बेगुसराय की लोकसभा सीट पर सीपीआई के उम्मीदवार रहे कन्हैया कुमार ने चुनावी हार के बाद सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर एक शानदार पोस्ट लिखा है। कन्हैया कुमार ने लोगों का आभार जताते हुए लिखा कि यह हार हमारे सोच की हार नहीं है बल्कि यह उन विरोधियों के बच्चों के भी भविष्य को बेहतर बनाने का संघर्ष है जो हमसे सहमत नहीं हो पा रहे हैं। कन्हैया कुमार को इस चुनाव कुल 22 प्रतिशत (2,69,976) मत मिले। अपने पोस्ट में उन्होंने क्या लिखा नीचे पढ़ें-
साथियों, आप सभी के हौसला अफ़ज़ाई के संदेशों के लिए तहे दिल से शुक्रिया। सभी को जवाब देना संभव नही हो पा रहा, इसलिए अपनी बात इस पोस्ट में लिख रहा हूँ। आपके संदेश पढ़कर लगा कि आपको शायद लग रहा है कि मैं उदास हूँ। ऐसा बिल्कुल नहीं है। मेरा मानना है कि
"चुनाव हारे हैं, जंग नहीं
हारे हैं, झुके नहीं
ज़िंदगी के लिए
सबकी ख़ुशी के लिए
चलेंगे-गिरेंगे, फिर उठेंगे
लड़ेंगे, जीतेंगे।"
इसी सोच की वजह से जीवन में यहाँ तक पहुँचा हूँ। भरोसा रखिए, आगे भी यही जज़्बा कायम रहेगा। मैंने हमेशा कहा है कि यह हक और लूट तथा सच और झूठ के बीच की लड़ाई है। संख्या बल में हार जाने पर भी सच हमेशा सच ही रहता है। संख्या बल में तो गैलीलियो भी हार गए थे और कॉपरनिकस भी। बाबा साहेब भी हार गए थे और इरोम शर्मिला भी। जब दुनिया में राजतंत्र का दौर था, तब लोकतंत्र के पक्ष में आवाज़ उठाने वालों का अधिकतर लोगों ने विरोध किया था। आज का सच यही है कि नफ़रतवादी ताकतें 85% लोगों को 15% लोगों का डर दिखाकर 99% लोगों को लूट रही हैं। यह सच भले ही संख्या बल में आज हार गया हो, लेकिन एक दिन लोग इसकी अहमियत ज़रूर समझेंगे।
चुनाव के नतीजे से जिन लोगों को निराशा हुई है उन्हें भी यह बात समझने की ज़रूरत है कि यह हार हमारी सोच की हार नहीं है। हमारा संघर्ष नफ़रत और लूट के ख़िलाफ़ है। यह हमारे उन विरोधियों के बच्चों के भी भविष्य को बेहतर बनाने का संघर्ष है जो अभी हमारी बातों से सहमत नहीं हो पा रहे हैं। आज उनकी राजनीतिक समझ कुछ और है लेकिन अगर हम उनसे संवाद बनाए रखें तो एक न एक दिन उन्हें हमारी बातें ज़रूर समझ में आएँगी।
एक दौर था जब रंगभेद, दासप्रथा आदि को समाज के बड़े तबके का समर्थन हासिल था। जिन देशों में कानूनी तौर पर रंगभेद, दासप्रथा आदि को मान्यता मिली थी, वहाँ भी जनता के आंदोलनों ने सच को सच और झूठ को झूठ साबित करके दिखाया। कोई बात सिर्फ़ इसलिए सही नहीं साबित हो जाती कि उसे एक बड़े तबके का समर्थन हासिल है।
नफ़रत और हिंसा को देशप्रेम साबित करने की कोशिश के पीछे बाजार और सत्ता के गठजोड़ की असलियत आज बहुत मज़बूत प्रचार तंत्र के कारण बहुत बड़ी आबादी के सामने नहीं आ पा रही है। लेकिन अरबों रुपये खर्च करके फ़र्ज़ी महानता की जो तस्वीर जनता के सामने रखी गई है, उसके रंग बहुत जल्द सच्चाई की गर्मी से पिघल जाएँगे। हम सबको तब तक अपना हौसला और जज़्बा बनाए रखना है और अपने विरोधियों के साथ संवाद को कायम रखते हुए जन-हित के मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद करनी है।
आपने जिस तरह तमाम मुश्किलों, धमकियों आदि का सामना करते हुए सच का साथ निभाया है उससे बहुतों को प्रेरणा मिली है। आपको अपनी यह भूमिका आने वाले समय में भी निभानी है। आपने उस चिड़िया की कहानी सुनी होगी जिसने जंगल में आग लगने पर चोंच में पानी भरकर आग बुझाने की कोशिश की थी। जब बाकी जानवरों ने उसका मज़ाक उड़ाया तो उसका जवाब था, "जब इतिहास लिखा जाएगा तो मेरा नाम आग बुझाने वालों में शामिल होगा और तुम लोगों का चुपचाप तमाशा देखने वालों में।"
