कन्नौजी इत्र: नोटबंदी, जीएसटी, काले धन के खिलाफ लड़ाई और राजनीतिक भ्रष्टाचार

Written by Navnish Kumar | Published on: January 3, 2022
कन्नौज के इत्र कारोबारियों के ठिकानों पर छापेमारी में भाजपा और सपा के सियासी ब्लेम गेम (आरोप प्रत्यारोप) को एकबारी छोड़ दें तो छापेमारी में बरामद अकूत नकदी ने मोदी सरकार के काले धन के खिलाफ लड़ाई के सच को भी उजागर कर दिया है। नोटबंदी और जीएसटी को लागू करते वक्त जो दावे किए गए थे वो सब फेल निकले हैं। यूं कहें कि इन छापों से मोदी सरकार की नोटबंदी की भी नाक कट गई है। नोटबंदी के बावजूद यदि करोड़ों-अरबों इत्रवालों के यहां से नकद पकड़े जा सकते हैं तो बड़े-बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों ने अपने यहां तो खरबों रुपये नकद छिपा रखे होंगे। दूसरा, इन छापों ने इत्र के साथ राजनीति की बदबू को भी उजागर किया है। 



प्रचारित किया गया कि यह छापा समाजवादी पार्टी के धनकुबेर के संस्थानों पर पड़ा है। दूसरे शब्दों में यह पैसा अखिलेश यादव का है। कानपुर की एक सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विरोधियों पर हमला करते हुए कहा कि यह भ्रष्टाचार का इत्र है। इसकी बदबू सर्वत्र फैल गई है। यह बदबू 2017 के पहले फैली थी। तब तक अखिलेश उप्र के मुख्यमंत्री थे लेकिन अखिलेश ने कहा कि यह छापा गलतफहमी में मार दिया गया है। दो जैनों में सरकार भ्रमित हो गई। पीयूष जैन का समाजवादी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार ने सपा एमएलसी पुष्पराज उर्फ पम्मी जैन की जगह गलती से पीयूष जैन के यहां छापा मार दिया। 

हालांकि अब पुष्पराज जैन के यहां भी छापा मार दिया गया है। देखना होगा क्या निकलता है लेकिन चुनावी मौसम में की जा रही इस छापेमारी से सत्तारुढ़ दल की भी छवि चौपट होती है। दरअसल अपने विरोधियों को बदनाम और तंग करने के लिए ऐसे छापे इस समय मारे जाते हैं। पिछले कई साल से सरकार को लकवा क्यों पड़ा हुआ था? इसके अलावा ये छापे उसी राज्य में क्यों पड़ रहे हैं, जिसमें चुनाव सिर पर हैं? क्या भाजपा को हार का डर सता रहा है? सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी पूछा है कि बीजेपी बताए कि नोटबंदी के बावजूद उनके (पीयूष जैन के) पास अकूत नकदी कहां से व कैसे आई? किन बैंकों ने पैसा देने का काम किया है। यही नहीं, इतने बड़े पैमाने पर जीएसटी की चोरी भी पूरी तरह से सरकार और उसकी नीतियों (कानून) का ही फेल्योर है। 



जी हां, छापेमारी में मिला अकूत पैसा जिसका भी हो, इससे यह सच तो सामने आ ही गया है कि देश में काले धन के विशाल साम्राज्य को नोटबंदी से हल्की सी खरोंच भी नहीं पहुंची है। नोटबंदी का एक बड़ा पक्ष नकदी रहित अर्थव्यवस्था का निर्माण बताया गया था। दावा किया गया था कि डिजिटल लेनदेन बढ़ने से भ्रष्टाचार कम होगा। साथ ही दावा किया गया था कि छपे हुए नोट घटेंगे। लेकिन देखा जा रहा है कि नोटबंदी से लेकर आज तक छपे हुए नोटों की संख्या भी बढ़ती ही जा रही है। वहीं, नोटबंदी में जिन दावों का ऐलान किया गया था, छापे में मिली अकूत नकदी उसकी विफलता का समारोह है। याद करें, 8 नवंबर, 2016 का दिन, जब शाम 8 बजे अचानक से नोटबंदी यानी देश की 80 फीसद नकदी के विमुद्रीकरण का ऐलान किया गया था। देश की अर्थव्यवस्था पर उस ऐलान का खौफ ऐसा है कि आज भी किसी ऐलान के लिए 8 बजे शाम का वक्त डरा जाता है। किसी बुरे फैसले की आशंका होती है तो नोटंबदी जैसे ही किसी फैसले का फलसफा याद आता है। नोटबंदी को काले धन के खिलाफ यज्ञ की संज्ञा दी गई थी जो आम लोगों के लिए आर्थिक तबाही का सर्वनाम बन गया था। इंरटनेट पर आज भी वो वीडियो उपलब्ध है जिसमें 2016 में नोटबंदी के ऐलान के बाद टीवी पत्रकार दो हजार के नोट में चिप लगा होने का दावा कर रहे थे। बता रहे थे कि उस चिप की मदद से मिट्टी के अंदर गड़ा काला धन भी पकड़ लिया जाएगा। आम लोग अपनी जमापूंजी पर इतनी बड़ी क्रूरता के साथ ऐसे मजाक झेलने को अभिशप्त थे। 

