दिल्ली की सीमाओं पर करीब 8 माह से डटे किसानों ने सभी विपक्षी सांसदों को ''पीपुल्स व्हिप'' जारी कर तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने और एमएसपी गारंटी कानून पारित कराने का निर्देश दिया है। भारत के सभी किसान संगठनों की ओर से जारी यह व्हिप लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों तक जाएगा, जिसमें यह लक्ष्य पाए बगैर वॉकआउट न करने का भी निर्देश जारी दिया गया है। इसके साथ ही कहा है कि मानसून सत्र के हर कार्यदिवस पर किसान 22 जुलाई से 13 अगस्त तक रोजाना दिल्ली के लिए कूच करेंगे और जंतर मंतर पर अपनी अलग संसद लगाएंगे। किसान संसद में भागीदारी को पूरे देश से 22 राज्यों के किसान आएंगे, जिसमें से कई जत्थे सीमाओं पर पहुंच भी चुके हैं और बाकी के आने का सिलसिला जारी है।
कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने कहा है कि वो 22 जुलाई से दिल्ली में किसान संसद के पास जंतर मंतर पर अपनी अलग संसद लगाएंगे। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने बताया कि रोजाना 200 लोग 4-5 बसों में सिंघू बोर्डर से दिल्ली के लिए निकलेंगे। उन्होंने कहा कि अलग अलग संगठनों व प्रदर्शन स्थलों से हमारे लोग सिंघु बोर्डर पर जमा होंगे और वहां से जंतर मंतर के लिए रवाना होंगे। हम ऐसा तब तक करते रहेंगे जब तक कि मॉनसून सत्र चलता रहेगा। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा था कि हम कोई हंगामेदार आदमी नहीं हैं जो हंगामा काटते फिरें। हम तो किसान हैं। जंतर-मंतर का मतलब है संसद भवन। हम वहीं मंच लगाकर बैठ जाएंगे। वह तो हमारा पुराना ठिकाना है। राकेश टिकैत ने ट्वीट भी किया कि देश के किसानों ने सांसदों को एक पीपुल्स व्हिप जारी किया है, इस व्हिप का पालन कितने सांसद करते हैं इस पर देश के करोड़ों किसानों की नजर है। दरअसल संसद के मॉनसून सत्र से किसानों को भी काफी उम्मीदें हैं। किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने एक समाचार एजेंसी से कहा, "22 से किसानों की संसद लगेगी, किसानों के मुद्दों पर चर्चा होगी जो रोज शाम 5 बजे तक संसद चलेगी। इसके अगले दिन फिर 200 लोग संसद जाएंगे।
बुधवार को आंदोलनकारी किसानों को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोक दल के नेता ओमप्रकाश चौटाला का भी साथ मिला। सिंघु बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों से मिलने के बाद चौटाला ने कहा, "22 जुलाई को विपक्ष के संसद सदस्य संसद का घेराव करेंगे, धरना देंगे और इकट्ठे होकर संसद में जाएंगे और काले कानून का विरोध करेंगे। ऐसे हालात पैदा कर देंगे कि सरकार को मजबूर होकर कानून वापस लेने पड़ेंगे। खास है कि आंदोलनकारी किसानों ने किसान संसद का ऐलान काफ़ी पहले कर दिया था और कहा था कि दिल्ली जाने वाले किसानों के पास पहचान पत्र होगा और वो पुलिस की सुरक्षा में जाएंगे। दरअसल 26 जनवरी को किसानों के दिल्ली में लाल क़िले पर जाकर विरोध करने के दौरान हिंसा हुई थी जिसे देखते हुए पुलिस इस बार सतर्क है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, वरिष्ठ अधिकारी किसान नेताओं से बात कर रहे हैं ताकि सब कुछ शांतिपूर्ण रहे और क़ानून-व्यवस्था का संकट ना पैदा हो।
