VFD के विशेषज्ञ माधव देशपांडे बताते हैं कि अब जब हमारे पास मतदाता सूची में व्यापक हेरफेर का स्पष्ट और ठोस सबूत है (जिसे देशपांडे ‘वोट चोरी’ बताते हैं), तब भी हमें यह सोचने की गलती नहीं करनी चाहिए कि ईवीएम की विश्वसनीयता पर कोई सवाल नहीं है।

कंप्यूटर साइंस के क्षेत्र में चार दशक का अनुभव रखने वाले और ओबामा प्रशासन में सलाहकार रह चुके माधव देशपांडे ने 'वोट फॉर डेमोक्रेसी (VFD)' के साथ एक विशेष संवाद में नागरिकों को चेतावनी दी है कि वे ईवीएम में हेरफेर (जिसे वे ‘वोट हाइजैक’ कहते हैं) के मुद्दे को नजरअंदाज न करें। 16 अगस्त को बेंगलुरु में नागरिक कार्यकर्ताओं के साथ हाल ही में हुई बातचीत में देशपांडे ने इस प्रक्रिया को विस्तार से समझाया और कहा कि इस प्रक्रिया के तीनों हिस्से संदेहास्पद और समझौता किए हुए हैं: मतदाता सूची (इलेक्टोरल रोल), मतदान के दिन ईवीएम और मतगणना के दिन ईवीएम।
ये तीनों हिस्से एक-दूसरे से अलग नहीं हैं; ये एक साथ मिलकर काम करते हैं और डकैती (= चोरी + हाइजैक) के प्रभाव को और बढ़ा देते हैं।
डेटा की विश्वसनीयता और सुरक्षा के प्रबल समर्थक माधव देशपांडे ने यहां विस्तार से समझाया है कि किस प्रकार पूरा इलेक्ट्रॉनिक चुनाव चक्र “दोषपूर्ण डेटा द्वारा ही गड़बड़” हो गया है। उन्होंने मतदाताओं और नागरिकों से यह भी आग्रह किया कि वे वोटों की वास्तविक संख्या के स्थान पर “प्रतिशत” आधारित मतदान के जरिए की गई गुमराह करने वाली प्रस्तुति (obfuscation) को नजरअंदाज न करें।
डायग्राम 1: आंकड़ों का विश्लेषण

एक विस्तृत और रचनात्मक प्रस्तुति में देशपांडे ने यह स्पष्ट किया कि किसी इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया को "ताले और चाबी" जैसी मैनुअल विधियों से सुरक्षित करना नाकाफी और अप्रभावी है, ठीक वैसे ही जैसे यह बहस बेबुनियाद है कि "क्या मशीन कभी गलत हो सकती है या नहीं", या यह साबित करने की कोशिश कि "मशीन कभी गलती नहीं करती।" मतदाताओं, नागरिक समूहों, मीडिया तथा सभी हितधारक राजनीतिक दलों का ध्यान अब इस बात पर केंद्रित होना चाहिए कि डेटा की विश्वसनीयता (data integrity) को कैसे साबित किया जाए।
अब, डेटा विश्वसनीयता साबित करने का मतलब है यह प्रमाणित करना कि पूरी प्रक्रिया में डेटा अपनी पूरी यात्रा के दौरान कहीं भी बदला नहीं गया है। भारत की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम में वोटिंग डेटा पाथ (Voting Data Path) इस तरह है: बैलेट यूनिट (BU), काउंटिंग यूनिट (CU), वीवीपैट (VVPAT), और आखिर में वापस काउंटिंग यूनिट (CU)।
संपूर्ण डेटा की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने को लेकर देशपांडे कहते हैं कि यह इलेक्ट्रॉनिक रूप से साबित किया जाना चाहिए कि बैलेट यूनिट (BU) में बटन दबाने से दर्ज हुआ डेटा, काउंटिंग यूनिट (CU) की दोनों प्रतियों में मौजूद डेटा और वीवीपैट (VVPAT) में दर्ज डेटा, तीनों पूरी तरह समान हों।
चूंकि मतदान की गोपनीयता सर्वोपरि है, हर अगला डेटा एलिमेंट (यानी प्रत्येक वोट) सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। इसलिए, प्रत्येक बैलेट यूनिट (BU), काउंटिंग यूनिट (CU) और वीवीपैट (VVPAT) में एक प्रगतिशील चेकसम या हैशसम (जैसे CRC, MD5 या MD6) लिया जाना चाहिए। यह चेकसम प्रिंट किया जाए और मतदान के दिन के आखिर में प्रत्याशियों को सौंपा जाए।
FORM 17, जो पहले पेपर बैलट के लिए था, अब की इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली में नगण्य हो गया है। अब जरूरत है कि इलेक्ट्रॉनिक बैलट के लिए चेकसम/हैशसम अपनाया जाए। मतगणना से पहले, यह चेकसम दोबारा जेनरेट किया जाए और उसे मतदान के दिन के आखिर में बनाए गए EoD (End of Day) चेकसम से मिलाया जाए ताकि यह प्रमाणित किया जा सके कि मतदान समाप्ति के बाद से डेटा में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
डायग्राम 2: आंकड़ों की विश्वसनीयता

