जहाँ तक प्रोपेगेंडा का सवाल है, हमारे प्रधानमंत्री का मुकाबला कम ही नेता कर सकते हैं. एक ओर वे कांग्रेस की कई घोषणाओं को सांप्रदायिक बता रहे हैं तो दूसरी ओर यह दावा भी कर रहे हैं कि उनके 10 साल के शासनकाल की उपलब्धियां शानदार और चमकदार तो हैं हीं मगर वे मात्र ट्रेलर हैं. और यह भी कि 2024 में उनकी सरकार फिर से बनने के बाद वे और बड़े काम करेंगे. उनके समर्थक उनकी सरकार की उपलब्धियों का गुणगान कर रहे हैं. मगर सच यह है कि उनकी सरकार ने कोई कमाल नहीं किया है.
मोदी भक्त कहते हैं कि मोदी राज में इन्टरनेट के उपयोग और हवाई यात्राओं में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है, 42 करोड़ नए बैंक खाते खुले हैं, 11 करोड़ नए एलपीजी कनेक्शन दिए गए हैं, 22 करोड़ लोगों का बीमा किया गया है, राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में तेजी आई है और करदाता बढे हैं. इसके अलावा, भारत ने कई देशों को कोविड वैक्सीन का निर्यात किया है जिससे दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ा है और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध करवाया गया है.
ये सारे आंकड़े न तो यह साबित करते हैं कि आम जनता के हालात बेहतर हुए हैं, ना यह कि भारत पहले से बेहतर प्रजातंत्र है और ना ही यह कि यहां के लोगों को लोकतान्त्रिक अधिकार और स्वतंत्रताएं हासिल हैं. कई ऐसे कदम उठाए गए हैं जिनसे जनकल्याण बाधित हुआ है और लोगों के अधिकार सीमित हुए हैं.
सन 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से कैबिनेट शासन प्रणाली कमज़ोर हुई है और सारी शक्तियां उनके हाथ में केन्द्रित हो गयी हैं. अधिकांश मामलों में सारे निर्णय वे ही लेते हैं. इसके दो उदाहरण हैं नोटबंदी और कोरोना महामारी से निपटने के लिए उठाए गए कदम. नोटबंदी केवल माननीय मोदीजी निर्णय था और हमें बताया गया था कि इससे कालाधन अर्थव्यवस्था से बाहर हो जायेगा. लेकिन हुआ क्या? जनता को बेइंतिहा परेशानियाँ झेलनी पडीं. करीब 100 लोगों ने पुराने नोट बदलने के लिए बैंकों के बाहर लम्बी लाईनों में खड़े-खड़े अपनी जान गंवाई. और अंततः बंद किये गए नोटों में से 98 प्रतिशत बैंकों में आपस आ गए.
कोरोना महामारी एक बड़ी विपदा थी जिसे मोदी ने और बड़ा बना दिया. उन्होंने कुछ घंटों के नोटिस पर पूरे देश में कड़ा लॉकडाउन लगा दिया. हम सबने ने उन लोगों की त्रासदी देखी है जिन्हें पैदल शहरों से अपने गाँवों जाना पड़ा. गंगा में तैरती हुई लाशों और उसके तटों पर बिखरे हुए शवों से साफ़ यह हो गया था कि लोगों ने क्या भोगा है.
संवैधानिक संस्थाओं और सरकारी एजेंसीयों की स्वयत्तता पूरी तरह समाप्त कर दी गई है. वे सरकार, बल्कि श्री मोदी, के इशारों पर नाच रही हैं. चाहे वह ईडी हो या सीबीआई, चाहे वह आयकर विभाग हो या चुनाव आयोग – कोई भी निष्पक्षता से काम नहीं कर रहा है. यहाँ तक कि न्यायपालिका भी सरकार के पक्ष के झुकी हुई लग रही है.
जहाँ तक प्रजातंत्र का सवाल है, वी. डेम नामक एक स्वायत्त और स्वतंत्र संस्थान, जो पूरी दुनिया में प्रजातंत्र की स्थिति का आंकलन करता है, ने 2024 में भारत को "सबसे निकृष्टतम तानाशाहियों" में से एक बताया है. सन 2018 में इसी संस्थान ने भारत को "निर्वाचित तानाशाही" बताया था. संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, "भारत की आबादी दुनिया के कुल आबादी का करीब 18 प्रतिशत है मगर भारतीय, दुनिया की आधी ऐसी आबादी हैं जो निरंकुश शासन व्यवस्था के अंतर्गत रह रहे हैं."