बताते चलें कि किसान यूनियन ने मंगलवार को कहा था कि संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र के दौरान जंतर-मंतर पर एक ‘किसान संसद’ का आयोजन किया जाएगा और 22 जुलाई से प्रतिदिन सिंघू सीमा से 200 प्रदर्शनकारी वहां पहुंचेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने भी बयान जारी कर कहा है कि आम जन के हितों की रक्षा के लिए सरकार को तीन किसान विरोधी कानूनों और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को रद्द करने व ईंधन की कीमतों को कम से कम आधा करने के अलावा सभी किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांगों पर अमल करना चाहिए।
संयुक्त किसान मोर्चा ने संसद के मॉनसूत्र सत्र के पहले दिन सोमवार को किसानों के मुद्दे पर हुए हंगामे को महिलाओं, दलितों और पिछड़ों, आदिवासियों के मंत्री बनने से उपजी नाराज़गी बताये जाने पर पीएम के बयान की कड़ी निंदा की है। जो नारे लगाए जा रहे थे, वे हाशिये के नागरिकों के थे, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में सरकार के अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक कानूनों और नीतियों का सामना करना पर रहा है।
मोर्चा के नेताओं ने कहा कि SKM प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहता है कि महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, किसानों और ग्रामीण भारत के अन्य लोगों सहित देश के हाशिये पर रहने वाले समुदायों को सच्चा सम्मान तभी मिलेगा जब उनके हितों की वास्तव में रक्षा की जाएगी। मोर्चा ने बयान जारी करके कहा है कि नरेंद्र मोदी का बयान (एक लोक-विरोधी सरकार का बचाव करने के लिए, जिस पर कई मोर्चों पर उसकी विफलताओं के लिए हमला किया जा रहा है और जिसे इस संसद सत्र में मुश्किल का सामना करना पड़ेगा) वास्तव में निरर्थक है क्योंकि संसद भवन में गूँज रहे नारे किसान आंदोलन से सीधे संसद पहुंचे थे। इसे लेकर संयुक्त किसान मोर्चा नेताओं ने सांसदों को ‘पीपुल्स व्हिप’ जारी करने के साथ मोर्चा कई सांसदों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात भी की है। इसी से विपक्षी सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में उन मुद्दों को उठाया जिन्हें किसान आंदोलन कई महीनों से उठा रहा है।
मोर्चा के नेताओं ने कहा कि दिल्ली पुलिस, किसानों की संसद विरोध मार्च की योजनाओं के बारे में स्पष्ट रूप से सूचना होने के बावजूद, इसे “संसद घेराव” करार दे रही है। SKM ने पहले ही सूचित कर दिया था कि संसद की घेराबंदी करने की कोई योजना नहीं है और विरोध शांतिपूर्ण और अनुशासित होगा। दिल्ली पुलिस जानबूझकर गलत सूचना दे रही है और SKM ने दिल्ली पुलिस को ऐसा करने से बचने को कहा। इसके साथ ही सिरसा में सरदार बलदेव सिंह सिरसा का अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर किसानों की मांगों- कि सभी मामलों को वापस लिया जाए और गिरफ्तार किए गए किसान नेताओं को तुरंत रिहा कर दिया जाए, को अभी तक पूरा नहीं किया है। SKM ने कहा कि, हरियाणा का पुलिस प्रशासन शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे किसानों पर राजद्रोह और अन्य गंभीर आरोप लगाने में अपनी हद से आगे बढ़ रही है और यह पूरी तरह से आपत्तिजनक और अस्वीकार्य है। यही नहीं, किसान नेताओं ने चंडीगढ़ में पुलिस द्वारा 13 साल के मासूम बच्चे की गिरफ्तारी का संज्ञान लेते हुए कहा कि चंडीगढ़ पुलिस ने तानाशाही का नया इतिहास लिखा है। लेकिन बच्चे के जज्बे के आगे मोदी की पूरी सल्तनत नेस्तनाबूद है। कहा जालिम सरकार हारेगी, किसान जीतेगा।
