80 लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा माननीय संसद में पहुंचते हैं। यह देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाला राज्य है। हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2019 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के बीच ऐतिहासिक गठबंधन के मद्देनजर सभी की निगाहें इस राज्य पर थीं। यह महागठबंधन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ एक एकजुट मोर्चे के रूप में देखा गया था, जिसे दक्षिणपंथी उग्रवादियों के पनाहगार के रुप में देखा जाता है। लेकिन गठबंधन सिर्फ 15 सीटों पर सिमट गया।
बसपा को अंबेडकर नगर, अमरोहा, बिजनौर, गाजीपुर, घोसी, जौनपुर, लालगंज, नगीना, सहारनपुर और श्रावस्ती सीट पर विजय मिली जबकि, सपा ने आजमगढ़, मैनपुरी, मुरादाबाद, रामपुर और संभल जीते। भाजपा की सहयोगी अपना दल ने मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज पर विजय हासिल की, बाकी सभी भाजपा ने जीते। सूबे में कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर सिमट गई जो सोनिया गांधी के खाते में गई।
यूपी में सबसे कम वोटों से हार मछलीशहर सीट पर हुई। यहां बीजेपी प्रत्याशी ने बसपा प्रत्याशी को सिर्फ 181 वोटों से हराया। ऐसा ही मामला मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का है जहां रालोद प्रमुख अजीत सिंह भाजपा प्रत्याशी संजीव कुमार बालियान से 6,526 वोटों से जीते। यहां चौधरी अजीत सिंह ने 5,67,254 वोट हासिल किए, जबकि भाजपा के संजीव कुमार बाल्यान को 5,73,780 वोट मिले।
दुनिया के सबसे बड़े गणराज्य भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में गठबंधन की हार के बाद चिंतन और बहस का मुद्दा यह उठ रहा है कि गठबंधन को कांग्रेस का भी साथ मिलता तो सूबे के आंकड़े कुछ और ही होते। इनमें से कई सीटें ऐसी हैं जिनपर गठबंधन और कांग्रेस प्रत्याशी के वोट मिला दिए जाएं तो भाजपा प्रत्याशी को हार देखनी पड़ती। कांग्रेस सूबे की हर सीट पर स्वतंत्र रुप से चुनाव लड़ रही थी। प्रियंका गांधी के पार्टी में सक्रिय होने के बाद से कांग्रेस को थोड़ा बल मिलने की संभावना और प्रबल हो गई थी।
कई पुराने टिप्पणीकारों ने कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रखने के लिए ‘बहनजी’ मायावती को दोषी ठहराया, जबकि अन्य स्पष्ट थे कि यह सबसे पुरानी पार्टी है जो 2022 में अकेले चलने की तैयारी में थी। चुनावी नतीजों के आंकलन से पता चलता है कि कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रहना विपक्ष के लिए कितना महंगा पड़ा है।
अगर हम चुनाव आयोग की वेबसाइट के आंकड़ों को देखें, तो कम से कम 13 सीटें ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस ने सिर्फ गठबंधन के प्रत्याशियों के हराने के बराबर वोट हासिल किए हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां जीत का अंतर कांग्रेस उम्मीदवार को मिले वोटों के बराबर या उससे कम था। अगर कांग्रेस ने स्मार्ट चाल चली होती और इन निर्वाचन क्षेत्रों से दूर रही होती (या गठबंधन का हिस्सा रही) तो गठबन्धन की जीत की प्रबल संभावना थी। इनमें ये निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं:
बदायूं: यहां, जीत का अंतर काफी कम था। भाजपा की डॉ. संघमित्रा मौर्य ने 5,11,352 अथवा 47.3 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव 4,92,898 या 45.59 प्रतिशत वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के सलेम इकबाल शेरवानी को 51,947 या 4.8 प्रतिशत वोट मिले। अगर कांग्रेस ने चुनाव नहीं लड़ा होता, तो महागठबंधन के लिए उनका वोटशेयर काफी होता।
