सिनेमा जगत और गाँव देहात का अनोखा प्रयोग : श्रीराम डाल्टन की डायरी

Published on: August 20, 2017
सिनेमा जगत और गाँव देहात का अनोखा प्रयोग : श्रीराम डाल्टन की डायरी

Cinema and Villages


25th जुलाई 2017 को जब हम Netarhat  के लिए रवाना हुए तो  50 किलोमीटर पहले से ही घाटी में घनघोर कोहरे  ने हमारा स्वागत किया। एक तरफ़ पहाड़ तो दूसरी  तरफ़ खाई और दो क़दम की दूरी पर भी कुछ नहीं दिख रहा था। पर, हम धीरे-धीरे चलते रहे। और जब हम Netarhat पहुँचे तो देखा घनघोर बारिश हो रही थी। हमें पता चला की पिछले तीन दिनो से ऐसी ही ज़बरदस्त बारिश हो रही है।

कई जगह पेड़ टूटे थे, कई जगह तार टूटे थे तो कई जगह पूल भी बह चुके थे। झारखंड के सबसे ऊँचे पहाड़ और घने जंगल की बारिश का अंदाज़ा था हमें। हम जब वर्क्शाप का डेट निर्धारित कर रहे थे तो हमको पता था कि इसबार हमें बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कई लोगों ने कहा कि “अरे!! इस समय तो बहुत बारिश होगी!!” पर हम पानी का सम्बंध जंगल से देखने और दिखाने के लिए इस मुसीबत के लिए मन बना चुके थे। पिछले वर्क्शाप में जब हमने डेट निर्धारित किया था तब मई की लहक गर्मी को हमने चुना था। देखा जाए तो गर्मी ज़्यादा challenging है बारिश के बनिस्पत। गर्मी में आपका दिल-दिमाग़ काम नहीं करता, आपकी ऊर्जा बेवजह नष्ट  हो जाती है।  ख़ैर, भयंकर गरम दिनों के बाद तमाम आने वाली परेशानियों के बावजूद हमने घनघोर बारिश चुना।   



तो वैसी ही बारिश लगातार तीन दिनो तक आगे भी होती रही और पूरे workshop को challenging कर दिया पर, सब चलता रहा और बड़े उत्साह से वर्क्शाप शुरू हुआ। लगभग सारे नए participant, गेस्ट और टीम मेम्बर मिला के 80 लोगों की संख्या Netarhat पहुँच गयी। 

पूरी टीम चार अलग अलग जगहों पर ठहरी हुई थी। सभी लोगों के सहयोग से जिसमें गाँव वाले, Netarhat पंचायत के लोग, Netarhat आवासीए विद्यालय प्रशासन, लातेहार प्रशासन  D.C, D.D.C अनिल सिंह, महुआडार B.D.O, लोहारदग्गा D.F.O, आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट- राहुल शर्मा, रणेंद्र कुमार- director आर्ट एंड कल्चर, director  IPRD, ग्रामीण विकास NN Sinha, IPRD संजय कुमार.. मतलब पूरी IPRD डिपार्टमेंट, फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट और डाल्टनगंज D.C और पलामु  IPTA से ये संभव हुआ।

सभी लोगों के सहयोग से Netarhat में जो बेहतर संसाधान उपलब्ध था, वो सभी NFI (नेतरहाट फ़िल्म इंस्टिट्यूट) को उपलब्ध कराया गया।

वर्क्शाप के दौरान हमलोगों ने एक फ़ीचर फ़िल्म भी किया जिसके writer A.K. Pankaj जी हैं और स्क्रीन प्ले और डायलोग की ज़िम्मेदारी दुष्यंत जी को दिया गया था। 

दुष्यंत जी अपनी ज़िम्मेदारी को अंजाम तक पहुँचाने के लिए एक हफ़्ता पहले राँची पहुँचे और पंकज जी और हमारी टीम के साथ कई रातें डिस्कशन में गुज़ारी । पंकज जी के साथ कभी-कभी स्क्रिप्ट को लेकर मोहब्बताना बहस की वजह से दोनो के माथे पर आए शिकन को एक कप चाय से दूर करनी पड़ती थी जो कि हमारे लिए आसान भी था, फिर दोनो के आपसी समझौते से जो बात निकल कर आती उसे pen down कर लिया जाता और आख़िरकार हमारे हाथ एक बेहतरीन स्क्रिप्ट लगी।   



