छत्तीसगढ़: अपना परंपरागत हथियार धनुष-तीर नहीं रख पाएंगे आदिवासी, जब्त करने का आदेश

Written by sabrang india | Published on: April 6, 2019
छत्तीसगढ़ में लंबे समय बाद सरकार बदली तो लोगों को उम्मीद जागी कि अब आदिवासियों का दमन नहीं होगा और उन्हें कुछ आजादी मिलेगी. लेकिन, नतीजा सिफर है. आदिवासियों को सरकार के नए-नए फरमानों का सामना करना पड़ रहा है. 

राज्य के महासमुन्द ज़िले में वन विभाग ने एक अजीब फ़रमान जारी किया है. इस फ़रमान के अनुसार यहां के जंगलों में रहने वाले आदिवासी अब अपने घरों में तीर-धनुष नहीं रख पाएंगे. घरों की तलाशी लेकर तीर-धनुष ज़ब्त कर लेने का आदेश दिया गया है.

दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार उदंती-सीतानदी, बारनवापारा और भोरमदेव अभ्यारण्य सहित जंगल सफ़ारी के आसपास बसे गाँव के लोग अब तीर कमान नहीं रख सकेंगे. वन विभाग की टीम जल्द ही संरक्षित क्षेत्रों के अंदर और बाहर के गाँवों, टोलों और मजरों में जांच अभियान शुरू करेगी, ताकि तीर-धनुष ज़ब्त किए जा सकें. इस फ़रमान को लेकर वन विभाग ने ये दलील दी है कि बारनवापारा के एक वनरक्षक पर तीर से हमला किया गया जिसके बाद ऐहतियातन यह फैसला लिया गया है.

29 मार्च को बार नवापारा अभयारण्य क्षेत्र में अवैध शिकार की शिकायत पर गश्त के दौरान वनरक्षक ने संदिग्ध लोगों को घूमते देखा था. उन्हें पकड़ने की कोशिश के दौरान एक शिकारी ने वनरक्षक योगेश्वर सोनवानी को तीर मार दिया. वनरक्षक को प्राथमिक उपचार के बाद रायपुर रेफर किया गया, जहां ऑपरेशन से तीर बाहर निकाला गया. इसके बाद ही आदिवासियों को तीर-धनुष जब्त कर लेने का आदेश जारी कर दिया गया है. 

जंगल में रहने वाले आदिवासियों के तीर-धनुष ज़ब्त कर लेने का फ़रमान पहली दफ़ा सुनने में कोई हथियार ज़ब्त कर लेने वाला साधारण आदेश लग सकता है, पर घने जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के लिए तीर-धनुष हथियार मात्र नहीं होते, ये उनके रोज़ मर्रा के जीवन का हिस्सा हैं.

छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले में आदिवासियों से बन्दूक की नोक पर अडानी के लिए ज़मीन अधिग्रहित करने का आरोप बघेल सरकार पर अभी बिलकुल ताज़ा ही है. आदिवासी हितों की रक्षा के वादे के साथ सत्ता में आई बघेल सरकार पर इस फ़रमान ने एक और सवाल खड़ा कर दिया है. इस फैसले से आदिवासियों के आगे जंगली जानवरों से सुरक्षा सहित कई परेशानियां मुंहबाए खड़ी होंगी. 

आदिवासियों को जल जंगल जमीन से उठाकर उन्हें शहरी बनाने के प्रयास लंबे समय से किए जाते रहे हैं. इसके पीछे सरकारों की कॉरपोरेट से मिलीभगत और भारी साजिश नजर आती है. लेकिन  आदिवासी अपने जल-जंगल और जमीन को किसी भी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते. ऐसे में दबे स्वर में आवाज उठ रही है कि कहीं यह उन्हें निहत्था बनाने की कोई साजिश तो नहीं. धनुष-तीर आदिवासियों का परंपरागत हथियार है और वे प्राचीनकाल से ही इसका उपयोग करते आ रहे हैं. 1784 में आदिवासी समुदाय से आने वाले तिलका मांझी ने अँग्रेजों के खिलाफ तीर-धनुष के सहारे ही लड़ाई छेड़ दी थी. उन्हें भारत का पहला आजादी का नायक भी माना जाता है. बिरसा मुंडा को भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भगवान की तरह पूजा जाता है. ऐसे में आदिवासियों का तीर-धनुष से पुराना नाता है जिसे अब तोड़ने की कोशिश साबित हो सकती है. 

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