भू-राजनीतिक महत्व के देश अफ़गानिस्तान के साथ संबंध को लेकर असमंजस में भारत

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: July 24, 2021
अफगानिस्तान भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है. यह देश दुनिया भर में खास कर दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक महत्व रखता है जिसकी वजह से यह सभी देशों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर अफगानिस्तान में वर्तमान में अमेरिकी सेना के हटाए जाने की घोषणा हो चुकी है. इस देश की सरकारी सेना और तालिबान के बीच सशस्त्र संघर्ष बदस्तूर जारी है. ख़बरों के मुताबिक़ लगातार चल रहे इस संघर्ष द्वारा तालिबानियों नें अफगानिस्तान के कई महत्वपूर्ण सीमाओं और शहरों पर कब्ज़ा कर लिया है जिसमें कई लोग मारे जा चुके हैं. इस बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि सरकार तालिबानी हमले और क्रूरता के ख़िलाफ़ आखरी साँस तक लड़ेगी. देश के सैनिकों और सुरक्षा बल का हौसला अफजाई करते हुए उन्होंने कहा कि “हमारा लक्ष्य है अफगानिस्तान की रक्षा करना, देश की आजादी, समानता और 20 साल की उपलब्धि को बचाए रखना. हम दुश्मनों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे. अफगानिस्तान सभी अफगानियों का घर है और आप सभी में यह क्षमता है कि आप दुनिया को अपनी ताकत का लोहा मनवा सकते हैं.”



गौरतलब है कि अफगानिस्तान आतंरिक संकट से गुजर रहा है. अमेरिका द्वारा जब से अफगानिस्तान से सेना हटाने की बात हुई है तब से भारत की दिक्कते बढ़ गयी हैं. 11 सितम्बर तक अमेरिका ने अफगानिस्तान की भूमि से अपने सेना को वापस बुला लेने का लक्ष्य रखा है. अमेरिकी सेना के हटते ही संभव है कि तालिबान का कब्ज़ा अफगनिस्तान के अधिकांश क्षेत्रों पर हो जाए. भारत अफगानिस्तान की सरकार को जनता का प्रतिनिधि मानती रही है और उनके साथ मिलकर इस देश के उत्थान के लिए कई परियोजनाएं चला रही है. भारत तालिबान को एक आतंकी संगठन की तरह देखती है. भारत नें अफगानिस्तान के विकास के लिए कई काम किए हैं जिसमें अफगानिस्तान की संसद के निर्माण से लेकर, सड़कें, नहर, स्कूल सहित कई परियोजनाएं शामिल है. यह सभी काम भारत ने अफगानिस्तान सरकार के साथ  मिलकर किया है लेकिन आज के हालात में अफगानिस्तान में फंसे हिन्दुस्तानियों के सुरक्षित भारत में लौटने के इंतजाम  सरकार द्वारा किए जा रहे हैं. 

तालिबान भारत सम्बन्ध 
यद्धपि तालिबान साम्राज्यवादी हितों को साधने के लिए बनाया गया औज़ार था लेकिन बाद के दशक में यह तमाम साम्राज्यवादी देशों के लिए ही ख़तरा साबित हुआ. 1996 से 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व था उस समय भारत नें काबुल से अपने रिश्ते ख़त्म कर लिए थे. अमेरिकी सेना के हस्तक्षेप के बाद अफगानिस्तान में हामिद करजई की सरकार का गठन हुआ जिसके बाद भारत भी अफगानिस्तान की भूमि पर सक्रिय हुआ. बात साल 1999 की है जब भारत के एक यात्री विमान का अपहरण हुआ था और उसे अफ़गानिस्तान के कांधार एयरपोर्ट पर ले जाया गया था. ये इलाका उस समय तालिबान के नियंत्रण में था इसलिए तालिबान ही अपहरणकर्ता और भारत सरकार के बीच मध्यस्थता कर रहा था. यह पहला मौका था जब भारत की सरकार ने तालिबान के साथ कोई संपर्क बनाया हो. इसके बाद भी भारत सरकार और तालिबान के बीच कोई औपचारिक संपर्क नहीं रहा. वर्तमान में अफगानिस्तान की सेना और तालिबान के बीच भीषण संघर्ष चल रहा है अगर यह हालत शांति समझौता की तरफ़ नहीं बढ़ता है तो पहले से बर्बाद इस देश की अर्थव्यवस्था बदतर हो जाएगी. 

अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का नियंत्रण दुनिया भर के साथ-साथ भारत के लिए भी चिंता का सबब है. पिछले दो दशकों में भारत द्वारा अफगानिस्तान के विकास में अलग अलग परियोजनाओं में 22 हजार करोड़ का निवेश किया गया है. सिर्फ़ 2020 में ही भारत नें अफ़गानिस्तान में 150 नई परियोजनाओं की घोषणा की थी. अमेरिकी सेना के आगमन के बाद से बीते दो दशक में भारत नें इस देश में भारी निवेश किया है. भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार भारत द्वारा अफगानिस्तान में छोटे बड़े कुल मिलाकर 400 से अधिक प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं.

अफगानिस्तान में भारत द्वारा चलायी गयी बड़ी परियोजनाएं 
    अफ़गानिस्तान में भारत द्वारा चलाए गए सबसे प्रमुख प्रोजेक्ट में काबुल में बनाए गए अफगानिस्तान की संसद है, जिसके निर्माण में भारत नें लगभग 675 करोड़ रूपये ख़र्च किए हैं. इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में किया था. इस संसद में एक ब्लॉक भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर भी है. भारत अफगान मैत्री को दोनों देशों द्वारा ऐतिहासिक बताया गया था. 

    अफगानिस्तान में सलमा डेम हैरात प्रांत में 42 मेगावाट का हाईड्रोपॉवर प्रोजेक्ट है. इसका उद्घाटन 2016 में हुआ था. हैरात प्रांत में भी पिछले कुछ हफ़्तों से अफगान सेना और तालिवान के बीच भारी जंग चल रही है. खबर है कि डेम की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा कर्मियों की हत्या तालिबान के द्वारा कर दी गयी है और इस क्षेत्र पर अब तालिबान का कब्ज़ा है.

    भारतीय सीमा सड़क संगठन ने अफ़गानिस्तान में 218 किलोमीटर लम्बा हाईवे भी बनाया है. इरान की सीमा के पास जारांज से लेकर डेलाराम तक इस हाईवे पर 15 करोड़ डालर ख़र्च हुए हैं. यह हाईवे इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये अफगानिस्तान में भारत को इरान के रास्ते एक वैकल्पिक मार्ग देता है. इस हाइवे के निर्माण कार्य में भारत के 11 लोगों को जान भी गंवानी पड़ी थी. इस हायवे प्रोजेक्ट के अलावा भी भारत कई सड़क परियोजनाओं में निवेश कर चुका है. अगर इस हाईवे पर तालिबान का नियंत्रण हो जाता है तो यह भारत के लिए हानिकारक साबित होगा.  

अफगानिस्तान की बदलती हुई राजनीतिक परिदृश्य और बढ़ती अस्थिरता ने काबुल के साथ भारत के सम्बन्ध को असमंजस में डाल दिया है. काबुल में राजनीतिक स्थिरता बनी रहे यह भारत-अफगान नीति की पहली शर्त है. भारत हिंसा और अतिक्रमण के ख़िलाफ़ बोलता रहा है हाल के दिनों में भारतीय विदेश मंत्री ने तालिबान द्वारा की गयी हिंसा की आलोचना की है और कहा है कि दुनिया हिंसा और बल प्रयोग के जरिये कब्ज़ा करने के विरुद्ध है इस तरह के कदम को वैधता नहीं दी जानी चाहिए. तालिबान से जारी संघर्ष के बीच अफगानिस्तान के सेना प्रमुख जनरल मोहमद अहमद जई भारत दौरे पर आ रहे हैं इस यात्रा को अहम् माना जा रहा है वहीँ तालिबान चाहता है कि भारत मौजूदा काबुल प्रशासन का समर्थन नहीं करे. ऐसे हालत में भारत का अफगानिस्तान नीति को लेकर असमंजस में पड़ना लाजिमी है. अफगानिस्तान में चाहे जो भी गुट सत्ता में आए अफगानिस्तान में शांति और विकास मानवाधिकार की रक्षा और राजनीतिक स्थिरता से ही संभव है और यही भारत को असमंजस से बहार निकलने की कुंजी भी है.

बाकी ख़बरें