'नई संसद में नए संविधान के साथ प्रवेश की मांग देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान का अनादर'

Written by Navnish Kumar | Published on: August 17, 2021
जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर व अमर उजाला पर सहारनपुर में परिवाद दर्ज



देश और दुनिया में इस वक्त कोई चर्चा है तो वो है अफगानिस्तान के तालिबानीकरण की। सोशल एक्टिविस्ट विपिन जैन फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि एक समृद्ध और उन्नत सभ्यता वाला देश किस प्रकार तालिबानीकरण (धार्मिक कट्टरपंथी सोच) के कारण बर्बाद हो सकता है, अफगानिस्तान उसका एक उदाहरण है। इसके लिए 1972 का एक फोटो जिसमें अफगानिस्तान की सड़कों पर स्कर्ट पहने लड़कियां स्वच्छंद घूम रही हैं, भी खूब वायरल हो रहा है जो आज के उलट, अफगान सभ्यता की विराटता और वैचारिक खुलेपन को दर्शाता है। यूजर संजीव दत्त शर्मा, विपिन जैन से सहमत होते हुए कहते हैं कि कट्टरपंथ (तालिबानी) के उदय का इतिहास अगर कोई देखना चाहेगा, तो वो कुछ इसी तरह उभरता है। पहले अल्पसंख्यकों को निशाना, फिर अपने ही समुदाय/जाति के उदार लोगों को निशाना और फिर तो वर्चस्व की लड़ाई में जो भी विरोधी सामने आ गया। अब सिख चरमपंथ हो या हिंदू या मुस्लिम या अन्य कोई धार्मिक चरमपंथ। हर कट्टरपंथ के उभार में, शुरुआती दौर में सत्ता का वरदहस्त ऐसे लोगों के सिर/पीठ पर रहा, जिसके द्वारा सत्ताशीन लोग अपनी कुर्सी बचाते रहे। फिर ये आतंकवाद जब मजबूत हो जाता है, तो इन्ही सत्ताधीशों के गले की फांस बन जाता है। रूस को नीचा दिखाने के लिए अमेरिका द्वारा पाले-पोसे तालिबान से आज अमेरिका भी पस्त है। भारत में आज जो भी लोग ऐसी घटनाओं के समर्थक बने बैठे हैं, कल वो भी इनका निशाना बनें! तो कोई अचरज की बात नहीं होगी। जेएनयू, जामिया से होती हुई ये कुसंस्कृति जब गार्गी कॉलेज में पहुंची तो ऐसे लोगों को बहुत तिलमिलाहट हुई थी, चूंकि गार्गी कॉलेज जेएनयू की तरह वामपंथ और जामिया की तरह मुस्लिम छात्रों का गढ़ नही था। गार्गी, लगभग शत प्रतिशत हिंदू छात्राओं का कॉलेज है।

दरअसल देश के नागरिकों की समस्या उनकी ये सोच है कि "मीठा मीठा गप गप, कड़वा कड़वा थू थू"। अधिकांश राष्ट्र हितों से जुड़ने का दिखावा तो करते हैं, पर सोच में विपरीत होते हैं। इसलिये वो जाने अनजाने, गाहे बगाहे उस सोच का समर्थन करते हैं, जो वास्तव में जोड़ने के आडंबर में देश को सामाजिक रूप से तोड़ने का काम कर रही है। इसलिए इनके ज्वलंत मुद्दों में धर्म, जात-पात के उलझते मुद्दे ही सर्वोपरि होते हैं, जबकि उच्चतम स्तर की सुगम सस्ती शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, सुरक्षा, पानी, बिजली होती ही नही। बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई इन्हें चिंतित नहीं करती। बेइंतहा लाभ कमाने वाले सरकारी और पीएसयू का निजीकरण और विनिवेश के नाम पर बेचना, इन पर कोई असर नही करता। बैंको को अरबों-खरबों डॉलर का चूना लगाकर विदेश भागने वाले और देश को आर्थिक आतंकवाद के अंधे कुए में धकेलने वाले करीब 70 लोग इनकी नजरों में धर्म के कारण सम्मानित ही रहते हैं। बैंकों की नजरों में ये घोषित दिवालिये लोग पिछले 4-5 सालों से विदेशों में ऐश की जिंदगी कैसे जी रहे है, किसी को कोई मतलब नही। किसी भी महत्वपूर्ण चुनाव के समय इनके मुद्दे सिर उठाते हैं, फिर शांत हो जाते हैं। बिना भारत सरकार की क्लीन चिट के, इन्हें विदेशी देशों की नागरिकता नही मिल सकती, अगर मिली तो क्लीन चिट देने वाले कौन थे? संजीव दत्त शर्मा कहते हैं कि जिस दिन सभी नागरिक अपनी मूलभूत सुविधाओं और जरूरतों के मुद्दों पर जुड़ जाएंगे, उनकी नजरों में दो ही वर्ग/धर्म/जाति होंगी। अफजल गुरु, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या जैसे लोग एक तरफ और अब्दुल हमीद, डा कलाम, अजीम प्रेमजी, हाल में ओलम्पिक में देश के लिए पदक जीतने वाले, कोरोना संकट में लड़ने वाले सभी योद्धा, वैज्ञानिक आदि दूसरी तरफ होंगे। देश जीत जाएगा और ये गंदी राजनीति हार जाएगी।

