करीब 24 साल पुराने मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को गिरफ्तार किए जाने के बाद कोर्ट ने रिहाई का आदेश दिया।

दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार 25 अप्रैल को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की गिरफ्तारी के कुछ घंटों बाद उन्हें रिहा करने का निर्देश दिया। दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को ही दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दायर 24 साल पुराने मानहानि मामले के सिलसिले में पाटकर को गिरफ्तार किया था।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विपिन खरब के समक्ष पेश हुए मेधा पाटकर के वकील ने कहा, ‘मैं केवल रिहा किए जाने का अनुरोध करता हूं, ताकि मैं (प्रोबेशन बॉन्ड भरने की) शर्तें पूरी कर सकूं।’
अदालत ने पूछा, ‘कोर्ट के आदेश के अनुसार आपको 3 मई तक का समय दिया गया था?’
पाटकर की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया, ‘एनबीडब्ल्यू निष्पादित किया गया है। मैं इस पर बहस नहीं कर रहा हूं। प्रोबेशन ऑर्डर अभी भी सही है क्योंकि हम अदालत के सामने खड़े हैं। मैं आज प्रोबेशन बॉन्ड प्रस्तुत करूंगा। मुझे अदालत जाते समय ही पकड़ लिया गया था।’
जमानत बॉन्ड भरने की इजाजत देते हुए कोर्ट ने पाटकर की रिहाई का निर्देश भी दिया। पाटकर को दोपहर 12:30 बजे जज के सामने पेश किया गया। एलजी के वकील गजिंदर कुमार भी अदालत में पेश हुए।
पुलिस अधिकारियों की एक टीम सुबह उनके घर पहुंची और उन्हें हिरासत में ले लिया। दक्षिण पूर्व के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) रवि कुमार सिंह ने मीडिया से कहा, ‘हमने गैर जमानती वारंट जारी कर दिया है और पाटकर को गिरफ्तार कर लिया गया है।’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले 23 अप्रैल को दिल्ली की एक अदालत ने पाटकर के खिलाफ 2000 में दायर मामले में गैर-जमानती वारंट जारी किया था, जिसके बाद यह गिरफ्तारी की गई।
ज्ञात हो कि इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े प्रोबेशन बॉन्ड के निष्पादन की कार्यवाही पर दो सप्ताह तक रोक लगाने की पाटकर की याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने उन्हें ट्रायल कोर्ट जाने को कहा था।
बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और एलजी वीके सक्सेना का ये मामला करीब 24 साल पुराना है। दोनों वर्ष 2000 से एक-दूसरे के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उस समय मेधा पाटकर ने उनके और ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के खिलाफ विज्ञापन छपवाने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया था।
उस समय वीके सक्सेना अहमदाबाद के एक गैर सरकारी संगठन ‘नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे। इसके बाद वीके सक्सेना ने भी एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानि वाले प्रेस बयान जारी करने के लिए मेधा पाटकर के खिलाफ दो मामला दर्ज करवाया था।
25 नवंबर 2000 की तारीख वाले एक प्रेस रिलीज में पाटकर ने आरोप लगाया था कि सक्सेना एनबीए का गुप्त रूप से समर्थन कर रहे थे। उस समय सक्सेना के एनजीओ ने गुजरात सरकार की सरदार सरोवर परियोजना का सक्रिय रूप से समर्थन किया था। एनबीए इसके विरोध में एक आंदोलन चला रहा था। पाटकर का यह भी आरोप था कि उन्होंने एनबीए को एक चेक दिया था जो बाउंस हो गया।
पिछले साल मई महीने में एक मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने मेधा पाटकर के बयानों को अपमानजनक माना था और 1 जुलाई को उन्हें पांच महीने की जेल की सजा सुनाई थी। बाद में कोर्ट ने सजा को निलंबित कर दिया और 29 जुलाई 2024 को उन्हें जमानत दे दी।
इस वर्ष 8 अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली स्थित साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने पाटकर को एक साल की प्रोबेशन दी थी। उन्होंने कहा था कि सामाजिक कार्यकर्ता को उनके काम के लिए अवार्ड मिले हैं और उनके द्वारा किया गया अपराध इतना गंभीर नहीं है कि उन्हें जेल की सजा दी जाए।
नर्मदा घाटी के पास रहने वाले आदिवासियों, मजदूरों, किसानों, मछुआरों, उनके परिवारों और अन्य लोगों के मुद्दों को लेकर संघर्ष करने वाली मेधा पाटकर 1985 में नर्मदा बचाओ आंदोलन का चेहरा रही हैं।

दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार 25 अप्रैल को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की गिरफ्तारी के कुछ घंटों बाद उन्हें रिहा करने का निर्देश दिया। दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को ही दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दायर 24 साल पुराने मानहानि मामले के सिलसिले में पाटकर को गिरफ्तार किया था।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विपिन खरब के समक्ष पेश हुए मेधा पाटकर के वकील ने कहा, ‘मैं केवल रिहा किए जाने का अनुरोध करता हूं, ताकि मैं (प्रोबेशन बॉन्ड भरने की) शर्तें पूरी कर सकूं।’
अदालत ने पूछा, ‘कोर्ट के आदेश के अनुसार आपको 3 मई तक का समय दिया गया था?’
