"हुनूज दिल्ली दूर अस्त"

Written by Girish Malviya | Published on: January 25, 2019
प्रियंका गाँधी को कांग्रेस का पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया है. कांग्रेसी अभी इस नियुक्ति के हैंगओवर के शिकार हैं. उन्हें लगता है कि प्रियंका के आते ही उत्तर प्रदेश में इंकलाब आ जाएगा लेकिन जितना आंका जा रहा है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस उससे भी अधिक कमजोर है.... कांग्रेसियों को होश की दवा की बेहद जरूरत है साल 2014 के आम चुनाव में कुल 543 में से कांग्रेस को मात्र 44 सीटें मिलीं थी यह विपक्ष का नेता चुनने के लिए भी पर्याप्त नही थी.



उत्तर प्रदेश में 80 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की बात करने वाली कांग्रेस को शायद यह याद नहीं है कि पिछले 5 लोकसभा चुनाव में वह यूपी में सभी 80 सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतार रहे हैं . पिछले दो लोकसभा चुनावों में उसे प्रत्याशी ढूंढे नहीं मिल रहे थे.

2014 में कांग्रेस ने 66 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन केवल दो ही सीटें जीत पाईं, 50 सीटों पर तो प्रत्याशियों के जमानत जब्त हो गयी,  केवल 14 प्रत्याशी ही ऐसे रहे जो अपनी जमानत बचा सके..80 सीटों पर चुनाव लडऩे का कांग्रेस भले ही दावा करे लेकिन जमीनी हकीक़त यह है कि उसकी हैसियत 60 से ज्यादा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की है ही नहीं......पिछली बार 66 सीटो पर लड़ने के बाद सिर्फ 6 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर आ पायी ओर इन सभी सीटों पर हार जीत का बड़ा अंतर था

इनके जो प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर है वह 2014 का चुनाव 5 लाख वोटो से अधिक से हारे है 2014 के उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोटों से हार का यह रिकॉर्ड था ...........जबकि इनके वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी स्मृति ईरानी से सिर्फ 1,07,903 वोटों से जीत पाए थे........... इनके दिग्गज कहे जाने नेताओं की हालत तो ओर भी खस्ता थी बाराबंकी से पी एल पुनिया 2,11,000 वोटों से हारे थे तो कानपुर से श्री प्रकाश जयसवाल 2,22,000 वोटों से चुनाव हारे थे. वहींं लखनऊ से राजनाथ सिंह के सामने रीता बहुगुणा 2,72,000 वोटों से चुनाव हारी थींं.

आपको याद दिला दू कि 2014 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मात्र 7.5 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि जिनके सामने यह ताल ठोक रहे है उस भाजपा को 42.63 प्रतिशत मतदाताओं का वोट मिला था राज्य की 80 संसदीय सीटों में से 73 पर भाजपा गठबंधन को जीत मिली. 2014 के लोक सभा चुनाव में सपा को 22.35 प्रतिशत वोटों मिला लेकिन वह महज पांच सीटों पर जीत ही जीत पाई बसपा का प्रतिशत तो 19.77 रहा लेकिन उसे एक भी संसदीय सीट पर जीत नहीं हासिल हो सकी.

हालांकि इस बीच गंगा में बहुत सा पानी बह गया है. मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के राज्य चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन कर अपने कार्यकर्ताओं, समर्थकों के बीच उत्साह का संचार ज़रूर किया है लेकिन उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का जनाधार पूरी तरह से सिमटा हुआ है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उत्तर प्रदेश में स्थानीय स्तर पर कोई बड़ा नेता नही है जो सबको साथ लेकर चल सके और जो छोटे-छोटे नेता हैं उनको बड़ा बनाने के लिए पार्टी ने कुछ नहीं किया. कांग्रेस को अपनी स्थिति में व्यापक सुधार करने के लिए मजबूत संगठन की आवश्यकता है. 80 सीटों के एक एक बूथ पर बूथ स्तर के कार्यकर्ताओ की जरूरत है. जिसके सिर्फ अभी सपने ही देखे जा सकते है इसलिए चतुराई के साथ प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की ही जिम्मेदारी दी गयी है जहाँ कांग्रेस को थोड़ा बहुत मजबूत माना जा रहा है.

कांग्रेस सिर्फ मोदी की नाकामी के भरोसे ही उम्मीद लगा कर बैठी हुई है. ओर सच तो यह है कि दूसरों की नाकामी पर अपनी बुलंदियों के सपने देखना बेवकूफी से कम नही है.

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