गाँधी जयंती: गाँधीजी और हिंदुत्व टोली

Written by Shamsul Islam | Published on: October 2, 2021
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गांधी जी की हत्या, आरएसएस के लोगों ने जो जहर फैलाया हुआ था, उसकी वजह से हुई। देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने 11 नवंबर, 1948 को एमएस गोलवलकर (जो उस समय आरएसएस के मुखिया थे) को एक खत लिखा था। इस खत में आरएसएस के विभाजन के दौरान हिंसा में शामिल होने की चर्चा करने के बाद सरदार बहुत स्पष्ट शब्दों में गोलवलकर को बताते हैं कि आरएसएस ने कांग्रेस का विरोध इस कठोरता से किया कि “न व्यक्तित्व का खयाल, न सभ्यता व विशिष्टता का ध्यान रखा, जनता में एक प्रकार की बेचैनी पैदा कर दी थी। इनकी सारी तकरीरें सांप्रदायिक विष से भरी थीं। हिंदुओं में जोश पैदा करना व उनकी रक्षा के प्रबंध करने के लिए यह आवश्यक न था कि यह जहर फैले। उस जहर का फल अंत में यही हुआ कि गांधी जी की अमूल्य जान की कुर्बानी देश को सहनी पड़ी और सरकार व जनता की सहानुभूति जरा भी आरएसएस के साथ न रही बल्कि उनके खिलाफ हो गई। उनकी मृत्यु पर आरएसएस वालों ने जो हर्ष प्रकट किया था और मिठाई बांटी उससे यह विरोध और भी बढ़ गया और सरकार को इस हालत में आरएसएस के खिलाफ कार्रवाई करना जरूरी ही था।“



उससे पहले 18 जुलाई, 1948 को हिंदू महासभा के एक प्रमुख नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे एक पत्र में भी हिंदू महासभा के साथ-साथ आरएसएस को भी महात्मा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए सरदार पटेल ने लिखा था, “जहां तक आरएसएस और हिंदू महासभा की बात है, गांधी जी की हत्या का मामला अदालत में है और मुझे इसमें इन दोनों संगठनों की भागीदारी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए लेकिन हमें मिली रिपोर्टें इस बात की पुष्टि करती हैं कि इन दोनों संस्थाओं का खासकर आरएसएस की गतिविधियों के फलस्वरूप देश में ऐसा माहौल बना कि ऐसा बर्बर कांड सभव हो सका।“ 

गांधी जी के खिलाफ आरएसएस का घृणा अभियान उतना ही पुराना है जितना आरएसएस का गठन। आरएसएस के संस्थापक डॉ. केबी हेडगेवार कांग्रेस के नेता थे लेकिन 1925 में कांग्रेस से अलग हो गए। हिंदुत्व वादी वीडी सावरकर से मुलाकात के बाद उन्होंने महसूस किया कि हिंदुओं को संगठित करने के हिंदुत्व वादी प्रोजेक्ट में गांधीजी सबसे बड़ी बाधा हैं। हेडगेवार ने कांग्रेस इसलिए छोड़ा क्योंकि गांधी जी हिंदुओं और मुसलमानों को साझे राष्ट्र का हिस्सा मानते थे। दरअसल, हेडगेवार को गांधीजी से इसी मुद्दे को लेकर बेइंतहा नफरत थी। इसी नफरत की वजह से हेडगेवार ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ आरएसएस शुरू की थी। आरएसएस के एक प्रकाशन के मुताबिक, गांधी के हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अभियान से डॉक्टर हेडगेवार खतरा महसूस करते थे। आरएसएस का एक अन्य प्रकाशन कहता है कि हेडगेवार के कांग्रेस से अलग होने और आरएसएस के गठन का प्रमुख कारण था कि कांग्रेस हिंदू-मुस्लिम एकता में विश्वास करती है। आरएसएस ने अपना अंग्रेजी मुखपत्र आर्गनाइजर जुलाई, 1947 में शुरू किया और 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या तक उसमें गांधी जी के खिलाफ बड़े पैमाने पर घृणास्पद सामग्री प्रकाशित की जाती रही।   

[गाँधीजी के खिलाफ ज़हर उगलते दो कार्टून।]





6 दिसंबर, 1947 को गोलवलकर ने आरएसएस कार्यकर्ताओं की एक बैठक गोवर्धन (मथुरा) में बुलाई। इस बैठक की ख़ुफ़िया विभाग की रिपोर्ट राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद है। इस बैठक में इस पर विचार-विमर्श किया गया कि किस तरह कांग्रेस के नेतृत्वकारी लोगों की हत्याएं की जाएं। कैंप में हजारों की तादाद में उपस्थित स्वयंसेवकों की भीड़ को संबोधित किया। पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक आरएसएस नेता ने कहा कि अगर कोई हमारे रास्ते में आएगा, तो उसे समाप्त कर दिया जाएगा चाहे वह नेहरू सरकार हो या कोई अन्य सरकार। मुसलमानों के बारे में कहा कि धरती पर कोई ताकत नहीं जो उन्हें हिंदुस्तान में रख सके। उन्हें इस देश को छोड़ देना चाहिए। अगर मुसलमानों को इस देश में रखा जाता है, जो गांधी जी और नेहरू जी कह रहे हैं, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी भारत सरकार की होगी और अगर कुछ भी होगा, तो उसकी जिम्मेदारी हिंदू कम्युनिटी की नहीं होगी। महात्मा गांधी को हिंदुओं को भ्रमित करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। गोलवलकर ने बहुत साफ़ शब्दों में कहा ‘वीहैव द मीन्स ह्वेयर बाई (आवर) अपोनेन्ट्स कुड बी इमेडिएट साइलेन्स्ड।’यानी' हमारे पास ऐसे साधन उपलब्ध हैं जिनके दुवारा हमारे विरोधियों को तुरंत खामोश किया जा सकता है'। इसके छह सप्ताह बाद गांधी जी की हत्या कर दी गई। इसे अच्छी तरह से समझ लिया जाना चाहिए।  