भारत के परिप्रेक्ष्य में कट्टरपंथ के उभार पर, जागरूकता से समय रहते कैसे काबू पाया जा सकता है?, को लेकर ताजा प्रकरण कुछ राह जरूर दिखाता है। मसलन सहारनपुर के एक जागरूक नागरिक और संविधान के पैरोकार अधिवक्ता ने देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बिगाड़ने की ''कट्टरपंथी'' सोच पर कानूनी शिकंजा कसने की कोशिश की है। ताजा मामला उदाहरण है कि अगर नागरिक जागरूक हो तो ऐसे लोगों और कट्टरपंथी सोच को समय रहते रोका जा सकता है और रोकना ही होगा।

''नई संसद में सनातनी हिंदू संस्कृति पर आधारित नए संविधान के साथ प्रवेश करने की मांग करना, जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर व "अमर उजाला'' अखबार के संपादकों को भारी पड़ सकता है। सहारनपुर के एसीजेएम प्रथम की कोर्ट ने इनके खिलाफ संविधान (धर्मनिरपेक्षता) का अनादर'' करने और लोगों को संविधान (राज्य) के खिलाफ विद्रोह करने को उकसाने के आरोपों को लेकर परिवाद दर्ज किया है। याचिकाकर्ता राहुल भारती का आरोप है कि आरोपी के द्वारा संविधान के खिलाफ एक तरह का अभियान चलाया जा रहा है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता और संविधान बचाओ ट्रस्ट के संयोजक राजकुमार ने बताया कि जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यतींद्रनाथ गिरी ने अमर उजाला को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि नई संसद में नए संविधान के साथ प्रवेश होना चाहिए। नया संविधान हिंदू सनातन संस्कृति पर आधारित हो और उसमें आरक्षण जैसी बराबरी की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए। इस तरह का आपत्तिजनक बयान महामंडलेश्वर ने दिया था जिसे अमर उजाला ने अपने लखनऊ संस्करण ने प्रकाशित किया था। कहा- संविधान का अवमान पैदा करने वाले जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यतींद्रनाथ गिरी लखनऊ अमर उजाला के दो संपादक अमर उजाला के सीईओ राजुल माहेश्वरी के विरुद्ध सहारनपुर जनपद के एसीजेएम न्यायालय ने परिवाद दर्ज कर लिया गया है जिससे संविधान के खिलाफ अभियान चलाने वालों की मुश्किलें बढ़ना तय हैं। राजकुमार कहते हैं कि हालांकि नेशनल ऑनेरियम अधिनियम 1971 की धारा-2 और राजद्रोह की धारा-124ए के अंतर्गत यह दंडनीय अपराध बनता है और संज्ञेय अपराध होने के कारण इनकी एफआईआर दर्ज होकर तत्काल गिरफ्तारी होनी चाहिए थी। परंतु अदालत ने इनके विरुद्ध परिवाद दर्ज करते हुए, सुनवाई का निर्णय लिया है। अब वादी के धारा 200 व गवाहों के बयान होंगे। आरोपियों की तलबी होगी। भारत में संविधान की अवज्ञा (उल्लंघन) की सजा 3 वर्ष है। 

