राजस्थान पुलिस की मासिक रिपोर्ट में सामने आया है कि जुलाई 2025 तक दलितों के खिलाफ 3,651 अत्याचार के मामले दर्ज किए गए, जिनमें 44 हत्याएँ और 325 बलात्कार शामिल हैं।

फोटो साभार : दैनिक भास्कर
राजस्थान के भीलवाड़ा ज़िले के आसींद थाना क्षेत्र के बराणा गाँव में पिछले महीने खाखुलदेव मंदिर में एक दलित पुजारी और उसके परिवार पर कुछ जातिवादी लोगों द्वारा सामूहिक हमला करने का मामला सामने आया है। यह घटना केवल साधारण मारपीट नहीं थी, बल्कि इसे उस दलित परिवार से अधिकार छीनने की एक सुनियोजित और संगठित साज़िश माना जा रहा है, जो पिछले चार पीढ़ियों से इस 400 साल पुराने मंदिर का अधिकार और प्रबंधन संभाल रहा था।
इन निष्कर्षों को एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पेश किया है। इस टीम ने घटनास्थल का दौरा कर पीड़ित परिवार, स्थानीय लोगों और संबंधित अधिकारियों से बातचीत की। यह रिपोर्ट 22 अगस्त 2025 को गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम की जाँच पर आधारित है, जिसे दलित आदिवासी एवं घुमंतू अधिकार अभियान राजस्थान, पीपल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ (PUCL), अंबेडकर वेलफ़ेयर सोसाइटी और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने मिलकर तैयार किया। इस दल का प्रमुख उद्देश्य था कि 14 अगस्त को दलित पुजारी विष्णु मेघवंशी और उनके परिवार पर हुए सुनियोजित हमले की सच्चाई उजागर की जाए, पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाया जाए और राजस्थान में दलित समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा व उनकी आवाज़ को सशक्त बनाया जाए।
फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार, 14 अगस्त की रात करीब 10 बजे जातिवादी हिंदू समूह के कुछ प्रभावशाली लोगों के नेतृत्व में लगभग 50–60 लोगों का एक समूह ‘खाखुलदेव मंदिर’ में जबरन घुस आया और पुजारी विष्णु मेघवंशी व उनके परिवार पर जातिगत गाली-गलौज करते हुए हमला कर दिया। हमलावरों ने परिवार की महिलाओं सहित आठ लोगों को पीटा और उन्हें मंदिर से बाहर निकालने की कोशिश की। इसके अगले दिन यानी 15 अगस्त को हमलावरों ने फिर मंदिर में घुसकर दानपात्रों को धारदार हथियारों से तोड़कर लूट लिया। हमले के बाद विष्णु मेघवंशी ने आसींद पुलिस थाने में एफआईआर नंबर 218/2025 दर्ज कराई, जिसमें BNS धारा 189(2), 115(2), 126(2), 303(2), 74, 342(2) और SC/ST (PoA) Act की धारा 3(1)(r), 3(1)(s), 3(2)(va) शामिल हैं।
हमलावरों ने “सकल हिंदू समाज” के बैनर तले गैर-अनुसूचित जातियों को एकजुट करते हुए मंदिर प्रबंधन में अव्यवस्था और पारंपरिक नियमों के उल्लंघन का झूठा आरोप लगाया। इसके तहत, 18 अगस्त 2025 को एक विरोध प्रदर्शन और 21 अगस्त को महापंचायत की गई, जिसमें दलित पुजारी को मंदिर से हटाने की माँग उठाई गई। यह पूरी घटना एक सुनियोजित साज़िश के तहत हुई, जिसका उद्देश्य दलित समुदाय को धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों से बाहर करना और सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुँचाना था।
इस घटना की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़ी है। फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार, खाखोले जी महाराज मंदिर की स्थापना लगभग 400 वर्ष पूर्व पुजारी विष्णु मेघवंशी की दादी लक्ष्मी देवी के पूर्वजों ने अपनी निजी ज़मीन पर की थी। तब से लेकर आज तक इस मंदिर की पूजा-अर्चना, देखरेख और प्रबंधन की ज़िम्मेदारी इसी दलित परिवार के पास रही है। मान्यता के अनुसार, इस परिवार के पूर्वज घेला मेघवंशी को एक दिव्य स्वप्न में देवता ने दर्शन दिए थे और उन्हें मंदिर निर्माण का आदेश दिया था। समय के साथ यह मंदिर न केवल धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बना बल्कि आसपास के क्षेत्र में आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी हो गया।
