अब किसान आंदोलन का केंद्र बनेगा उत्तर प्रदेश, चढूनी के सवाल से हरकत में दिख रहे किसान नेता

Written by Navnish Kumar | Published on: May 28, 2021
इसमें कोई दो-राय नहीं कि लालकिला प्रकरण के बाद किसान आंदोलन समाप्ति की ओर अग्रसर हो चला था। भाकियू प्रवक्ता चौ राकेश टिकैत के आंसुओं का ही असर था कि आंदोलन न केवल खत्म होने से बचा, बल्कि मजबूत भी हुआ। बात करें तो यह अब तक का सबसे लंबे समय तक चलने वाला आंदोलन है। इसमें भी कोई अतिश्योक्ति वाली कोई बात नहीं है कि कृषि बिलों के खिलाफ किसान आंदोलन का आगाज पंजाब से हुआ। ठहराव हरियाणा और दिल्ली में रहा लेकिन भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं के असर के बाद फोकस वेस्ट यूपी पर आ गया था। लेकिन इसे यूपी के किसान नेताओं में संघर्ष के जज्बे की कमी या नेतृत्व क्षमता का अभाव कहें या लापरवाही या फिर यूपी सरकार का सख्त रवैया कारण हो, यूपी में ज्यादा देर तक आंदोलन का फोकस नहीं रह सका है। वर्तमान की बात करें तो किसान आंदोलन का फोकस फिर से हरियाणा व पंजाब पर हो गया है। 



हालांकि आंदोलन को 6 माह बीतने के बावजूद यूपी के किसानों में भी, आंदोलन की शुरूआत जैसा ही जोश दिख रहा है। किसानों ने हक लिए बगैर वापस नहीं लौटने का संकल्प लिया है। गन्ना और गेहूं कटाई के बाद खाली हुए किसानों ने फिर से दिल्ली की तरफ कूच करना शुरू कर दिया है। बुधवार को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर देहात क्षेत्र में किसानों ने पूरे जोश के साथ काला दिवस मनाया। अपने घरों व ट्रैक्टरों पर काले झंडे लगाकर सरकार का विरोध किया। इस दौरान केंद्र सरकार के पुतले भी दहन किए गए और काला दिवस की तमाम गतिविधियों को सोशल मीडिया पर वायरल किया गया।

खैर बात उप्र में किसान आंदोलन की। तो भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष व संयुक्त मोर्चा के सदस्य गुरनाम सिंह चढूनी ने आंदोलन को लेकर यूपी के किसानों और वहां के नेताओं को घेरा है। चढूनी ने यूपी में आंदोलन को लेकर कई सवाल उठाए हैं। चढूनी ने कहा कि किसान आंदोलन में सबसे ज्यादा हरियाणा जुड़ा है और यहां के किसान लगातार सरकार पर दबाव बनाने के लिए सीएम से लेकर मंत्रियों, सांसद व विधायकों के कार्यक्रमों का विरोध कर रहे हैं। इसके उलट चढूनी ने उप्र में संयुक्त किसान मोर्चा के एलान के मुताबिक कोई भी आंदोलन नहीं करने का आरोप लगाया है।

चढ़ूनी ने आरोप लगाया कि यूपी में भाजपा सरकार होने के बावजूद, वहां किसी भी नेता का विरोध नहीं किया जा रहा है। चढूनी ने कहा कि एक ही दिन हरियाणा में सीएम मनोहर लाल खट्टर का किसान विरोध कर रहे थे और उसी दिन यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ आराम से गांवों में घूम रहे थे। अगर हरियाणा की तरह यूपी में विरोध होगा तो आंदोलन ज्यादा बड़ा हो जाएगा और सरकार पर दबाव बढ़ेगा। गुरनाम चढूनी ने कहा कि हरियाणा के अधिकारी भी अब यह कहने लगे हैं कि जब यूपी में आंदोलन नहीं करते हो तो यहां बवाल क्यों किया जाता है। 

चढूनी ने यहां तक कहा कि यूपी में मंडी नहीं हैं और उनकी फसल तक नहीं बिकती है, फिर भी यहां के किसान विरोध नहीं कर रहे हैं। यूपी में आज तक टोल प्लाजा नहीं रोके गए और गाजीपुर बॉर्डर पर भी केवल 500 किसान बैठे हुए हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को किसी नेता की अगुवाई की जरूरत नहीं है और यूपी में किसानों को खुद आगे आकर आंदोलन तेज करना होगा। इस तरह से चढूनी ने यूपी के किसानों को पूरी तरह से घेरा है और वहां के किसान नेताओं पर बड़े सवाल उठाए हैं। 

चढूनी ने कहा है कि यूपी के किसानों को बिना किसी अगुवाई के के खुद ही आगे आकर आंदोलन तेज करना चाहिए। आरोपों पर भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी सफाई दी है कि यूपी में नेताओं को किसानों का इतना डर है कि वे गांवों में नहीं आ रहे हैं। हालांकि कम आंदोलन की बात को टिकैत ने भी माना है। उन्होंने कहा है कि कोरोना संक्रमण कम होते ही, यूपी में अन्य जगहों के मुकाबले आंदोलन को ज्यादा तेज किया जाएगा। यही नहीं, जिस तरह से दो दिन से मेरठ, मुजफ्फरनगर में टोल फ्री कराए गए हैं, जानकार हलकों में उसे चढूनी की नसीहत के असर के तौर पर ज्यादा देखा जा रहा है। 

भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि इस तरह की बात कहने वालों को शायद यह नहीं पता है कि यूपी में किसानों का नेताओं के अंदर बड़ा डर है। वहां किसानों के डर के कारण ही नेताओं ने गांवों में आना छोड़ दिया है, लेकिन फिर भी यूपी में आंदोलन को तेज किया जाएगा और इसके लिए किसानों को तैयार किया जा रहा है। टिकैत ने कहा कि यूपी के किसान हमेशा से आंदोलन में सबसे आगे रहे हैं और इस आंदोलन में भी सबसे आगे यूपी के किसान खड़े हुए हैं। इसलिए इस तरह की बात कहकर मनोबल नहीं तोड़ना चाहिए। 

अब टिकैत सफाई में कुछ कहें लेकिन इतना साफ है कि चढूनी की नसीहत के बाद किसान आंदोलन का फोकस उत्तर प्रदेश पर बढ़ने जा रहा है। अब यह कितनी जल्दी होता है देखने वाली बात होगी। वैसे भी 8 माह बाद उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में चुनाव होने हैं जिससे भी सभी की नजरें अब उत्तर प्रदेश पर ही लगी हैं।
 

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