गृह मंत्रालय की नवीनतम अधिसूचना चुनिंदा समूहों के लिए छूट को व्यवस्थित करती है, हिरासत केंद्रों को औपचारिक रूप देती है और 2015 में पहली बार लागू किए गए धर्म आधारित बहिष्कारों की पुनरावृत्ति करती है, जिससे संवैधानिक और मानवाधिकार संबंधी चिंताएं पैदा होती हैं।

गृह मंत्रालय (MHA) ने 2 सितंबर 2025 को इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स (एक्जेम्पशन) ऑर्डर, 2025 को जारी किया जो भारत के इमिग्रेशन फ्रेमवर्क को लेकर बड़ा कदम है। हाल ही में जारी इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स एक्ट, 2025 के तहत जारी की गई इस अधिसूचना ने रजिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेनर्स (एक्जेम्पशन) ऑर्डर, 1957 और इमिग्रेशन (करियर्स लाेबलिटी) ऑर्डर, 2007 को प्रतिस्थापित कर दिया है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह अधिसूचना जहां प्रवेश करने वाले कुछ विशेष श्रेणियों के लिए छूट देता है, वहीं अवैध प्रवासियों की नजरबंदी और निर्वासन के लिए सख्त प्रावधानों को भी लागू करती है।
यह बदलाव केवल तत्काल प्रभाव वाले नियमों के कारण ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह 2015 में शुरू हुई उस नीति को आगे बढ़ाता है जिसमें भारत के पड़ोसी देशों के कुछ धार्मिक अल्पसंख्यकों को विशेष प्राथमिकता दी जाती है, जबकि मुसलमानों को इससे अलग रखा गया है।
2025 आदेश की प्रमुख विशेषताएं
1. नेपाल और भूटान के नागरिक: नेपाल और भूटान के नागरिक अपनी सीमा से जमीन या हवाई मार्ग से भारत में प्रवेश करते समय पासपोर्ट और वीजा से मुक्त रहेंगे। अन्य मार्गों से (चीन, मकाओ, हॉन्ग कॉन्ग और पाकिस्तान को छोड़कर) प्रवेश पर भी छूट दी गई है, यदि उनके पास वैध पासपोर्ट हो।
2. भारतीय सशस्त्र बलों के सदस्य: नौसेना, सेना और वायुसेना के कर्मचारी जो सेवा के दौरान भारत में प्रवेश करते हैं या जाते हैं, तथा उनके परिवार जो सरकारी परिवहन के जरिए उनके साथ होते हैं, उन्हें भी छूट दी गई है।
3. तिब्बती शरणार्थी: वे तिब्बती जो भारतीय अधिकारियों के साथ पंजीकृत हैं और जिनके पास वैध प्रमाण पत्र हैं, उन्हें प्रवेश की अनुमति दी जाती है। यह अनुमति उनके आने की तारीख और तरीके से जुड़ी शर्तों के आधार पर होती है, जिसमें 2003 से पहले, 2003 और अधिनियम लागू होने के बीच, या उसके बाद प्रवेश के अनुसार अलग-अलग नियम लागू होते हैं।
4. अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक: हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई जो धार्मिक उत्पीड़न (या उसके डर) के कारण 31 दिसंबर 2024 तक भारत में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें वैध दस्तावेज न होने या पासपोर्ट/वीजा की अवधि समाप्त होने के बावजूद भी छूट दी गई है।
5. श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी: वे श्रीलंकाई तमिल जो 9 जनवरी 2015 तक भारत में शेल्टर लेने के लिए पंजीकृत हैं, उन्हें इस अधिनियम के तहत निवास और निकास संबंधी प्रतिबंधों से छूट दी गई है।
6. बायोमेट्रिक और हिरासत के प्रावधान: वीजा या ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया (OCI) रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करने वाले सभी विदेशी नागरिकों को अपनी बायोमेट्रिक जानकारी जमा करनी होगी। भारत में पकड़े गए अवैध प्रवासियों को निर्वासन तक होल्डिंग सेंटर या हिरासत शिविरों में रखा जाएगा।