बांदा: भाजपा के आरके सिंह पटेल ने 4,77,926 यानि 46.2 प्रतिशत वोट हासिल किए। सपा के श्याम चरण गुप्ता 4,18,988 या 40.5 प्रतिशत वोट हासिल कर बहुत पीछे नहीं थे। कांग्रेस उम्मीदवार ने 75,438 या 7.29 प्रतिशत वोट प्राप्त किए, जिससे सारा फर्क पड़ा। इस प्रकार INC की वजह से गठबंधन एक और सीट गंवा बैठा।
बाराबंकी: यहां, भाजपा के उपेंद्र सिंह रावत को 5,35,917 यानि 46.39 प्रतिशत वोट मिले, जबकि सपा के राम सागर रावत 4,25,777 या 36.85 प्रतिशत वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस ने यहां स्पष्ट रूप से खेल खेला क्योंकि उसके उम्मीदवार तनुज पुनिया ने 1,59,611 या 13.82 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो सभी संभावना में सपा उम्मीदवार को हस्तांतरित हो जाते। कांग्रेस यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी।
बस्ती: इस निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के राज किशोर सिंह ने 86,920 या 8.24 प्रतिशत वोट हासिल किए। बीएसपी के राम प्रसाद चौधरी ने 4,40,808 या 41.8 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि भाजपा के विजेता हरीश चंद्र द्विवेदी ने 4,71,162 या 44.68 प्रतिशत वोट के साथ बेहतर प्रदर्शन किया। एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी ने गठबंधन को जीत से दूर कर दिया।
भदोही: इस निर्वाचन क्षेत्र में यह दो उम्मीदवार थे जिनके संयुक्त वोटों ने बसपा उम्मीदवार को जीत से दूर कर दिया। भाजपा उम्मीदवार रमेश चंद को 5,100,29 या 49.07 प्रतिशत मत मिले, जबकि बसपा के रंगनाथ मिश्रा 4,66,414 या 44.87 प्रतिशत मत के साथ दूसरे स्थान पर रहे। अब, यदि हम आईएनसी और एनसीपी के उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त किए गए वोटों को देखते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने कैसे खराब खेल खेला। आईएनसी के रमाकांत ने 25,604 या 2.46 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि एनसीपी के अखिलेश ने 4,570 वोट हासिल किए, जो गठबंधन उम्मीदवार के पास जा सकते थे।
धौरहरा: यहाँ भाजपा की रेखा वर्मा ने 5,12,905 या 48.21 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि बीएसपी के अरशद इलियास सिद्दीकी को 3,52,294 या 33.12 प्रतिशत वोट मिले। आईएनसी उम्मीदवार कुंवर जितिन प्रसाद ने 1,62,856 वोटों के साथ 15.31 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। इसके साथ ही स्थानीय छोटी पार्टियां बहुजन आवाम पार्टी (9,288) और प्रगति एसपी (4,288) सहित कांग्रेस प्रत्याशी ने गठबंधन प्रत्याशी के वोट काटने का ही काम किया।
मेरठ: यहां भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने 5,86,184 या 48.19 प्रतिशत वोट हासिल किए। बीएसपी के हाजी मोहम्मद याक़ूब 5,81,455 या 47.8 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। अंतर सिर्फ 4,729 वोटों का था। कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल ने 34,479 या 2.83 प्रतिशत वोट प्राप्त किया जिसकी वजह से एक और सीट से गठबंधन कांग्रेस की वजह से ही हारता नजर आया।
संत कबीर नगर: यहां भाजपा के प्रवीण कुमार निषाद ने 4,67,543 या 43.97 प्रतिशत मत हासिल किए, जबकि बसपा के भीष्म शंकर को 4,31,794 या 40.61 प्रतिशत मत मिले। यहां कांग्रेस के भाल चंद्र यादव ने 1,28,506 अथवा 12.08 प्रतिशत वोट मिले। अगर कांग्रेस गठबंधन में होती और यह वोट गठबंधन को ट्रांसफर होता तो भाजपा एक और सीट से दूर हो जाती।
कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मुकाबला काफी करीबी था जहां कांग्रेस फिर गठबंधन की हार का कारण बनी। ये हैं:
सुल्तानपुर: भाजपा की मेनका गांधी सुल्तानपुर में हार सकती थीं। मेनका गांधी ने 45.91 प्रतिशत या 4,59,196 वोट प्राप्त किए थे। जबकि, बसपा के चन्द्र भद्र सिंह 4,44,670 या 44.45 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। लेकिन कांग्रेस के डॉ. संजय सिंह ने 4.17 प्रतिशत या 41,681 वोट निकाले, जो मेनका गांधी के लिए घातक हो सकते थे।
फैजाबाद: यहां बीजेपी के लल्लू सिंह ने 5,20,021 या 48.66 प्रतिशत वोट हासिल किए, वहीं सपा के आनंद सेन 4,63,544 या 42.64 प्रतिशत वोटों से दूसरे नंबर पर रहे। INC के निर्मल खत्री ने 53,386 या 4.91 प्रतिशत वोट हासिल किए जो गठबंधन के हो सकते थे।
कैराना: यहां एसपी की तबस्सुम बेगम सबसे आगे थीं। लेकिन वह केवल 4,74,801 या 42.24 प्रतिशत वोट पाने में सफल रहीं। इस बीच, आईएनसी के हरेंद्र सिंह मलिक 69,355 या 6.17 प्रतिशत वोट लाने में सफल रहे। इससे काफी अंतर पैदा हो सकता था क्योंकि भाजपा उम्मीदवार प्रदीप कुमार 5,66,961 या 50.44 प्रतिशत वोट पाकर जीते थे।
मोहनलालगंज: यहां बीजेपी के कौशल किशोर को 6,29,748 या 49.62 प्रतिशत वोट मिले, जबकि बीएसपी के सीएल वर्मा 5,39,519 या 42.51 प्रतिशत वोट के साथ ज्यादा पीछे नहीं थे। इस सीट पर कांग्रेस के आरके चौधरी ने 60,061 या 4.73 प्रतिशत वोट हासिल किए। अगर यह वोट गठबंधन को जाता तो भाजपा की जीत की डगर मुश्किल थी।
सीतापुर: यहां भाजपा के राजेश वर्मा ने 5,14,528 या 48.33 प्रतिशत वोट हासिल किए, बसपा के नकुल दुबे ने 38.86 प्रतिशत या 4,13,695 वोट हासिल किए। आईएनसी के क़ैसर जहाँ ने 9.02 प्रतिशत या 96,018 वोट प्राप्त किए। इस तरह कांग्रेस के गठबंधन में विलय होने के बाद यह सीट निकालना बीजेपी के लिए मुश्किल साबित हो सकता था।
इसी तरह कौशाम्बी, डुमारियागंज और इटावा सीट पर भी कांग्रेस गठबंधन के लिए वोट कटवा ही साबित हुई। इन नतीजों को देखते हुए क्या आगामी समय में सबक लिया जा सकता है?
बसपा को अंबेडकर नगर, अमरोहा, बिजनौर, गाजीपुर, घोसी, जौनपुर, लालगंज, नगीना, सहारनपुर और श्रावस्ती सीट पर विजय मिली जबकि, सपा ने आजमगढ़, मैनपुरी, मुरादाबाद, रामपुर और संभल जीते। भाजपा की सहयोगी अपना दल ने मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज पर विजय हासिल की, बाकी सभी भाजपा ने जीते। सूबे में कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर सिमट गई जो सोनिया गांधी के खाते में गई।
यूपी में सबसे कम वोटों से हार मछलीशहर सीट पर हुई। यहां बीजेपी प्रत्याशी ने बसपा प्रत्याशी को सिर्फ 181 वोटों से हराया। ऐसा ही मामला मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का है जहां रालोद प्रमुख अजीत सिंह भाजपा प्रत्याशी संजीव कुमार बालियान से 6,526 वोटों से जीते। यहां चौधरी अजीत सिंह ने 5,67,254 वोट हासिल किए, जबकि भाजपा के संजीव कुमार बाल्यान को 5,73,780 वोट मिले।
दुनिया के सबसे बड़े गणराज्य भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में गठबंधन की हार के बाद चिंतन और बहस का मुद्दा यह उठ रहा है कि गठबंधन को कांग्रेस का भी साथ मिलता तो सूबे के आंकड़े कुछ और ही होते। इनमें से कई सीटें ऐसी हैं जिनपर गठबंधन और कांग्रेस प्रत्याशी के वोट मिला दिए जाएं तो भाजपा प्रत्याशी को हार देखनी पड़ती। कांग्रेस सूबे की हर सीट पर स्वतंत्र रुप से चुनाव लड़ रही थी। प्रियंका गांधी के पार्टी में सक्रिय होने के बाद से कांग्रेस को थोड़ा बल मिलने की संभावना और प्रबल हो गई थी।