SKM ने कहा कि भारत सरकार ने मानसून सत्र के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक 2021 (फिर से जारी किए अध्यादेश को बदलने के लिए) के साथ-साथ विद्युत संशोधन विधेयक 2021 को विधायी व्यवसाय के तहत सूचीबद्ध किया है। SKM ने सरकार को इन मामलों पर 30 दिसंबर 2020 को प्रदर्शन कर रहे किसानों के प्रति की गई प्रतिबद्धता से मुकरने के खिलाफ चेतावनी दी है।
पीपुल्स व्हिप के अभिनव प्रयोग पर SKM का कहना है कि जनता द्वारा चुने गये ये नेता जनता की इच्छा से बंधे हैं। अगर इन्होंने पीपुल्स व्हिप का उल्लंघन किया तो फिर जनता इनका राजनीतिक जीवन खत्म कर देगी।
यही नहीं, मोर्चा नेताओं बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, हन्नान मुल्ला, जगजीत सिंह दल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहन, शिवकुमार शर्मा ‘कक्काजी’, युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव आदि ने कहा कि विभिन्न सीमाओं पर किसानों के विरोध कैंप लगातार बारिश से जूझ रहे है। यहां के किसान बहादुरी और बिना शिकायत के कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। दरअसल वे बारिश पर खुशी जाहिर कर रहे हैं, क्योंकि यह बोई गई खरीफ फसलों के लिए अच्छा है। इसके साथ ही SKM ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि राजनीतिक नेताओं के सामाजिक बहिष्कार और उनके खिलाफ काले झंडे के विरोध के संबंध में, कि यह भाजपा और सहयोगी दलों के नेताओं पर लक्षित है, न कि अन्य दलों पर। इसके साथ ही आंदोलन के अहम घटक बीकेयू टिकैत ने स्पष्ट किया है कि उसकी चुनाव लड़ने की कोई योजना नहीं है। बीकेयू टिकैत ने इस संबंध में उत्पन्न हुए भ्रम के लिए दैनिक जागरण (हिंदी दैनिक) की जानबूझकर गलत रिपोर्टिंग को जिम्मेदार ठहराया और इस अखबार के बहिष्कार का आह्वान किया। सिसौली में हुई इस पंचायत में नरेश टिकैत ने कहा कि आने वाले चुनाव में भाजपा को सबक सिखाना होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा नेता चुना जाना चाहिए कि अगर वह या उसका दल कोई फैसला किसानों के खिलाफ करे तो वह नागरिकों से आकर माफी मांगे और साथ ही अपने पदों से इस्तीफा दे। बीकेयू-टिकैत मतदाताओं से इस बात का ध्यान रखने की अपील करेगा
चौधरी नरेश टिकैत ने पंचायत में कहा कि अबकी बार उस पार्टी व विधायक का समर्थन करेंगे जिससे हम जरूरत पड़ने पर जब चाहे पंचायत में इस्तीफा मांग सकें, कहा कि हमारे बीच जो जयचंद है, उनका भी इलाज किया जाएगा। इस दौरान भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने कहा कि पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में एक महापंचायत की जाएगी जिसे मोर्चा नेताओं द्वारा भी संबोधित किया जाएगा। यह महापंचायत भाकियू के लिए प्रतिष्ठा और मान सम्मान की पंचायत होगी तो वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को गद्दी से उतारने की रणनीति की दृष्टि से भी अहम होगी।
उन्होंने भाजपा सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि फर्जी मामले दर्ज करा कर लोगों में भय पैदा कर दिया है। आज किसान वर्ग पूरा खतरे में है। उन्होंने किसानों से गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में लगातार भागेदारी करने का आह्ववान। पंचायत में बड़ौत के प्रदीप आत्रे हत्याकांड में मौजिजाबाद नांगल के प्रधान को जेल भेजने का मामला उठाया गया, जिस पर बागपत के पुसार गांव में 23 जुलाई को पंचायत करने का निर्णय लिया गया। कहा कि भाजपा की बहुत मदद की, सरकार बनवाई। मगर आज भाजपा सरकार किसानों की सुनने को तैयार नहीं है। आज किसान वर्ग पूरा खतरे में है। अब भाजपा का इलाज करने का समय आ गया है।
