भारत इस समय दो विकट समस्याओं से जूझ रहा है। एक महंगाई व बेरोजगारी और दूसरा आर्थिक विषमता। महंगाई का मुख्य कारण पेट्रोल डीजल के दामों में हुई 39.81 प्रतिशत की वृद्धि और खाने-पीने की चीजों का 4.88 प्रतिशत महंगा होना है। कोरोना और लॉकडाउन के बाद महंगाई की मार भी असहनीय हो चली है। दरअसल महंगाई बढ़ने का मतलब लागत बढ़ना है। दूसरी ओर, पूर्ण व आंशिक बेरोजगारी के पांव पसारने के चलते लोगों की आय में भी कमी आई है। लेकिन इसे सरकार की नीतिगत खामी ही कहा जाएगा कि भारत में महंगाई और बेरोजगारी दोनों बहुत तेजी से बढ़ी है। यानी लोग तेजी से गरीब हुए हैं और हो रहे हैं। इतना ही नहीं इसके चलते देश में असमानता की खाई तेजी से बढ़ी है और दिनोंदिन बढ़ रही है।
वर्ल्ड इनएक्विलिटी (विषमता) रिपोर्ट का भी कहना है कि भारत के शीर्ष 10% अमीरों की संपत्ति बाकी दुनिया के 10% अमीरों से तेज गति से बढ़ी है। जबकि आबादी के लगभग आधे गरीबों की आमदनी बाकी दुनिया के गरीबों की तुलना में और तेजी से गिरी है। बढ़ती बेरोजगारी व महंगाई का ही नतीजा है कि आज मध्यम वर्ग सिकुड़ रहा है और लोग गरीब होते जा रहे हैं। छोटा मोटा व्यवसाय करके अपना और परिवार का पेट पालने वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, कोरोना के बाद 97% भारतीयों की आय में कमी आईं है यानी वो गरीब हुए हैं। यही नहीं वर्ल्ड इनएक्विलिटी रिपोर्ट 2022 से पता चलता है कि शीर्ष 10 फीसदी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत हिस्सा है। इस शीर्ष में 1 प्रतिशत के पास राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा है जबकि नीचे के आधे लोगों के पास सिर्फ 13 प्रतिशत हिस्सा है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के सीईओ महेश व्यास से जब पूछा गया कि नौकरियां गंवाने से परिवारों पर क्या असर पड़ता है? वहीं किसी भी अर्थव्यवस्था और उसमें शामिल लोगों की सेहत पर इसका असर किस तरह पड़ेगा? पर उनका कहना है कि लोगों को हुए नुकसान के बारे में समझने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम यह देखें कि लोग अपनी कमाई के बारे में क्या बता रहे हैं। महेश व्यास कहते हैं कि जब हमने अपने सर्वे में लोगों से पूछा कि उनकी आज की कमाई एक साल पहले की कमाई की तुलना में कैसी है, तो मात्र 3% लोगों ने यह कहा कि उनकी कमाई पिछले साल की कमाई की तुलना में बेहतर हुई है। लगभग 55% लोगों ने यह कहा कि पिछले साल की तुलना में उनकी कमाई कम हुई है और बाकी के लोगों ने यह कहा कि इस साल उनकी कमाई का हाल बहुत बुरा है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप महंगाई की गणना करेंगे तो यह पाएंगे कि एक साल पहले लोगों की कमाई की तुलना में भारत के 97% से ज़्यादा लोग गरीब हुए हैं।
महंगाई बढ़ने का सीधा मतलब लागत बढ़ना और बचत में कमी आना है। वहीं, पूर्ण व आंशिक बेरोजगारी के चलते लोगों की आय भी घटी है। आलम यह है कि छोटा मोटा व्यवसाय करके अपना और परिवार का पेट पालने वालों को भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आम आदमी जो पहले ही लॉकडाउन और कोरोना की मार से हलकान था वो अब बेरोजगारी और महंगाई की मार झेलने पर मजबूर है। देखें तो रसोई गैस का सिलेंडर 1000 तो सरसों का तेल 200 रुपये लीटर पहुंच गया है। शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं भी महंगी हुई है। यहां तक कि ग़रीब लॉकडाउन में अपने घर जाने के चलते चढ़े कर्ज को अब तक नहीं उतार पा रहे हैं, बस किसी तरह गुजारा चला रहे हैं। पेट्रोल, डीज़ल, तेल, आटा दाल चावल सब मंहगा हुआ है लेकिन आमदनी नहीं बढ़ी। सैलरी स्थिर है या फिर पूर्ण व आंशिक बेरोजगारी के चलते आय घट गई है। बिजली, तेल, खाद दवाई के महंगा होने से किसान की भी लागत बढ़ी है वहीं, भाव में अपेक्षित बढोत्तरी न होने के चलते उनकी भी आमदनी गिरी है। मजदूर भी परेशान हाल है।