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बीच कोई पेयरिंग नहीं होती, तो फिर हम कैसे समझें कि मौजूदा ईवीएस (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम) में किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाया गया है? और हम कैसे जान पाएं कि डेटा की विश्वसनीयता भी खत्म हो चुकी है, जिसका मतलब है कि हर मतदाता का वोट, हर मतपत्र की गोपनीयता और विश्वसनीयता भी खतरे में है?
देशपांडे ने बताया है कि मतदान प्रक्रिया के प्रत्येक चरण पर एक इलेक्ट्रॉनिक सेफ्टी लॉक यानी चेकसम/हैशसम होना चाहिए, जिसका प्रमाण मतदान समाप्ति पर और मतगणना शुरू होने पर हर प्रत्याशी को दिया जाना अनिवार्य है।
अब, वे बताते हैं कि और भी कई कदम उठाने की आवश्यकता है। नीचे दिया गया डायग्राम 3 यह बताता है कि फर्जी मतदाता, डुप्लीकेट मतदाता और काल्पनिक मतदाता (ghost voters) जो फर्जी पता इस्तेमाल करते हैं, उनसे निपटा जा सकता है। इसके लिए सिस्टम को मतदान स्थल के अंदर मतदाता को प्रवेश देने से पहले, आधार जैसी बायोमेट्रिक्स और पता डेटाबेस का इस्तेमाल एक स्वतंत्र पीसी के माध्यम से करना होगा।
दूसरा, वीवीपैट यूनिट, काउंटिंग यूनिट (CU) और बैलेट यूनिट (BU) को एक-दूसरे के साथ ‘पेयर’ किया जाना आवश्यक है। अगर पहले सुझाए गए ‘इलेक्ट्रॉनिक लॉकिंग’ (चेकसम/हैशसम) की प्रक्रिया लागू की जाती है और इसके बाद ये यूनिट्स ‘पेयर’ कर दी जाती हैं, तो सिस्टम पूरी तरह सुरक्षित बन जाता है।
यदि ऐसा नहीं किया गया तो मतदान के दिन और मतगणना के दिन के बीच में, CU को आसानी से बदल दिया जा सकता है; यानी असली CU की जगह दूसरे CU को रखा जा सकता है जिसमें भरे हुए वोट हो सकते हैं। और भी बुरी बात यह है कि वोटों को परिणाम और सत्यापन के लिए दो अलग-अलग मेमोरी स्टोर्स से “गिना” जा सकता है।
डायग्राम 3: स्वतंत्रता की मूल भावना है उसकी विशिष्टता


