मैं पांच हज़ार साल से जीवित सभ्यता की उपज हूँ : रिज़वी

Written by Amir Rizvi | Published on: January 26, 2018

(मेरी पुरानी तस्वीर और एक पुरानी कविता गणतंत्र दिवस के लिए)

मैं पांच हज़ार साल से जीवित सभ्यता की उपज हूँ
मैं राम महावीर बुद्ध नानक ख़ुसरो कबीर की धरती पर पैदा हुआ हूँ 
मेरी रगों में वफादारी और प्रेम का लहू दौड़ रहा है 
मेरी धड़कनो में ब्रह्मनाद गूंजता है 
जमुना किनारे कृष्ण की बंसी से लेकर, गंगा किनारे बिस्मिल्लाह की शहनाई 
मेरी गंगा-जमुनी तहज़ीब का जश्न मनाती आई है
मेरे पूर्वज इसी पावन मिट्टी में दफ़्न हैं 
मैंने सजदे किये हैं इसी धरती पर 
 
मगर चाहते हुए भी मैं गर्व से सर नहीं उठा सकता 
क्योंकि मुझे अपना नाम छुपाना पड़ा है दंगाइयों से बचने के लिए 
मुझे अपने ही वतन में घर नहीं मिलता क्योंकि मेरा नाम मेरी पहचान समाज को स्वीकृत नहीं है 
मजबूर हूँ मैं भेड़ बकरियों की तरह झुंड में रहने के लिए 
मेरी टोपी मेरी दाढ़ी मेरी बहनों के पहनावे ने आपका क्या बिगाड़ा है?
सर्दी की कोहरी सुबह में ठिठुरते हुए छब्बीस जनवरियों की प्रभातफेरी याद आती है 
कैनवास जूते को मेरी माँ ने चॉक से चमकाया था ताकि पंद्रह अगस्त वाली ईद में कोई कमी न रह जाए 
एनसीसी के लिबास पर पीतल को ब्रास्सो से चमकाता था
क्यूंकि उस वर्दी में मुझे अपने देश का उज्जवल भविष्य दिखाई देता था 
जब विजयी विश्व तिरंगा प्यारा लहराता था
तो मस्तक ऊंचा और आँखें नम हुआ करती थीं 
सन सत्तावन से लेकर अड़तालीस तक की कुर्बानियां याद आती थीं 
आज न जाने क्यों तिरंगे को देखता हूँ तो आँखे किसी अन्य कारणवश नम हो जाती हैं 
मेरे बचपन वाला भारत, मेरे सपनो वाला सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान, अच्छा क्यों नहीं लगता? 
मुझे घृणा और शक की नज़र से क्यों देखा जाता है?
मेरी पहचान मेरा नाम मेरे मौलिक अधिकार के आड़े क्यों आ जाता है? 
मेरा संविधान केवल पन्नो में सीमित क्यों रह जाता है? 
जब मेरे देश की वर्दी, मेरा तिरंगा, संविधान के दुश्मनों की अर्थी को सलामी देता है 
और समाज आवाज़ तक नहीं उठाता, विचलित हो जाता है मन
वर्दी पर से भरोसा डगमगाने लगा है 
ढूंढ रहा हूँ जन गण के मंगलदायक भारत को 
जिसकी जय जयकार गुरुदेव ने की थी 
भारतीयता की कसौटी पर खरा उतरते उतरते घिस गया है मेरा विश्वास 
उम्मीद की एक डोर बंधी है आज भी 
सिर्फ इसलिए कि इन्साफ के मंदिर पर लिखा है "सत्यमेव जयते"  


~रिज़वी

बाकी ख़बरें