आरएसएस के गांधीजी के ख़िलाफ़ भीषण घृणा अभियान ने गांधी जी की हत्या तो कराई ही, आरएसएस अभी भी लगातार घृणा अभियान चलाता रहता है। गांधी जी के हत्यारों को देशभक्त बताया जाता है, कहा जाता है कि इनको देश के सबसे बड़े सम्मान दिए जाएं, उनकी मूर्ति लगाई जाए। छत्तीसगढ़ में 2018 में अपने भाषण में अमित शाह ने गांधी जी को ‘चतुर बनिया’ कहा था। शाह ने गांधी जी को देश का नेता नहीं मानकर, हिंदुओं का भी नेता नहीं मानकर उनके लिए जिन्ना के शब्दों का इस्तेमाल किया। इसके अलावा, आरएसएस से संबद्ध एक प्रमुख हिंदूत्ववादी संगठन ‘हिंदू जनजागृति समिति’ भारत में ‘हिंदू राष्ट्र की स्थापना’ के लिए नियमित रूप से राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करती है। इससे संबंधित ‘सनातन संस्था’ के सदस्य अनेक आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं। मुसलमान बहुल क्षेत्रों और उनके धार्मिक स्थलों में बम विस्फोट की घटनाओं के अलावा गोविंद पानसरे, नारायण दाभोलकर, एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश जैसे प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों की हत्या के आरोपों में भी यह जांच के दायरे में है। 

‘हिंदू जनजागृति समिति’ का गोवा सम्मेलन (7 जून, 2013) गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्रभाई मोदी के शुभकामना संदेश के साथ शुरू हुआ था। इसमें भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलने की अपनी परियोजना की सफलता की कामना की गर्इ थी। इंसानियत की तमाम हदें पार करते हुए इसी मंच से 10 जून को हिंदुत्ववादी संगठनों, विशेष कर आरएसएस के करीबी लेखक केवी सीतारमैया का भाषण हुआ। उन्होंने आरंभ में ही घोषणा की, ‘गांधी भयानक दुष्कर्मी और सर्वाधिक पापी था’। उन्होंने अपने भाषण का अंत गांधी जी के कातिल गोड्से का महिमामंडन करते हुए इन शर्मनाक शब्दों से किया: 

“जैसा की भगवान श्री कृष्ण ने कहा है, दुष्टों के विनाश के लिए, अच्छों की रक्षा के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में पैदा होता हूं। 30 जनवरी की शाम श्री राम नाथूराम गोड्से के रूप में आए और गांधी का जीवन समाप्त कर दिया।“

इस भाषण की रिपोर्ट हिंदू जनजागृति समिति की वेबसाइट से हटा दी गर्इ है लेकिन यह अमेरिका आधारित एक वेबसाइट ‘'फ़ोरम फ़ॉर हिन्दू अवेकनिंग'’ (हिंदू जागृति के लिए एक मंच) पर उपलब्ध है। 

दूसरे हिन्दुत्वादियों की तरह गाँधीजी की हत्या पर जश्न मनाने वाले इस दिमाग़ी तौर पर बीमार व्यक्ति ने उनके ख़िलाफ़ अंग्रेज़ी में दो पुस्तकें ‘गांधी वाज़ धर्म द्रोही एंड देश द्रोही' [गाँधी धर्म द्रोही और देश द्रोही था] और'गाँधी ए मर्डर ऑफ़ गाँधी' [गाँधी का एक क़ातिल गाँधी] भी लिखीं जो नरेंद्र भाई मोदी द्वारा उद्घाटन किये गए इस राष्ट्र-विरोधी आयोजन में खुले-आम बेची जा रही थीं।  [इन दोनों किताबों के कवर इस लेख के आख़िर में दर्शये गए हैं।]

इसी तरह, भाजपा आईटी प्रकोष्ठ इंदौर के प्रभारी विक्की मित्तल ने मांग की है कि यह तय करने के लिए कि गांधी और गोड्से में से कौन अधिक लोकप्रिय है, गोड्से की पिस्तौल की नीलामी की जाए। पता चल जाएगा कि गोड्से आतंकवादी था या देशभक्त? प्रधानमंत्री मोदी तक इस व्यक्ति को फ़ेसबुक पर फॉलो करते हैं।इस सबके बाद भी अगर कोई यह समझता है कि यह सब कुछ आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की जानकारी के बिना हो रहा है, तो वह भारी भूल में है। 





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