असम एनआरसी की सूची में नहीं भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के परिवार के सदस्यों का नाम

Written by Zamser Ali | Published on: August 9, 2018
30 जुलाई 2018 को असम एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट जारी होने के बाद असम में लाखों लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस ड्राफ्ट में भारत के पूर्व राष्ट्रपति और असम विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर को बाहर कर दिया गया था। अब एक स्वतंत्रता सेनानी पुरण बहादुर छेतरी के परिवार को रहस्यमयी तरीके से एनआरसी की सूची से बाहर कर दिया गया है। 



पुरन बहादुर छेतरी स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय सेना के सदस्य थे। साल 1925 में जोगत बहादुर  छेतरी और उनकी पत्नी के घर पर पुरन बहादुर छेतरी का जन्म  हुआ। इसके बाद वे यहां से अविभाजित कामरुप जिले (वर्तमान में बक्सा जिला)  में बस गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान शुभाष चंद्र बोस ने जब आजाद हिंद फौज की बुनियाद रखी तो 17 वर्षीय छेतरी का दिल उत्तेजित हो गया और जापान जाने के लिए घर से भाग गया जिससे वह आजाद हिंद फौज में शामिल हो सके। इसके बाद वह बाल सेना में शामिल होने वाले पहले युवक थे, उस समय उम्र सीमा 18 वर्ष नहीं थी। इसके बाद धीरे-धीरे उनकी रैंक बढ़ती गई। आजाद हिंद फौज की ओर से जारी यह उनका पहचान पत्र है-



छेतरी बोस से बहुत प्रेरित थे और आने वाले सालों में भाग्यशाली थे कि उन्हें बोस का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन मिलता रहा। छेतरी ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ी और बर्मा (अब म्यामंर) के रंगून में उन्हें कैद भी किया गया था। बर्मा में साल 1824 से 1948 तक ब्रिटिश शासनकाल रहा। 1885 में एंग्लो-बर्मी युद्ध के दौरान बर्मा के नुकसान के एक साल बाद बर्मा को 1886 में ब्रिटिश भारत का प्रांत बनाया गया था। लेकिन 1937 में बर्मा को ब्रिटिश भारत से अलग करके स्वतंत्र रुप से प्रशासित प्रांत घोषित किया गया था। 



ध्यान रखने योग्य  बात यह है कि 1937 से पहले बर्मा और भारत को दक्षिण एशिया में अंग्रेजों द्वारा कब्जे वाले बड़े क्षेत्र का हिस्सा माना जाता था और ब्रिटिश भारत के व्यापक क्षेत्र में रहना और यात्रा करना लोगों के लिए आम बात थी। 

ब्रिटिश कैद से रिहा होने के बाद पूरण बहादुर छेतरी ने गोरखा महिला माया से शादी की और म्यांमार के ग्रामीण इलाके में अपना जीवन शुरु किया लेकिन उसका दिल अपनी मातृभूमि लौटने के लिए उत्सुक था। उन्होने मदद के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सहयोगी ऑळ बर्मा इंडियन कांग्रेस से संपर्क किया। चूंकि म्यांमर और भारत दोनों अंग्रेजों से आजादी के लिए लड़ रहे थे इसलिए ऑल बर्मा इंडियन कांग्रेस ने भारतीय अधिकारियों को भारत में स्थानांतरित करने के अपने अनुरोध को आगे बढ़ाया। इसके बाद वह अपनी पत्नी, दो बेटों और तीन बेटियों के साथ भारत लौट आए। 

उन्होंने पहाड़पुर गांव में रहना शुरू किया जो बक्सा जिले के तमुलपुर पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह गांव भूटान सीमा के बहुत करीब स्थित है और छेतरी का घर सीमा से केवल दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित है। छेतरी का परिवार यहां शांति से रह रहा था और इस गांव में पूरण बहादुर छेतरी ने साल 1967 में अंतिम सांस ली। 


यहां पुरन बहादुर छेतरी के कुछ पुराने भारतीय और बांग्लादेशी पुरान दस्तावेज दिए गए हैं। जबकि कुछ पहचान के दस्तावेज हैं, अन्य प्रमाण पत्र और जन्म और टीकाकरण आदि के रिकॉर्ड्स हैं-






अत्यधित सम्मानित स्वतंत्रतता सेनानी से ताल्लुक रखने के बावजूद छेतरी के परिवार के सदस्यों का नाम एनआरसी की सूची से बाहर है। 

उनकी विधवा पुरन माया छेत्री गुस्से में हैं। वह पूछती हैं कि सभी वैध दस्तावेज जमा करने बाद भी अगर मेरे परिवार के सदस्यों का नाम एनआरसी सूची में नहीं है तो क्या कहना बाकि है। 



पुरन बहादुर छेतरी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था और इसलिए जन्म से वह भारती नागरिक हैं। वह एक स्वतंत्रता सेना थे जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़े और यहां तक की इसके लिए जेल भी गए। फिर भी पुरण बहादुर छेतरी के परिवार के सदस्यों को 30 जुलाई 2018 को जारी एनआरसी सूची में शामिल नहीं किया गया है। छेतरी के परिवार के साथ लोगों को एनआरसी से बाहर रखा गया है जिनमें दो बच्चे भी शामिल हैं जिनमें से एक ने अभी तक चलना कैसा है ये भी नहीं सीखा है। 

 

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