Workshop की शुरूआत मिलिंद उके जी ने अपने हाथो में ली और काफ़ी सिस्टेमैटिक तरीक़े से सभी participants की classes उन्होंने शुरू  की। 6 दिनो तक फ़िल्म मेकिंग के complete grammar, सम्भावनाए, विस्तार से ले कर फ़िल्म निर्माण की प्रक्रिया और तकनीक समझते हुए प्रतिभागी अपनी-अपनी कहानियों पर काम करने लगे। साथ में मिलिंद उके ने एक फ़िल्म अपने मेंटोरशिप में ली थी जिसको उन्होने बड़े कम समय में और बहुत सुंदर तरीक़े से पूरा किया। चार नए participants ने बख़ूबी उस फ़िल्म को मिलिंद जी के guidance में direct किया । मिलिंद उके पाँच दिन यहाँ बिताए और 31 जुलाई को वापस मुंबई को लौट गये। 

प्रतिभागियों में काफ़ी उत्साह था और इसी दौरान विभा रानी 25 जुलाई को Netarhat पहुँची और 30 को वापस मुंबई लौट गई। विभा दी ने theater की बारिकियाँ और aesthetic of acting पे काम किया और participants को ऐक्टिंग की basic classes दिया। उन्होंने नौटंकी शैली और ट्रेडिशनल गारी-गीत का मंचन भी किया। साथ ही साथ विभा दी ने NFI workshop में बन रही एक full length feature फ़िल्म बलेमा के कलाकारों को ट्रेनिंग भी दिया। जो कि Netarhat के एक छोटे से गाँव ताहेर के रहने वाले बाल कलाकार थे । जिन्होंने अब तक टेलिविज़न भी नहीं देखा, जिनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति बहुत ही कमज़ोर रही है। 

5 km घाटी मैं पैदल नीचे उतरना तो किसी भी हट्टे -कट्टे लोगों के लिए आसान बात है पर, वापस ऊपर चढ़ाई कर के लौटने में अच्छे-अच्छे लोगों की सांसें  फूल जाती है, पर विभा दी इन सब चीज़ों की परवाह किये बिना घाटी में नीचे रोज़ उतर कर सभी locations मैं बड़े आराम से पहुँच जाती और आदिवासी कलाकारों को ट्रेंड करतीं।

जब मिलिंद उके और विभा दी वापस गए तब तक एक फ़िल्म बन चुकी थी और बाक़ी फ़िल्मों पे टीम मेम्बर लग गए थे। इस बीच हमारे सबसे खास टीम faculty- Bisharad Basnet जो कि इस workshop के लिए नेपाल से राँची वर्क्शाप शुरु होने के 5 दिन पहले पहुँच चुके थे ताकि वर्क्शाप के pre production को और बेहतर बना सके। और बिशारद वर्क्शाप के पहले दिन सभी participant के  introduction के  बाद उनके फ़िज़िकल ऐक्टिंग क्लास पे काम किया और पूरे वर्क्शाप को बख़ूबी अपने अनुभव से लाभान्वित किया। बिशारद नेपाल से इतनी दूर Netarhat वर्क्शाप के लिए अपना क़ीमती समय निकाल के वर्क्शाप को अपना पूरा वक़्त दिया।

और फिर वर्क्शाप के दौरान 1 अगस्त को Nitin Chandra वर्क्शाप के लिए मुंबई से राँची और फिर Netarhat के लिए निकल  चुके थे । हालाँकि रास्ते में पेड़ गिरने के कारण उन्हें एक दिन व्यर्थ राँची रुकना पड़ा और 2 August  को Nitin जी Netarhat पहुँच गए और आते ही वर्क्शाप में आए सारे participant को फ़िल्म मेकिंग कि जानकारी दिया । Nitin जी ने फ़िल्म मेकिंग में होने वाली तमाम parameters पे जैसे की pre production, movie production, post production और फ़िल्म के marketing strategy पे एक एक महत्वपूर्ण जानकारियों  को participant से साझा किया और बहुत ही कम समय में सभी classes को अच्छे तरीक़े से ख़त्म किया। साथ ही Nitin जी ने participants के साथ मिल कर दो शॉट फिल्मों के भी mentor रहे और नए participant के direction में फ़िल्में बनाई।