टिकैत ने कहा कि 5 सितंबर की महापंचायत मुजफ्फरनगर की धरती पर ऐतिहासिक पंचायत होगी। कहा हमने 35 साल के किसान यूनियन के अनुभव को देखते हुए यह माना है कि यह सरकार और सभी सरकारों के मुकाबले सबसे जिद्दी और अड़ियल सरकार है, अगर यह सरकार नहीं बदली गई तो आने वाले भविष्य में किसान बिरादरी ही समाप्त हो जाएगी। हमें आपस के सभी मतभेद भुलाकर इस महापंचायत के लिए सभी को तैयार करना है। हमें अपने काम धंधे के साथ-साथ एक निगाह अपनी खेती पर और दूसरी इस आंदोलन पर रखनी है, इस आंदोलन को हमें चलाना है। इस आंदोलन में सभी प्रकार के सहयोग की आवश्यकता होगी जो सभी किसान मिलजुल कर अपनी इच्छा अनुसार देंगे और आंदोलन को सफल बनाने का काम करेंगे।
हालांकि ऐसे में यह सवाल भी अपने आप मे मौजूं हैं कि आखिर इतने सब पर भी मोदी सरकार कृषि कानून क्यों नहीं बदल रही है? जी हां, केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन शुरू होने के बाद संसद का दूसरा सत्र शुरू होने वाला है। किसानों के साथ सरकार ने आखिरी बार 22 जनवरी को बात की थी। उसके बाद किसानों से बात करने और आंदोलन खत्म कराने का कोई प्रयास नहीं हुआ है। सरकार की ओर से बार बार कहा जा रहा है कि कानूनों को रद्द करने के अलावा बाकी हर मुद्दे पर वह किसानों से बात करने को तैयार है। अब तो किसानों के हितैषी और विपक्ष के महत्वपूर्ण नेता शरद पवार ने भी कह दिया है कि कानून पूरी तरह से रद्द करने की जरूरत नहीं है, बल्कि जिन प्रावधानों से किसानों को आपत्ति है उन्हें बदला जाए। तभी सवाल है कि केंद्र सरकार इन कानूनों को बदलने की पहल क्यों नहीं कर रही है? सरकार ने किसानों के साथ आखिरी बार बातचीत से पहले कुछ बदलावों पर सहमति जताई थी। तीनों कानूनों को मिला कर कोई एक दर्जन प्रावधान थे, जिन्हें बदलने को सरकार तैयार थी।
सरकार ने खुद कहा था कि कांट्रैक्ट पर खेती की मंजूरी देने वाले कानून में अदालत में सुनवाई का प्रावधान करने को वह राजी है। अभी तक कांट्रैक्ट पर खेती वाले कानून में यह प्रावधान है कि किसी तरह का विवाद होने पर एसडीएम के यहां सुनवाई होगी। इस तरह से कानूनों में कई छोटे-छोटे बदलावों के लिए सरकार राजी हो गई थी। अगर सरकार सचमुच इनके प्रति गंभीर है तो इन बदलावों को लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। सरकार तीनों कानूनों में जरूरी संशोधन का प्रस्ताव संसद में ला सकती है। उसके बाद सरकार बदले हुए कानून को सामने रख कर किसानों से बात करे तो विवाद सुलझाने में आसानी होगी। सरकार को इससे राजनीतिक फायदा भी संभव है क्योंकि पवार की पार्टी इन बदलावों का समर्थन कर सकती है। इससे संसद में विपक्ष बंटा हुआ दिखेगा। उसके बाद सरकार के ऊपर कानून को पूरी तरह से रद्द करने का दबाव कम होगा। अगर सरकार गंभीर होती और वह किसान आंदोलन खत्म कराने के बारे में गंभीरता से सोच रही होती तो उसका पहला कदम यह होता कि वह अपनी तरफ से पहल करके कानूनों में संशोधन करती।
ऐसा लग रहा है कि सरकार इस चिंता में संशोधन नहीं कर रही है कि एक बार फिर संसद में किसान कानून का मुद्दा आया तो विपक्ष को हंगामा करने का मौका मिलेगा। ध्यान रहे पहली बार जब कानून पास कराया गया था तब राज्यसभा में बहुत विवाद हुआ था और विपक्षी सांसदों को निलंबित भी किया गया था। उस किस्म के किसी विवाद से बचने के लिए सरकार चुपचाप बैठी है। वह न तो किसानों से बात कर रही है और कानून में अपनी तरफ से कोई संशोधन कर रही है। उलटे कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूती देने के एक लाख करोड़ रुपए के प्रावधान का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। हालांकि किसान ऐसी किसी बात के असर में नहीं आ रहे हैं। उल्टे किसानों ने तय किया है कि वे 22 जुलाई से हर दिन दो सौ किसान दिल्ली जाएंगे और प्रदर्शन करेंगे। यानी साफ है कि संसद के मॉनसून सत्र पर किसान आंदोलन की छाया लगातार गहरी बनी रहेगी।