खास है कि इत्र कारोबारी पीयूष जैन के कानपुर और कन्नौज स्थित घरों से इनकम टैक्स छापेमारी में 194 करोड़ रुपये से ज्यादा कैश बरामद हुआ है। इसके अलावा करोड़ों रुपये का सोना, चांदी और चंदन का तेल मिला है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार,  डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (डीजीजीआई) के अधिकारियों को घरों की दीवारों, सीलिंग, आलमारियों और तहखाने से बंपर कैश मिला। कानपुर से 177.45 करोड़ रुपये और कन्नौज से 17 करोड़ रुपये कैश बरामद हुआ है। इसके साथ ही अब तक 64 किलो सोना, लगभग 250 किलो चांदी और 600 लीटर चंदन का तेल बरामद हुआ है। यह सीबीआईसी के अधिकारियों द्वारा नकदी की अब तक की सबसे बड़ी जब्ती है।

मामले की तह में जाएं तो पीयूष जैन की अकूत संपत्ति जीएसटी इंटेलिजेंस के रडार में आने के पीछे रही, एक पान मसाला कंपनी को परफ्यूम की सप्लाई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पूरा वाकया शुरू हुआ मैसर्स गणपति रोड कैरियर्स द्वारा संचालित ट्रकों से। टैक्स अधिकारियों के पास सूचना थी कि शिखर पान मसाला बनाने वाली कंपनी त्रिमूर्ति फ्रैग्रेंस प्रा लि. के पान मसाला व तंबाकू उत्‍पाद, टैक्स भुगतान के बिना ही लाए जा रहे हैं। ट्रांसपोर्टर सामान ढुलाई के दौरान ई-वे बिल से बचने के लिए ऐसी कंपनियों के नाम पर जो इनवॉइस जारी करता था, वो सभी 50 हजार रुपये से कम के होते थे। ट्रांसपोर्टर इस गैरकानूनी सप्लाई की बिक्री से मिली धनराशि को नकद में ले रहा था और अपना कमीशन काटने के बाद विनिर्माता को सौंप रहा था। अफसरों ने शुरुआत में पान मसाला मैन्युफैक्चरर की फैक्ट्री परिसर के बाहर बिना इनवॉइस और ई-वे बिलों के 4 ट्रकों को पकड़ा और सीज कर लिया। इसके बाद जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय (डीजीजीआई) की अहमदाबाद इकाई ने 22 दिसंबर 2021 को कानपुर में शिखर ब्रांड पान मसाला व तंबाकू उत्पाद निर्माताओं के कारखाना परिसरों, ट्रांसपोर्टरों आदि के कार्यालय/गोदामों आदि जगहों पर तलाशी अभियान शुरू किया। पान मसाला मैन्युफैक्चरर के फैक्ट्री परिसरों के भीतर, भौतिक रूप से स्टॉक लेने के दौरान कच्चे माल और तैयार उत्पादों की कमी पाई गई। क्योंकि तैयार उत्पादों को गैर कानूनी रूप से बाहर निकाला गया था। 

कंपनी के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता ने स्वीकार किया कि बिना जीएसटी भुगतान के सामान, बाहर भेजा गया है। ट्रांसपोर्टर गणपति रोड कैरियर्स के परिसरों में जीएसटी के भुगतान के बिना सामान की ढुलाई के लिए इस्तेमाल की गईं 200 से ज्यादा फर्जी इनवॉइस मिलीं। ट्रांसपोर्टर ने भी स्वीकार किया कि फर्जी इनवॉइस के जरिये, ई-वे बिलों के बिना सामान बाहर भेजा गया था और बिक्री की धनराशि नकद में लेकर विनिर्माता को सौंपी जा रही थी। ट्रांसपोर्टर के कब्जे से 1.01 करोड़ रुपये की धनराशि नकद जब्त की गई। पीयूष जैन की साझेदारी वाली कंपनी मैसर्स ओडोकेम इंडस्ट्रीज, परफ्यूमरी कंपाउंड्स की आपूर्तिकर्ता है। यह कंपनी शिखर पान मसाला को भी परफ्यूमरी कंपाउंड्स की सप्लाई करती थी। मैसर्स ओडोकेम इंडस्ट्रीज के कानपुर एवं कन्नौज स्थित आवासीय व कारखाना परिसरों में भी आयकर के छापे पड़े और पीयूष जैन के यहां से बेशुमार नकदी और सोना हाथ लगे।