और इन सभी चीज़ों के बीच एक काम और हुआ जो कि Netarhat film institute के लिए बहुत महत्वपूर्ण था और वो था NFI के लिए एक पहचान चिन्ह बनाना जो कि sri lanka से आए बहुत ही ख़ास व्यक्ति Prageet Manohansa जो कि पेशे से एक international sculptor है जिनकी ख़ासियत लोहे के बेकार चीज़ों को बिना उसके फ़ॉर्म को तोड़े-मरोड़े आर्टवर्क करते हैं। हालाँकि श्रीलंका से निकल के बंगलोर पहुँचे फिर  किसी कारण उनकी filght मिस हो गई और नई जगह नो connectivity होने की  वजह से वो वापस लौट गए, पर वो दुबारा टिकट करा के finally राँची 23 जुलाई को पहुँच गए। और वो पूरी टीम के साथ Netarhat 25 को आते ही एक JCB मशीन को काट कर एक कलाकृति तैयार किए। जिसकी ऊचाई 10 fit  और वज़न 8 क्विंटल है और ये कलाकृति पुराने फ़िल्म कैमरे की तरह दिखती है। जो NFI को एक अपनी पहचान देगा। धन्यवाद है Prageet को जो दूसरे देश से इतनी दूर यहाँ आकार NFI के लिए अपना क़ीमती समय दिया और NFI को अपनी तरफ़ से एक भेंट प्रदान किया। 

इसबार टीम शुरू से ही दो हिस्सों में बाँट दी गयी थी। एक टीम फूल-लेंथ फ़िल्म “बालेमा” के लिए श्रीराम डाल्टन के नेतृत्व में लग गयी बाक़ी के प्रतिभागी मिलिंद उके, विभा रानी, दुष्यंत, प्रगीत मनोहँसा, मेघा श्रीराम डाल्टन और नितिन नीरा चंद्रा के साथ लग गए। 

“बालेमा” टीम से दो नए कैमरा मैन जुड़े नकुल गायकवाड और राजेश सिंह। जहाँ नकुल ने प्राग फ़िल्म स्कूल से अपनी सिनेमायी ट्रेंनिंग ली है वहीं राजेश फ़ाइनआर्ट के पेंटर हैं । internationally कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट किया है, दोनो दिखने में जितना sophisticated हैं उतना ही अपने काम में ईमानदार और मेहनती हैं, दोनो cool dude हैं जो कि आख़री तक ही पता चलता है।



रोज़ सुबह भारी साजो-सामान लेकर जब हम घाटी उतरते थे तो लौटते वक़्त यक़ीन नहीं होता था कि कल हम वापस यहाँ आएँगे पर हम रोज़ नई उमंग के साथ जाते रहे और उतना ही बल्कि उससे ज़्यादा टूट कर आते रहे । ऐसे ही जद्दो-जहद में हमने शूट ख़त्म किया और अब एडिट पे लगे हुवे हैं। Editor अखिल राज अपना पूरा एनर्जी लगाए हुए है उनका दिन और रात सब बराबर हो चुका है जिसमें उसका पूरा साथ मनीष राज दे रहें है। गुजरात से आशीष पीठिया ने असोसियेट डिरेक्टर के बतौर कमान सम्भाला, असम से परीक्षित, गुमला, लोहारदग्गा और राँची से पवन बाड़ा, हैरी बारला, संजय मुंडा और वसीम राँचवी ने डिरेक्शन में असिस्ट किया।

जंगल वर्क्शाप की फूल-लेंथ फ़िल्म जिसका तात्कालिक टाइटल “बालेमा” है। जिसकी सारी कास्टिंग लोकल आदिवासियों की ही की गयी है जिसमें टूनि नगेसिया किसान, मतरू नगेसिया किसान, अमिता खाखा और जस्टिन लकड़ा हैं। पेशे से कोई कलाकार नहीं हैं पर, इन्होंने जो काम किया है वो अच्छे -अच्छे कलाकार नहीं कर सकते थे, यहाँ के आदिवासी ही कर सकते थे। सभी कलाकारों का चुनाव भी ग़ज़ब ही तरीक़े से हुआ है। जैसे मतरू बाबा पान दुकान पर भीगते हुए दुष्यंत और श्रीराम को दिखे और दोनो ने ही मन ही मन उनमें अपने कहानी का किरदार “डोकरा बूढ़ा” को चुन लिया। और जब बाबा से बात हुई तो वो एक मिनट भी बीना झिझके तैयार हो गए और उन्होंने पूरी फ़िल्म मज़बूती से निबटायी।