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कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने कहा है कि वो 22 जुलाई से दिल्ली में किसान संसद के पास जंतर मंतर पर अपनी अलग संसद लगाएंगे। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने बताया कि रोजाना 200 लोग 4-5 बसों में सिंघू बोर्डर से दिल्ली के लिए निकलेंगे। उन्होंने कहा कि अलग अलग संगठनों व प्रदर्शन स्थलों से हमारे लोग सिंघु बोर्डर पर जमा होंगे और वहां से जंतर मंतर के लिए रवाना होंगे। हम ऐसा तब तक करते रहेंगे जब तक कि मॉनसून सत्र चलता रहेगा। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा था कि हम कोई हंगामेदार आदमी नहीं हैं जो हंगामा काटते फिरें। हम तो किसान हैं। जंतर-मंतर का मतलब है संसद भवन। हम वहीं मंच लगाकर बैठ जाएंगे। वह तो हमारा पुराना ठिकाना है। राकेश टिकैत ने ट्वीट भी किया कि देश के किसानों ने सांसदों को एक पीपुल्स व्हिप जारी किया है, इस व्हिप का पालन कितने सांसद करते हैं इस पर देश के करोड़ों किसानों की नजर है। दरअसल संसद के मॉनसून सत्र से किसानों को भी काफी उम्मीदें हैं। किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने एक समाचार एजेंसी से कहा, "22 से किसानों की संसद लगेगी, किसानों के मुद्दों पर चर्चा होगी जो रोज शाम 5 बजे तक संसद चलेगी। इसके अगले दिन फिर 200 लोग संसद जाएंगे।
बुधवार को आंदोलनकारी किसानों को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोक दल के नेता ओमप्रकाश चौटाला का भी साथ मिला। सिंघु बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों से मिलने के बाद चौटाला ने कहा, "22 जुलाई को विपक्ष के संसद सदस्य संसद का घेराव करेंगे, धरना देंगे और इकट्ठे होकर संसद में जाएंगे और काले कानून का विरोध करेंगे। ऐसे हालात पैदा कर देंगे कि सरकार को मजबूर होकर कानून वापस लेने पड़ेंगे। खास है कि आंदोलनकारी किसानों ने किसान संसद का ऐलान काफ़ी पहले कर दिया था और कहा था कि दिल्ली जाने वाले किसानों के पास पहचान पत्र होगा और वो पुलिस की सुरक्षा में जाएंगे। दरअसल 26 जनवरी को किसानों के दिल्ली में लाल क़िले पर जाकर विरोध करने के दौरान हिंसा हुई थी जिसे देखते हुए पुलिस इस बार सतर्क है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, वरिष्ठ अधिकारी किसान नेताओं से बात कर रहे हैं ताकि सब कुछ शांतिपूर्ण रहे और क़ानून-व्यवस्था का संकट ना पैदा हो।
बताते चलें कि किसान यूनियन ने मंगलवार को कहा था कि संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र के दौरान जंतर-मंतर पर एक ‘किसान संसद’ का आयोजन किया जाएगा और 22 जुलाई से प्रतिदिन सिंघू सीमा से 200 प्रदर्शनकारी वहां पहुंचेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने भी बयान जारी कर कहा है कि आम जन के हितों की रक्षा के लिए सरकार को तीन किसान विरोधी कानूनों और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को रद्द करने व ईंधन की कीमतों को कम से कम आधा करने के अलावा सभी किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांगों पर अमल करना चाहिए।
