नई दिल्ली। भारत में इन दिनों 21 दिनों का लॉकडाउन जारी है। इसका सबसे ज्यादा और सीधा असर अगर किसी पर पड़ रहा है तो वो दिहाड़ी पर काम करने वाले प्रवासी मजदूर हैं। पिछले दिनों तस्वीरें आपने देखीं होंगी कि किस तरह से लॉकडाउन के बाद लोगों पर आजीविका का संकट खड़ा हो गया और वह दूसरे राज्यों से पैदल ही अपने घरों को निकल पड़े।
हाल ही में 3,196 निर्माण श्रमिकों (कंस्ट्रक्शन वर्कर्स) पर किए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि लॉकडाउन के बाद से 92.5 फीसदी मजदूर एक से तीन सप्ताह तक अपना काम खो चुके हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान गैर-सरकारी संगठन 'जन साहस फाउंडेशन' ने उत्तर और मध्य भारत के श्रमिकों के बीच टेलीफोनिक सर्वे से कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं। पहला इनमें 42 फीसदी मजदूरों ने बताया कि उनके पास दिनभर के लिए राशन नहीं बचा है। सर्वे में पता चला है कि अगर लॉकडाउन 21 दिनों से ज्यादा का रहा तो 66 फीसदी मजदूर एक सप्ताह से अधिक अपने घरेलू खर्चों का प्रबंध नहीं कर पाएंगे।
दूसरा: एक तिहाई मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन के चलते वो अभी भी शहरों में फंसे हैं, जहां उन्हें पानी, भोजन और पैसे की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। करीब आधे प्रवासी मजदूर पहले ही अपने गांवों का रुख कर चुके हैं। वहां वो विभिन्न चुनौतियों जैसे राशन और आय की कमी का सामने कर रहे हैं।
तीसरा: 31 फीसदी मजदूरों के पास कर्ज है और बिना रोजगार के इसे चुकाना खासा मुश्किल होगा। इसमें अधिकतर कर्ज उधारदाताओं का था। ये बैंकों से कर्ज लेने वाले मजदूरों की तुलना में तीन गुना है। सर्वे में सामने आया कि 79 फीसदी से अधिक कर्जदार ऐसे हैं जो निकट भविष्य में वापस भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। एक परेशान करने वाला तथ्य यह भी है कि 50 फीसदी के करीब जिन मजदूरों ने कर्ज लिया, उनके भुगतान की असमर्थता उन्हें किसी प्रकार की हिंसा के खतरे में डाल सकती है।
र्वे में शामिल 2655 मजदूरों ने बताया कि उन्हें रोजगार की कमी का सामना करना पड़ा है। 1527 ने बताया कि वो गांव लौटने की स्थिति में नहीं हैं। 2582 मजदूरों के घरों में राशन खत्म हो चुका है। इनमें 78 लोग स्कूल और कॉलेज की फीस भरने में सक्षम नहीं हैं। 483 लोग बीमारी का शिकार हैं। हालांकि सर्वे में 11 लोगों ने माना की उन्हें लॉकडाउन में किसी तरह की परेशानी नहीं हुई।
सर्वे में सामने आया कि 55 फीसदी श्रमिकों ने औसतन चार व्यक्तियों के परिवार वाले घर को आर्थिक समर्थन के लिए प्रति दिन 200-400 रुपए कमाए जबकि अन्य 39 फीसदी ने 400-600 रुपए प्रति दिन कमाए। इसका मतलब यह है कि इन मजदूरों में से अधिकांश न्यूनतम मजदूरी अधिनियम दायरे से भी नीचे हैं। बता दें कि दिल्ली के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी क्रमशः 692 रुपए, 629 रुपए और कुशल, अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए 571 रुपए है।
हाल ही में 3,196 निर्माण श्रमिकों (कंस्ट्रक्शन वर्कर्स) पर किए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि लॉकडाउन के बाद से 92.5 फीसदी मजदूर एक से तीन सप्ताह तक अपना काम खो चुके हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान गैर-सरकारी संगठन 'जन साहस फाउंडेशन' ने उत्तर और मध्य भारत के श्रमिकों के बीच टेलीफोनिक सर्वे से कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं। पहला इनमें 42 फीसदी मजदूरों ने बताया कि उनके पास दिनभर के लिए राशन नहीं बचा है। सर्वे में पता चला है कि अगर लॉकडाउन 21 दिनों से ज्यादा का रहा तो 66 फीसदी मजदूर एक सप्ताह से अधिक अपने घरेलू खर्चों का प्रबंध नहीं कर पाएंगे।
दूसरा: एक तिहाई मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन के चलते वो अभी भी शहरों में फंसे हैं, जहां उन्हें पानी, भोजन और पैसे की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। करीब आधे प्रवासी मजदूर पहले ही अपने गांवों का रुख कर चुके हैं। वहां वो विभिन्न चुनौतियों जैसे राशन और आय की कमी का सामने कर रहे हैं।
तीसरा: 31 फीसदी मजदूरों के पास कर्ज है और बिना रोजगार के इसे चुकाना खासा मुश्किल होगा। इसमें अधिकतर कर्ज उधारदाताओं का था। ये बैंकों से कर्ज लेने वाले मजदूरों की तुलना में तीन गुना है। सर्वे में सामने आया कि 79 फीसदी से अधिक कर्जदार ऐसे हैं जो निकट भविष्य में वापस भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। एक परेशान करने वाला तथ्य यह भी है कि 50 फीसदी के करीब जिन मजदूरों ने कर्ज लिया, उनके भुगतान की असमर्थता उन्हें किसी प्रकार की हिंसा के खतरे में डाल सकती है।
र्वे में शामिल 2655 मजदूरों ने बताया कि उन्हें रोजगार की कमी का सामना करना पड़ा है। 1527 ने बताया कि वो गांव लौटने की स्थिति में नहीं हैं। 2582 मजदूरों के घरों में राशन खत्म हो चुका है। इनमें 78 लोग स्कूल और कॉलेज की फीस भरने में सक्षम नहीं हैं। 483 लोग बीमारी का शिकार हैं। हालांकि सर्वे में 11 लोगों ने माना की उन्हें लॉकडाउन में किसी तरह की परेशानी नहीं हुई।
सर्वे में सामने आया कि 55 फीसदी श्रमिकों ने औसतन चार व्यक्तियों के परिवार वाले घर को आर्थिक समर्थन के लिए प्रति दिन 200-400 रुपए कमाए जबकि अन्य 39 फीसदी ने 400-600 रुपए प्रति दिन कमाए। इसका मतलब यह है कि इन मजदूरों में से अधिकांश न्यूनतम मजदूरी अधिनियम दायरे से भी नीचे हैं। बता दें कि दिल्ली के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी क्रमशः 692 रुपए, 629 रुपए और कुशल, अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए 571 रुपए है।