विशेषज्ञ माधव देशपांडे के शब्दों में, “स्वतंत्रता में शामिल कई तत्वों में से, समानता और विशिष्टता दो महत्वपूर्ण और अहम पहलू हैं।”
जब किसी के पास कोई डुप्लीकेट होता है, तो उसकी विशिष्टता खत्म हो जाती है। मान लीजिए मेरे नाम का एक डुप्लीकेट वोटर आईडी कार्ड है। और मान लीजिए भारत में केवल दो ही राजनीतिक पार्टियां हैं। मैं बीजेपी को वोट देता हूं, जबकि दूसरा डुप्लीकेट वोट कांग्रेस को।
अब मेरी वोट का कोई असर नहीं रह जाता, क्योंकि दोनों पार्टियों को मेरे नाम पर एक-एक वोट मिलता है। दूसरे शब्दों में, मेरी लोकतांत्रिक मूल्य शून्य हो जाती है। मैं पूरी तरह से हाशिए पर चला जाता हूं। यानी, मेरी कोई अहमियत नहीं रह जाती। यह सिर्फ डरावना ही नहीं है, बल्कि हम में से हर एक के लिए अपमानजनक भी है।
माधव देशपांडे का आह्वान है कि, “हम में से हर वह व्यक्ति जो स्वतंत्रता को महत्व देता है, उसे इस हाशिए पर डालने के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। यह किसी भी राजनीतिक पार्टी का मामला नहीं है।”
यदि आप स्वतंत्रता को महत्व देते हैं, तो आप इसके खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे।
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ये तीनों हिस्से एक-दूसरे से अलग नहीं हैं; ये एक साथ मिलकर काम करते हैं और डकैती (= चोरी + हाइजैक) के प्रभाव को और बढ़ा देते हैं।
डेटा की विश्वसनीयता और सुरक्षा के प्रबल समर्थक माधव देशपांडे ने यहां विस्तार से समझाया है कि किस प्रकार पूरा इलेक्ट्रॉनिक चुनाव चक्र “दोषपूर्ण डेटा द्वारा ही गड़बड़” हो गया है। उन्होंने मतदाताओं और नागरिकों से यह भी आग्रह किया कि वे वोटों की वास्तविक संख्या के स्थान पर “प्रतिशत” आधारित मतदान के जरिए की गई गुमराह करने वाली प्रस्तुति (obfuscation) को नजरअंदाज न करें।
डायग्राम 1: आंकड़ों का विश्लेषण

एक विस्तृत और रचनात्मक प्रस्तुति में देशपांडे ने यह स्पष्ट किया कि किसी इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया को "ताले और चाबी" जैसी मैनुअल विधियों से सुरक्षित करना नाकाफी और अप्रभावी है, ठीक वैसे ही जैसे यह बहस बेबुनियाद है कि "क्या मशीन कभी गलत हो सकती है या नहीं", या यह साबित करने की कोशिश कि "मशीन कभी गलती नहीं करती।" मतदाताओं, नागरिक समूहों, मीडिया तथा सभी हितधारक राजनीतिक दलों का ध्यान अब इस बात पर केंद्रित होना चाहिए कि डेटा की विश्वसनीयता (data integrity) को कैसे साबित किया जाए।
अब, डेटा विश्वसनीयता साबित करने का मतलब है यह प्रमाणित करना कि पूरी प्रक्रिया में डेटा अपनी पूरी यात्रा के दौरान कहीं भी बदला नहीं गया है। भारत की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम में वोटिंग डेटा पाथ (Voting Data Path) इस तरह है: बैलेट यूनिट (BU), काउंटिंग यूनिट (CU), वीवीपैट (VVPAT), और आखिर में वापस काउंटिंग यूनिट (CU)।
संपूर्ण डेटा की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने को लेकर देशपांडे कहते हैं कि यह इलेक्ट्रॉनिक रूप से साबित किया जाना चाहिए कि बैलेट यूनिट (BU) में बटन दबाने से दर्ज हुआ डेटा, काउंटिंग यूनिट (CU) की दोनों प्रतियों में मौजूद डेटा और वीवीपैट (VVPAT) में दर्ज डेटा, तीनों पूरी तरह समान हों।
चूंकि मतदान की गोपनीयता सर्वोपरि है, हर अगला डेटा एलिमेंट (यानी प्रत्येक वोट) सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। इसलिए, प्रत्येक बैलेट यूनिट (BU), काउंटिंग यूनिट (CU) और वीवीपैट (VVPAT) में एक प्रगतिशील चेकसम या हैशसम (जैसे CRC, MD5 या MD6) लिया जाना चाहिए। यह चेकसम प्रिंट किया जाए और मतदान के दिन के आखिर में प्रत्याशियों को सौंपा जाए।
FORM 17, जो पहले पेपर बैलट के लिए था, अब की इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली में नगण्य हो गया है। अब जरूरत है कि इलेक्ट्रॉनिक बैलट के लिए चेकसम/हैशसम अपनाया जाए। मतगणना से पहले, यह चेकसम दोबारा जेनरेट किया जाए और उसे मतदान के दिन के आखिर में बनाए गए EoD (End of Day) चेकसम से मिलाया जाए ताकि यह प्रमाणित किया जा सके कि मतदान समाप्ति के बाद से डेटा में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
डायग्राम 2: आंकड़ों की विश्वसनीयता

