रूस-यूक्रेन संकट से चिंतित दुनिया भर के देश

Written by Sabrangindia Staff | Published on: March 14, 2022
वर्तमान दुनिया के देश रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध का साक्षी बन रहे हैं. इतिहास गवाह है पहले भी युद्ध होते रहे हैं. हर देश, काल, परिस्थिति, हालात और क्षेत्र की वजह से सभी युद्ध के कारण और परिणाम भिन्न भिन्न रहे हैं. कभी जीवित रहने (survival) के लिए, कभी अन्य सूबों पर अधिग्रहण के लिए, कभी औपनिवेशिक ताकतों से स्वतंत्रता के लिए तो कभी साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए युद्ध होते रहे हैं. युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है. इसमें बेहिसाब मौतें होती है. मौत चाहे फौजियों की हो या आम नागरिकों की उसका परिणाम परिवार से लेकर समाज के एक बड़े तबके को भुगतना पड़ता है. 



रूस यूक्रेन युद्ध का आज 17 वां दिन है. पश्चिमी देश रूस को रोकने के लिए आर्थिक प्रतिबंध का एलान कर चुके है. युद्ध को लेकर अमेरिका और रूस की तीखी बयानबाजी तेज हो चुकी है. अमेरिका के राष्ट्रपति नें चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर रूस नें यूक्रेन में रासायनिक हथियार का इस्तेमाल किया तो वह इसकी गंभीर कीमत चुकाएगा. उन्होंने कहा कि नाटो के साथ अगर रूस की सीधी लडाई हुई तो तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है. वहीँ अमेरिका में रूस के राजदूत वेजली नेबेंजाया नें आरोप लगाया है कि अमेरिका की मदद से यूक्रेन में लगभग 30 बायोवेपन प्रोग्राम चलाया जा रहा है. यूक्रेन साजिशन चमगादड़ और पक्षियों के द्वारा रूस में बीमारयों के वायरस को फैलाना चाहता है. रूस नें इस मसले पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की बैठक भी बुलाई है हालाँकि अमेरिका नें इस बात से साफ़ इनकार किया है. 

विश्व युद्ध:
आधुनिक औद्योगिक सभ्यता में दुनिया दो विश्व युद्ध देख चुकी है जिसमें करोडो लोग मारे गए और समाज वर्षों पीछे चला गया. दुसरे विश्व युद्ध से लेकर सोवियत रूस के विघटन तक शीत युद्ध का दौर चलता रहा. आज दुनिया विश्वयुद्ध के अलावे शीत युद्ध, गृहयुद्ध, नस्ली नरसंहार, नक्सलवाद, आतंकवाद, समेत कई नाम से युद्ध का सामना कर रही हैं. पहले विश्व युद्ध में रासायनिक हथियारों का प्रयोग हुआ था जबकि दुसरे विश्व युद्ध में परमाणु हथियार का प्रयोग पहली बार किया गया. दुसरे विश्व युद्ध में अमेरिका नें जापान के हिरोसीमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम गिरा कर खुद को सर्वशक्तिमान  घोषित करने की तैयारी कर ली थी. आज अमेरिका के अलावे कई अन्य देश भी परमाणु हथियार संम्पन्न हो चुके हैं. दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध को रोकने का निवारक भी परमाणु हथियारों को माना जा रहा है. हालाँकि दुनिया लोहे के हथियार से परमाणु हथियार होते हुए बयोलोगिकल हथियार तक जा पहुंचा है जिससे युद्ध के तरीके और परिणाम में भयावहता बढ़ी है. अल्बर्ट आइन्स्टीन नें कहा है, “मुझे नहीं मालूम तीसरा विश्व युद्ध किन हथियारों से लड़ा जाएगा लेकिन चौथा विश्व युद्ध छड़ियों और पत्थरों के साथ लड़ा जाएगा.”