संयुक्त किसान मोर्चा ने संसद के मॉनसूत्र सत्र के पहले दिन सोमवार को किसानों के मुद्दे पर हुए हंगामे को महिलाओं, दलितों और पिछड़ों, आदिवासियों के मंत्री बनने से उपजी नाराज़गी बताये जाने पर पीएम के बयान की कड़ी निंदा की है। जो नारे लगाए जा रहे थे, वे हाशिये के नागरिकों के थे, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में सरकार के अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक कानूनों और नीतियों का सामना करना पर रहा है।
मोर्चा के नेताओं ने कहा कि SKM प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहता है कि महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, किसानों और ग्रामीण भारत के अन्य लोगों सहित देश के हाशिये पर रहने वाले समुदायों को सच्चा सम्मान तभी मिलेगा जब उनके हितों की वास्तव में रक्षा की जाएगी। मोर्चा ने बयान जारी करके कहा है कि नरेंद्र मोदी का बयान (एक लोक-विरोधी सरकार का बचाव करने के लिए, जिस पर कई मोर्चों पर उसकी विफलताओं के लिए हमला किया जा रहा है और जिसे इस संसद सत्र में मुश्किल का सामना करना पड़ेगा) वास्तव में निरर्थक है क्योंकि संसद भवन में गूँज रहे नारे किसान आंदोलन से सीधे संसद पहुंचे थे। इसे लेकर संयुक्त किसान मोर्चा नेताओं ने सांसदों को ‘पीपुल्स व्हिप’ जारी करने के साथ मोर्चा कई सांसदों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात भी की है। इसी से विपक्षी सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में उन मुद्दों को उठाया जिन्हें किसान आंदोलन कई महीनों से उठा रहा है।
मोर्चा के नेताओं ने कहा कि दिल्ली पुलिस, किसानों की संसद विरोध मार्च की योजनाओं के बारे में स्पष्ट रूप से सूचना होने के बावजूद, इसे “संसद घेराव” करार दे रही है। SKM ने पहले ही सूचित कर दिया था कि संसद की घेराबंदी करने की कोई योजना नहीं है और विरोध शांतिपूर्ण और अनुशासित होगा। दिल्ली पुलिस जानबूझकर गलत सूचना दे रही है और SKM ने दिल्ली पुलिस को ऐसा करने से बचने को कहा। इसके साथ ही सिरसा में सरदार बलदेव सिंह सिरसा का अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर किसानों की मांगों- कि सभी मामलों को वापस लिया जाए और गिरफ्तार किए गए किसान नेताओं को तुरंत रिहा कर दिया जाए, को अभी तक पूरा नहीं किया है। SKM ने कहा कि, हरियाणा का पुलिस प्रशासन शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे किसानों पर राजद्रोह और अन्य गंभीर आरोप लगाने में अपनी हद से आगे बढ़ रही है और यह पूरी तरह से आपत्तिजनक और अस्वीकार्य है। यही नहीं, किसान नेताओं ने चंडीगढ़ में पुलिस द्वारा 13 साल के मासूम बच्चे की गिरफ्तारी का संज्ञान लेते हुए कहा कि चंडीगढ़ पुलिस ने तानाशाही का नया इतिहास लिखा है। लेकिन बच्चे के जज्बे के आगे मोदी की पूरी सल्तनत नेस्तनाबूद है। कहा जालिम सरकार हारेगी, किसान जीतेगा।
SKM ने कहा कि भारत सरकार ने मानसून सत्र के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक 2021 (फिर से जारी किए अध्यादेश को बदलने के लिए) के साथ-साथ विद्युत संशोधन विधेयक 2021 को विधायी व्यवसाय के तहत सूचीबद्ध किया है। SKM ने सरकार को इन मामलों पर 30 दिसंबर 2020 को प्रदर्शन कर रहे किसानों के प्रति की गई प्रतिबद्धता से मुकरने के खिलाफ चेतावनी दी है।
पीपुल्स व्हिप के अभिनव प्रयोग पर SKM का कहना है कि जनता द्वारा चुने गये ये नेता जनता की इच्छा से बंधे हैं। अगर इन्होंने पीपुल्स व्हिप का उल्लंघन किया तो फिर जनता इनका राजनीतिक जीवन खत्म कर देगी।
