यूक्रेन में भारतीय छात्र की हत्या और विदेश में पढ़ाई को लेकर पीएम का बयान

Written by Navnish Kumar | Published on: March 2, 2022
मंगलवार सुबह यूक्रेन में भारतीय छात्र के जान गंवाने की खबर से पूरा देश दहल उठा है। यूक्रेन व रूस के बीच जारी खूनी जंग में मंगलवार को एक 21 साल के भारतीय छात्र की यूक्रेन के खारकीव में गोलीबारी के दौरान मौत हो गई है। इसकी जानकारी देते हुए विदेश मंत्रालय ने ट्वीट कर कहा है कि, गहरे दुख के साथ हम पुष्टि करते हैं, आज सुबह खारकीव में गोलाबारी में एक भारतीय छात्र की जान चली गई। मंत्रालय उनके परिवार के संपर्क में है। हम परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं। इस खबर के साथ पूरे देश की नजरें केंद्र सरकार पर आ टिकी हैं। 



भारतीय छात्र की पहचान कर्नाटक के हावेरी जिले के नवीन एसजी के रूप में हुई है। नवीन खारकीव में एमबीबीएस की चौथे साल की पढ़ाई कर रहे थे। दो दिनों पहले ही नवीन ने अपने पिता से वीडियो कॉल पर बात की थी। जानकारी में सामने आया है कि, नवीन खाने का सामान लेने बाहर निकले थे। तभी रूसी हवाई हमले में उनकी मौत हो गई। खारकीव में गोलाबारी के दौरान हुई भारतीय छात्र की मौत के बाद भारत ने कड़ा रूख अपनाते हुए इसकी निंदा की है और रूस व यूक्रेन के राजदूतों को तलब कर दिया है। साथ ही भारत ने खारकीव और संघर्ष वाले अन्य क्षेत्रों से भारतीयों को सुरक्षित मार्ग देने की मांग दोहराई है। इसी बीच विदेशों में पढ़ाई को लेकर प्रधानमंत्री द्वारा की गई टिप्पणी और एक केंद्रीय मंत्री का बयान भी वायरल हो रहा है जो सहानुभूति के साथ समस्या का हल तलाशने की बजाय विदेश में पढ़ने को लेकर छात्रों को नसीहत देने जैसा ज्यादा है तो कइयों को नागवार भी लगी है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये टिप्पणी कइयों को चुभने वाली लगी है कि भारतीय छात्र मेडिकल पढ़ने, छोटे देशों में जाते है। हालांकि उन्होंने ये बात निजी क्षेत्र के मेडिकल शिक्षा में निवेश की बढ़ाने जरूरत बताते हुए कही, लेकिन इस मुद्दे का मुख्य बिंदु इसमें गायब रहा। भारत में निजी क्षेत्र में मेडिकल और इंजीनियरिंग के कॉलेज बड़ी संख्या में हैं। लेकिन निजी क्षेत्र के उन कॉलेजों में पढ़ना सबके वश की बात नहीं है। खास कर मेडिकल शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि अब एक सामान्य परिवार के नौजवान के लिए डॉक्टर बनने का सपना देखना दूभर हो गया है। यूक्रेन जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई करने जाने की असली वजह यही है। 

यूक्रेन में भारतीय छात्रों की मुश्किल को समझते हुए अगर प्रधानमंत्री यह कहते कि अब सरकार नए मेडकिल कॉलेज बनाएगी, जिसमें पहले की तरह किफायती खर्च पर शिक्षा दी जाएगी, तो उसका खुले दिल से स्वागत किया जाता। तब समझा जाता है कि मौजूदा घटनाक्रम से सरकार ने सही सबक लिया है। लेकिन जिस रूप में उन्होंने बात कही, उसका उलटा संदेश गया है। खासकर उस समय बहुत से लोगों को ये बात चुभी है, जो यूक्रेन में फंसे या वहां से लौट रहे छात्रों की पीड़ा से व्यथित हैं।

यही नहीं, एक केंद्रीय मंत्री ने भी विवादित बयान दिया है। यूक्रेन रूस युद्ध पर बोलते हुए केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने एक विवादित बयान दे दिया। प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विदेश में पढ़ने वाले 90% मेडिकल स्टूडेंट नीट परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं। हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि अभी इस मुद्दे पर बहस करने का सही वक्त नहीं है। लेकिन बात इतनी-भर नहीं है। पीएम हों या मंत्री, भारत के हजारों छात्र हर वर्ष मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाते हैं तो आखिर क्यों? इस पर सोच-विचार की जरूरत है। भारत में निजी क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज बड़ी संख्या में हैं। लेकिन निजी क्षेत्र के उन कॉलेजों में पढ़ना सबके वश की बात नहीं है। बच्चे विदेश जाते हैं तो ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में मेडिकल की पढ़ाई विदेशों की अपेक्षा बहुत महंगी है।

