रहे हैं कि मुसलमानों को नागरिकता के लिए अलग क़ानून है। रही बात हिन्दू व अन्य पाँच धर्मों के उत्पीड़न की तो किया 31.12.2014 के बाद उनका उत्पीड़न नहीं होगा? फिर ये तारीख़ ही क्यों डाली? इसके बाद जो आएगा उसे फिर किसी क़ानून के इंतज़ार की यातना से गुज़रना होगा?

अमित शाह ने सदन में संख्या को लेकर कोई साफ बात नहीं की। राज्य सभा में बिल पर मतदान के पहले कहा कि उनके पास आँकड़े नहीं है। जैसे जैसे नागरिकता दी जाएगी संख्या का पता चलेगा। यानि वे भी उन 14 लाख बांग्लादेशी हिन्दू का नाम नहीं लेना चाहते जिनका नाम रजिस्टर में नहीं आया। जबकि सब जानते हैं कि नागरिकता क़ानून इसीलिए आया।

एक ही बात है। एक धर्म का नाम न लो। अपने आप मामला बहुसंख्यक का बन जाएगा। उन्हें दोयम दर्जे की नागरिकता का अहसास कराकर अपमानित करो। और बहुसंख्यक को लगातार हिन्दू मुस्लिम के भँवर जाल में फँसाए रखो। यह संविधान ही नहीं स्वतंत्रता संघर्ष की आत्मा पर प्रहार है। इसका विरोध होना ही चाहिए।
 

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