देशव्यापी हड़ताल और उससे उपजे सवाल

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: March 31, 2022
व्यापक भागीदारी और आंशिक असर के साथ 28-29 मार्च का देश व्यापी हड़ताल समाप्त हुई. “लोक बचाओ-देश बचाओ” नारे के साथ 12 सूत्री मांगों को लेकर 10 केन्द्रीय श्रम संघों, संयुक्त किसान मोर्चा सहित विभिन्न संगठनों द्वारा समर्थित इस हड़ताल में श्रमिकों की व्यापक भागीदारी रही. 



केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को जन व श्रमिक विरोधी बताती हुई दो दिवसीय हड़ताल अपने आंशिक असर के साथ समाप्त हो गई है। हालाँकि, इस हड़ताल की गूंज संसद के दोनों सदनों में भी सुनाई दी. हड़ताल के मुद्दे को लेकर संसद में कार्य स्थगन प्रस्ताव रखा गया. बाकी क्षेत्रों में इसका जो कुछ भी असर रहा हो बैंक उपभोक्ताओं पर इसका असर ज्यादा हुआ. हालाँकि लोगों के लिए हड़ताल कष्टदायी होता है लेकिन निजीकरण के फैलते पांव के खतरे को महसूस कर इस तरह के विरोध की आवाज को और मजबूती देने की आवश्यकता है. वर्तमान में हड़ताल की इस परंपरा, तरीके और उसके प्रभाव पर कई सारे सवाल खड़े हो जाते हैं. 

देशव्यापी हड़ताल केंद्र सरकार के श्रम सुधारों व निजीकरण जैसे मुद्दों के खिलाफ विभिन्न श्रमिक संगठनों के आह्वान पर आयोजित दो दिवसीय हड़ताल का आंशिक असर ही देश में नजर आया. सोमवार व मंगलवार को आयोजित इस बंद में श्रमिक संगठनों व बैंक कर्मियों के संगठनों की भूमिका रही. श्रमिक संगठनों के केंद्रीय ज्वाइंट फोरम तथा स्वतंत्र श्रमिक संगठनों ने केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को जन व श्रमिक विरोधी बताते हुए देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था. श्रमिक संगठनों के अनुसार, दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी कोल इण्डिया की विभिन्न अनुषंगी इकाईयों जैसे एसीसीएल, एनसीएल, सीसीएल, बीसीसीएल, इसीएल, एमसीएल, डब्ल्यूसीएल तथा सीएमपीडीआई में हड़ताल का व्यापक असर रहा है. 



अब भी श्रमिक संगठन केंद्र की प्रस्तावित श्रम संहिता को खत्म करने की मांग कर रहे हैं. वे निजीकरण रोकने, सरकारी परिसंपत्तियों को बेचने के लिये नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन को निरस्त करने, मनरेगा मजदूरी को बढ़ाने तथा ठेके के कर्मियों को पक्का करने जैसी मांगों को लेकर अपने आन्दोलन को जारी रखे हुए हैं. इस हड़ताल में बैंक कर्मियों की भागीदारी के चलते देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई व पंजाब नेशनल बैंक ने माना है कि उनकी सेवाओं पर असर पड़ा है. 

दरअसल, अखिल भारतीय बैंककर्मी एसोसिएशन की मांग है कि बैंकों का निजीकरण खत्म किया जाये, सरकारी बैंकों को मजबूत करें, बैड लोन की वसूली के लिये मजबूत तंत्र बने, जमा राशि की ब्याज दर बढ़ाई जाये, पुरानी पेंशन की बहाली हो तथा ग्राहकों से कम सर्विस चार्ज लिया जाये. बैंककर्मियों के अलावा हड़ताल में, संयुक्त किसान मोर्चा, बीमा, रोडवेज तथा वित्तीय क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हुए. अपनी मांगों के समर्थन में कर्मचारियों ने देश के विभिन्न भागों में प्रदर्शन किया, यातायात बाधित किया और कई स्थानों पर ट्रेनें रोकी गईं. कुछ जगह आंदोलनकारियों को गिरफ्तार भी किया गया. पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु आदि कुछ दक्षिण के राज्यों में हड़ताल का अधिक असर देखा गया. बंगाल में वाम मोर्चे के सदस्यों ने जादवपुर में रेलवे ट्रैक ब्लॉक किया. यह सब तब हुआ जब ममता सरकार ने बंद का विरोध किया और हड़ताल के दौरान छुट्टी लेने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही.