जहाँ तक प्रेस की स्वतंत्रता का सवाल है, हर व्यक्ति यह देख सकता है कि देश का मीडिया उन धन्नासेठों के नियंत्रण में है जो मोदी सरकार के नज़दीक है. "रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स" की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, मीडिया की स्वतंत्रता के मामले में 180 देशों में भारत 161वें नंबर पर है. केवल एक साल में वह 150 से 161वें स्थान पर पहुँच गया है. भारत में अपने बात खुलकर कहने और सरकार की आलोचना करने को देशद्रोह बताया जाता है और हमारे अनेक समर्पित और प्रतिबद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता सालों से जेलों में हैं और उन पर क्या आरोप हैं, यह भी तय नहीं हुआ है.
"यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम" के अनुसार, "पिछले एक साल में भारत की केन्द्रीय, प्रांतीय और स्थानीय सरकारों ने ऐसी नीतियाँ अपनाई हैं जो विभिन्न धर्मों के बीच भेदभाव करती हैं और ऐसे कानून बनाए हैं जो धर्मपरिवर्तन, अंतर्धार्मिक रिश्तों, हिजाब पहनने और गौवध को प्रतिबंधित करने हैं और जिनका मुसलमानों, ईसाईयों, सिक्खों, दलितों और आदिवासियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है."
ह्यूमन राइट्स वाच भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है, "भारत में सरकार ने ऐसी नीतियां और कानून बनाये हैं जो मुसलमानों के साथ सुनियोजित ढंग से भेदभाव करते हैं और सरकार के आलोचकों को कलंकित करते हैं. हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार के पूर्वाग्रहों ने पुलिस और अदालतों जैसी स्वतंत्र संस्थाओं में भी घुसपैठ कर ली है. इसके चलते (हिन्दू) राष्ट्रवादी समूह बिना किसी डर के धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित और प्रताड़ित कर रहे हैं और उन पर हमले कर रहे हैं."
देश की आर्थिक स्थिति खस्ता है और बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है. मोदी ने वायदा किया था कि उनकी सरकार हर साल दो करोड़ रोज़गार देगी. मगर देश में बेरोज़गारी की दर अपने उच्चतम स्तर 8.3 प्रतिशत पर है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी के अनुसार, "भारत में बेरोज़गारी की दर जनवरी 2024 में 6.8 प्रतिशत थी, जो फरवरी 2024 में बढ़ कर आठ प्रतिशत हो गई." मार्च 2024 में यह कुछ कम हुई मगर अब भी यह पिछले 40 सालों में सबसे ज्यादा है.
हंगर इंडेक्स समाज में पोषण की स्थिति का पता लगाने का उत्तम माध्यम है. हंगर इंडेक्स में भारत 121 देशों में 107वें स्थान पर है. इस मामले में भारत पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे अपने पड़ोसी देशों से भी पीछे है.
ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट (सरवाईवल ऑफ़ द रिचेस्ट) हमें बताती है कि "देश के मात्र 5 प्रतिशत नागरिक, देश की 60 प्रतिशत संपत्ति के मालिक हैं और नीचे के पचास प्रतिशत नागरिक, कुल संपत्ति में से केवल 3 प्रतिशत के स्वामी हैं."
पिछले दस सालों में दलितों की स्थिति में गिरावट आई है. जानेमाने अध्येता सुखदेव थोराट के अनुसार, "शहरी इलाकों में दलितों का उपयोग अकुशल श्रमिकों के रूप में किया जा रहा है. भारत के केवल पांच प्रतिशत दलित आरक्षण की व्यवस्था से लाभान्वित हुए हैं...हालाँकि भारत सरकार के निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों से भी दलितों को भी लाभ पहुँचता है मगर सरकार इन योजनाओं के कार्यान्वयन पर कड़ी नज़र नहीं रखती और कई योजनाएं का क्रियान्वयन होता ही नहीं है..."
शिक्षा और वैज्ञानिक शोध को मजाक बना दिया गया है. तार्किक सोच पर आस्था हावी है. जिस देश का प्रधानमंत्री यह दावा करे कि प्राचीन भारत में ऐसे प्लास्टिक सर्जन थे जो मनुष्य के सर पर हाथी का सिर फिट कर सकते थे और यह कि बादलों के कारण भारत के लड़ाकू विमानों को रडार नहीं पकड़ सकीं, उस देश में शिक्षा और विज्ञान की स्थिति की कल्पना की जा सकती है.