यही नहीं, मोर्चा नेताओं बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, हन्नान मुल्ला, जगजीत सिंह दल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहन, शिवकुमार शर्मा ‘कक्काजी’, युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव आदि ने कहा कि विभिन्न सीमाओं पर किसानों के विरोध कैंप लगातार बारिश से जूझ रहे है। यहां के किसान बहादुरी और बिना शिकायत के कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। दरअसल वे बारिश पर खुशी जाहिर कर रहे हैं, क्योंकि यह बोई गई खरीफ फसलों के लिए अच्छा है। इसके साथ ही SKM ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि राजनीतिक नेताओं के सामाजिक बहिष्कार और उनके खिलाफ काले झंडे के विरोध के संबंध में, कि यह भाजपा और सहयोगी दलों के नेताओं पर लक्षित है, न कि अन्य दलों पर। इसके साथ ही आंदोलन के अहम घटक बीकेयू टिकैत ने स्पष्ट किया है कि उसकी चुनाव लड़ने की कोई योजना नहीं है। बीकेयू टिकैत ने इस संबंध में उत्पन्न हुए भ्रम के लिए दैनिक जागरण (हिंदी दैनिक) की जानबूझकर गलत रिपोर्टिंग को जिम्मेदार ठहराया और इस अखबार के बहिष्कार का आह्वान किया। सिसौली में हुई इस पंचायत में नरेश टिकैत ने कहा कि आने वाले चुनाव में भाजपा को सबक सिखाना होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा नेता चुना जाना चाहिए कि अगर वह या उसका दल कोई फैसला किसानों के खिलाफ करे तो वह नागरिकों से आकर माफी मांगे और साथ ही अपने पदों से इस्तीफा दे। बीकेयू-टिकैत मतदाताओं से इस बात का ध्यान रखने की अपील करेगा
चौधरी नरेश टिकैत ने पंचायत में कहा कि अबकी बार उस पार्टी व विधायक का समर्थन करेंगे जिससे हम जरूरत पड़ने पर जब चाहे पंचायत में इस्तीफा मांग सकें, कहा कि हमारे बीच जो जयचंद है, उनका भी इलाज किया जाएगा। इस दौरान भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने कहा कि पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में एक महापंचायत की जाएगी जिसे मोर्चा नेताओं द्वारा भी संबोधित किया जाएगा। यह महापंचायत भाकियू के लिए प्रतिष्ठा और मान सम्मान की पंचायत होगी तो वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को गद्दी से उतारने की रणनीति की दृष्टि से भी अहम होगी।
उन्होंने भाजपा सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि फर्जी मामले दर्ज करा कर लोगों में भय पैदा कर दिया है। आज किसान वर्ग पूरा खतरे में है। उन्होंने किसानों से गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में लगातार भागेदारी करने का आह्ववान। पंचायत में बड़ौत के प्रदीप आत्रे हत्याकांड में मौजिजाबाद नांगल के प्रधान को जेल भेजने का मामला उठाया गया, जिस पर बागपत के पुसार गांव में 23 जुलाई को पंचायत करने का निर्णय लिया गया। कहा कि भाजपा की बहुत मदद की, सरकार बनवाई। मगर आज भाजपा सरकार किसानों की सुनने को तैयार नहीं है। आज किसान वर्ग पूरा खतरे में है। अब भाजपा का इलाज करने का समय आ गया है।
टिकैत ने कहा कि 5 सितंबर की महापंचायत मुजफ्फरनगर की धरती पर ऐतिहासिक पंचायत होगी। कहा हमने 35 साल के किसान यूनियन के अनुभव को देखते हुए यह माना है कि यह सरकार और सभी सरकारों के मुकाबले सबसे जिद्दी और अड़ियल सरकार है, अगर यह सरकार नहीं बदली गई तो आने वाले भविष्य में किसान बिरादरी ही समाप्त हो जाएगी। हमें आपस के सभी मतभेद भुलाकर इस महापंचायत के लिए सभी को तैयार करना है। हमें अपने काम धंधे के साथ-साथ एक निगाह अपनी खेती पर और दूसरी इस आंदोलन पर रखनी है, इस आंदोलन को हमें चलाना है। इस आंदोलन में सभी प्रकार के सहयोग की आवश्यकता होगी जो सभी किसान मिलजुल कर अपनी इच्छा अनुसार देंगे और आंदोलन को सफल बनाने का काम करेंगे।