7. पर्वतारोहण और संरक्षित क्षेत्रों पर प्रतिबंध: विदेशी नागरिक बिना सरकार की पूर्व अनुमति और समन्वय निगरानी के पर्वतारोहण नहीं कर सकते। संरक्षित या प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश के लिए परमिट आवश्यक है और अफगानिस्तान, चीन और पाकिस्तान के नागरिकों को स्पष्ट रूप से इन क्षेत्रों में प्रवेश से रोका गया है।
2015 का उदाहरण
2025 का यह आदेश नया नहीं है, बल्कि दस साल पहले लागू की गई छूटों को ही जारी रखने वाला है।
● सितंबर 2015 में, गृह मंत्रालय ने दो अधिसूचनाएं जारी कीं:
○ पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) संशोधन नियम, 2015 ने बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 तक भारत में प्रवेश किया था, भले ही उनके पास वैध दस्तावेज न हों, छूट दी।
○ विदेशियों (संशोधन) आदेश, 2015 ने उन्हीं समुदायों को विदेशी अधिनियम, 1946 के प्रावधानों से छूट दी, जिससे उन्हें दस्तावेजों के बिना प्रवेश करने या वीजा अवधि समाप्त होने पर निर्वासन (डिपोर्टेशन) से सुरक्षा मिली।
दोनों आदेश एक-दूसरे के पूरक थे और सुनियोजित रूप से मुसलमानों को बाहर रखते थे, जिससे बाद में लाए गए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) के लिए एक कानूनी आधार तैयार हुआ।
कानूनी और नीतिगत विश्लेषण:
2025 का आदेश अलग अलग इमिग्रेशन संबंधी छूटों को एक एकीकृत और व्यापक ढांचे में समाहित करता है। लेकिन इसकी वास्तविक अहमियत इस बात में छुपी है कि यह धर्म और राष्ट्रीयता के आधार पर प्रवासियों के प्रति राज्य के अलग अलग व्यवहार को उजागर करता है।
● चुनिंदा आधार पर एकीकरण: यह आदेश प्रशासनिक रूप से चीजों को स्पष्ट तो करता है, लेकिन साथ ही एक चुनिंदा मानवीय दृष्टिकोण को भी मजबूत करता है। तीन मुस्लिम-बहुल पड़ोसी देशों से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को साफ तौर पर संरक्षण दिया गया है, जबकि वैसे ही हालात झेल रहे मुसलमानों को इस दायरे से बाहर रखा गया है।
● आस्थायी आदेशों से लेकर वैधानिक व्यवस्था तक: 2015 में दी गई छूट पासपोर्ट अधिनियम, 1920 और विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत जारी की गईं कार्यपालिका (एक्ज़ीक्यूटिव) स्तर की घोषणाएं थीं। इसके विपरीत, 2025 की व्यवस्था अलग अलग इन छूटों को हाल ही में बने इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स एक्ट, 2025 के तहत एक संगठित और कानूनी रूप से मजबूत ढांचे में एकीकृत करती है। इससे ये छूटें अब एक ज्यादा स्थायी और एकीकृत कानूनी आधार पर खड़ी हो गई हैं।
● हिरासत सेंटर बनाना: पहली बार गृह मंत्रालय ने साफ तौर पर हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को निर्देश दिया है कि वे विशेष होल्डिंग सेंटर/हिरासत शिविर (डिटेंशन कैंप) स्थापित करें। यह व्यवस्था पहले सिर्फ अस्थायी तौर पर लागू थी, लेकिन अब इसे एक औपचारिक और स्थायी नीति के रूप में लागू किया गया है।
● CAA के साथ जुड़ाव: 2015 की अधिसूचनाओं से लेकर CAA 2019 और अब 2025 के आदेश तक का सफर यह दिखाता है कि सरकार की नीति लगातार चुनिंदा लोगों को शामिल करने पर केंद्रित रही है।
निष्कर्ष
इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स (एक्जेम्पशन) ऑर्डर, 2025 में निरंतरता और बदलाव दोनों नजर आते हैं। यह तिब्बती, श्रीलंकाई तमिल और भारत के करीबी पड़ोसियों के लिए दी गई छूटों को एकीकृत करता है, साथ ही हिरासत के प्रावधानों को कानूनबद्ध करता है और बायोमेट्रिक निगरानी को मजबूत बनाता है।