अगर, जैसा कि मोदीजी कहते हैं, पिछले दस साल तो केवल ट्रेलर थे तो अगर वे सत्ता में वापस आते हैं तो भारत सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक दृष्टि से पाकिस्तान के साथ कड़े मुकाबले में होगा.
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)
मोदी भक्त कहते हैं कि मोदी राज में इन्टरनेट के उपयोग और हवाई यात्राओं में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है, 42 करोड़ नए बैंक खाते खुले हैं, 11 करोड़ नए एलपीजी कनेक्शन दिए गए हैं, 22 करोड़ लोगों का बीमा किया गया है, राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में तेजी आई है और करदाता बढे हैं. इसके अलावा, भारत ने कई देशों को कोविड वैक्सीन का निर्यात किया है जिससे दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ा है और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध करवाया गया है.
ये सारे आंकड़े न तो यह साबित करते हैं कि आम जनता के हालात बेहतर हुए हैं, ना यह कि भारत पहले से बेहतर प्रजातंत्र है और ना ही यह कि यहां के लोगों को लोकतान्त्रिक अधिकार और स्वतंत्रताएं हासिल हैं. कई ऐसे कदम उठाए गए हैं जिनसे जनकल्याण बाधित हुआ है और लोगों के अधिकार सीमित हुए हैं.
सन 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से कैबिनेट शासन प्रणाली कमज़ोर हुई है और सारी शक्तियां उनके हाथ में केन्द्रित हो गयी हैं. अधिकांश मामलों में सारे निर्णय वे ही लेते हैं. इसके दो उदाहरण हैं नोटबंदी और कोरोना महामारी से निपटने के लिए उठाए गए कदम. नोटबंदी केवल माननीय मोदीजी निर्णय था और हमें बताया गया था कि इससे कालाधन अर्थव्यवस्था से बाहर हो जायेगा. लेकिन हुआ क्या? जनता को बेइंतिहा परेशानियाँ झेलनी पडीं. करीब 100 लोगों ने पुराने नोट बदलने के लिए बैंकों के बाहर लम्बी लाईनों में खड़े-खड़े अपनी जान गंवाई. और अंततः बंद किये गए नोटों में से 98 प्रतिशत बैंकों में आपस आ गए.
कोरोना महामारी एक बड़ी विपदा थी जिसे मोदी ने और बड़ा बना दिया. उन्होंने कुछ घंटों के नोटिस पर पूरे देश में कड़ा लॉकडाउन लगा दिया. हम सबने ने उन लोगों की त्रासदी देखी है जिन्हें पैदल शहरों से अपने गाँवों जाना पड़ा. गंगा में तैरती हुई लाशों और उसके तटों पर बिखरे हुए शवों से साफ़ यह हो गया था कि लोगों ने क्या भोगा है.
संवैधानिक संस्थाओं और सरकारी एजेंसीयों की स्वयत्तता पूरी तरह समाप्त कर दी गई है. वे सरकार, बल्कि श्री मोदी, के इशारों पर नाच रही हैं. चाहे वह ईडी हो या सीबीआई, चाहे वह आयकर विभाग हो या चुनाव आयोग – कोई भी निष्पक्षता से काम नहीं कर रहा है. यहाँ तक कि न्यायपालिका भी सरकार के पक्ष के झुकी हुई लग रही है.
जहाँ तक प्रजातंत्र का सवाल है, वी. डेम नामक एक स्वायत्त और स्वतंत्र संस्थान, जो पूरी दुनिया में प्रजातंत्र की स्थिति का आंकलन करता है, ने 2024 में भारत को "सबसे निकृष्टतम तानाशाहियों" में से एक बताया है. सन 2018 में इसी संस्थान ने भारत को "निर्वाचित तानाशाही" बताया था. संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, "भारत की आबादी दुनिया के कुल आबादी का करीब 18 प्रतिशत है मगर भारतीय, दुनिया की आधी ऐसी आबादी हैं जो निरंकुश शासन व्यवस्था के अंतर्गत रह रहे हैं."