हालांकि ऐसे में यह सवाल भी अपने आप मे मौजूं हैं कि आखिर इतने सब पर भी मोदी सरकार कृषि कानून क्यों नहीं बदल रही है? जी हां, केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन शुरू होने के बाद संसद का दूसरा सत्र शुरू होने वाला है। किसानों के साथ सरकार ने आखिरी बार 22 जनवरी को बात की थी। उसके बाद किसानों से बात करने और आंदोलन खत्म कराने का कोई प्रयास नहीं हुआ है। सरकार की ओर से बार बार कहा जा रहा है कि कानूनों को रद्द करने के अलावा बाकी हर मुद्दे पर वह किसानों से बात करने को तैयार है। अब तो किसानों के हितैषी और विपक्ष के महत्वपूर्ण नेता शरद पवार ने भी कह दिया है कि कानून पूरी तरह से रद्द करने की जरूरत नहीं है, बल्कि जिन प्रावधानों से किसानों को आपत्ति है उन्हें बदला जाए। तभी सवाल है कि केंद्र सरकार इन कानूनों को बदलने की पहल क्यों नहीं कर रही है? सरकार ने किसानों के साथ आखिरी बार बातचीत से पहले कुछ बदलावों पर सहमति जताई थी। तीनों कानूनों को मिला कर कोई एक दर्जन प्रावधान थे, जिन्हें बदलने को सरकार तैयार थी।
सरकार ने खुद कहा था कि कांट्रैक्ट पर खेती की मंजूरी देने वाले कानून में अदालत में सुनवाई का प्रावधान करने को वह राजी है। अभी तक कांट्रैक्ट पर खेती वाले कानून में यह प्रावधान है कि किसी तरह का विवाद होने पर एसडीएम के यहां सुनवाई होगी। इस तरह से कानूनों में कई छोटे-छोटे बदलावों के लिए सरकार राजी हो गई थी। अगर सरकार सचमुच इनके प्रति गंभीर है तो इन बदलावों को लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। सरकार तीनों कानूनों में जरूरी संशोधन का प्रस्ताव संसद में ला सकती है। उसके बाद सरकार बदले हुए कानून को सामने रख कर किसानों से बात करे तो विवाद सुलझाने में आसानी होगी। सरकार को इससे राजनीतिक फायदा भी संभव है क्योंकि पवार की पार्टी इन बदलावों का समर्थन कर सकती है। इससे संसद में विपक्ष बंटा हुआ दिखेगा। उसके बाद सरकार के ऊपर कानून को पूरी तरह से रद्द करने का दबाव कम होगा। अगर सरकार गंभीर होती और वह किसान आंदोलन खत्म कराने के बारे में गंभीरता से सोच रही होती तो उसका पहला कदम यह होता कि वह अपनी तरफ से पहल करके कानूनों में संशोधन करती।
ऐसा लग रहा है कि सरकार इस चिंता में संशोधन नहीं कर रही है कि एक बार फिर संसद में किसान कानून का मुद्दा आया तो विपक्ष को हंगामा करने का मौका मिलेगा। ध्यान रहे पहली बार जब कानून पास कराया गया था तब राज्यसभा में बहुत विवाद हुआ था और विपक्षी सांसदों को निलंबित भी किया गया था। उस किस्म के किसी विवाद से बचने के लिए सरकार चुपचाप बैठी है। वह न तो किसानों से बात कर रही है और कानून में अपनी तरफ से कोई संशोधन कर रही है। उलटे कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूती देने के एक लाख करोड़ रुपए के प्रावधान का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। हालांकि किसान ऐसी किसी बात के असर में नहीं आ रहे हैं। उल्टे किसानों ने तय किया है कि वे 22 जुलाई से हर दिन दो सौ किसान दिल्ली जाएंगे और प्रदर्शन करेंगे। यानी साफ है कि संसद के मॉनसून सत्र पर किसान आंदोलन की छाया लगातार गहरी बनी रहेगी।
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