'रेप पीड़िता से शादी करोगे' वाली टिप्पणी पर नारीवादी संगठनों की मांग- इस्तीफा दें CJI बोबड़े

Written by Sabrangindia Staff | Published on: March 3, 2021
नई दिल्ली। दुष्कर्म पीड़िता से आरोपी की शादी कराने की टिप्पणी को लेकर महिला अधिकारों की पैरवी करने वाले क़रीब 4000 एक्टिविस्टों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे से इस्तीफ़ा देने की मांग की है। इन्होंने एक खुला ख़त लिखा है और देश की महिलाओं से माफी मांगने की मांग की है। 



ख़त लिखने वालों में महिला अधिकार की पैरवी करने वाले, प्रगतिशील समूहों और संबंधित नागरिकों का एक समूह है। ख़त में कहा गया है कि एक बलात्कारी से स्कूल की पीड़ित लड़की से शादी करने और सर्वोच्च न्यायालय में वैवाहिक बलात्कार को सही ठहराने के लिए उन्हें इस्तीफा देना चाहिए।

सरकारी कर्मचारी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाल ही में उस व्यक्ति मोहित सुभाष चव्हाण से कहा था, 'यदि आप शादी करना चाहते हैं तो हम आपकी मदद कर सकते हैं। यदि नहीं, तो आप अपनी नौकरी खो देंगे और जेल जाएँगे। आपने लड़की को बहकाया, उसके साथ बलात्कार किया।'

बेंच ने आगे कहा, 'हम आपको शादी करने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं। अगर आप करेंगे तो हमें बताएँ। नहीं तो आप कहेंगे कि हम आपको उससे शादी करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।' मुख्य न्यायाधीश ने यह कहते हुए उस व्यक्ति की गिरफ्तारी पर एक महीने तक के लिए रोक लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट से ऐसी टिप्पणी आने के बाद देश भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई। ख़ासकर नागरिक समाज और महिला अधिकारों से जुड़े रहे एक्टिविस्ट और संगठनों को यह टिप्पणी आपत्तिजनक लगी। मुख्य न्यायाधीश के नाम यह जो ताज़ा ख़त आया है उसमें भी इसी बात को लेकर आपत्ति जताई गई है। 

ख़त में लिखा गया है, 'सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई जैसे ऊँचे पद से अन्य अदालतों, न्यायाधीशों, पुलिस और अन्य सभी क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों को यह संदेश जाता है कि न्याय भारत में महिलाओं का संवैधानिक अधिकार नहीं है। यह लड़कियों और महिलाओं को आगे चुप कराने का ही काम करेगा।' 

ख़त में आगे कहा गया है, 'बलात्कारियों को यह संदेश देता है कि शादी बलात्कार का लाइसेंस है; और इस तरह का लाइसेंस प्राप्त करने से बलात्कारी वास्तव में अपने अपराध को डिक्रिमिनलाइज यानी अपराध मुक्त कह सकता है या वैध कह सकता है।'
खुले ख़त में एक्टिविस्टों का कहना है, 'यह हमें ग़ुस्सा दिलाता है कि भारत के संविधान की व्याख्या करने और फ़ैसला देने वाले भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी 'प्रलोभन', 'बलात्कार', और 'विवाह' का अर्थ समझाने की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर ही है।' ख़त में कहा गया है कि 'आपके शब्द देश की सर्वोच्च अदालत की प्रतिष्ठा को कमतर करते हैं'।

खुले पत्र का समर्थन करने वालों में एनी राजा, मरियम धवले, कविता कृष्णन, कमला भसीन, मीरा संघमित्रा, अरुधति धूरू जैसी कई प्रसिद्ध महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं। एडमिरल एल. रामदास, अरुणा रॉय, निखिल डे, आनंद सहाय, देवकी जैन, जॉन दयाल, लक्ष्मी मूर्ति, अपूर्वानंद, फराह नकवी, आयशा किदवई, अंजा कोवाक्स जैसे विभिन्न क्षेत्रों के प्रख्यात नागरिकों ने भी ख़त पर हस्ताक्षर किए हैं। 

इनके अलावा ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन एसोसिएशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेन्स एसोसिएशन, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन, सहेली, यौन हिंसा और राज्य दमन के ख़िलाफ़ महिला, THITS, महिला उत्पीड़न के ख़िलाफ़ फ़ोरम, बेबाक कलेक्टिव, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन, दलित महिला लड़ाई, BASO जैसे महिला संगठन भी ख़त लिखने वालों में हैं। ख़त लिखने वालों में ऐसे क़रीब 50 महिला समूह हैं। 

 

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