चंद्रशेखर आज़ाद: शब्बीरपुर से तिहाड़ तक

Written by sabrang india | Published on: September 30, 2019
भीम सेना प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद 600 साल पुराने संत रविदास का मंदिर तोड़े जाने के विरोध में प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किए गए। 21 अगस्त के बाद से वे 95 अन्य कार्यकर्ताओँ के साथ जेल में हैं। चंद्रशेखर आजाद रावण एक ऐसा नाम बन चुका है जो किसी पहचान का मोहताज नहीं है। 



अपने स्कूल के समय से ही जातीय उत्पीड़न का दंश झेलने वाले चंद्रशेखर आजाद ने मुखर रुप से आवाज उठाई थी। यही कारण था कि जातीय दंश की हीनता खत्म करने के लिए उन्होंने अपने गांव घड़कौली में 'द ग्रेट चमार' का बोर्ड लगवाया। इसके बाद से वे ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र में सभी सवर्णों की आंख की किरकिरी बन गए। 

5 मई 2017 को शब्बीरपुर और रामपुर गांव में महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर दलित व ठाकुरों के बीच संघर्ष हुआ था। इस घटना में ठाकुरों ने दलितों के 60 घरों को आग लगा दी थी। इस घटना के बाद एक नाम सामने आया वो था चंद्रशेखर आजाद रावण। यहीं से चंद्रशेखर आजाद देशभर में दलित समाज के लिए हीरो के तौर पर उभरकर सामने आए। इस मामले में उन्हें कई महीने तक जेल में रहना पड़ा। सूबे की योगी सरकार ने चंद्रशेखर पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) सहित कई धाराएं लगाईं। 

भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने अपनी ताकत उस वक्त दिखायी, जब नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर बड़ी संख्या में दलितों ने पुलिस कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन किया था। सहारनपुर में दलितों पर हुई हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन के बाद चंद्रशेखर ने कहा था कि यदि 37 निर्दोष दलित जमानत पर रिहा किये जाएं, तो वह आत्मसमर्पण कर देगा।

2014 में चंद्रशेखर आजाद 'रावण' और विनय रतन ने हाशिए वाले वर्गों के विकास के लिए स्कूल खोले। भीम आर्मी का कहना है कि वह शिक्षा के माध्यम से दलितों के लिए काम कर रहा है।

भीम आर्मी का बेस मुख्य तौर पर यूपी में है। सहारनपुर में ये वर्ष 2017 में चर्चाओं में आया. चर्चाओं में आने की वजह थी जाति संघर्ष। हिंसा के आरोपों के बाद भीम आर्मी के मुख्य कर्ताधर्ता चंद्रशेखर को गिरफ्तार किया गया था। चंद्रशेखर की अगुवाई में कई युवा भीम आर्मी संभालते हैं।

कभी स्कूल कॉलेज में जातीय भेदभाव के खिलाफ उठे इस युवा ने अपने संगठन भीम आर्मी के माध्यम से दलित समाज को इस हिंसा के विरोध में प्रदर्शन का आह्वान किया था। चंद्रशेखर के आह्वान पर 9 मई 2017 को सहारनपुर के गांधी मैदान में हजारों लोग इकट्ठा हो गए और उन्हें हटाने के लिए प्रशासन ने लाठीचार्ज कर दिया। इसके बाद दलित युवाओँ सहित चंद्रशेखर आजाद पर कई मुकदमे लाद दिए गए। 

शब्बीरपुर मामले में 8 जून 2017 को गिरफ्तार किए गए चंद्रशेखर आजाद को लंबे समय तक जेल में रखने के लिए 23 जनवरी, 2018 को एक चौंकाने वाला आदेश दिया जिसके बाद 2 मई 2017 से 6 माह के लिए उनकी हिरासत की अवधि बढ़ा दी गई। योगी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठे थे। क्योंकि, आठ महीने जेल में बंद रखने के बाद भी सरकार चंद्रशेखर को जेल में ही लंबे समय तक रखना चाहती थी। 

इस दौरान कोई नया मामला चंद्रशेखर के ऊपर नहीं आया था क्योंकि वे जेल में बंद थे। लेकिन योगी सरकार ने जेल में बंद रहने के दौरान ही उनपर किसलिए रासुका लगाई इसका कोई जवाब सरकार नहीं दे रही थी। लेकिन 13 सितंबर 2018 को रात में चंद्रशेखर आजाद को रिहा कर दिया गया। 

चंद्रशेखर की रिहाई के जरिए योगी सरकार दो हित साधना चाहती थी। पहला था सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करना। इसके तहत सरकार को सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना पड़ता कि उनपर जेल में बंद के दौरान रासुका क्यों लगाई। दूसरा था दलित हितैषी दिखना। लोकसभा चुनाव की तैयारियां भी लगभग चल रही थीं। यूपी में दलित बोटबैंक काफी मायने रखता है। ऐसे में योगी सरकार मर्सी दिखाकर दलित हितैषी साबित होना चाहती थी। 

दरअसल, रावण की सभी मामलों में पहले ही जमानत हो चुकी थी और केवल राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत ही उसकी महज 26 दिन की कारावास अवधि शेष थी। ऐसे में रावण की रिहाई के जरिए सरकार खुद के दलित विरोधी होने का टैग हटाना चाहती थी। खैर, फिलहाल चंद्रशेखर आजाद फिर से जेल में बंद हैं। इस बार उन्हें तिहाड़ जेल भेजा गया है। वे 600 साल पुराने रविदास मंदिर को गिराए जाने का विरोध कर रहे थे। इस दौरान हिंसा हुई और चंद्रशेखर को जेल में बंद कर दिया गया। हालांकि, इस मामले पर सवाल उठे थे कि यह हिंसा दलित संगठनों को कमजोर करने के लिए प्रायोजित कराई गई थी और भीड़ में मुंह पर कपड़ा बांधे लोग शामिल हुए थे। 

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