यूक्रेन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर चुके छात्रों के मुताबिक, भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जहां एमबीबीएस के 5 वर्ष की पढ़ाई का खर्च 15 से 20 लाख रुपए आता है। वहीं निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रत्येक छात्र को एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के लिए 80 लाख से अधिक की राशि खर्च करनी पड़ती है। कई भारतीय प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में यह खर्च 1 करोड़ से भी अधिक है। यूक्रेन में बेहतरीन प्राइवेट मेडिकल कॉलेज सालाना करीब 5 लाख तक फीस वसूलते हैं, जिसके चलते यहां एमबीबीएस का पूरा कोर्स लगभग 25 से 30 लाख रुपये में पूरा हो जाता है।

यही नहीं, यूक्रेन में अधिकांश भारतीय छात्र चिकित्सा अध्ययन कर रहे हैं तो इसका एक कारण यह भी है कि यह  देश उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध है। यूक्रेन कथित तौर पर चिकित्सा में स्नातक और स्नातकोत्तर विशेषज्ञता की सबसे बड़ी संख्या रखने के लिए अपने महाद्वीप में चौथे स्थान पर है। 

युद्ध से इतर सामान्य दिनों में देखें तो यूक्रेन ही नहीं बल्कि रूस भी भारतीय छात्रों की एक बड़ी पसंद रहा है। खास तौर पर एमबीबीएस और बीडीएस की पढ़ाई करने वाले करीब 6 हजार मेडिकल छात्र हर वर्ष यूक्रेन जाते हैं। दरअसल भारत में करीब 8 लाख छात्र एमबीबीएस के लिए परीक्षा देते हैं लेकिन इनमें से महज 1 लाख छात्रों को ही भारतीय मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल पाता है। यही कारण है कि हर वर्ष हजारों की तादात में भारतीय छात्रों को यूक्रेन समेत अन्य देशों का रुख करना पड़ता है। भारत में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 88120 और बीडीएस की 27498 सीटें हैं। 

इस हिसाब से देखा जाए तो एमबीबीएस की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए भारतीय मेडिकल कॉलेजों में सीटों की उपलब्धता काफी कम है। स्वयं भारत सरकार के मुताबिक देश में सरकारी और निजी कॉलेजों में एमबीबीएस की कुल 88120 और बीडीएस की 27498 सीटें हैं और इनमें भी एमबीबीएस की सीटों में करीब 50% सीटें प्राइवेट कॉलेजों में हैं। नीट परीक्षा में शामिल होने वाले  छात्रों में से केवल 5% बच्चों को ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल पाता है।

यही नहीं, यूक्रेनी कॉलेजों को विश्व स्वास्थ्य परिषद द्वारा भी मान्यता प्राप्त है और डिग्री भारत में भी मान्य हैं क्योंकि भारतीय चिकित्सा परिषद भी उन्हें मान्यता देती है। यूक्रेनी मेडिकल डिग्री को पाकिस्तान मेडिकल एंड डेंटल काउंसिल, यूरोपियन काउंसिल ऑफ मेडिसिन और यूनाइटेड किंगडम की जनरल मेडिकल काउंसिल द्वारा भी मान्यता प्राप्त है। वहीं, भारतीय छात्र यूक्रेन को इसलिए भी चुनते हैं क्योंकि कई प्रसिद्ध मेडिकल स्कूल सीट प्रदान करने के लिए प्रवेश परीक्षा नहीं लेते हैं। जबकि भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए नीट एग्जाम पास करना होता है।

इसी से देखें तो यूक्रेन में संकट में फंसे भारतीय छात्रों के प्रति अतिरिक्त सहानुभूति की जरूरत है। यूक्रेन पढ़ाई के लिए गए भारतीय बच्चे अपने माता-पिता को वॉट्सऐप कॉल कर व वीडियो भेजकर आपबीती सुना रहे हैं। कई छात्रों ने कहा है कि यूक्रेन में एडमिशन कराने वाले एजेंटों व एजेंसियों ने भी उन्हें धोखे में रखा। ये छात्र दावा करते हैं कि घर लौटने पर एडमिशन रद्द करने की चेतावनी दी गई थी। ये कहानियां पीड़ादायक है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत लौटी एक छात्रा ने बताया कि एक दिन उसकी फ्लाइट कैंसिल हो गई। तब उसे कीव एयरपोर्ट पर घंटों भूखे रहना पड़ा। छात्रा ने कहा “मेरी खुशकिस्मती है कि मैं घर सुरक्षित लौट आई। यहां आने पर अब यूक्रेन की स्थिति के बारे में जो जानकारी मिल रही है, वह काफी डराने वाली है।” इसी से सरकार को इसके लिए उन छात्रों को दोषी ठहराने के बजाय कुछ वैसी बातें कहनी चाहिए, जिससे उन्हें और उनके परिजनों को राहत मिले।

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