2024 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भारी अनियमितताएं:  'वोट फॉर डेमोक्रेसी' का आरोप

Written by sabrang india | Published on: August 19, 2025


चुनाव विशेषज्ञ एम. जी. देवसहायम, डॉ. प्यारा लाल गर्ग, माधव देशपांडे, और प्रो. हरीश कर्णिक के नेतृत्व में काम कर रहे वोट फॉर डेमोक्रेसी (VFD) ने महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों का विश्लेषण जारी किया है। इस रिपोर्ट में नवंबर 2024 के चुनावों में गंभीर अनियमितताओं को उजागर किया गया है। "Dysfunctional ECI and Weaponisation of India’s Election System" शीर्षक वाली यह रिपोर्ट चुनाव आयोग और मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के आधिकारिक आंकड़ों के साथ-साथ जमीनी स्तर पर चुनाव कर्मियों और मतदाताओं के अनुभवों पर आधारित है। रिपोर्ट में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। यह रिपोर्ट शनिवार, 16 अगस्त को बेंगलुरु में औपचारिक रूप से जारी की गई और इसे यहां पढ़ा जा सकता है। 

वोट फॉर डेमोक्रेसी (VFD) द्वारा जारी यह नई रिपोर्ट, 2024 में पहले जारी की गई दो रिपोर्टों- लोकसभा चुनाव और हरियाणा व जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों पर आधारित - की कड़ी के रूप में सामने आई है। 214 पन्नों की इस रिपोर्ट में बिहार में जारी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया के लिए डेटा इकट्ठा करने के तरीकों का भी विश्लेषण किया गया है। महाराष्ट्र पर केंद्रित एक बड़े हिस्से में चौंकाने वाली विसंगतियां सामने लाई गई हैं, जिनमें शामिल हैं: मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO), महाराष्ट्र और चुनाव आयोग (ECI), दिल्ली द्वारा प्रकाशित आंकड़ों में भारी अंतर। आधी रात के बाद अचानक और बिना किसी स्पष्ट कारण के वोटर/मतदाता प्रतिशत में वृद्धि। 2019 (लोकसभा और विधानसभा) और 2024 (लोकसभा और विधानसभा) के बाद मतदाता संख्या में असामान्य और असंतुलित वृद्धि। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि महाराष्ट्र की 283 में से 133 सीटों पर कांटे का मुकाबला था: 25 सीटें 3,000 वोटों से कम के अंतर से जीती गईं, 39 सीटें 5,000 वोटों से कम से, और 69 सीटें 10,000 वोटों से कम के अंतर से। यह संकेत देता है कि छोटी-छोटी अनियमितताएं भी चुनाव परिणामों को बदल सकती थीं।

शुरुआत में ही, वोट फॉर डेमोक्रेसी (VFD) द्वारा जारी वर्तमान रिपोर्ट यह स्पष्ट रूप से बताती है कि भारत की चुनाव प्रणाली (India’s Election System - IES) का ‘राजनीतिक हितों के लिए दुरूपयोग’ (Weaponisation) 2017 के आसपास से कैसे और किन रूपों में सामने आया है: 

“ईवीएम-केंद्रित मतदान प्रणाली के चार महत्वपूर्ण घटक हैं। माइक्रोचिप्स जो मतदाता द्वारा डाले गए वोटों को रिकॉर्ड करती हैं, वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) यह ऑडिट और सत्यापित करती है कि वोट डाले गए हैं और गिने गए हैं और सिंबल लोडिंग यूनिट (एसएलयू) जो किसी विशेष सीट पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों का नाम और चुनाव चिन्ह ईवीएम/वीवीपीएटी पर अपलोड करती हैं। 2017 के बाद से ईवीएस (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम) अब अलग थलग नहीं रहा, बल्कि इंटरनेट से जुड़ा है और एसएलयू की मेमोरी कमजोर होने के कारण यह प्रणाली हेरफेर/हस्तक्षेप के लिए अतिसंवेदनशील हो गई है। आईईएस का चौथा महत्वपूर्ण घटक मतदाता सूची है, यह भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा अपनाए गए तरीकों के कारण बड़े पैमाने पर मतदाताओं का 'मताधिकार से वंचित' होना खतरे की घंटी है। कुल मिलाकर ये आईईएस का 'राजनीतिक हितों के लिए दुरूपयोग' करते हैं। अगर इसे ऐसे ही जारी रहने दिया गया तो यह चुनावी लोकतंत्र के लिए मौत की घंटी बन सकता है!”