रिपोर्ट में बताया गया है कि मंदिर की बढ़ती लोकप्रियता और उससे जुड़े संसाधनों पर नियंत्रण चाहने वाले स्थानीय प्रभावशाली समुदाय के कुछ लोगों ने इस दलित परिवार को मंदिर प्रबंधन से बेदखल करने की साज़िश रची। उन्होंने गाँव में यह भ्रामक प्रचार फैलाया कि मंदिर एक ‘ट्रस्ट’ के अधीन है और वर्तमान दलित पुजारी पारंपरिक रीति-रिवाजों का उल्लंघन कर रहा है। जबकि रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि मंदिर से संबंधित कोई वैधानिक ट्रस्ट दस्तावेज़ मौजूद ही नहीं है। हमले के बाद, इन तत्वों ने ‘सर्व हिंदू समाज’ के नाम से प्रेस कॉन्फ्रेंस और धरना आयोजित कर अपने झूठे नैरेटिव को और हवा दी।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, एफआईआर दर्ज होने के बावजूद किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई। इसका नतीजा यह है कि आरोपी न केवल खुलेआम घूम रहे हैं बल्कि पीड़ित परिवार को लगातार डराने-धमकाने की कोशिश भी कर रहे हैं। प्रशासनिक लापरवाही के चलते आरोपियों के हौसले और बढ़ गए हैं, जिससे गाँव में भय और असुरक्षा का माहौल बन गया है।
टीम ने अपनी रिपोर्ट में इस घटना को राजस्थान में दलित समुदाय के खिलाफ लंबे समय से जारी सामाजिक उत्पीड़न की व्यापक पृष्ठभूमि से जोड़ा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दलितों को राज्य में वर्षों से सामाजिक बहिष्कार, मंदिरों में प्रवेश पर रोक और हिंसक हमलों का सामना करना पड़ रहा है। जुलाई 2025 तक राजस्थान पुलिस की मासिक रिपोर्ट के अनुसार, दलित समुदाय के खिलाफ अत्याचार के कुल 3,651 मामले दर्ज हुए, जिनमें 44 हत्याएँ और 325 बलात्कार के मामले शामिल हैं। रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि आसींद क्षेत्र में मेघवंशी समुदाय को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है, और प्रशासनिक स्तर पर प्रभावी कार्रवाई की कमी इन घटनाओं को और बढ़ावा दे रही है।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पीड़ित परिवार, स्थानीय मेघवंशी समुदाय और प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि यह हमला पूरी तरह जातिगत भेदभाव से प्रेरित था। मेघवंशी समुदाय का स्पष्ट कहना है कि खाखोले जी मंदिर उनके पूर्वजों की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है और इसे जबरन हथियाने का प्रयास न केवल उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह भारतीय संविधान में प्रदत्त समानता और न्याय के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है। रिपोर्ट में दलित संगठनों ने प्रशासन की निष्क्रियता को गहरी चिंता का विषय बताया है और दोषियों के खिलाफ त्वरित व सख़्त कार्रवाई की माँग की है।
हालाँकि आसींद पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने मामले की निष्पक्ष जाँच का दावा किया है, लेकिन पीड़ित पक्ष का आरोप है कि पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने में जानबूझकर देरी की और आरोपियों को अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण दिया। 20 अगस्त 2025 को दलित संगठनों और मेघवंशी समुदाय ने आसींद में ज्ञापन सौंपकर मामले की त्वरित जाँच और दोषियों की शीघ्र गिरफ्तारी की माँग की थी। इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, जिससे आरोपियों का मनोबल और बढ़ गया है और पीड़ित परिवार असुरक्षित महसूस कर रहा है।