“बालेमा” के लिए हमने कई कास्टिंग देखी पर चैन तब मिला श्रीराम को जब टूनी किसान नगेसिया मिली। ताहीर गाँव में गाड़ी नहीं उतरती। कुछ बिरले ड्राइवर ही हिम्मत कर सकते हैं। नेतरहाट पहाड़ से सटे ठीक पाँच सौ फ़ीट नीचे है ताहीर गाँव। वर्क्शाप शुरू होने से पहले टीम एक बार सब इंतेजाम करने नेतरहाट गयी थी और मतरू बाबा टीम को नेतरहाट बाज़ार में ही मिले थे। तब मतरू बाबा से तय हुआ था कि हम 25 तारीख़ को आएँगे और वो ताहीर गाँव में मिलेंगे। और जब हम निर्धारित समय पर पहुँचे तो पता चला कि ताहीर गाँव तक गाड़ी नहीं जाती। कई साल पहले एकबार रोड बना था पर मतरू बाबा के अनुसार ठिकेदार ने सही काम नहीं किया। सुना कि बुलेरो उतर जाती है। तो श्रीराम ने छोटी ट्रक ताहीर गाँव में उतार दी। नीचे पहुँच कर मतरू बाबा का घर ढूँढा गया और अपनी परेशानी भी बताई गयी। मतरू बाबा ने हमारी ज़रूरत समझी और कुछ बच्चों को इक्कठा किया। अब जिस गाँव में बिजली नहीं वहाँ हम क्या फ़िल्म के बारे में बात करते!! समझाते-समझाते किसी ने चून लिए गए बच्चों को धीरे से कान में कह दिया कि “ले जाकर बेच देंगे।” उसके बाद तो सब बच्चे चारों तरफ़ भागने लगे। पहले तो लगा कि लौट आएँगे पर कोई नहीं आया। जब टीम के लोग खेत में बच्चों के पीछे दौड़-भाग रहे थे तो तीन छोटी-छोटी बारह-तेरह साल की लड़कियाँ सुबह-सुबह सज-धज के रोपनी के लिए निकली थीं और पूरे तमाशे को समझने के लिए भीड़ में खड़ी थी।जब टूनी ने मामला समझा तो उसने इसे झिझकते हुए स्वीकार कर लिया। हालाँकि रोपनी के लिए सभी गाँव वाले बारी-बारी से एक-दूसरे के खेत में मदद करते हैं। किसी कारण से अगर आप सहयोग कर पाने में असमर्थ हैं तो आपको अपने बदले किसी आदमी को खेत में काम लगाना पड़ेगा या पैसे देने पड़ेंगे!!

श्रीराम ने दोबारा मौक़ा गँवाना उचित नहीं समझा और सभी होने वाले नुक़सान को सोल्व कर के गाँव के लोगों को कॉन्फ़िडेन्स में लिया। बच्चों के बीच अभी भी खसुर-फुसूर चल ही रहा था। अब और देर होता तो पता नहीं क्या मामला लटक जाए तो श्रीराम ने लोगों को गाड़ी में बिठा के जल्द से जल्द ऊपर निकलना उचित समझा। पर, ठीक मौक़े पे आख़री दूसरी चढ़ाई पर थ्री-सेलेंडर गाड़ी की साँस फूल गयी। एक तो चढ़ाई ऊपर से दोनो तरफ़ खाई।। बार-बार पीछे; मतलब नीचे उतार के स्पीड बढ़ा कर चार बार चढ़ाने की कोशिश की गयी। नहीं चढ़ा। लड़कियों का उत्साह कम हो इससे पहले गाड़ी को टीम के हवाले कर के आगे बढ़ लिया गया। और सीधा शूटिंग स्टार्ट किया गया। दो-तीन घंटे के अंदर सभी बच्चे शूटिंग में मगन हो गए थे। टूनी और उसकी दोस्त रजवंती ने इसको चैलेंज की तरह लिया और क्या ख़ूब किया!!

जस्टिन लकड़ा को खेत में हल चलाते चम्पा, कूरूँद से उठाया गया। फ़ोन-नेट्वर्क उनके लिये दूसरी दुनिया की बातें हैं। जस्टिन के गाँव तक भी सड़क नहीं पहुँचती। ISM Ranchi का ट्रक ज़िंदाबाद था जो 17-18 दिन से NFI का मालवाहक बना हुआ था और अक्सर कहीं फँसता था जिसको हमेसा संख्याबल से निकाल लिया जाता था। कीचड़ से सना हुआ जस्टिन जिन कपड़ों में था उन्ही कपड़ों में माँ और अपनी नयी नवेली पत्नी को सारा काम समझा कर साथ में हो लिया। जस्टिन लकड़ा जितने मज़बूत किसान हैं उतने ही गम्भीर छात्र हैं। कडूख भाषा को लेकर इनका प्रेम ऐसा है कि कई जगह पर सीन को समझ के बातों को कडूख गीत में रखने की सलाह देते और ये किया भी गया । बस ये जान लीजिए कि सादरी भाषा की फ़िल्म में आपको कडूख 2-3 गीत तो ज़रूर सुनने को मिलेंगे। 