पाटकर की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया, ‘एनबीडब्ल्यू निष्पादित किया गया है। मैं इस पर बहस नहीं कर रहा हूं। प्रोबेशन ऑर्डर अभी भी सही है क्योंकि हम अदालत के सामने खड़े हैं। मैं आज प्रोबेशन बॉन्ड प्रस्तुत करूंगा। मुझे अदालत जाते समय ही पकड़ लिया गया था।’
जमानत बॉन्ड भरने की इजाजत देते हुए कोर्ट ने पाटकर की रिहाई का निर्देश भी दिया। पाटकर को दोपहर 12:30 बजे जज के सामने पेश किया गया। एलजी के वकील गजिंदर कुमार भी अदालत में पेश हुए।
पुलिस अधिकारियों की एक टीम सुबह उनके घर पहुंची और उन्हें हिरासत में ले लिया। दक्षिण पूर्व के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) रवि कुमार सिंह ने मीडिया से कहा, ‘हमने गैर जमानती वारंट जारी कर दिया है और पाटकर को गिरफ्तार कर लिया गया है।’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले 23 अप्रैल को दिल्ली की एक अदालत ने पाटकर के खिलाफ 2000 में दायर मामले में गैर-जमानती वारंट जारी किया था, जिसके बाद यह गिरफ्तारी की गई।
ज्ञात हो कि इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े प्रोबेशन बॉन्ड के निष्पादन की कार्यवाही पर दो सप्ताह तक रोक लगाने की पाटकर की याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने उन्हें ट्रायल कोर्ट जाने को कहा था।
बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और एलजी वीके सक्सेना का ये मामला करीब 24 साल पुराना है। दोनों वर्ष 2000 से एक-दूसरे के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उस समय मेधा पाटकर ने उनके और ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के खिलाफ विज्ञापन छपवाने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया था।
उस समय वीके सक्सेना अहमदाबाद के एक गैर सरकारी संगठन ‘नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे। इसके बाद वीके सक्सेना ने भी एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानि वाले प्रेस बयान जारी करने के लिए मेधा पाटकर के खिलाफ दो मामला दर्ज करवाया था।
25 नवंबर 2000 की तारीख वाले एक प्रेस रिलीज में पाटकर ने आरोप लगाया था कि सक्सेना एनबीए का गुप्त रूप से समर्थन कर रहे थे। उस समय सक्सेना के एनजीओ ने गुजरात सरकार की सरदार सरोवर परियोजना का सक्रिय रूप से समर्थन किया था। एनबीए इसके विरोध में एक आंदोलन चला रहा था। पाटकर का यह भी आरोप था कि उन्होंने एनबीए को एक चेक दिया था जो बाउंस हो गया।
पिछले साल मई महीने में एक मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने मेधा पाटकर के बयानों को अपमानजनक माना था और 1 जुलाई को उन्हें पांच महीने की जेल की सजा सुनाई थी। बाद में कोर्ट ने सजा को निलंबित कर दिया और 29 जुलाई 2024 को उन्हें जमानत दे दी।
इस वर्ष 8 अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली स्थित साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने पाटकर को एक साल की प्रोबेशन दी थी। उन्होंने कहा था कि सामाजिक कार्यकर्ता को उनके काम के लिए अवार्ड मिले हैं और उनके द्वारा किया गया अपराध इतना गंभीर नहीं है कि उन्हें जेल की सजा दी जाए।
नर्मदा घाटी के पास रहने वाले आदिवासियों, मजदूरों, किसानों, मछुआरों, उनके परिवारों और अन्य लोगों के मुद्दों को लेकर संघर्ष करने वाली मेधा पाटकर 1985 में नर्मदा बचाओ आंदोलन का चेहरा रही हैं।