लेकिन महंगाई और बेरोजगारी किस कदर अपना असर दिखा रही है उसका सबसे बड़ा उदाहरण शिक्षा के क्षेत्र में देखने को मिला है। जी हां, सहारनपुर में मिडिल क्लास के एक बड़े तबके ने, फीस न भर पाने के चलते प्राइवेट स्कूलों से अपने बच्चों का नाम कटा लिया है और सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला करा रहे हैं। कोरोना और लॉकडाउन के बाद सरकारी स्कूलों में दाखिलों का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। अकेले सहारनपुर जिले में 25 हजार नए एडमिशन हुए हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह अभिभावकों की आर्थिक स्थिति को ही माना जा रहा है। दरअसल लॉकडाउन में काफी लोगों के काम छूट गए हैं या प्रभावित हुए हैं। वहीं, प्राइवेट स्कूलों ने लॉकडाउन के दौरान फीस में कोई छूट नहीं की है। इसी को देखते हुए अभिभावकों ने सरकारी स्कूलों का रूख करना शुरू कर दिया है।
लॉकडाउन ने मध्यम आय वर्ग के लोगों का भी आर्थिक बजट ऐसा बिगाड़ा है कि करीब 25 हजार बच्चों ने प्राइवेट स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लिया। यह बदलाव प्रदेश भर में देखा गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अगर अकेले सहारनपुर जिले की ही बात करें तो यहां 1438 बेसिक स्कूलों में बच्चों की संख्या एक लाख 92 हजार 180 थी जो लॉकडाउन के बाद बढ़कर 2 लाख 17 हजार 237 हो गई। इस तरह 25 हजार 57 नए एडमिशन हुए। इनमें करीब 20 हजार छात्र-छात्राएं वो हैं जिन्होंने निजी स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में एडमिशन लिया। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अम्बरीश कुमार का कहना है कि लॉकडाउन के बाद लोगों के सामने आर्थिक चुनौतियां हैं। यह एक बड़ा कारण हो सकता है लेकिन बेसिक स्कूलों के लिए वह इसे अवसर के तौर पर ले रहे हैं।
वर्ल्ड इनएक्विलिटी (विषमता) रिपोर्ट का भी कहना है कि भारत के शीर्ष 10% अमीरों की संपत्ति बाकी दुनिया के 10% अमीरों से तेज गति से बढ़ी है। जबकि आबादी के लगभग आधे गरीबों की आमदनी बाकी दुनिया के गरीबों की तुलना में और तेजी से गिरी है। बढ़ती बेरोजगारी व महंगाई का ही नतीजा है कि आज मध्यम वर्ग सिकुड़ रहा है और लोग गरीब होते जा रहे हैं। छोटा मोटा व्यवसाय करके अपना और परिवार का पेट पालने वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, कोरोना के बाद 97% भारतीयों की आय में कमी आईं है यानी वो गरीब हुए हैं। यही नहीं वर्ल्ड इनएक्विलिटी रिपोर्ट 2022 से पता चलता है कि शीर्ष 10 फीसदी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत हिस्सा है। इस शीर्ष में 1 प्रतिशत के पास राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा है जबकि नीचे के आधे लोगों के पास सिर्फ 13 प्रतिशत हिस्सा है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के सीईओ महेश व्यास से जब पूछा गया कि नौकरियां गंवाने से परिवारों पर क्या असर पड़ता है? वहीं किसी भी अर्थव्यवस्था और उसमें शामिल लोगों की सेहत पर इसका असर किस तरह पड़ेगा? पर उनका कहना है कि लोगों को हुए नुकसान के बारे में समझने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम यह देखें कि लोग अपनी कमाई के बारे में क्या बता रहे हैं। महेश