राजीव गुप्ता की नज़र हमारी गतिविधियों पर कब से लगी हुयी थी। इनको हमेसा लगता रहा कि कैसे वो हमारे साथ जुड़ें, कैसे हमारी मदद करें!! तो एक दिन राँची में उन्होंने श्रीराम को घर पे आमंत्रित किया। ये बहुत सार्थक मुलाक़ात थी। सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर राजीव जी ने जब समझा की “जंगल” वर्क्शाप शुरू होने वाला है और हमको मदद चाहिए तो उन्होंने एक बंदे को फ़ोन किया की आप जहाँ कहीं भी हैं पाँच मिनट में घर पहुँचिये, आपके जैसे ही एक आदमी से मिलाना है।

पाँच मिनट में एक महाशय आए… साकेत कुमार।

IIT खड़कपुर से गणित और कम्प्यूटर से इंजीनियरिंग कर के US में अपना योगदान दे कर भोपाल में मज़बूत शुरूवात कर के अभी झारखंड में “पानी” विषय पर बहुत गम्भीरता से काम कर रहे हैं। साकेत का कला और विज्ञान के क्षेत्र में ग़ज़ब विजन है। कई सपने इनके पलकों पे बैठे रहते हैं जिसको एक-एक कर ये व्यवस्थित करते जा रहे हैं । महुवाडार के रहने वाले साकेत को NFI के पिछले तमाम प्रयासों का पता था और वे बहुत सर्प्राइज़ थे कि कोई कैसे महुवाडार-नेतरहाट में फ़िल्म कर सकता है। हालाँकि ये सपना बचपन से उनके अंदर बेचैनी का काम कर रहा था। और जब वर्क्शाप की बात आयी तो पाँच मिनट में वर्क्शाप से सम्बंधित ज़रूरतों की लिस्ट लेकर बैठ गए। और सबकुछ मैनेज कर दिया। साकेत बहुत कमाल के राइटर हैं और ISM राँची के वाइस चेयरमन हैं। इस वर्क्शाप के क्रिएटिव director भी हैं। 

बहुत लोगों के बारे में, वर्क्शाप के बारे में बहुत बातें हैं। ड्राफ़्ट बनता जाएगा, बातें खुलती जाएँगी। 

हमलोगों ने workshop का समापन 16 अगस्त 2017 को NFI sculptor के उद्द्घाटन के साथ नेतर हाट आवासिये विद्यालय के प्राचार्य विंध्याचल जी, श्रीमती राधिका प्रसाद (सेक्रेटरी- प्रोजेक्ट SD GIRLS HIGH SCHOOL, महुआडार) अन्य शिक्षक, मुखिया सुधीर बिरजिया, सरपंच-अजय जी, प्रसासनिक अधिकारियों और गाँव वालों किया।

बूलु इमाम, लेज़्ली लुएस, मीनाक्षी-जेय, पंकज मिश्रा, एके पंकज, शहरोज क़मर, संजय सिंह, फ़िरोज़ खान और भी कई मित्र आना चाहते थे पर नहीं आ सके।    
 
सबकुछ अच्छा-अच्छा नहीं रहा। पर बुरा क्या रहा उससे मैं आपको दुखी क्यूँ करूँ! इसका अच्छा पहलू ये रहा कि तक़रीबन पचास-साठ लोगों ने फ़िल्म निर्माण के लिए आत्मविश्वास पैदा किया। ज़रूरी नहीं कि सभी फ़िल्म बनायें। पर वे करना चाहें तो उन्हें कोई कारण रोक नहीं सकता। हमारे पिछले साल के ‘पानी’ वर्क्शाप से जुड़े कई नए फ़िल्म मेकरों ने अपनी फूल-लेंथ फ़िल्म शुरू कर दीं हैं, या कर रहे हैं। 

वर्क्शाप से जुड़े सभी लोगों को धन्यवाद और शुभकामनाएँ।

NFI के “जंगल वर्क्शाप” के प्रस्तुतकर्ता ISM राँची और Holybull Entertainment को धन्यवाद है।  और हमारे मीडिया पार्ट्नर 12.7 FM को धन्यवाद है।

जोहार जंगल। 
जोहार दुनिया। 
जोहार नेतरहाट फ़िल्म इन्स्टिटूट।

(Sriram Dalton, Filmmaker and Activist, मुंबई में मुख्य धारा की फिल्मों के अलावा वे जल-जंगल-ज़मीन जैसे विषयों पर गाँव-देहात काम करते रहते हैं 
 

बाकी ख़बरें