विस्तृत रिपोर्ट में लगभग दो दर्जन टेबल और 21 ग्राफ़ों के साथ 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष भी सूचीबद्ध हैं।


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प्रमुख निष्कर्ष (महाराष्ट्र)

1. मध्य रात्रि में मतदान में अस्पष्ट तरीके से वृद्धि

1. शाम 5 बजे मतदान: 58.22%; मध्य रात्रि: 66.05% - 7.83% की वृद्धि ( यानी 48 लाख अतिरिक्त वोट)।
2. वृद्धि: नांदेड़ (+13.57%), जलगांव (+11.11%), हिंगोली (+11.06%), सोलापुर (+10.63%), बीड (+10.56%), धुले (+10.46%)।
3. ऐतिहासिक रूप से, देर से होने वाली वृद्धि न्यूनतम होती है।

2. कम अंतर, बड़ा दांव

● 25 सीटें <3,000 वोटों से जीतीं; 39 सीटें <5,000 वोटों से; 69 सीटें <10,000 वोटों से - यानी छोटी-छोटी विसंगतियां भी नतीजे बदल सकती हैं।

3. मतदाता सूची में अनियमित और बिना सत्यापन के परिवर्तन
● मई 2024 के लोकसभा चुनाव और नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव के बीच – मात्र छह महीने के अंतर में– महाराष्ट्र की मतदाता सूची में 46 लाख से ज्यादा मतदाता जुड़ गए।

● यह वृद्धि 85 निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 12,000 मतदान केंद्रों पर केंद्रित थी – मुख्यतः उन सीटों पर जहां भाजपा लोकसभा चुनावों में हारी थी।

● कुछ मतदान केंद्रों पर शाम 5 बजे के बाद 600 से ज्यादा नए मतदाता जुड़े, जिसका मतलब है कि मतदान का समय 10 घंटे से ज्यादा हो गया, जो वास्तव में हुआ ही नहीं।

● आधिकारिक मतदाता आंकड़ों में भारी उतार-चढ़ाव:
 
○ 30 अगस्त, 2024: चुनाव आयोग ने 9,64,85,765 मतदाताओं की सूचना दी, लेकिन उसी तारीख के लिए महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की अपनी प्रेस विज्ञप्ति में केवल 9,53,74,302 मतदाता सूचीबद्ध थे - 11 लाख से ज्यादा का अंतर।

○ 15 अक्टूबर, 2024: मुख्य निर्वाचन अधिकारी का आंकड़ा थोड़ा कम होकर 9,63,69,410 हो गया।

○ 30 अक्टूबर, 2024: सिर्फ 15 दिन बाद, मुख्य निर्वाचन अधिकारी का आंकड़ा बढ़कर 9,70,25,119 हो गया - यानी दो हफ्तों में 16 लाख से ज्यादा मतदाताओं की वृद्धि।

4. बड़े पैमाने पर चुनावी आंकड़ों का अंतर (2019-2024)
● 2019 में, महाराष्ट्र में लोकसभा के लिए 8,86,76,946 और विधानसभा के लिए 8,98,38,267 मतदाता थे - यानी कुछ ही महीनों में 11,61,321 मतदाताओं की वृद्धि। मतदान की संख्या 5,35,65,479 (लोकसभा) से बढ़कर 5,44,07,794 (विधानसभा) हो गई - यानी 8,42,315 की वृद्धि।