जीएसटी के तहत ट्रांसपोर्टर्स को सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए ई-वे बिल चाहिए होता है जो ई-वे बिल पोर्टल से जनरेट किया जाता है। लेकिन इसे तभी जनरेट करना होगा, जब एक वाहन में ट्रांसपोर्ट किए जाने वाले सामान की वैल्यू 50000 रुपये से ज्यादा हो। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि एक जीएसटी रजिस्टर्ड व्यक्ति एक वाहन में 50000 रुपये से ज्यादा का सामान (सिंगल इनवॉइस/बिल/डिलीवरी चालान) ई-वे बिल जनरेट किए बिना नहीं ले जा सकता है। अगर वह ऐसा करता है तो यह नियमों का उल्लंघन होगा। लेकिन ट्रांसपोर्टेड गुड्स के लिए ई-वे बिल जनरेट न करना पड़े, सामान रिकॉर्ड में न आए, इसके लिए जालसाज कारोबारी फर्जी इनवॉइस के जरिए सामान की वैल्यू कम दिखाते हैं। नहीं तो जीएसटी भरना पड़ेगा। इस तरह सामान के ट्रांसपोर्ट पर जीएसटी की चोरी की जाती है। पूछताछ में पीयूष जैन ने भी व्यापक जीएसटी चोरी को स्वीकार किया है। 

अब छापे में मिली नकदी कितनी वैध है और कितनी अवैध, यह एक लंबी जांच का विषय है। लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव से ऐन पहले हुई इस छापेमारी ने चुनाव सुधार को लेकर भी एक नई बहस को जन्म दे दिया है। मसलन चुनाव सुधार के नाम पर चुनावी बांड लाया गया था। लेकिन देखा जा रहा है कि दल विशेष के पास ही ज्यादातर चुनावी चंदा जा रहा है। बाकी दलों के लिए भय का ऐसा वातावरण बना है कि उनके लिए संसाधनों की पूरी तरह से नाकेबंदी हो जाती है। यानी विपक्ष के लिए पैसे की आवाजाही बंद हो जाती है। उद्योगपतियों को भी डर लगने लगता है कि विपक्षी दलों को पैसा दिया तो हमारे घरों और संस्थानों पर छापे पड़ सकते हैं। चुनावी बांड और जांच एजंसियों का संगम पैसे को सत्ताधारी के पास केंद्रित कर देता है जिस कारण विपक्षी दलों के लिए चुनाव की लड़ाई मुश्किल हो जाती है। देखें तो उत्तर प्रदेश में डबल इंजन की सरकार के 5 साल पूरे होने वाले हैं। लेकिन अभी तक किसी को भी इस नकदी की सूचना नहीं मिली थी। चुनाव नजदीक आते ही पैसे का पता मिल गया। मतलब, आपके पास इतने लंबे समय तक इस पैसे की कोई सूचना नहीं थी? जानकारों के अनुसार इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि इस सूचना को मौका-ए-चुनाव तक के लिए रोक कर रखा गया हो। यानी आर्थिक भ्रष्टाचार में आप चुनिंदा लोगों के खिलाफ ही यज्ञ कर रहे हैं। इस सीमित यज्ञ का पुण्य आपको चुनावी लाभ के रूप में मिलना है।

कुल मिलाकर संदेश यही है कि राजनीतिक दलों की ईमानदारी और सामूहिक समझ के बिना किसी भी तरह के चुनावी सुधार की बात बेमानी है। जो राजनीतिक दल सत्ता में होता है वो विपक्ष को कुचलने के लिए जांच एसंसियों का अपने पक्ष में इस्तेमाल करता ही है। इस राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ नागरिक चेतना से ही उम्मीद की जा सकती है। जरूरत इस बात की है कि सूचना के अधिकार जैसे जन-कानून को मजबूत करने के लिए नागरिक संगठन एकजुट रहें। बिना नागरिक शास्त्र के सचेत हुए राजनीति शास्त्र का पाठ्यक्रम नहीं सुधारा जा सकता है। चुनिंदा चुनावी सुधार सरकारी एजंसियों को सत्ता की जकड़न में ही रखने के ख्वाहिशमंद हैं। इस तरह से काम करने वाली एजंसियां जो हर समय सवालों के घेरे में आ जाती हैं, वो जनतंत्र की सुरक्षा के लिए खुद एक बड़ा सवाल बन गई हैं।

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