नीतीश बहाना है, असली निशाना मोदी सरकार है! क्या चीफ जस्टिस की बात सुनेगी विधायिका?

Written by Navnish Kumar | Published on: December 30, 2021
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने विधायिका को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। उन्होंने देश की विधायिका यानी संसद और राज्यों की विधानसभाओं में बन रहे कानूनों की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए हैं। कहा कि खराब कानूनों की वजह से भी अदालतों पर बोझ बढ़ रहा है। उन्होंने विधायिका को क्वालिटी कानून बनाने सलाह दी है और इसका तरीका भी बताया है। चीफ जस्टिस ने कहा है कि कानून बनाने के लिए स्थायी समितियों का अधिकतम इस्तेमाल होना चाहिए, सभी संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श होना चाहिए और बहस के बाद ही कानून बनना चाहिए।



चीफ जस्टिस ने खराब कानूनों के बारे बताते हुए बिहार में लागू शराबबंदी कानून का खासतौर से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 2016 में बना यह कानून मिसाल है कि किस तरह से खराब कानून के कारण अदालतों पर बोझ बढ़ता है। उन्होंने शराबबंदी के सिद्धांत का कोई जिक्र नहीं किया लेकिन कहा कि यह कानून सरकार की दूरदृष्टि की कमी को दिखाता है। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि इस कानून की वजह से हाईकोर्ट जमानत की याचिकाओं से भरा है और जमानत की साधारण याचिका का निपटारा करने में एक-एक साल का समय लग जा रहा है। 

दरअसल बिहार में शराबबंदी कानून के चलते मुकदमों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। ऐसे में नीतीश कुमार के इस शराबबंदी कानून के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने चिंता जताई है। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने इस पर सवाल उठाते हुए इसे एक अदूरदर्शी फैसला बताते हुए कहा है कि इस कानून के चलते कोर्ट पर मुकदमों का बोझ बढ़ा है।

शराबबंदी कानून को लेकर सीजेआई एनवी रमना ने 26 दिसंबर को कहा था कि बिहार में शराबबंदी क़ानून के बाद हालत यह है कि पटना हाइकोर्ट में ज़मानत की याचिका एक-एक साल पर सुनवाई के लिए आती है। सीजेआई रमना ने शराबबंदी कानून का मसौदा तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी बताया था। उन्‍होंने कहा था कि मालूम पड़ता है कि विधायिका, बिलों की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए संसद की स्‍थायी समिति प्रणाली का सही तरीके से उपयोग करने में सक्षम नहीं है। विजयवाड़ा में आयोजित कार्यक्रम में ‘भारतीय न्‍यायपालिका: भविष्‍य की चुनौतियां’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सीजेआई ने कहा था कि मुझे उम्‍मीद है कि इसमें बदलाव होगा क्‍योंकि इस तरह की जांच से कानून की गुणवत्‍ता में सुधार होता है।

खास है कि राज्य पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक इस साल अक्टूबर तक बिहार शराबबंदी और उत्पाद शुल्क कानून के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए है और 4,01,855 गिरफ्तारियां हुई है। इन मामलों से संबंधित लगभग 20,000 जमानत आवेदन पटना उच्च न्यायालय और जिला अदालतों के समक्ष निपटारे के लिए लंबित हैं।

पटना उच्च न्यायालय ने जनवरी 2020 और नवंबर 2021 के बीच शराबबंदी के मामलों में 19,842 जमानत याचिकाओं (अग्रिम और नियमित) का निपटारा किया। इस अवधि के दौरान अदालत द्वारा निपटाई गई कुल 70,673 जमानत याचिकाएं थीं। वहीं नवंबर तक इस कानून के अंतर्गत 6,880 जमानत याचिकाएं अभी भी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं। जिसमें कुल जमानत का आंकड़ा 37,381 है। बिहार में की 59 जेलों में लगभग 47,000 कैदियों को रखने की क्षमता है। हालांकि, जेल सूत्रों के अनुसार, वर्तमान में इन जेलों में लगभग 70,000 कैदी हैं, जिनमें से लगभग 25,000 के खिलाफ शराब कानून के तहत मामला दर्ज किया गया।

चीफ जस्टिस की नसीहत/सलाह से इतर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी कानून को लेकर लोगों में जन जागरूकता पैदा करने के लिए अपनी राज्य स्तर पर “समाज सुधार अभियान” यात्रा पर हैं। उन्होंने शराबबंदी का विरोध कर रहे लोगों को आगाह किया है कि जिन लोगों को बिहार में शराब ना मिलने के चलते यहां आने में परेशानी होती है, उन्हें बिहार राज्य में आने की जरूरत नहीं है। ‘समाज सुधार के बिना विकास संभव नहीं’ का मंत्र जन-जन तक पहुंचाने के लिए अभियान पर निकले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो टूक कहा है कि ऐसे किसी व्यक्ति को राज्य में आने की इजाजत नहीं दी जाएगी जो शराब पीने की इच्छा रखते हैं, अगर शराब पीना है तो बिहार मत आइए। कुमार ने सोमवार को यहां न्यू स्टेडियम फजलगंज में बिहार में पूर्ण नशामुक्ति, दहेज प्रथा एवं बाल विवाह उन्मूलन के लिए समाज सुधार अभियान का उद्घाटन करने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘बहुत लोग कहते हैं कि शराबबंदी के कारण पर्यटक बिहार नहीं आएंगे। गड़बड़ करने वाले लोग अनाप-शनाप बयान देते रहते हैं। हम ऐसे किसी आदमी को बिहार आने की इजाजत नहीं देंगे जो शराब पीने की इच्छा रखते हैं। दोहराया कि अगर शराब पीना है तो बिहार मत आईये।’

मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना काल में पर्यटकों की संख्या में थोड़ी कमी आई लेकिन शराबबंदी के बाद दो करोड़ से ज्यादा पर्यटक बिहार आए हैं। उन्होंने कहा कि बापू की बातों को सभी को मानना चाहिए। उनके संदेश को हर जगह प्रचारित करवाया जा रहा है। बापू ने कहा था कि शराब न सिर्फ आदमी का पैसा बल्कि बुद्धि भी खत्म कर देती है। शराब पीने वाला इंसान हैवान हो जाता है। अगर एक घंटे के लिए भी मुझे देश का तानाशाह बना दिया जाए तो मैं देश की सभी शराब की दुकानें बंद करवा दूंगा। कुमार ने कहा कि समाज में कुछ लोग गड़बड़ी करने वाले होते हैं चाहे वे किसी भी धर्म के मानने वाले लोग हों। कितना भी अच्छा काम कीजिएगा कुछ लोग तो गड़बड़ी करेंगे ही लेकिन अभियान चलाते रहना है। हमने रिपोर्ट मांगी है कि कितने लोगों पर कार्रवाई हुई है। चार जिलों का यहां पर हम अभियान चला रहे हैं, यह तो बॉर्डर इलाका है। शराबबंदी को लेकर मुझे कई राज्यों में बुलाया गया। इस इलाके में जागृति बहुत है। कोई गड़बड़ न करे इस पर ध्यान बनाए रखने की जरूरत है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि आप दारू पीते हैं तो बापू के खिलाफ हैं। दारू पीने वाले कुछ लोग खुद को ज्यादा काबिल मानते हैं लेकिन वो काबिल नहीं हैं। कितने भी पढ़े-लिखे हैं और यदि वे दारु पीते हैं तो हम उनको काबिल नहीं मानते हैं। ऐसे लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों के विरोधी हैं। समाज हित के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी पब्लिसिटी से कोई मतलब नहीं है। कुछ लोग पब्लिसिटी पाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। यदि पत्रकार मित्र कभी-कभी कागज पर, ट्वीटर पर भी लिखेंगे तो इसका बहुत बड़ा समाज में असर पड़ेगा। आपस में प्रेम, भाईचारे का भाव रहना चाहिए तभी समाज आगे बढ़ेगा। तरह-तरह की बातें होती रहती हैं इसलिए आपसी एकजुटता रखिए हम लोग आगे बढ़ेंगे और समाज भी आगे बढ़ेगा।

सवाल है कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चीफ जस्टिस की सलाह पर ध्यान देंगे या फिर नाराज हो जाएंगे? वे शराबबंदी के बनाए अपने कानून से इतने ऑब्सेश्ड हो गए हैं कि जैसे ही कोई इसके बारे में कुछ कहता है वे भावुक हो जाते हैं या नाराज हो जाते हैं। उनका वश चले तो वे इस कानून पर सवाल उठाने वालों के ऊपर भी मुकदमा करने का प्रावधान कर दें। वे यह मानने को कतई राजी नहीं हैं कि इस कानून की वजह से राज्य में पुलिस और प्रशासन दोनों ठप्प है। पुलिस और प्रशासन दोनों का काम सिर्फ शराबबंदी कानून लागू करना रह गया है। इसके बावजूद घर-घर में शराब की होम डिलीवरी हो रही है। 

अब, भले चीफ जस्टिस ने शराबबंदी कानून को लेकर बिहार सरकार का उदाहरण दिया हो लेकिन जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार तो बहाना है। असल निशाना केंद्र सरकार है। चीफ जस्टिस ने संसद में बिना विचार विमर्श के बनाए जा रहे कानूनों पर सवाल उठाए हैं। दरअसल देहात में एक कहावत भी खूब चलती है कि बहू को सीधा डांटने के बजाय, सास अपनी लड़की को डांटती है। यानी बहू पर निशाना साधने को लड़की का सहारा लिया जाता हैं। इसी से माना जा रहा है कि चीफ जस्टिस ने बिहार के शराबबंदी कानून के बहाने, संसद में बिना विचार-विमर्श व बहस के बनाए जा रहे कानूनों पर भी सवाल उठाए हैं। विजयवाड़ा के एक लॉ कॉलेज में भाषण के दौरान चीफ जस्टिस रमना ने याद दिलाया है कि कानून के बारे में विस्तार से विचार-विमर्श और छानबीन करने के लिए ही 90 के दशक में स्थायी समितियों का सिस्टम बना था, लेकिन ऐसा लग रहा है कि विधायिका उनका पूरा इस्तेमाल नहीं कर रही है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एक अच्छा कानून तभी बन सकता है, जब सभी संबंधित पक्षों को शामिल किया जाए और उस पर अर्थपूर्ण बहस हो। अब भले उन्होंने यह कहा नहीं हो लेकिन संसद द्वारा तीन कृषि कानून बनाने और फिर उन्हें वापस लेने का कानून पास करने पर भी इसे टिप्पणी मान सकते हैं। यही नहीं नोटबंदी के प्रभाव व जीएसटी में बार बार बदलाव के साथ, आधार को वोटर लिस्ट से जोड़े जाने जैसे हालिया कानून भी इसी टिप्पणी की जद में आते हैं।

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