श्रमिक संगठनों का कहना है कि श्रमिक व किसान संगठन अपनी बारह सूत्री मांगों को लेकर वर्षों से संघर्षरत हैं. सरकार की उदासीनता के चलते ही हड़ताल बुलानी पड़ी है. जहां श्रमिक संगठन चार श्रम कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, वहीं जरूरी रक्षा सेवा अधिनियम को भी खत्म करने की बात कह रहे हैं. वे संयुक्त किसान मोर्चे की मांगों से संबंधित छह सूत्री घोषणापत्र को लागू करने, हर तरह के निजीकरण के खात्मे, मनरेगा के आवंटन को बढ़ाने, औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने, आंगनवाड़ी, आशा, मिड-डे मील व अन्य सरकारी योजनाओं में लगे कार्यकर्ताओं के लिये वैधानिक न्यूनतम पारिश्रमिक और सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने की मांग भी कर रहे हैं. 

वहीं दूसरी ओर, भारतीय मजदूर संघ ने खुद को हड़ताल से अलग रखा था. संघ की दलील है कि इस बंद का असली मकसद कतिपय राजनीतिक दलों के एजेंडे को गति देना है. बहरहाल, दो दिवसीय हड़ताल के पहले दिन बैंकिंग सेवा के अलावा, सार्वजनिक परिवहन, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था, इस्पात-कोयला खनन आदि सेवाओं पर भी व्यापक असर पड़ा. श्रम संगठनों का दावा है कि झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कोयला खनन क्षेत्रों पर हड़ताल का असर पड़ा. वहीं हरियाणा में रोडवेज कर्मचारियों के हड़ताल में शामिल होने से रोडवेज बस सेवा पर असर पड़ा. वहीं दूसरी ओर केरल हाईकोर्ट ने नागरिकों के हितों के मद्देनजर राज्य सरकार को निर्देश दिया कि सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल में भाग लेने से मना किया जाये. इतना ही नहीं, हाईकोर्ट ने भारत बंद को अवैध तक बताया. इसके बावजूद हड़ताल से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल के बाद केरल ही था. यही वजह है कि हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिये थे.



हड़ताल, देशव्यापी प्रदर्शन, धरना, देश व राज्य बंद, जनता के विरोध प्रदर्शित करने का जरिया है लेकिन ये आज के हालात में कई सारे सवाल छोड़ता है. श्रमिकों का सवाल नागरिक अधिकारों से जुड़ा हुआ मुद्दा है और नागरिक से जुड़ा हुआ मसला सीधे सरकार से जुड़ा हुआ होता है. सवाल है कि इतने वर्षों से इनकी मांगें लंबित क्यूँ हैं? क्या श्रमिक संगठन अपनी बात को सरकार को समझा पाने में असफल रहे हैं? क्या हर वर्ग के श्रमिक इस तरह की समस्या को नहीं झेल रहे हैं? श्रमिकों के सवाल को राजनीतिक दलों द्वारा वर्षों से मुख्य सवाल बना कर हल करने की कोशिश क्यूँ नहीं की गयी? निजीकरण का विरोध पुरजोर तरीके से शुरूआती दिनों में ही क्यूँ नहीं की गयी? निजीकरण के चरम पर पहुँचने और भाजपा सरकार के देश बेचने के एजेंडे के बीच श्रमिकों द्वारा किए गए इस कार्यवाई का कितना असर होगा? 

कार्य और सवाल के बीच मुख्य बात यह यह है की सरकारी दमन को झलते हुए आज भी लोग सड़कों पर उतर कर लड़ रहे हैं. यह लड़ाई ही है जो संविधान बचाने और लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रख पाने की उम्मीद को जिन्दा रखती है. 

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