● 2024 में, राज्य में लोकसभा के लिए 9,30,61,760 और विधानसभा के लिए 9,70,25,119 मतदाता थे - यानी छह महीने से भी कम समय में 39,53,259 मतदाताओं की वृद्धि।

● डाले गए वोटों की संख्या 5,69,69,708 (लोकसभा) से बढ़कर 6,40,85,091 (विधानसभा) हो गई - जो उसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में 71,15,383 अधिक वोट थे।

● 2019 और 2024 के बीच:
 
○ लोकसभा मतदाता सूची में 43,94,814 की वृद्धि हुई, लेकिन डाले गए मतों में केवल 34,04,229 की वृद्धि हुई।
○ विधानसभा मतदाता सूची में 71,86,852 की वृद्धि हुई, जबकि डाले गए मतों में 96,77,257 की वृद्धि हुई।

● लोकसभा की तुलना में 2024 के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं की असमान रूप से ज्यादा भागीदारी-और कुछ ही महीनों में पंजीकृत मतदाताओं में तीव्र, अस्पष्टीकृत वृद्धि- का भारत के चुनाव आयोग या महाराष्ट्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

असमान वृद्धि:
. 2019 लोकसभा और 2019 विधानसभा के बीच छह महीने: +12.7 लाख मतदाता।
बी. 2019 लोकसभा और 2024 लोकसभा के बीच पांच साल: +37.9–45 लाख।
सी. 2019 लोकसभा और 2024 विधानसभा के बीच पांच साल: +84.6 लाख।
डी. मई-नवंबर 2024 (लोकसभा से विधानसभा) के बीच छह महीने: +41 लाख।
. मार्च-अक्टूबर 2024 (लोकसभा से विधानसभा) के बीच सात महीने: +46.7 लाख।

●ये विसंगतियां प्रमुख मतदाता सूची की विश्वसनीयता संबंधी चिंताओं की ओर इशारा करती हैं और इस पर चुनाव आयोग और महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से तत्काल स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।

5. अचानक मतदान में वृद्धि से विशिष्ट दलों को लाभ हो रहा
 
● मई 2024 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा को प्रति विधानसभा क्षेत्र औसतन 88,713 वोट मिले।
● नवंबर 2024 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा को प्रति सीट औसतन 1,16,064 वोट मिले - यानी प्रति सीट लगभग 28,000 वोटों की अचानक बढ़ोतरी। 


● उदाहरण:
○ कामठी: कांग्रेस के वोट लगभग स्थिर रहे (करीब 1.35 लाख), जबकि भाजपा के वोटों में 56,000 की बढ़ोतरी दर्ज हुई। वहीं, मतदाता सूची में केवल 35,000 नाम जुड़े। 
○ कराड (दक्षिण): मात्र छह महीनों में 41,000 ज्यादा वोट पड़े -यह वृद्धि पिछले पांच वर्षों में कभी नहीं देखी गई थी।

● नांदेड़ लोकसभा उपचुनाव में, कांग्रेस ने संसद की सीट जीत ली, लेकिन उसी क्षेत्र के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव हार गई, जहां विधानसभा स्तर पर 1.59 लाख कम वोट पड़े, जबकि मतदान एक साथ हुआ था।

6. हाई-प्रोफाइल विसंगतियां (Anomalies)
 
● नागपुर साउथ वेस्ट में 6 महीनों में 29,219 नए मतदाता जुड़े, जो चुनाव आयोग के 4% सत्यापन सीमा से कहीं ज्यादा है; BLOs ने बताया कि जांच पूरी नहीं हुई थी।

● मर्कडवाड़ी गांव, सोलापुर में आरोप लगाया गया कि ईवीएम के नतीजे वास्तविक वोटों को नहीं दर्शाते; पुलिस ने यहां बैलेट पेपर (paper-ballot) मॉक पोल को रोक दिया।

7. प्रक्रियात्मक और तकनीकी विसंगतियां
 
● मतदान केंद्रों के पास राउटर होने, मतगणना के दौरान अचानक बिजली गुल होने, ईवीएम के स्ट्रांग रूम में देरी से पहुंचने, सीसीटीवी की खराबी और स्ट्रांग रूम में कथित उल्लंघन की रिपोर्ट।