कई पुराने टिप्पणीकारों ने कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रखने के लिए ‘बहनजी’ मायावती को दोषी ठहराया, जबकि अन्य स्पष्ट थे कि यह सबसे पुरानी पार्टी है जो 2022 में अकेले चलने की तैयारी में थी। चुनावी नतीजों के आंकलन से पता चलता है कि कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रहना विपक्ष के लिए कितना महंगा पड़ा है।
अगर हम चुनाव आयोग की वेबसाइट के आंकड़ों को देखें, तो कम से कम 13 सीटें ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस ने सिर्फ गठबंधन के प्रत्याशियों के हराने के बराबर वोट हासिल किए हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां जीत का अंतर कांग्रेस उम्मीदवार को मिले वोटों के बराबर या उससे कम था। अगर कांग्रेस ने स्मार्ट चाल चली होती और इन निर्वाचन क्षेत्रों से दूर रही होती (या गठबंधन का हिस्सा रही) तो गठबन्धन की जीत की प्रबल संभावना थी। इनमें ये निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं:
बदायूं: यहां, जीत का अंतर काफी कम था। भाजपा की डॉ. संघमित्रा मौर्य ने 5,11,352 अथवा 47.3 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव 4,92,898 या 45.59 प्रतिशत वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के सलेम इकबाल शेरवानी को 51,947 या 4.8 प्रतिशत वोट मिले। अगर कांग्रेस ने चुनाव नहीं लड़ा होता, तो महागठबंधन के लिए उनका वोटशेयर काफी होता।
बांदा: भाजपा के आरके सिंह पटेल ने 4,77,926 यानि 46.2 प्रतिशत वोट हासिल किए। सपा के श्याम चरण गुप्ता 4,18,988 या 40.5 प्रतिशत वोट हासिल कर बहुत पीछे नहीं थे। कांग्रेस उम्मीदवार ने 75,438 या 7.29 प्रतिशत वोट प्राप्त किए, जिससे सारा फर्क पड़ा। इस प्रकार INC की वजह से गठबंधन एक और सीट गंवा बैठा।
बाराबंकी: यहां, भाजपा के उपेंद्र सिंह रावत को 5,35,917 यानि 46.39 प्रतिशत वोट मिले, जबकि सपा के राम सागर रावत 4,25,777 या 36.85 प्रतिशत वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस ने यहां स्पष्ट रूप से खेल खेला क्योंकि उसके उम्मीदवार तनुज पुनिया ने 1,59,611 या 13.82 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो सभी संभावना में सपा उम्मीदवार को हस्तांतरित हो जाते। कांग्रेस यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी।
बस्ती: इस निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के राज किशोर सिंह ने 86,920 या 8.24 प्रतिशत वोट हासिल किए। बीएसपी के राम प्रसाद चौधरी ने 4,40,808 या 41.8 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि भाजपा के विजेता हरीश चंद्र द्विवेदी ने 4,71,162 या 44.68 प्रतिशत वोट के साथ बेहतर प्रदर्शन किया। एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी ने गठबंधन को जीत से दूर कर दिया।
भदोही: इस निर्वाचन क्षेत्र में यह दो उम्मीदवार थे जिनके संयुक्त वोटों ने बसपा उम्मीदवार को जीत से दूर कर दिया। भाजपा उम्मीदवार रमेश चंद को 5,100,29 या 49.07 प्रतिशत मत मिले, जबकि बसपा के रंगनाथ मिश्रा 4,66,414 या 44.87 प्रतिशत मत के साथ दूसरे स्थान पर रहे। अब, यदि हम आईएनसी और एनसीपी के उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त किए गए वोटों को देखते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने कैसे खराब खेल खेला। आईएनसी के रमाकांत ने 25,604 या 2.46 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि एनसीपी के अखिलेश ने 4,570 वोट हासिल किए, जो गठबंधन उम्मीदवार के पास जा सकते थे।
