कविता: मैं मणिपुर हूँ...

Written by सुरजीत जज | Published on: November 6, 2023



मैं मणिपुर हूँ

ऐ अहले-वतन, ऐ अहले-इमाँ

ऐ अहले-चशम, ऐ अहले-सुख़न

मुझको सुन, देख मुझको

मुझको पहचान, जान मुझको

सन्तालीस और चौरासी के

पंजाब को ओड़े हुए

मैं मणिपुर हूँ

जली जम्हूरियत के

धोखे को, दंभ को

अपने हिस्से में जोड़े हुए

मैं मणिपुर हूँ

देश की अखंडता, राष्ट्र की अभंगिता के

बनावटी वस्त्रों के बोझ से 

अपने नरमो-नाज़ुक जिस्म का

अंग-अंग तोड़े हुए

मैं मणिपुर हूँ

शिव-जटाओं से नुचड़ती गंगा की भाँति

अपने लहू की बूँद-बूँद निचोड़े हुए

मैं मणिपुर हूँ

जलते घरों में दफ़्न होते

विश्व-गुरू बनने के सपने को

अपने बच्चों के साथ

राख होते पीछे छोड़े हुए

मैं मणिपुर हूँ

गुजरात में गरजती, गोधरा की धूल को

कश्मीर की कब्र पे खिले

सियासत के फूल को

राज-दंड की दहकती धूप में

चिलचिलाते ख़ंजर को, तेग़ को, त्रिशूल को

अपनी आतंकित आँतों में              

पनाह देता हुआ

मैं मणिपुर हूँ

अंध-भक्तों की आँधी में उछलते

जुमलेबाज़ की चुप्पी में सहमी हुई

आवाज़ हूँ

कटे पांवों का सफ़र हूँ,                   

नोचे परों की परवाज़ हूँ

बे-हरकत हाथ हूँ, ख़ौफ़ज़दा साज़ हूँ

मैं मणिपुर हूँ

लाक्षागृह की आग से तप निकले

पांडु पुत्रों की परछाई नहीं

खाण्डव-वन में राख हुए

वन-वासिओं की आख़िरी चीख हूँ

क़ातिल से माँगी ख़ुदकुशी की भीख हूँ

मैं मणिपुर हूँ

कौरव-सभा में निर्वस्त्र होने से बची

पंचाली की कथा का अगला अध्याय हूँ

मासूम लम्हों को बिन ख़ता मिली

सदियों की सज़ाऐ हूँ

अपनी दुहरी हुई पीठ पर

परंपराओं का बोझ उठाए

मैं मणिपुर हूँ

क़ब्रों में काँपता गिरजा हूँ

कफ़न में सिसकती मस्जिद हूँ

शमशान की ज़द में शिवाला हूँ

चिताओं दर चिताओं से उमड़ता

सहमा हुआ उजाला हूँ

गाएँ के नाम पे कट गया ग्वाला हूँ

सियासी ज़हर का प्याला हूँ

चुनाव- चिन्हों की प्रयोगशाला हूँ

मैं मणिपुर हूँ

लहू में तैरती कश्ती में                  

पनाह लिए लोकतंत्र हूँ

इन्साफ़ की दीवार पे लटका

फटा हुआ कलेंडर हूँ

दोज़ख़ में खुला जन्नत का दर हूँ

मैं मणिपुर हूँ

तख़्ते-शाही सलामत है,

सलामत है तख़्त- नशीं

मुक़दमों का मकर,                   

मुन्सिफ़ों की अदाकारी

पहरेदारों की परदापोशी

रखवालों की क़ातिलों से रज़ामंदी

सभ सलामत है

इतने सुरक्षा- कवचों की बीहड़ में

भेड़ियों के लिए सुरक्षित छोड़ा गया

शिकार हूँ

मैं मणिपुर हूँ

जंगलों-पहाड़ों में दहकता ज्वालामुखी

मैदानों में सुलगते मरघटों का नुमाइंदा

हथियार में बदला औज़ार हूँ

मशाल बनने के पहले की आग हूँ

जगाने वाले हाथों के इंतज़ार में

उजड़े हुए घर का चिराग़ हूँ

मैं मणिपुर हूँ

                      -सुरजीत जज

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