युवा अधिवक्ता राजकुमार कहते हैं कि भारत के संविधान के अध्याय-4 मौलिक कर्तव्यों में निम्न प्रावधान किए गए हैं जो देश के प्रत्येक नागरिक पर बाध्यकारी हैं। (क) प्रत्येक व्यक्ति द्वारा संविधान का पालन करने और उसके आदर्शों संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करने की बाध्यता संविधान के अध्याय-4 मौलिक कर्तव्यों में विद्यमान है। (ख) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें। राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम 1971 की धारा-2 में निम्न प्रदान किए गए हैं। राष्ट्रीय ध्वज और संविधान जो भी किसी सार्वजनिक स्थान पर या सार्वजनिक दृश्य के भीतर किसी अन्य स्थान पर जलता है उत्परिवती दोष, अपवित्र, विध्वंस करता है या अन्य पर अपमान प्रकट करता है या अवमानना करता है (चाहे शब्दों द्वारा, या तो बोले या लिखित या कृत्यों द्वारा) भारतीय राष्ट्रीय ध्वज या भारत का संविधान या उसके किसी भी भाग को, ऐसे कारावास की सजा दी जाएगी जो 3 साल तक या जुर्माना यह दोनों के साथ हो सकती है। जबकि धारा 124 (क) भारतीय दंड संहिता परिभाषित करती है 124 (क) राज्य द्रोह, जो बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, वह आजीवन कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या 3 वर्ष के कारावास से या जुर्माने से दंडित किया जाएगा। 

राजकुमार कहते हैं कि जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यतींद्र नाथ गिरी ने राजधानी लखनऊ के विकास नगर स्थित जीवनदीप आश्रम पर कहा कि "नई संसद के साथ नया संविधान बनाया जाए, यह सनातन हिंदू संस्कृति पर आधारित हो जिसमें एक देश एक नागरिकता की बात हो। धर्म, जाति और मौलिक अधिकारों को लेकर भेद न हो। उन्होंने कहा कि मौजूदा संविधान इन आधारों पर भेद करता है। समानता की बात तो की जाती है मगर ऐसा है नहीं। आरोप है कि नए संविधान में आरक्षण पर पुनर्विचार की बात भी उनके द्वारा कही गई। यही नहीं, मदरसे पूरी तरह समाप्त करने, आतंक और धर्मांतरण के लिए वहाबी मदरसों और मौलानाओं को फंडिंग करने की बात कही। जनसंख्या पर रोक के लिए कानून बनाने का आश्वासन देने की बात की मगर इसे अब नहीं बनाने का आरोप भी महामंडलेश्वर ने सरकार पर लगाकर, सरकार के विरुद्ध देश की जनता को भड़काने का काम किया। उन्होंने अपने संबोधन में यह भी कहा कि 98% मुस्लिम हिंदू ही हैं वह किन्ही कारणों से मुस्लिम हुए। अब वह घर लौटना चाहते हैं तो हिंदुओं को दिल बड़ा करना चाहिए। उसके लिए रोटी और बेटी का संबंध बनाना होगा। यदि उनकी बेटी हमारे घर आती है तो उनका स्वागत हो। कहा- यह समझना चाहिए कि वह भी हिंदू ही है।