जहाँ तक प्रेस की स्वतंत्रता का सवाल है, हर व्यक्ति यह देख सकता है कि देश का मीडिया उन धन्नासेठों के नियंत्रण में है जो मोदी सरकार के नज़दीक है. "रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स" की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, मीडिया की स्वतंत्रता के मामले में 180 देशों में भारत 161वें नंबर पर है. केवल एक साल में वह 150 से 161वें स्थान पर पहुँच गया है. भारत में अपने बात खुलकर कहने और सरकार की आलोचना करने को देशद्रोह बताया जाता है और हमारे अनेक समर्पित और प्रतिबद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता सालों से जेलों में हैं और उन पर क्या आरोप हैं, यह भी तय नहीं हुआ है.
"यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम" के अनुसार, "पिछले एक साल में भारत की केन्द्रीय, प्रांतीय और स्थानीय सरकारों ने ऐसी नीतियाँ अपनाई हैं जो विभिन्न धर्मों के बीच भेदभाव करती हैं और ऐसे कानून बनाए हैं जो धर्मपरिवर्तन, अंतर्धार्मिक रिश्तों, हिजाब पहनने और गौवध को प्रतिबंधित करने हैं और जिनका मुसलमानों, ईसाईयों, सिक्खों, दलितों और आदिवासियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है."
ह्यूमन राइट्स वाच भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है, "भारत में सरकार ने ऐसी नीतियां और कानून बनाये हैं जो मुसलमानों के साथ सुनियोजित ढंग से भेदभाव करते हैं और सरकार के आलोचकों को कलंकित करते हैं. हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार के पूर्वाग्रहों ने पुलिस और अदालतों जैसी स्वतंत्र संस्थाओं में भी घुसपैठ कर ली है. इसके चलते (हिन्दू) राष्ट्रवादी समूह बिना किसी डर के धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित और प्रताड़ित कर रहे हैं और उन पर हमले कर रहे हैं."
देश की आर्थिक स्थिति खस्ता है और बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है. मोदी ने वायदा किया था कि उनकी सरकार हर साल दो करोड़ रोज़गार देगी. मगर देश में बेरोज़गारी की दर अपने उच्चतम स्तर 8.3 प्रतिशत पर है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी के अनुसार, "भारत में बेरोज़गारी की दर जनवरी 2024 में 6.8 प्रतिशत थी, जो फरवरी 2024 में बढ़ कर आठ प्रतिशत हो गई." मार्च 2024 में यह कुछ कम हुई मगर अब भी यह पिछले 40 सालों में सबसे ज्यादा है.
हंगर इंडेक्स समाज में पोषण की स्थिति का पता लगाने का उत्तम माध्यम है. हंगर इंडेक्स में भारत 121 देशों में 107वें स्थान पर है. इस मामले में भारत पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे अपने पड़ोसी देशों से भी पीछे है.
ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट (सरवाईवल ऑफ़ द रिचेस्ट) हमें बताती है कि "देश के मात्र 5 प्रतिशत नागरिक, देश की 60 प्रतिशत संपत्ति के मालिक हैं और नीचे के पचास प्रतिशत नागरिक, कुल संपत्ति में से केवल 3 प्रतिशत के स्वामी हैं."
पिछले दस सालों में दलितों की स्थिति में गिरावट आई है. जानेमाने अध्येता सुखदेव थोराट के अनुसार, "शहरी इलाकों में दलितों का उपयोग अकुशल श्रमिकों के रूप में किया जा रहा है. भारत के केवल पांच प्रतिशत दलित आरक्षण की व्यवस्था से लाभान्वित हुए हैं...हालाँकि भारत सरकार के निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों से भी दलितों को भी लाभ पहुँचता है मगर सरकार इन योजनाओं के कार्यान्वयन पर कड़ी नज़र नहीं रखती और कई योजनाएं का क्रियान्वयन होता ही नहीं है..."
शिक्षा और वैज्ञानिक शोध को मजाक बना दिया गया है. तार्किक सोच पर आस्था हावी है. जिस देश का प्रधानमंत्री यह दावा करे कि प्राचीन भारत में ऐसे प्लास्टिक सर्जन थे जो मनुष्य के सर पर हाथी का सिर फिट कर सकते थे और यह कि बादलों के कारण भारत के लड़ाकू विमानों को रडार नहीं पकड़ सकीं, उस देश में शिक्षा और विज्ञान की स्थिति की कल्पना की जा सकती है.
अगर, जैसा कि मोदीजी कहते हैं, पिछले दस साल तो केवल ट्रेलर थे तो अगर वे सत्ता में वापस आते हैं तो भारत सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक दृष्टि से पाकिस्तान के साथ कड़े मुकाबले में होगा.
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)