व्यास कहते हैं कि जब हमने अपने सर्वे में लोगों से पूछा कि उनकी आज की कमाई एक साल पहले की कमाई की तुलना में कैसी है, तो मात्र 3% लोगों ने यह कहा कि उनकी कमाई पिछले साल की कमाई की तुलना में बेहतर हुई है। लगभग 55% लोगों ने यह कहा कि पिछले साल की तुलना में उनकी कमाई कम हुई है और बाकी के लोगों ने यह कहा कि इस साल उनकी कमाई का हाल बहुत बुरा है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप महंगाई की गणना करेंगे तो यह पाएंगे कि एक साल पहले लोगों की कमाई की तुलना में भारत के 97% से ज़्यादा लोग गरीब हुए हैं।
महंगाई बढ़ने का सीधा मतलब लागत बढ़ना और बचत में कमी आना है। वहीं, पूर्ण व आंशिक बेरोजगारी के चलते लोगों की आय भी घटी है। आलम यह है कि छोटा मोटा व्यवसाय करके अपना और परिवार का पेट पालने वालों को भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आम आदमी जो पहले ही लॉकडाउन और कोरोना की मार से हलकान था वो अब बेरोजगारी और महंगाई की मार झेलने पर मजबूर है। देखें तो रसोई गैस का सिलेंडर 1000 तो सरसों का तेल 200 रुपये लीटर पहुंच गया है। शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं भी महंगी हुई है। यहां तक कि ग़रीब लॉकडाउन में अपने घर जाने के चलते चढ़े कर्ज को अब तक नहीं उतार पा रहे हैं, बस किसी तरह गुजारा चला रहे हैं। पेट्रोल, डीज़ल, तेल, आटा दाल चावल सब मंहगा हुआ है लेकिन आमदनी नहीं बढ़ी। सैलरी स्थिर है या फिर पूर्ण व आंशिक बेरोजगारी के चलते आय घट गई है। बिजली, तेल, खाद दवाई के महंगा होने से किसान की भी लागत बढ़ी है वहीं, भाव में अपेक्षित बढोत्तरी न होने के चलते उनकी भी आमदनी गिरी है। मजदूर भी परेशान हाल है।
लेकिन महंगाई और बेरोजगारी किस कदर अपना असर दिखा रही है उसका सबसे बड़ा उदाहरण शिक्षा के क्षेत्र में देखने को मिला है। जी हां, सहारनपुर में मिडिल क्लास के एक बड़े तबके ने, फीस न भर पाने के चलते प्राइवेट स्कूलों से अपने बच्चों का नाम कटा लिया है और सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला करा रहे हैं। कोरोना और लॉकडाउन के बाद सरकारी स्कूलों में दाखिलों का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। अकेले सहारनपुर जिले में 25 हजार नए एडमिशन हुए हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह अभिभावकों की आर्थिक स्थिति को ही माना जा रहा है। दरअसल लॉकडाउन में काफी लोगों के काम छूट गए हैं या प्रभावित हुए हैं। वहीं, प्राइवेट स्कूलों ने लॉकडाउन के दौरान फीस में कोई छूट नहीं की है। इसी को देखते हुए अभिभावकों ने सरकारी स्कूलों का रूख करना शुरू कर दिया है।
लॉकडाउन ने मध्यम आय वर्ग के लोगों का भी आर्थिक बजट ऐसा बिगाड़ा है कि करीब 25 हजार बच्चों ने प्राइवेट स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लिया। यह बदलाव प्रदेश भर में देखा गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अगर अकेले सहारनपुर जिले की ही बात करें तो यहां 1438 बेसिक स्कूलों में बच्चों की संख्या एक लाख 92 हजार 180 थी जो लॉकडाउन के बाद बढ़कर 2 लाख 17 हजार 237 हो गई। इस तरह 25 हजार 57 नए एडमिशन हुए। इनमें करीब 20 हजार छात्र-छात्राएं वो हैं जिन्होंने निजी स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में एडमिशन लिया। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अम्बरीश कुमार का कहना है कि लॉकडाउन के बाद लोगों के सामने आर्थिक चुनौतियां हैं। यह एक बड़ा कारण हो सकता है लेकिन बेसिक स्कूलों के लिए वह इसे अवसर के तौर पर ले रहे हैं।