धौरहरा: यहाँ भाजपा की रेखा वर्मा ने 5,12,905 या 48.21 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि बीएसपी के अरशद इलियास सिद्दीकी को 3,52,294 या 33.12 प्रतिशत वोट मिले। आईएनसी उम्मीदवार कुंवर जितिन प्रसाद ने 1,62,856 वोटों के साथ 15.31 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। इसके साथ ही स्थानीय छोटी पार्टियां बहुजन आवाम पार्टी (9,288) और प्रगति एसपी (4,288) सहित कांग्रेस प्रत्याशी ने गठबंधन प्रत्याशी के वोट काटने का ही काम किया।
मेरठ: यहां भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने 5,86,184 या 48.19 प्रतिशत वोट हासिल किए। बीएसपी के हाजी मोहम्मद याक़ूब 5,81,455 या 47.8 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। अंतर सिर्फ 4,729 वोटों का था। कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल ने 34,479 या 2.83 प्रतिशत वोट प्राप्त किया जिसकी वजह से एक और सीट से गठबंधन कांग्रेस की वजह से ही हारता नजर आया।
संत कबीर नगर: यहां भाजपा के प्रवीण कुमार निषाद ने 4,67,543 या 43.97 प्रतिशत मत हासिल किए, जबकि बसपा के भीष्म शंकर को 4,31,794 या 40.61 प्रतिशत मत मिले। यहां कांग्रेस के भाल चंद्र यादव ने 1,28,506 अथवा 12.08 प्रतिशत वोट मिले। अगर कांग्रेस गठबंधन में होती और यह वोट गठबंधन को ट्रांसफर होता तो भाजपा एक और सीट से दूर हो जाती।
कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मुकाबला काफी करीबी था जहां कांग्रेस फिर गठबंधन की हार का कारण बनी। ये हैं:
सुल्तानपुर: भाजपा की मेनका गांधी सुल्तानपुर में हार सकती थीं। मेनका गांधी ने 45.91 प्रतिशत या 4,59,196 वोट प्राप्त किए थे। जबकि, बसपा के चन्द्र भद्र सिंह 4,44,670 या 44.45 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। लेकिन कांग्रेस के डॉ. संजय सिंह ने 4.17 प्रतिशत या 41,681 वोट निकाले, जो मेनका गांधी के लिए घातक हो सकते थे।
फैजाबाद: यहां बीजेपी के लल्लू सिंह ने 5,20,021 या 48.66 प्रतिशत वोट हासिल किए, वहीं सपा के आनंद सेन 4,63,544 या 42.64 प्रतिशत वोटों से दूसरे नंबर पर रहे। INC के निर्मल खत्री ने 53,386 या 4.91 प्रतिशत वोट हासिल किए जो गठबंधन के हो सकते थे।
कैराना: यहां एसपी की तबस्सुम बेगम सबसे आगे थीं। लेकिन वह केवल 4,74,801 या 42.24 प्रतिशत वोट पाने में सफल रहीं। इस बीच, आईएनसी के हरेंद्र सिंह मलिक 69,355 या 6.17 प्रतिशत वोट लाने में सफल रहे। इससे काफी अंतर पैदा हो सकता था क्योंकि भाजपा उम्मीदवार प्रदीप कुमार 5,66,961 या 50.44 प्रतिशत वोट पाकर जीते थे।
मोहनलालगंज: यहां बीजेपी के कौशल किशोर को 6,29,748 या 49.62 प्रतिशत वोट मिले, जबकि बीएसपी के सीएल वर्मा 5,39,519 या 42.51 प्रतिशत वोट के साथ ज्यादा पीछे नहीं थे। इस सीट पर कांग्रेस के आरके चौधरी ने 60,061 या 4.73 प्रतिशत वोट हासिल किए। अगर यह वोट गठबंधन को जाता तो भाजपा की जीत की डगर मुश्किल थी।
सीतापुर: यहां भाजपा के राजेश वर्मा ने 5,14,528 या 48.33 प्रतिशत वोट हासिल किए, बसपा के नकुल दुबे ने 38.86 प्रतिशत या 4,13,695 वोट हासिल किए। आईएनसी के क़ैसर जहाँ ने 9.02 प्रतिशत या 96,018 वोट प्राप्त किए। इस तरह कांग्रेस के गठबंधन में विलय होने के बाद यह सीट निकालना बीजेपी के लिए मुश्किल साबित हो सकता था।
इसी तरह कौशाम्बी, डुमारियागंज और इटावा सीट पर भी कांग्रेस गठबंधन के लिए वोट कटवा ही साबित हुई। इन नतीजों को देखते हुए क्या आगामी समय में सबक लिया जा सकता है?