बात 24 फरवरी 2022 की है जब एक तरफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की बैठक चल रही थी और दूसरी तरफ रूस नें यूक्रेन पर हमला कर दिया. गौरतलब यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की उस बैठक की अध्यक्षता रूस ही कर रहा था जिसके द्वारा यूक्रेन पर हमला किया गया. उस बैठक में संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन के स्थायी प्रतिनिधि सर्गेई किसलित्सा नें एक भावुक अपील किया था कि, “रुसी राष्ट्रपति नें युद्ध की घोषणा कर दी है अब बैठक का कोई मतलब नहीं है.” वे लगातार दुसरे देशों से मदद की गुहार लगाते नजर आए. हाल के दिनों में अमेरिका समेत यूरोपीय देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंधों की राजनीति शुरू हो गयी जिसका बहुत अधिक असर होता नजर नहीं आ रहा है. इस हमले को लेकर संयुक्त राष्ट्र, नेटो और यूरोपीय संघ तीनों आज सवालों के घेरे में है.

संयुक्त राष्ट्र की भूमिका 
साल 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बाद दुनिया शांति चाहती थी. तब 50 देशों के प्रतिनिधियों ने मिलकर एक चार्टर पर हस्ताक्षर किए और एक नई अंतरराष्ट्रीय संस्था की नींव रखी गई, जिसे आज संयुक्त राष्ट्र कहते हैं. इसके छह अंग हैं, जिनमें से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ज़िम्मेदारी दुनिया में शांति और सुरक्षा बनाए रखने की है, जिसके लिए वो प्रभावित देशों में पीस कीपिंग फोर्स भेजते हैं. उम्मीद की गई कि यह संस्था पहले और दूसरे विश्वयुद्ध जैसा कोई तीसरा युद्ध नहीं होने देगी. लेकिन आज इस बात की सम्भावना तेज हो गयी है कि यूक्रेन-रूस का मामला अगर और अधिक दिनों बढ़ा तो तीसरे विश्व युद्ध होने की सम्भावना है. 

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद अपने बयान में कहा, " मानवता के नाम पर अपने सैनिकों को रूस वापस बुला ले. ऐसा कुछ शुरू ना करें जो इस सदी की शुरुआत से अब तक का सबसे ख़तरनाक युद्ध साबित हो.” इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र को गभीर पहल करनी जरुरी है.

नाटो (NATO) क्या है?
यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ही शांति बनाए रखने के लिए एक दूसरी संस्था भी बनी थी, जिसे नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नाटो कहते हैं. इसका गठन दूसरे विश्व युद्ध के चार साल बाद 1949 में हुआ था.
उस समय दुनिया में दो महाशक्तियाँ हुआ करती थीं एक अमेरिका और दूसरा सोवियत संघ. सदस्य देशों की सोवियत यूनियन से सुरक्षा के मक़सद से ही इसका गठन हुआ था. शुरुआत में नाटो के अमेरिका और कनाडा समेत 12 सदस्य देश थे. अभी नाटो के कुल 30 देश सदस्य हैं, जिसमें यूक्रेन शामिल नहीं है. यूक्रेन पर रूस के ताज़ा हमले की एक वजह नाटो का यही विस्तार माना जा रहा है.

आर्मीनिया में भारत के राजदूत रह चुके अचल मल्होत्रा कहते हैं, "पुतिन को लगता है कि नाटो का विस्तार और यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की कोशिश, रूस को घेरने के लिए हो रही है. रूस इस वजह से दोनों बातों को अपनी सुरक्षा के लिए ख़तरा मानते हैं."

"साल1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद माना जाने लगा था,कि नाटो जैसे संगठन का कोई औचित्य नहीं रह गया है. सोवियत संघ टूट कर 15 छोटे-छोटे देश में बिखर गया था. ऐसे में रूस का दावा है कि नाटो ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि वो अपना आगे विस्तार नहीं करेगा. इस भरोसे का कोई लिखित स्वरूप है या नहीं इस पर लंबे समय से विवाद चल रहा है. लेकिन हक़ीकत ये है कि नाटो का विस्तार हाल तक जारी रहा."

नाटो की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लात्विया, एस्टोनिया और लिथुआनिया 2004 में नाटो में शामिल हुए. क्रोएशिया और अल्बानिया नाटो में 2009 में शामिल हुए.

साल 2008 में यूक्रेन और जॉर्जिया के नाटो में शामिल होने की बात थी, लेकिन ऐसा हो ना सका.