● कुछ मतदान केंद्रों पर, मतगणना शुरू होने पर ईवीएम की बैटरियां 99% चार्ज दिखाई दीं, जो सामान्य डिस्चार्ज से मेल नहीं खातीं। 

● फॉर्म 17सी (मतदान केंद्र रिकॉर्ड) और कंट्रोल यूनिट की गणना में विसंगतियां।

● वीवीपैट संबंधी चिंताएं: संभावित इंटरनेट कनेक्टिविटी और पर्चियों का सार्वजनिक ऑडिट न होना।

● इस बात पर सवाल कि क्या चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से ईवीएम के सोर्स कोड को नियंत्रित करता है।

● हितों का टकराव: ईवीएम निर्माता ईसीआईएल और बीईएल के बोर्ड में भाजपा सदस्य।

8. डेटा गोपनीयता और कानूनी बदलावों से जांच में कमी
 
● दिसंबर 2024: एक अदालत द्वारा दूसरे राज्य के चुनावों में इन्हें जारी करने के आदेश के कुछ ही दिन बाद चुनाव आयोग ने चुनाव संचालन नियमों के नियम 93 में संशोधन करके सीसीटीवी फुटेज और फॉर्म 17सी तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया।

● मई 2025: चुनाव सीसीटीवी फुटेज को एक साल से घटाकर 45 दिन कर दिया गया, जिससे कानूनी चुनौतियों के आगे बढ़ने से पहले महत्वपूर्ण सबूतों को नष्ट किया जा सकेगा।

● मतदान केंद्रों की 100% वेबकास्टिंग के बावजूद, न तो वीडियो फुटेज और न ही वीवीपैट पर्चियां सार्वजनिक सत्यापन के लिए उपलब्ध हैं।

9. नफरती बयान पर कार्रवाई न करना
 
● महाराष्ट्र चुनावों के दौरान 100 से ज्यादा शिकायतें मिलने के बावजूद, जिनमें विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों और नामित नेताओं से शिकायतें भी शामिल थीं, चुनाव आयोग ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

महाराष्ट्र क्यों मायने रखता है

इन विसंगतियों का पैमाना, सटीकता और निर्वाचन क्षेत्र-आधारित लक्ष्य चुनावी हेराफेरी के एक सुनियोजित पैटर्न की ओर इशारा करता है न कि प्रशासनिक त्रुटि की ओर। महाराष्ट्र का 2024 विधानसभा चुनाव केस स्टडी भारत भर में भविष्य के चुनावों के लिए एक चेतावनी है।

हालांकि इस रिपोर्ट में बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण पर चिंताओं का संक्षेप में उल्लेख किया गया है, लेकिन महाराष्ट्र भारत की चुनाव प्रणाली के "राजनीतिक हितों को लेकर दुरूपयोग" का सबसे स्पष्ट और सबसे ज्यादा आंकड़ों पर आधारित प्रमाण प्रस्तुत करता है।

16 अगस्त की प्रेस विज्ञप्ति में रिपोर्ट में उठाई गई मांगों को दोहराया गया है:
● मतदाता प्रणाली का विकेंद्रीकरण: चुनाव आयोग केवल संसदीय/राष्ट्रपति चुनाव कराएगा; राज्य चुनाव आयोग विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कराएगा। इन्हें उचित रूप से सुदृढ़ किया जाना चाहिए।

● ईवीएम, वीवीपैट और मतदाता सूचियों का तत्काल फोरेंसिक ऑडिट हो।

● मशीन द्वारा पढ़ने योग्य मतदाता सूचियां, फॉर्म 17ए/17सी और सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक रूप से जारी किए जाएं।

● नियम 93 के प्रतिबंधात्मक संशोधनों को वापस लिया जाए; पारदर्शिता सुरक्षा उपायों को बहाल किया जाए।

● संपूर्ण मत सत्यापन के लिए विधायी गारंटी हो।

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