घुमंतू अधिकार अभियान / दलित अधिकार संगठनों की माँगें:
दलित आदिवासी एवं घुमंतू अधिकार अभियान, PUCL और अन्य संगठन निम्नलिखित माँगें करते हैं—
आरोपियों की गिरफ्तारी – एफआईआर संख्या 218/2025 में नामजद आरोपियों संपत लाल पुत्र श्रवण लाल जाट, मिश्रीलाल पुत्र उदा जाट, बन्ना राम पुत्र हरदेव जाट, डालुराम पुत्र कल्याण जाट, शंकर लाल पुत्र बन्ना जाट, गजु पुत्र गोपी जाट, पोखर पुत्र जमना जाट, सांवर पुत्र हरदेव जाट और अन्य सह-आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी हो और SC/ST (PoA) Act के तहत सख़्त कार्रवाई की जाए।
दानपात्र की बहाली – 15 अगस्त 2025 को तोड़े गए दानपात्र को जब्त कर मंदिर में पुनः स्थापित किया जाए और इसके लिए इस्तेमाल औज़ार बरामद किए जाएँ।
निष्पक्ष जाँच – मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला पुलिस अधीक्षक की निगरानी में त्वरित और निष्पक्ष जाँच हो और SC/ST (PoA) Act के तहत सक्षम न्यायालय में अभियोजन पेश किया जाए।
पीड़ितों की सुरक्षा – SC/ST (PoA) Act की धारा 15(1)(c) के तहत पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
आर्थिक सहायता – SC/ST (PoA) Act के नियम 12(4) के तहत पीड़ितों को तुरंत आर्थिक सहायता दी जाए।
सामाजिक शांति – क्षेत्र में सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए संवेदनशील इलाक़ों की पहचान कर निवारक उपाय लागू किए जाएँ।
आरोपियों पर रोक – बार-बार मंदिर परिसर में सभाएँ आयोजित करने और भड़काऊ बयान देने वाले आरोपियों के खिलाफ SC/ST (PoA) Act की धारा 10(1) और 17(1) के तहत कार्रवाई की जाए।
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फोटो साभार : दैनिक भास्कर
राजस्थान के भीलवाड़ा ज़िले के आसींद थाना क्षेत्र के बराणा गाँव में पिछले महीने खाखुलदेव मंदिर में एक दलित पुजारी और उसके परिवार पर कुछ जातिवादी लोगों द्वारा सामूहिक हमला करने का मामला सामने आया है। यह घटना केवल साधारण मारपीट नहीं थी, बल्कि इसे उस दलित परिवार से अधिकार छीनने की एक सुनियोजित और संगठित साज़िश माना जा रहा है, जो पिछले चार पीढ़ियों से इस 400 साल पुराने मंदिर का अधिकार और प्रबंधन संभाल रहा था।
इन निष्कर्षों को एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पेश किया है। इस टीम ने घटनास्थल का दौरा कर पीड़ित परिवार, स्थानीय लोगों और संबंधित अधिकारियों से बातचीत की। यह रिपोर्ट 22 अगस्त 2025 को गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम की जाँच पर आधारित है, जिसे दलित आदिवासी एवं घुमंतू अधिकार अभियान राजस्थान, पीपल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ (PUCL), अंबेडकर वेलफ़ेयर सोसाइटी और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने मिलकर तैयार किया। इस दल का प्रमुख उद्देश्य था कि 14 अगस्त को दलित पुजारी विष्णु मेघवंशी और उनके परिवार पर हुए सुनियोजित हमले की सच्चाई उजागर की जाए, पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाया जाए और राजस्थान में दलित समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा व उनकी आवाज़ को सशक्त बनाया जाए।
फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार, 14 अगस्त की रात करीब 10 बजे जातिवादी हिंदू समूह के कुछ प्रभावशाली लोगों के नेतृत्व में लगभग 50–60 लोगों का एक समूह ‘खाखुलदेव मंदिर’ में जबरन घुस आया और पुजारी विष्णु मेघवंशी व उनके परिवार पर जातिगत गाली-गलौज करते हुए हमला कर दिया। हमलावरों ने परिवार की महिलाओं सहित आठ लोगों को पीटा और उन्हें मंदिर से बाहर निकालने की कोशिश की। इसके अगले दिन यानी 15 अगस्त को हमलावरों ने फिर मंदिर में घुसकर दानपात्रों को धारदार हथियारों से तोड़कर लूट लिया। हमले के बाद विष्णु मेघवंशी ने आसींद पुलिस थाने में एफआईआर नंबर 218/2025 दर्ज कराई, जिसमें BNS धारा 189(2), 115(2), 126(2), 303(2), 74, 342(2) और SC/ST (PoA) Act की धारा 3(1)(r), 3(1)(s), 3(2)(va) शामिल हैं।
हमलावरों ने “सकल हिंदू समाज” के बैनर तले गैर-अनुसूचित जातियों को एकजुट करते हुए मंदिर प्रबंधन में अव्यवस्था और पारंपरिक नियमों के उल्लंघन का झूठा आरोप लगाया। इसके तहत, 18 अगस्त 2025 को एक विरोध प्रदर्शन और 21 अगस्त को महापंचायत की गई, जिसमें दलित पुजारी को मंदिर से हटाने की माँग उठाई गई। यह पूरी घटना एक सुनियोजित साज़िश के तहत हुई, जिसका उद्देश्य दलित समुदाय को धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों से बाहर करना और सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुँचाना था।
इस घटना की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़ी है। फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार, खाखोले जी महाराज मंदिर की स्थापना लगभग 400 वर्ष पूर्व पुजारी विष्णु मेघवंशी की दादी लक्ष्मी देवी के पूर्वजों ने अपनी निजी ज़मीन पर की थी। तब से लेकर आज तक इस मंदिर की पूजा-अर्चना, देखरेख और प्रबंधन की ज़िम्मेदारी इसी दलित परिवार के पास रही है। मान्यता के अनुसार, इस परिवार के पूर्वज घेला मेघवंशी को एक दिव्य स्वप्न में देवता ने दर्शन दिए थे और उन्हें मंदिर निर्माण का आदेश दिया था। समय के साथ यह मंदिर न केवल धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बना बल्कि आसपास के क्षेत्र में आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी हो गया।
रिपोर्ट में बताया गया है कि मंदिर की बढ़ती लोकप्रियता और उससे जुड़े संसाधनों पर नियंत्रण चाहने वाले स्थानीय प्रभावशाली समुदाय के कुछ लोगों ने इस दलित परिवार को मंदिर प्रबंधन से बेदखल करने की साज़िश रची। उन्होंने गाँव में यह भ्रामक प्रचार फैलाया कि मंदिर एक ‘ट्रस्ट’ के अधीन है और वर्तमान दलित पुजारी पारंपरिक रीति-रिवाजों का उल्लंघन कर रहा है। जबकि रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि मंदिर से संबंधित कोई वैधानिक ट्रस्ट दस्तावेज़ मौजूद ही नहीं है। हमले के बाद, इन तत्वों ने ‘सर्व हिंदू समाज’ के नाम से प्रेस कॉन्फ्रेंस और धरना आयोजित कर अपने झूठे नैरेटिव को और हवा दी।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, एफआईआर दर्ज होने के बावजूद किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई। इसका नतीजा यह है कि आरोपी न केवल खुलेआम घूम रहे हैं बल्कि पीड़ित परिवार को लगातार डराने-धमकाने की कोशिश भी कर रहे हैं। प्रशासनिक लापरवाही के चलते आरोपियों के हौसले और बढ़ गए हैं, जिससे गाँव में भय और असुरक्षा का माहौल बन गया है।
