BJP-JDU सरकार के खिलाफ पटना में जमा हुए हजारों मजदूर-किसान

Written by sabrang india | Published on: February 19, 2019
पटना। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर से राज्य के तकरीबन 40 मजदूर-किसान संगठनों के बैनर तले बीसियों हजार मजदूर-किसानों ने सोमवार को बिहार की राजधानी पटना में दस्तक दी। पटना भाजपा-जदयू सरकार के खिलाफ मजदूर-किसानों की ऐतिहासिक रैली का गवाह बना। गांधी मैदान से लेकर डाकंबगला चौराहा का पूरा इलाका मजदूर-किसानों की मांगों व नारों से गुंजायमान था। मजदूर-किसानों ने विधानसभा मार्च के जरिए किसानों के सभी प्रकार के कर्जों की माफी, फसल बीमा, फसलों की अनिवार्य खरीद, बिना वैकल्पिक व्यवस्था के दलित-गरीबों को उजाड़ने पर रोक, नया बटाईदारी कानून लागू करने, नया आवास कानून बनाने, चीनी-कागज-जूट-सूता आदि मिलों को चालू करने, जमीन-आवास की गारंटी, मनरेगा समेत सभी स्कीम वर्करों को न्यूनतम मजदूरी की गारंटी, वृद्धा पेंशन की राशि न्यूनतम 3000 करने सहित 25 सूत्री मांगों के साथ विधानसभा मार्च में शामिल हुए।

गांधी मैदान से बीसियों हजार के इस काफिले का नेतृत्व अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बिहार-झारखंड के प्रभारी राजाराम सिंह, किसान सभा के नेता एन के शुक्ला, अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव धीरेन्द्र झा, किसान सभा-केदार भवन के नेता अशोक सिंह, किसान सभा-जमाल रोड के नेता विनोद सिंह, नृपेन्द्र कृष्ण महतो, अनिल सिंह, धर्मेन्द्र कुमार, वैद्यनाथ सिंह, विशेश्वर प्रसाद यादव, रामाधार सिंह, गोपाल रविदास, जानकी पासवान, ललन चैधरी, विधायक सुदामा प्रसाद व सत्येदव राम, जय किसान आंदोलन के मुकेश कुमार ने की। डाकबंगला चौराहे पर मजदूर-किसानों के जनसैलाब को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बिहार-झारखंड के प्रभारी व अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह ने कहा कि-

अंबानी-अडानी परस्त मोदी सरकार में किसान और जवान सुरिक्षत नहीं है। 2019 में इन्हें भगाकर ही दम लेना होगा। तभी देश सुरक्षित रहेगा। आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगेगी और किसानों को अपने ही देश में कर्ज माफी, फसल बीमा, लाभकारी मूल्य और अनिवार्य फसल खरदी की गारंटी होगी। उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार में किसानी की हालत चौपट हो गई है। कृषि आधारित सारे उद्योग बंद पड़े हुए हैं और फसलों की खरीद में यह सरकार पिछड़ी साबित हुई है। किसान-मजदूर का ऐतिहासिक मार्च इसका ऐलान कर रहा है कि मोदी को भगायेंगे और पलटू राम को सबक सिखायेंगे।

अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय मंत्री नंदकिशोर शुक्ला ने अपने संबोधन में कहा कि-
महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में उठ खड़े हुए किसान आंदोलन ने मोदी सरकार की झूठ और जुमलेबाजी को जमीन पर उतार दिया है, बिहार के मजदूर-किसानों की यह विराट रैली इन्हें गंगा में डूबो देगी। उन्होंने कहा कि मजदूर-किसानों पर लगातार हमले हो रहे हैं। हजारों जवान मारे जा रहे हैं, उसकी जिम्मेवारी सरकार को लेनी होगी। जिम्मेवारी लेने के बजाए मोदी सरकार पूरे देश में उन्माद फैला रही है। वह आंतरिक एकता को खंडित कर रही है। एकताबद्ध राष्ट्र ही किसी हमले का मुकाबला कर सकता है और दुश्मन की साजिश को चकनाचूर कर सकता है। किसानों को मजबूत किए बिना देश को मजबूत नहीं किया जा सकता है।

अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव धीरेन्द्र झा ने कहा कि-
मोदी सरकार के हाथों न देश सुरक्षित है और न ही जवान। वे उन्माद की खेती कर चुनाव की वैतरणी पार करना चाहते हैं पर जवानों की शहादत के बाद देश में मौजूद गम व गुस्से के बीच हुई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति व चुनाव दौरे पर निकल जाना देश व सेना का अपमान है। आगे कहा कि 10 लाख दलित-गरीबों को नीतीश सरकार ने उजाड़ दिया है अथवा उजाड़ने का नोटिस दिया गया है। बिहार सहित देश के दलित-आदिवासी-गरीब-मजदूर वास-आवास को मौलिक अधिकार में शामिल करने की मांग कर रहे हैं, इसलिए दलित-गरीबों को जो सरकार उजाड़ेगी, वैकल्पिक आवास की व्यवस्था नहीं करेगी, उस सरकार को जनता उखाड़ फेंककर बदला लेगी।

अखिल भारतीय किसान सभा-केदार भवन के राज्य महासचिव अशोक कुमार सिंह ने कहा कि-
बिहार की सरकार किसान विरोधी सरकार है। इसने किसान बीमा योजना को बंद कर दिया है और फसल का तय मूल्य पर खरीद से इंकार कर दिया है। किसानों-बटाईदारों की कर्ज मुक्ति के सवाल पर सरकार चुप है। 2014 में खाद कारखाना को चालू करने की घोषणा नरेन्द्र मोदी ने की थी और अब एक बार फिर जुमलेबाजी करने बेगूसराय में सभा कर रहे हैं। संगठित किसान आंदोलन से इन्हें मुंहतोड़ जवाब देना है। बिहार में कृषि आधारित सारे उद्योग बंद पड़े हुए हैं।

बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग को उठाते हुए भाकपा-माले के तीनों विधायकों ने मजदूर-किसानों की एकजुटता रैली में हिस्सा लिया। डाकबंगला पर सभा को संबोधित करते हुए माले विधायक सत्यदेव राम ने कहा कि जीएसटी को लेकर आधी रात में बैठक होती है लेकिन किसानों-मजदूरों की बदहाली पर सदन में कोई चर्चा नहीं होती है। करोड़पति-अरबपतियों को नीतीश सरकार महिमामंडित कर रही है और दलित-गरीबों को उजाड़ने में लगी है।

मजदूर-किसानों के विधानसभा मार्च की प्रमुख झलकियां
विधानसभा मार्च के मद्देनजर 17 फरवरी की रात से ही राज्य के विभिन्न हिस्सों से मजदूर-किसान जुलूस की शक्ल में पटना के गांधी मैदान पहुंचने लगे थे। बिना किसी व्यवस्था के भूखे-प्यासे आंदोलनकारियों का महाजुटान मैदान में सुबह में देखने लायक था। गांधी मैदान से जनसैलाब नुमा बीसियों हजार महिला-पुरूषों का काफिला विधानसभा की ओर मार्च किया। मौर्या होटल के नजदीक इस काफिले को रोकने का प्रयास किया गया लेकिन कारवां बढ़ता रहा। डाकबंगला चौराहे पर पुलिस-प्रशासन का चाक चौबंद व्यवस्था पूरी तरह से ढीली पड़ गई। प्रदर्शनकारियों की ओर से धीरेन्द्र झा ने प्रशासन को हजारों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने की चुनौती दी। उन्होंने कहा कि अन्यथा बैरीकेड तोड़ दिया जाएगा। प्रशासन ने डाकबंगला चौराहे पर ध्वनिविस्तारक यंत्र से गिरफ्तारी की घोषण की। उसके उपरांत रोड को ही जाम कर दिया गया और वहां सभा की शुरूआत कर दी गई।

बिहार के कोने-कोने से बड़ी संख्या में मार्च में आए दलित-गरीबों, अपने परंपरागत हथियारों के साथ शामिल आदिवासियों जिसमें बड़ी संख्या महिलाओं की थी, इस बात को स्थापित कर रहे थे कि मोदी-नीतीश के खिलाफ जनाक्रोश चरम पर है। दिल्ली-पटना की सरकार किसानों के साथ विश्वासघात करने वाली सरकार है। मजदूर-किसानों के इस विधानसभा मार्च में राज्य के वाम दलों से जुड़े मजदूर-किसान संगठनों के अलावा अन्य दर्जनों किसान संगठन शामिल हुए। दिसंबर में आयोजित किसान संसद की तर्ज पर यह मार्च राजधानी पटना में आयोजित किया गया था। इस संयुक्त मार्च को11 सदस्यीय संयोजन समिति ने संचालित किया।

साभार- जनचौक

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