राजकुमार कहते हैं कि भारत के संविधान में आर्टिकल 368 के तहत संसद को संशोधन करने का अधिकार प्राप्त है परंतु जिस प्रकार महामंडलेश्वर नए संविधान के साथ नई संसद में प्रवेश करने का बयान देकर संविधान का अनादर कर रहे हैं और देश के नागरिकों को भड़का रहे हैं। यही नहीं जाति और धर्म के नाम पर भी जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यतींद्र नाथ गिरी देश के संविधान को चुनौती दे रहे हैं। उनके इस कथन से ऐसा स्पष्ट होता है कि यतींद्र नाथ गिरी को देश के संविधान में भरोसा नहीं है और धर्मनिरपेक्ष संविधान के स्थान पर सनातन हिंदू संस्कृति के आधार पर नए संविधान की बात कर रहे हैं। हिंदू संस्कृति में मनुस्मृति की ओर इनका इशारा प्रतीत होता है। राजकुमार के अनुसार मनुस्मृति में महिलाओं, अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के शोषण करने के तरीके लिखे गए हैं। पुनः देश की महिलाओं, बच्चों और एससी-एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के अधिकारों को छीनने के लिए देश के नागरिकों में विद्रोह फैला रहे हैं जिसकी इजाजत न तो देश का संविधान देता है और न ही धर्म देता है। कहा विपक्षी यतींद्र नाथ गिरी भगवा चोले में देश के नागरिकों के भाईचारे में जहर घोल रहे हैं। विपक्षी यतेंद्र गिरी और अन्य विपक्षी गण का यह कृत्य, सांप्रदायिक हिंसा फैलाकर देश को अस्थिर करने की गहरी साजिश है। अमर उजाला लखनऊ संस्करण द्वारा उनकी खबर को 28 जून 2021 के अंक में प्रमुखता से उनके फोटो सहित अखबार में प्रकाशित करके, देश के संविधान और राष्ट्रीय एकता को खतरे में डाल रहे हैं। विपक्षीगण ने जानबूझकर ईर्ष्या और द्वेषपूर्ण भावना से अमर उजाला के सीईओ राजुल माहेश्वरी, संपादक लखनऊ वीरेंद्र आर्य एवं इंदु शेखर पंचोली ने अपराधिक षड्यंत्र रचकर, संविधान के विरुद्ध गहरी साजिश रचकर, संविधान की अवमानना व अवज्ञा की है। इनके इस अपराधिक कृत्य से उनके (मुवक्किल) सहित देश के नागरिकों की भावना आहत हुई है। यह आपराधिक समाचार देश विदेश में सोशल मीडिया पर प्रसारित हुआ जिससे देश विदेश में संविधान और भारत के नागरिकों की छवि धूमिल हुई है। संविधान देश के प्रत्येक स्थान और प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की गारंटी देता है। इसलिए संविधान की अवज्ञा एवं अपमान का मामला देश के किसी भी राज्य में दर्ज कराया जा सकता है। इस संबंध में 7 जून 2021 को एसएसपी सहारनपुर को प्रार्थना पत्र दिया गया लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की है। इसलिए कोर्ट में धारा 156 (3) के तहत कार्रवाई की गई है जिस पर एसीजेएम प्रथम की अदालत ने 9 अगस्त को परिवाद दर्ज कर लिया है।

संविधान की धर्मनिरपेक्षता को निशाने पर लेने को लेकर महामंडलेश्वर आदि पर लगे आरोपों की पड़ताल तो कोर्ट करेगी लेकिन सवाल है कि क्या भारत में धर्मनिरपेक्षता वाकई में अतीत का अवशेष बन गई है या बनती जा रही है? संविधान के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र है, जिसमें राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। परन्तु आज सरकार के द्वारा भी जिस तरह, मुद्दों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश समय समय पर उजागर हो रही है वो और भी घनघोर चिंता का विषय है। इससे सरकार को दो लाभ हैं। पहला, लोगों का ध्यान सरकार की कमियों और उसकी जवाबदारी से हट जाता है और दूसरा, इससे सरकार को अपने विचारधारात्मक एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है। ऐसे कानून बनाए जा रहे हैं जो अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाते हैं। देश के विकास में उनके योगदान को नकारा जा रहा है। केवल बहुमत के बल पर बिना किसी बहस के कानून पारित किया जा रहा है और धर्मनिरपेक्षता के झीने से पर्दे को भी सरकार हटाने पर आमादा है। बिना बहस कानून बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी चिंता जाहिर कर चुके हैं।