टीम ने अपनी रिपोर्ट में इस घटना को राजस्थान में दलित समुदाय के खिलाफ लंबे समय से जारी सामाजिक उत्पीड़न की व्यापक पृष्ठभूमि से जोड़ा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दलितों को राज्य में वर्षों से सामाजिक बहिष्कार, मंदिरों में प्रवेश पर रोक और हिंसक हमलों का सामना करना पड़ रहा है। जुलाई 2025 तक राजस्थान पुलिस की मासिक रिपोर्ट के अनुसार, दलित समुदाय के खिलाफ अत्याचार के कुल 3,651 मामले दर्ज हुए, जिनमें 44 हत्याएँ और 325 बलात्कार के मामले शामिल हैं। रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि आसींद क्षेत्र में मेघवंशी समुदाय को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है, और प्रशासनिक स्तर पर प्रभावी कार्रवाई की कमी इन घटनाओं को और बढ़ावा दे रही है।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पीड़ित परिवार, स्थानीय मेघवंशी समुदाय और प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि यह हमला पूरी तरह जातिगत भेदभाव से प्रेरित था। मेघवंशी समुदाय का स्पष्ट कहना है कि खाखोले जी मंदिर उनके पूर्वजों की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है और इसे जबरन हथियाने का प्रयास न केवल उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह भारतीय संविधान में प्रदत्त समानता और न्याय के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है। रिपोर्ट में दलित संगठनों ने प्रशासन की निष्क्रियता को गहरी चिंता का विषय बताया है और दोषियों के खिलाफ त्वरित व सख़्त कार्रवाई की माँग की है।
हालाँकि आसींद पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने मामले की निष्पक्ष जाँच का दावा किया है, लेकिन पीड़ित पक्ष का आरोप है कि पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने में जानबूझकर देरी की और आरोपियों को अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण दिया। 20 अगस्त 2025 को दलित संगठनों और मेघवंशी समुदाय ने आसींद में ज्ञापन सौंपकर मामले की त्वरित जाँच और दोषियों की शीघ्र गिरफ्तारी की माँग की थी। इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, जिससे आरोपियों का मनोबल और बढ़ गया है और पीड़ित परिवार असुरक्षित महसूस कर रहा है।
घुमंतू अधिकार अभियान / दलित अधिकार संगठनों की माँगें:
दलित आदिवासी एवं घुमंतू अधिकार अभियान, PUCL और अन्य संगठन निम्नलिखित माँगें करते हैं—
आरोपियों की गिरफ्तारी – एफआईआर संख्या 218/2025 में नामजद आरोपियों संपत लाल पुत्र श्रवण लाल जाट, मिश्रीलाल पुत्र उदा जाट, बन्ना राम पुत्र हरदेव जाट, डालुराम पुत्र कल्याण जाट, शंकर लाल पुत्र बन्ना जाट, गजु पुत्र गोपी जाट, पोखर पुत्र जमना जाट, सांवर पुत्र हरदेव जाट और अन्य सह-आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी हो और SC/ST (PoA) Act के तहत सख़्त कार्रवाई की जाए।
दानपात्र की बहाली – 15 अगस्त 2025 को तोड़े गए दानपात्र को जब्त कर मंदिर में पुनः स्थापित किया जाए और इसके लिए इस्तेमाल औज़ार बरामद किए जाएँ।
निष्पक्ष जाँच – मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला पुलिस अधीक्षक की निगरानी में त्वरित और निष्पक्ष जाँच हो और SC/ST (PoA) Act के तहत सक्षम न्यायालय में अभियोजन पेश किया जाए।
पीड़ितों की सुरक्षा – SC/ST (PoA) Act की धारा 15(1)(c) के तहत पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
आर्थिक सहायता – SC/ST (PoA) Act के नियम 12(4) के तहत पीड़ितों को तुरंत आर्थिक सहायता दी जाए।
सामाजिक शांति – क्षेत्र में सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए संवेदनशील इलाक़ों की पहचान कर निवारक उपाय लागू किए जाएँ।
आरोपियों पर रोक – बार-बार मंदिर परिसर में सभाएँ आयोजित करने और भड़काऊ बयान देने वाले आरोपियों के खिलाफ SC/ST (PoA) Act की धारा 10(1) और 17(1) के तहत कार्रवाई की जाए।
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