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बीच कोई पेयरिंग नहीं होती, तो फिर हम कैसे समझें कि मौजूदा ईवीएस (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम) में किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाया गया है? और हम कैसे जान पाएं कि डेटा की विश्वसनीयता भी खत्म हो चुकी है, जिसका मतलब है कि हर मतदाता का वोट, हर मतपत्र की गोपनीयता और विश्वसनीयता भी खतरे में है?
देशपांडे ने बताया है कि मतदान प्रक्रिया के प्रत्येक चरण पर एक इलेक्ट्रॉनिक सेफ्टी लॉक यानी चेकसम/हैशसम होना चाहिए, जिसका प्रमाण मतदान समाप्ति पर और मतगणना शुरू होने पर हर प्रत्याशी को दिया जाना अनिवार्य है।
अब, वे बताते हैं कि और भी कई कदम उठाने की आवश्यकता है। नीचे दिया गया डायग्राम 3 यह बताता है कि फर्जी मतदाता, डुप्लीकेट मतदाता और काल्पनिक मतदाता (ghost voters) जो फर्जी पता इस्तेमाल करते हैं, उनसे निपटा जा सकता है। इसके लिए सिस्टम को मतदान स्थल के अंदर मतदाता को प्रवेश देने से पहले, आधार जैसी बायोमेट्रिक्स और पता डेटाबेस का इस्तेमाल एक स्वतंत्र पीसी के माध्यम से करना होगा।
दूसरा, वीवीपैट यूनिट, काउंटिंग यूनिट (CU) और बैलेट यूनिट (BU) को एक-दूसरे के साथ ‘पेयर’ किया जाना आवश्यक है। अगर पहले सुझाए गए ‘इलेक्ट्रॉनिक लॉकिंग’ (चेकसम/हैशसम) की प्रक्रिया लागू की जाती है और इसके बाद ये यूनिट्स ‘पेयर’ कर दी जाती हैं, तो सिस्टम पूरी तरह सुरक्षित बन जाता है।
यदि ऐसा नहीं किया गया तो मतदान के दिन और मतगणना के दिन के बीच में, CU को आसानी से बदल दिया जा सकता है; यानी असली CU की जगह दूसरे CU को रखा जा सकता है जिसमें भरे हुए वोट हो सकते हैं। और भी बुरी बात यह है कि वोटों को परिणाम और सत्यापन के लिए दो अलग-अलग मेमोरी स्टोर्स से “गिना” जा सकता है।
डायग्राम 3: स्वतंत्रता की मूल भावना है उसकी विशिष्टता


विशेषज्ञ माधव देशपांडे के शब्दों में, “स्वतंत्रता में शामिल कई तत्वों में से, समानता और विशिष्टता दो महत्वपूर्ण और अहम पहलू हैं।”
जब किसी के पास कोई डुप्लीकेट होता है, तो उसकी विशिष्टता खत्म हो जाती है। मान लीजिए मेरे नाम का एक डुप्लीकेट वोटर आईडी कार्ड है। और मान लीजिए भारत में केवल दो ही राजनीतिक पार्टियां हैं। मैं बीजेपी को वोट देता हूं, जबकि दूसरा डुप्लीकेट वोट कांग्रेस को।
अब मेरी वोट का कोई असर नहीं रह जाता, क्योंकि दोनों पार्टियों को मेरे नाम पर एक-एक वोट मिलता है। दूसरे शब्दों में, मेरी लोकतांत्रिक मूल्य शून्य हो जाती है। मैं पूरी तरह से हाशिए पर चला जाता हूं। यानी, मेरी कोई अहमियत नहीं रह जाती। यह सिर्फ डरावना ही नहीं है, बल्कि हम में से हर एक के लिए अपमानजनक भी है।
माधव देशपांडे का आह्वान है कि, “हम में से हर वह व्यक्ति जो स्वतंत्रता को महत्व देता है, उसे इस हाशिए पर डालने के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। यह किसी भी राजनीतिक पार्टी का मामला नहीं है।”
यदि आप स्वतंत्रता को महत्व देते हैं, तो आप इसके खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे।
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