यही नहीं, हाल में टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाडियों ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित खेल स्पर्धा में शानदार प्रदर्शन किया। पदक जीते परंतु इस का उत्सव मनाने की बजाय कुछ लोग विजेताओं की जाति और धर्म का पता लगाने के प्रयासों में जुटे थे। रपटों के अनुसार, लवलीना बोरगोहेन और पीवी सिन्धु द्वारा ओलम्पिक खेलों में भारत का मस्तक ऊंचा करने के बाद, इन्टरनेट पर सबसे ज्यादा सर्च यह पता लगाने के लिए किये गए कि लवलीना का धर्म और सिन्धु की जाति क्या है। भारत में सांप्रदायिक और जातिगत पहचानों के मज़बूत होते जाने के चलते यह आश्चर्यजनक नहीं था बल्कि यह भारत में धार्मिक और जातिगत विभाजनों को और गहरा करने में वर्तमान शासन की सफलता का ही एक सुबूत था। अब चाहे ओबीसी मंत्रियों का बखान हो या नागरिकता का सवाल हो या फिर असम व मिजोरम जैसे विवाद हो, इन सभी के पीछे लोगों की धार्मिक, नस्लीय व भाषाई पहचान को उभारना  या निशाने पर लेना ज्यादा है। असम में 'घुसपैठियों', 'मियांओं' और 'बाहरी लोगों' के नाम पर जूनून भड़काकर कैसे एक विशुद्ध राजनैतिक विवाद को सांप्रदायिक रंग दे दिया जा रहा है, सभी जानते हैं। जनसंख्या नियंत्रण आदि के नाम पर उप्र आदि कई राज्यों में कानून भी सांप्रदायिक धुर्वीकरण को और गहरा करने का ही प्रयास ज्यादा लगता हैं। दरअसल सर्वज्ञात है कि जनसंख्या वृद्धि का संबंध विकास, शिक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण से है। गोवंश लिंचिंग व तब्लीगी जमात आदि के पीछे भी यही सब कुछ ज्यादा है। 

मशहूर पत्रकार मृणाल पांडे भी तालिबान के बहाने भारत के राज्यों की भूमिका पर बड़ा और सटीक सवाल उठाती हैं और चेताती भी हैं। मसलन प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल के ट्वीट ''अमेरिका की दुष्टता जगज़ाहिर है लेकिन अफ़ग़ानिस्तान को तालिबान से बचाने के लिए इस्लामी मुल्कों ने क्या किया?'' के सवाल के जवाब में पत्रकार मृणाल पांडे कहती है कि वही किया जो हमारे यहां कट्टरपंथी धार्मिक दलों के उभार पर अधिकतर मौकापरस्त क्षेत्रीय दलों और दलबदलुओं के गुटों ने किया। जबकि आज अधिकतर गन्ने की तरह चूस कर घूरे पर डाल दिए गये हैं, या महत्वहीन झुनझुने बजाने को बाध्य हैं।

इन्ही सब को भांपते हुए भारत के संविधान निर्माताओं ने यह तय किया था कि भारत का न तो कोई राज धर्म होगा और ना ही राज्य के नीति निर्धारण में धर्म की कोई भूमिका होगी। परंतु इसके साथ-साथ देश के सभी नागरिकों को अपनी पसंद के धर्म में आस्था रखने, उसका आचरण करने और प्रचार करने का अबाध अधिकार होगा। स्वतंत्रता के बाद के शुरूआती वर्षों में सरकारी नीतियां काफी हद तक धार्मिक प्रभाव से मुक्त रहीं और कम से कम सिद्धांत के स्तर पर भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहा। लेकिन यह स्थिति अब बदल रही है। सत्ताधारी दल खुलेआम देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का मखौल बना रहा है और जिन लोगों ने संविधान की रक्षा करने की शपथ ली है वे ही धार्मिक पहचान के आधार पर समाज को ध्रुवीकृत करने के प्रयासों में लगे हैं तो ऐसे में राजकुमार व राहुल भारती का संविधान पर (धार्मिक व जातिगत) हमले के खिलाफ एक पैरोकार के तौर पर सामने आना निसंदेह काबिलेतारीफ हैं और नई उम्मीदें जगाने वाला है।

Related:
संविधान बीसा
Constitution Day: 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था संविधान

बाकी ख़बरें