डरिए मत क्योंकि डर के आगे हार है और संघर्ष के आगे जीत। आइए, हम सब यह बात याद रखें: "पहले वे आपकी उपेक्षा करेंगे, उसके बाद आप पर हँसेंगे, फिर आपसे लड़ेंगे, लेकिन उसके बाद जीत आपकी होगी।"
साथियों, आप सभी के हौसला अफ़ज़ाई के संदेशों के लिए तहे दिल से शुक्रिया। सभी को जवाब देना संभव नही हो पा रहा, इसलिए अपनी बात इस पोस्ट में लिख रहा हूँ। आपके संदेश पढ़कर लगा कि आपको शायद लग रहा है कि मैं उदास हूँ। ऐसा बिल्कुल नहीं है। मेरा मानना है कि
"चुनाव हारे हैं, जंग नहीं
हारे हैं, झुके नहीं
ज़िंदगी के लिए
सबकी ख़ुशी के लिए
चलेंगे-गिरेंगे, फिर उठेंगे
लड़ेंगे, जीतेंगे।"
इसी सोच की वजह से जीवन में यहाँ तक पहुँचा हूँ। भरोसा रखिए, आगे भी यही जज़्बा कायम रहेगा। मैंने हमेशा कहा है कि यह हक और लूट तथा सच और झूठ के बीच की लड़ाई है। संख्या बल में हार जाने पर भी सच हमेशा सच ही रहता है। संख्या बल में तो गैलीलियो भी हार गए थे और कॉपरनिकस भी। बाबा साहेब भी हार गए थे और इरोम शर्मिला भी। जब दुनिया में राजतंत्र का दौर था, तब लोकतंत्र के पक्ष में आवाज़ उठाने वालों का अधिकतर लोगों ने विरोध किया था। आज का सच यही है कि नफ़रतवादी ताकतें 85% लोगों को 15% लोगों का डर दिखाकर 99% लोगों को लूट रही हैं। यह सच भले ही संख्या बल में आज हार गया हो, लेकिन एक दिन लोग इसकी अहमियत ज़रूर समझेंगे।
चुनाव के नतीजे से जिन लोगों को निराशा हुई है उन्हें भी यह बात समझने की ज़रूरत है कि यह हार हमारी सोच की हार नहीं है। हमारा संघर्ष नफ़रत और लूट के ख़िलाफ़ है। यह हमारे उन विरोधियों के बच्चों के भी भविष्य को बेहतर बनाने का संघर्ष है जो अभी हमारी बातों से सहमत नहीं हो पा रहे हैं। आज उनकी राजनीतिक समझ कुछ और है लेकिन अगर हम उनसे संवाद बनाए रखें तो एक न एक दिन उन्हें हमारी बातें ज़रूर समझ में आएँगी।
एक दौर था जब रंगभेद, दासप्रथा आदि को समाज के बड़े तबके का समर्थन हासिल था। जिन देशों में कानूनी तौर पर रंगभेद, दासप्रथा आदि को मान्यता मिली थी, वहाँ भी जनता के आंदोलनों ने सच को सच और झूठ को झूठ साबित करके दिखाया। कोई बात सिर्फ़ इसलिए सही नहीं साबित हो जाती कि उसे एक बड़े तबके का समर्थन हासिल है।
नफ़रत और हिंसा को देशप्रेम साबित करने की कोशिश के पीछे बाजार और सत्ता के गठजोड़ की असलियत आज बहुत मज़बूत प्रचार तंत्र के कारण बहुत बड़ी आबादी के सामने नहीं आ पा रही है। लेकिन अरबों रुपये खर्च करके फ़र्ज़ी महानता की जो तस्वीर जनता के सामने रखी गई है, उसके रंग बहुत जल्द सच्चाई की गर्मी से पिघल जाएँगे। हम सबको तब तक अपना हौसला और जज़्बा बनाए रखना है और अपने विरोधियों के साथ संवाद को कायम रखते हुए जन-हित के मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद करनी है।
आपने जिस तरह तमाम मुश्किलों, धमकियों आदि का सामना करते हुए सच का साथ निभाया है उससे बहुतों को प्रेरणा मिली है। आपको अपनी यह भूमिका आने वाले समय में भी निभानी है। आपने उस चिड़िया की कहानी सुनी होगी जिसने जंगल में आग लगने पर चोंच में पानी भरकर आग बुझाने की कोशिश की थी। जब बाकी जानवरों ने उसका मज़ाक उड़ाया तो उसका जवाब था, "जब इतिहास लिखा जाएगा तो मेरा नाम आग बुझाने वालों में शामिल होगा और तुम लोगों का चुपचाप तमाशा देखने वालों में।"
डरिए मत क्योंकि डर के आगे हार है और संघर्ष के आगे जीत। आइए, हम सब यह बात याद रखें: "पहले वे आपकी उपेक्षा करेंगे, उसके बाद आप पर हँसेंगे, फिर आपसे लड़ेंगे, लेकिन उसके बाद जीत आपकी होगी।"