नई दिल्ली: प्रयागराज के कुम्भ क्षेत्र में युवा संत आत्मबोधानंद के उपवास को लेकर, उनके स्वास्थ्य और उनकी मांग दोनों के प्रति गंगा स्नान करने आए लोगों में चेतना और चिंता बढ़ी है। सिर्फ सामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि आम नागरिक भी संत आत्मबोधानंद जी की मांग को समझ रहे हैं। इस मुद्दे पर लोग अलग-अलग जगह से प्रधानमंत्री को पत्र भेज रहे हैं और उनसे मांग कर रहे हैं कि वे इस युवा संत से बात करें, जिसके साथ गंगा के प्रति प्रेम और चिंता रखने वाले तमाम लोग शामिल हैं।
मंगलवार को हिमाचल, धर्मशाला में कांगड़ा व अन्य जिलों के नागरिक-सामाजिक संगठनों के करीबन 100 प्रतिनिधियों ने गंगा व हिमालय की नदियों को अविरल और निर्मल बहने की मांग को लेकर एक दिवसीय उपवास और सार्वजनिक बैठक की। इस बैठक में पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यु ने कहा, "गंगा और उसकी सहायक नदियों पर प्रस्तावित सभी 54 बांधों पर रोक लगाई जाए। गंगा के बहाव के निचले इलाकों में बढ़ते प्रदूषण, अवैध रेत खनन और बड़े पैमाने पर वनों की कटाई पर सख्त कार्यवाही की जाए। इसके अलावा गंगा अधिनियम जो गंगा बेसिन के जलग्रहण क्षेत्र के सरंक्षण को मजबूती देता है, जल्द से जल्द सरकार द्वारा पारित किया जाए। जगोरी ग्रामीण संगठन से आईं आभा ने कहा कि इन तथाकथित विकास योजनाओं से हिंसा बड़ी है। हिम धारा समूह के सुमित मेहर ने कहा कि बांधों से गंगा में तमाम नदियों की हत्या हो रही है।
दिल्ली में दलित साहित्य महोत्सव में आए देश भर के दलित साहित्यकारों ने एक वक्तव्य जारी कर गंगा की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए युवा संघ के उपवास को समर्थन दिया। दलित साहित्यकारों ने सरकार से अपील की है कि वे तुरंत उनसे बात करें। महोत्सव के संयोजक संजीव ढांडा ने गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिए जाने के बाद भी प्रदूषण मुक्त और बांध मुक्त ना किए जाने पर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार को चाहिए कि चुनाव से पहले वे गंगा के पुनर्जीवन वाले अपने वादे को पूरा करें।
दिल्ली को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए कार्यरत शकील भी जंतर मंतर पहुंचे। उन्होंने कहा कि गंगा ने हम सबको जीवन दिया है आज उसके जीवन के के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाने वाले इस युवा संत की मांग का हम पूरी तरह समर्थन करते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष खांडेकर ने कहा कि 40 करोड़ लोगों को जीवन देने वाली गंगा अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। इंदौर से नेचर वॉलंटियर के अध्यक्ष पदमश्री से सम्मानित भालू मोघे ने गंगा नदियों के स्वतंत्र अस्तित्व की रक्षा के लिए 24 अक्टूबर से उपवास कर रहे युवा संघ आत्मबोध आनंद के साहस को जिंदाबाद कहते हुए चिंता व्यक्त की और सरकार से तुरंत कदम उठाने की मांग की।
मंगलवार को हिमाचल, धर्मशाला में कांगड़ा व अन्य जिलों के नागरिक-सामाजिक संगठनों के करीबन 100 प्रतिनिधियों ने गंगा व हिमालय की नदियों को अविरल और निर्मल बहने की मांग को लेकर एक दिवसीय उपवास और सार्वजनिक बैठक की। इस बैठक में पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यु ने कहा, "गंगा और उसकी सहायक नदियों पर प्रस्तावित सभी 54 बांधों पर रोक लगाई जाए। गंगा के बहाव के निचले इलाकों में बढ़ते प्रदूषण, अवैध रेत खनन और बड़े पैमाने पर वनों की कटाई पर सख्त कार्यवाही की जाए। इसके अलावा गंगा अधिनियम जो गंगा बेसिन के जलग्रहण क्षेत्र के सरंक्षण को मजबूती देता है, जल्द से जल्द सरकार द्वारा पारित किया जाए। जगोरी ग्रामीण संगठन से आईं आभा ने कहा कि इन तथाकथित विकास योजनाओं से हिंसा बड़ी है। हिम धारा समूह के सुमित मेहर ने कहा कि बांधों से गंगा में तमाम नदियों की हत्या हो रही है।
दिल्ली में दलित साहित्य महोत्सव में आए देश भर के दलित साहित्यकारों ने एक वक्तव्य जारी कर गंगा की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए युवा संघ के उपवास को समर्थन दिया। दलित साहित्यकारों ने सरकार से अपील की है कि वे तुरंत उनसे बात करें। महोत्सव के संयोजक संजीव ढांडा ने गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिए जाने के बाद भी प्रदूषण मुक्त और बांध मुक्त ना किए जाने पर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार को चाहिए कि चुनाव से पहले वे गंगा के पुनर्जीवन वाले अपने वादे को पूरा करें।
दिल्ली को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए कार्यरत शकील भी जंतर मंतर पहुंचे। उन्होंने कहा कि गंगा ने हम सबको जीवन दिया है आज उसके जीवन के के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाने वाले इस युवा संत की मांग का हम पूरी तरह समर्थन करते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष खांडेकर ने कहा कि 40 करोड़ लोगों को जीवन देने वाली गंगा अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। इंदौर से नेचर वॉलंटियर के अध्यक्ष पदमश्री से सम्मानित भालू मोघे ने गंगा नदियों के स्वतंत्र अस्तित्व की रक्षा के लिए 24 अक्टूबर से उपवास कर रहे युवा संघ आत्मबोध आनंद के साहस को जिंदाबाद कहते हुए चिंता व्यक्त की और सरकार से तुरंत कदम उठाने की मांग की।