भोपाल: नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटेकर छोड़ा बड़दा में नर्मदा चुनौती अनिश्चितकालीन सत्याग्रह में छह दिन से अपने साथियों के साथ बैठी हैं। नर्मदा घाटी के लोग विकट स्थिति का सामना कर रहे हैं। 2 लाख लोगों को जलमग्न होने का खतरा है क्योंकि मोदी सरकार ने कुछ ही हफ्तों में सरदार सरोवर बांध के फाटकों को बंद कर दिया है। इसके बावजूद कि उच्चतम न्यायालय के कानून और आदेशों के अनुसार 32,000 परिवारों का पुनर्वास किया जाना बाकी है।
आंदोलनकारियों का आरोप है कि केंद्र और गुजरात सरकार 192 गांवों और एक नगर को बिना पुनर्वास डुबाने की साजिश रच रहा है, जबकि वहां आज भी 32,000 परिवार रहते हैं। इस स्थिति में बांध में 138.68 मीटर पानी भरने से 192 गांव और एक नगर की जल हत्या होगी।
मंगलवार को बांध में 134 मीटर पानी भरने से कई गांव जलमग्न हो गए हैं। हजारों हेक्टेयर जमीन डूब गई। गांववालों का आरोप है कि सर्वोच्च अदालत के फैसले के बावजूद कई विस्थापितों को अभी तक 60 लाख रुपये नहीं मिले, कई घरों का भू-अर्जन भी नहीं हुआ।
आंदोलनकारियों की मांग है कि पूर्व की राज्य सरकार ने जो भी किया उसे सामने लाकर मध्यप्रदेश सरकार को गुजरात और केंद्र सरकार से बात करके बांध के गेट खुलवाना चाहिए और पुनर्वास का काम तत्काल करना चाहिए।
मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव ने नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (NCA) को मई में जो पत्र भेजा है उसके मुताबिक 76 गांवों में 6000 परिवार डूब क्षेत्र में रहते हैं, जबकि 8500 अर्जियां, 2952 खेती या 60 लाख की पात्रता के लिए लंबित हैं। लेकिन नर्मदा बचाओ आंदोलन के मुताबिक इन इलाकों में 32000 परिवार रहते हैं।
आंदोलनकारियों की मांग है कि किसी भी हालत में सरदार सरोवर में 122 मीटर के ऊपर पानी नहीं रहना चाहिए। फिलहाल इस मांग को लेकर मेधा पाटकर अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठी हैं, उनके साथ प्रभावित गांव की चार महिलाएं भी क्रमिक अनशन पर बैठी हैं।
आंदोलनकारियों ने सीएम कमलनाथ को पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर के हजारों विस्थापित परिवार गांव-गांव में अमानवीय डूब का सामना कर रहे हैं। इस डूब का सामना करने के दौरान अब तक निमाड़ और आदिवासी क्षेत्र के 3 गरीब किसानों की मृत्यु हो चुकी है।
जलाशयमें 139 मी0 तक पानी भरने का विरोध आप की सरकार द्वारा भी किया गया है फिर भी गुजरात और केंद्र शासन से ही जुड़े नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने कभी न विस्थापितों के पुनर्वास की, न ही पर्यावरणीय क्षति पूर्ति की परवाह की है न ही सत्य रिपोर्ट या शपथ पत्र पेश किये हैं।
हजारों परिवारों का सम्पूर्ण पुनर्वास भी मध्य प्रदेश में अधूरा है, पुनर्वास स्थलों पर कानूनन सुविधाएँ नही हैं। ऐसे में विस्थापित अपने मूल गाँव में खेती, आजीविका डूबते देख संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में आज की मध्य प्रदेश सरकार लोगों का साथ नहीं छोड़ सकती। ऐसा हमारा विश्वास है।
आंदोलनकारियों का आरोप है कि केंद्र और गुजरात सरकार 192 गांवों और एक नगर को बिना पुनर्वास डुबाने की साजिश रच रहा है, जबकि वहां आज भी 32,000 परिवार रहते हैं। इस स्थिति में बांध में 138.68 मीटर पानी भरने से 192 गांव और एक नगर की जल हत्या होगी।
मंगलवार को बांध में 134 मीटर पानी भरने से कई गांव जलमग्न हो गए हैं। हजारों हेक्टेयर जमीन डूब गई। गांववालों का आरोप है कि सर्वोच्च अदालत के फैसले के बावजूद कई विस्थापितों को अभी तक 60 लाख रुपये नहीं मिले, कई घरों का भू-अर्जन भी नहीं हुआ।
आंदोलनकारियों की मांग है कि पूर्व की राज्य सरकार ने जो भी किया उसे सामने लाकर मध्यप्रदेश सरकार को गुजरात और केंद्र सरकार से बात करके बांध के गेट खुलवाना चाहिए और पुनर्वास का काम तत्काल करना चाहिए।
मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव ने नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (NCA) को मई में जो पत्र भेजा है उसके मुताबिक 76 गांवों में 6000 परिवार डूब क्षेत्र में रहते हैं, जबकि 8500 अर्जियां, 2952 खेती या 60 लाख की पात्रता के लिए लंबित हैं। लेकिन नर्मदा बचाओ आंदोलन के मुताबिक इन इलाकों में 32000 परिवार रहते हैं।
आंदोलनकारियों की मांग है कि किसी भी हालत में सरदार सरोवर में 122 मीटर के ऊपर पानी नहीं रहना चाहिए। फिलहाल इस मांग को लेकर मेधा पाटकर अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठी हैं, उनके साथ प्रभावित गांव की चार महिलाएं भी क्रमिक अनशन पर बैठी हैं।
आंदोलनकारियों ने सीएम कमलनाथ को पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर के हजारों विस्थापित परिवार गांव-गांव में अमानवीय डूब का सामना कर रहे हैं। इस डूब का सामना करने के दौरान अब तक निमाड़ और आदिवासी क्षेत्र के 3 गरीब किसानों की मृत्यु हो चुकी है।
जलाशयमें 139 मी0 तक पानी भरने का विरोध आप की सरकार द्वारा भी किया गया है फिर भी गुजरात और केंद्र शासन से ही जुड़े नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने कभी न विस्थापितों के पुनर्वास की, न ही पर्यावरणीय क्षति पूर्ति की परवाह की है न ही सत्य रिपोर्ट या शपथ पत्र पेश किये हैं।
हजारों परिवारों का सम्पूर्ण पुनर्वास भी मध्य प्रदेश में अधूरा है, पुनर्वास स्थलों पर कानूनन सुविधाएँ नही हैं। ऐसे में विस्थापित अपने मूल गाँव में खेती, आजीविका डूबते देख संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में आज की मध्य प्रदेश सरकार लोगों का साथ नहीं छोड़ सकती। ऐसा हमारा विश्वास है।