इसका जिक्र करते हुए अचल मल्होत्रा कहते हैं, "साल 1991-2000 के बीच रूस का नेतृत्व पुतिन के मुक़ाबले तुलनात्मक रूप से कमज़ोर था. इसलिए नाटो के विस्तार को वो रोक नहीं पाए. पुतिन के आने के बाद रूस थोड़ा मज़बूत हुआ और जॉर्जिया को नाटो में शामिल होने की बात चली तो पुतिन ने इसका सख़्ती से विरोध किया. पहले रूस ने जॉर्जिया में सैन्य हस्तक्षेप किया और अब यूक्रेन पर हमला किया है."

वो आगे कहते हैं, " नाटो उस वक़्त भी जॉर्जिया के बचाव के लिए सामने नहीं आया था, जबकि जॉर्जिया के संबंध सदस्य देशों से काफ़ी अच्छे थे. इस बार भी नाटो अपने सैनिकों को यूक्रेन भेजने का इरादा नहीं रखता. ये बात साफ़ कर दी गई है."
दरअसल नाटो के सैनिक तभी इस तरह के युद्ध में जाते हैं जब जंग में उसके सदस्य देश शामिल हों. ये भी सच है कि नाटो ने यूक्रेन की सैन्य शक्ति बढ़ाने की दिशा में काफ़ी मदद की है.

जानकार ये भी कह रहे हैं कि अगर नाटो ने रूस और यूक्रेन की जंग में यूक्रेन का साथ दिया, तो मामला ज़्यादा बिगड़ सकता है. हालात तीसरे विश्व युद्ध तक भी पहुँच सकता हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रूस को दी गयी चेतावनी इस ओर इशारा करती है. 

यूरोपीय संघ
संयुक्त राष्ट्र और नाटो के साथ-साथ यूरोपीय देशों का एक और समूह है, यूरोपीय संघ. इस समूह के कुल 27 सदस्य हैं, जिनमें से 21 देश, नाटो में भी शामिल हैं. अमेरिका और ब्रिटेन यूरोपीय संघ के सदस्य नहीं है. जर्मनी, फ्रांस और इटली इसके सदस्य हैं. रूस यूक्रेन क्राइसिस में इस संघ का ज़िक्र भी काफ़ी बार हो रहा है. ये साल 1958 में सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि आर्थिक मदद के लिए बनाया गया मंच है. यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोपीय संघ की तरफ़ से रूस पर काफ़ी बड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं. इनमें वित्तीय सेक्टर, ऊर्जा, परिवहन और रूस के शासन से जुड़े अभिजात्य वर्ग के वीज़ा पर भी प्रतिबंध लगाने की बात है.

माना जा रहा है कि प्रतिबंधों के कारण रूस की तेल रिफाइनरी के लिए तकनीक और एयरक्राफ़्ट के लिए स्पेयर पार्ट्स की ख़रीद असंभव हो जाएगी और रूस आर्थिक रूप से दुनिया के दूसरे देशों से कट सकता है. कनाडा के प्रधानमंत्री  नें G-7 देशों से रूस को अलग-थलग करने की बात कही है. अमेरिकी राष्ट्रपति नें रुसी शराब, सी फूड और हीरे के आयात पर बैन लगाने का एलान कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि रूस-यूक्रेन के इस जंग में 25 लाख लोगों नें देश छोड़ दिया है जिससे यूरोप में दुसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा शरणार्थी संकट खड़ा हो गया है. 

फिलहाल रूस यूक्रेन संकट दुनिया भर के देशों के लिए चिंता का विषय है. युद्ध किसी भी देश में हो उससे प्रभावित दुनिया के लगभग सभी देश होते हैं. युद्ध तबाही का मंजर दिखा रहा है जो निश्चित तौर पर साम्राज्यवादी मंसूबों की उपज है. संसाधनों पर अधिग्रहण की भूख नें दुनिया को कई बार युद्ध का सामना करवा दिया है. यूक्रेन के राष्ट्रपति नें रूस द्वारा किए जा रहे इस हमले को नरसंहार कहा है. दुनिया जब कोरोना वायरस और जलवायु परिवर्तन के कारण उपजे अनिश्चित आपदा से जूझ रहा है ऐसे वक्त में युद्ध के ये हालात मानवीय मूल्यों तक को कुरेदता है. दुनिया भर में युद्ध की सी यह स्थिति तब तक बने रहेंगे जब तक साम्राज्यवादी सोच बाजारवादी नजरिए को अपनाकर मुनाफे की ताक में रहेगा. 

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