फिर भी, इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह 2015 में शुरू हुई धर्म आधारित बहिष्कार नीति को बनाए रखता है और उसे एक सख्त और स्पष्ट कानूनी ढांचे के तहत संस्थागत रूप देता है।
इमिग्रेशन नियंत्रण को चुनिंदा तरीके से मानवीय राहत के साथ जोड़ते हुए, भारत की नई इमिग्रेशन व्यवस्था कानूनी स्पष्टता तो बढ़ाती है, लेकिन साथ ही महत्वपूर्ण संवैधानिक और मानवाधिकार संबंधी सवाल भी उठाती है खासकर समान परिस्थितियों में स्थित समूहों के समान व्यवहार को लेकर।
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यह बदलाव केवल तत्काल प्रभाव वाले नियमों के कारण ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह 2015 में शुरू हुई उस नीति को आगे बढ़ाता है जिसमें भारत के पड़ोसी देशों के कुछ धार्मिक अल्पसंख्यकों को विशेष प्राथमिकता दी जाती है, जबकि मुसलमानों को इससे अलग रखा गया है।
2025 आदेश की प्रमुख विशेषताएं
1. नेपाल और भूटान के नागरिक: नेपाल और भूटान के नागरिक अपनी सीमा से जमीन या हवाई मार्ग से भारत में प्रवेश करते समय पासपोर्ट और वीजा से मुक्त रहेंगे। अन्य मार्गों से (चीन, मकाओ, हॉन्ग कॉन्ग और पाकिस्तान को छोड़कर) प्रवेश पर भी छूट दी गई है, यदि उनके पास वैध पासपोर्ट हो।
2. भारतीय सशस्त्र बलों के सदस्य: नौसेना, सेना और वायुसेना के कर्मचारी जो सेवा के दौरान भारत में प्रवेश करते हैं या जाते हैं, तथा उनके परिवार जो सरकारी परिवहन के जरिए उनके साथ होते हैं, उन्हें भी छूट दी गई है।
3. तिब्बती शरणार्थी: वे तिब्बती जो भारतीय अधिकारियों के साथ पंजीकृत हैं और जिनके पास वैध प्रमाण पत्र हैं, उन्हें प्रवेश की अनुमति दी जाती है। यह अनुमति उनके आने की तारीख और तरीके से जुड़ी शर्तों के आधार पर होती है, जिसमें 2003 से पहले, 2003 और अधिनियम लागू होने के बीच, या उसके बाद प्रवेश के अनुसार अलग-अलग नियम लागू होते हैं।
4. अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक: हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई जो धार्मिक उत्पीड़न (या उसके डर) के कारण 31 दिसंबर 2024 तक भारत में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें वैध दस्तावेज न होने या पासपोर्ट/वीजा की अवधि समाप्त होने के बावजूद भी छूट दी गई है।
5. श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी: वे श्रीलंकाई तमिल जो 9 जनवरी 2015 तक भारत में शेल्टर लेने के लिए पंजीकृत हैं, उन्हें इस अधिनियम के तहत निवास और निकास संबंधी प्रतिबंधों से छूट दी गई है।
6. बायोमेट्रिक और हिरासत के प्रावधान: वीजा या ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया (OCI) रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करने वाले सभी विदेशी नागरिकों को अपनी बायोमेट्रिक जानकारी जमा करनी होगी। भारत में पकड़े गए अवैध प्रवासियों को निर्वासन तक होल्डिंग सेंटर या हिरासत शिविरों में रखा जाएगा।
7. पर्वतारोहण और संरक्षित क्षेत्रों पर प्रतिबंध: विदेशी नागरिक बिना सरकार की पूर्व अनुमति और समन्वय निगरानी के पर्वतारोहण नहीं कर सकते। संरक्षित या प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश के लिए परमिट आवश्यक है और अफगानिस्तान, चीन और पाकिस्तान के नागरिकों को स्पष्ट रूप से इन क्षेत्रों में प्रवेश से रोका गया है।
2015 का उदाहरण
2025 का यह आदेश नया नहीं है, बल्कि दस साल पहले लागू की गई छूटों को ही जारी रखने वाला है।
● सितंबर 2015 में, गृह मंत्रालय ने दो अधिसूचनाएं जारी कीं:
○ पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) संशोधन नियम, 2015 ने बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 तक भारत में प्रवेश किया था, भले ही उनके पास वैध दस्तावेज न हों, छूट दी।
○ विदेशियों (संशोधन) आदेश, 2015 ने उन्हीं समुदायों को विदेशी अधिनियम, 1946 के प्रावधानों से छूट दी, जिससे उन्हें दस्तावेजों के बिना प्रवेश करने या वीजा अवधि समाप्त होने पर निर्वासन (डिपोर्टेशन) से सुरक्षा मिली।
दोनों आदेश एक-दूसरे के पूरक थे और सुनियोजित रूप से मुसलमानों को बाहर रखते थे, जिससे बाद में लाए गए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) के लिए एक कानूनी आधार तैयार हुआ।
कानूनी और नीतिगत विश्लेषण:
2025 का आदेश अलग अलग इमिग्रेशन संबंधी छूटों को एक एकीकृत और व्यापक ढांचे में समाहित करता है। लेकिन इसकी वास्तविक अहमियत इस बात में छुपी है कि यह धर्म और राष्ट्रीयता के आधार पर प्रवासियों के प्रति राज्य के अलग अलग व्यवहार को उजागर करता है।
● चुनिंदा आधार पर एकीकरण: यह आदेश प्रशासनिक रूप से चीजों को स्पष्ट तो करता है, लेकिन साथ ही एक चुनिंदा मानवीय दृष्टिकोण को भी मजबूत करता है। तीन मुस्लिम-बहुल पड़ोसी देशों से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को साफ तौर पर संरक्षण दिया गया है, जबकि वैसे ही हालात झेल रहे मुसलमानों को इस दायरे से बाहर रखा गया है।
● आस्थायी आदेशों से लेकर वैधानिक व्यवस्था तक: 2015 में दी गई छूट पासपोर्ट अधिनियम, 1920 और विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत जारी की गईं कार्यपालिका (एक्ज़ीक्यूटिव) स्तर की घोषणाएं थीं। इसके विपरीत, 2025 की व्यवस्था अलग अलग इन छूटों को हाल ही में बने इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स एक्ट, 2025 के तहत एक संगठित और कानूनी रूप से मजबूत ढांचे में एकीकृत करती है। इससे ये छूटें अब एक ज्यादा स्थायी और एकीकृत कानूनी आधार पर खड़ी हो गई हैं।
● हिरासत सेंटर बनाना: पहली बार गृह मंत्रालय ने साफ तौर पर हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को निर्देश दिया है कि वे विशेष होल्डिंग सेंटर/हिरासत शिविर (डिटेंशन कैंप) स्थापित करें। यह व्यवस्था पहले सिर्फ अस्थायी तौर पर लागू थी, लेकिन अब इसे एक औपचारिक और स्थायी नीति के रूप में लागू किया गया है।
● CAA के साथ जुड़ाव: 2015 की अधिसूचनाओं से लेकर CAA 2019 और अब 2025 के आदेश तक का सफर यह दिखाता है कि सरकार की नीति लगातार चुनिंदा लोगों को शामिल करने पर केंद्रित रही है।
निष्कर्ष
इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स (एक्जेम्पशन) ऑर्डर, 2025 में निरंतरता और बदलाव दोनों नजर आते हैं। यह तिब्बती, श्रीलंकाई तमिल और भारत के करीबी पड़ोसियों के लिए दी गई छूटों को एकीकृत करता है, साथ ही हिरासत के प्रावधानों को कानूनबद्ध करता है और बायोमेट्रिक निगरानी को मजबूत बनाता है।
फिर भी, इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह 2015 में शुरू हुई धर्म आधारित बहिष्कार नीति को बनाए रखता है और उसे एक सख्त और स्पष्ट कानूनी ढांचे के तहत संस्थागत रूप देता है।
इमिग्रेशन नियंत्रण को चुनिंदा तरीके से मानवीय राहत के साथ जोड़ते हुए, भारत की नई इमिग्रेशन व्यवस्था कानूनी स्पष्टता तो बढ़ाती है, लेकिन साथ ही महत्वपूर्ण संवैधानिक और मानवाधिकार संबंधी सवाल भी उठाती है खासकर समान परिस्थितियों में स्थित समूहों के समान व्यवहार को लेकर।
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