राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में प्रतिदिन 35 से अधिक की औसत से 13,000 से अधिक छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी यानी बीएचयू एक बार फिर एक छात्र की आत्महत्या को लेकर सुर्खियों में है। खबरों की मानें तो विश्वविद्यालय के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट के एक फाइनल ईयर छात्र ने कथित तौर पर प्लेसमेंट ना होने और अवसाद के चलते अपनी जान गंवा दी। वैसे ये पहला मामला नहीं है, जब किसी छात्र ने बेरोज़गारी, कर्ज या अवसाद के चलते ऐसा कदम उठाया हो। इससे पहले भी बीएचयू और अन्य विश्वविद्यालयों से ऐसे कई मामले संज्ञान में आए हैं, जहां छात्रों ने मौत को गले लगा लिया है।
बता दें कि साल 1995 के बाद से देश में साल 2021 में आत्महत्या के कारण सबसे अधिक छात्रों की मृत्यु हुई,जबकि पिछले 25 वर्षों में आत्महत्या करने वाले छात्रों का आँकड़ा लगभग 2 लाख है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट 2021 के अनुसार, साल 2021 में प्रतिदिन 35 से अधिक की औसत से 13,000 से अधिक छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई। ये साल 2020 के मुकाबले 4.5 प्रतिशत की वृद्धि थी। इस साल 12,526 छात्रों ने अपनी जान दी थी।
युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति चिंता का विषय
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, हर 4 मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। दुनियाभर में हर साल लगभग 8 लाख से ज़्यादा लोग अवसाद यानी डिप्रेशन में आत्महत्या कर लेते हैं, जिसमें अकेले 17% की संख्या भारत की है। जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। संगठन के मुताबिक युवाओं के बीच मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है। लोग अवसाद, लाचारी और जीवन में कुछ नहीं कर पाने की हताशा के चलते आत्महत्या करते हैं। यह स्थिति बहुत डराने वाली है और इससे पता चलता है कि वर्तमान में लोग किस स्तर के मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। कोरोना काल में आत्महत्या करने की यह प्रवृत्ति खतरनाक रूप से बढ़ी है।
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2014-21 में आईआईटी,एनआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के 122 छात्रों ने आत्महत्या की। इन 122 में से 68अनुसूचित जाति (SC) अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के थे। इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए जाने जाना वाला केंद्र कोटा, भारत में होने वाली आत्महत्याएं एक बढ़ती हुई चिंता है। वहीं देश में आत्महत्या की कई कहानियां बेरोज़गारी की बढ़ती समस्या का इशारा भी दे रही हैं। बीएचयू के जिस छात्र ने आत्महत्या की उसके साथियों के अनुसार उसका प्लेसमेंट नहीं हुआ था यानी उसे नौकरी की दरकार थी। बीते साल राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि बेरोज़गारी की वजह से 2018 से 2020 तक9,140 लोगों ने आत्महत्या की है। साल 2018 में 2,741, 2019 में 2,851 और 2020 में 3,548 लोगों ने बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या की है। 2014 की तुलना में 2020में बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या के मामलों में 60प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
बेरोज़गारी से बढ़ती आत्महत्या
सामाजिक कार्यकर्ता और युवाओं के बेरोज़गारी आंदोलन से जुड़े दिनेश सिंह न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि 2020 में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या के मामलों में अचानक से बड़ा उछाल देखने को मिला था। 2019 में ही ये बात सामने आ गई थी कि देश में बेरोज़गारी ने बीते 45 सालों का रिकॉर्ड ब्रेक कर दिया है। छह साल में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने को मिली, जो खतरनाक स्थिति की ओर इशारा करती है।
दिनेश कहते हैं, “युवाओं को नौकरी चाहिए, वो काम करना चाहते हैं, लेकिन देश के मौजूदा हालात में नौकरी का संकट इतना बड़ा है कि लाखों युवक सालों-साल नौकरी की तैयारी करते हैं और फिर पेपर लीक हो जाता है, कोई बड़ा घोटाला सामने आ जाता है। उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है और उम्र के साथ ही वर्क फोर्स भी हर नए साल बढ़ रहा है। ऐसे में युवा लगातार अवसाद और तनाव से गुजर रहे हैं। जिसके चलते की बार उन्हें गंभीर कदम भी उठाते हुए देखा गया है।"
अवसाद क्या है?
स्पष्ट रूप से ये कहना तो मुश्किल है कि अवसाद क्या है और किस वजह से होता है, मगर माना जाता है कि इसमें कई छोटी-बड़ी चीज़ों की अहम भूमिका होती है। जब किसी की ज़िंदगी से रुचि ख़त्म होने लगती है और रोज़मर्रा के कामकाज से मन उचट जाता है। किसी चीज का प्रेशर महसूस होने लगता है, जैसे कर्ज, दिवालियापन,किसी नज़दीक़ी की मौत, नौकरी चले जाना, कुछ बुरा होने की आशंका या कोई मेडिकल कारण आम तौर पर अवसाद की वजह बनते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अवसाद बिना किसी एक ख़ास कारण के भी हो सकता है। ये धीरे-धीरे घर कर लेता है और बजाए मदद की कोशिश के आप उसी से संघर्ष करते रहते हैं। दिमाग़ के रसायन अवसाद की हालत में किस तरह की भूमिका अदा करते हैं अभी तक ये भी पूरी तरह नहीं समझा जा सका है। मगर ज़्यादातर विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि ये सिर्फ़ दिमाग़ में किसी तरह के असंतुलन की वजह से ही नहीं होता और ये किसी को भी हो सकता है।
मनोचिकित्सक मनिला बताती हैं कि अगर किसी को आत्महत्या का ख्याल आए तो दोस्तों, रिश्तेदारों या हेल्पलाइन की मदद ले। काउंसलिंग, सकारात्मक सोच और चिकित्सकीय मदद से भी आप नकारात्मक विचारों से खुद को दूर सकते हैं। ध्यान रहे कि मानसिक समस्याओं का इलाज दवा और थेरेपी से संभव है।
इसके लिए आपको मनोचिकित्सक से मदद लेनी चाहिए,आप इन हेल्पलाइन से भी संपर्क कर सकते हैं-
समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की हेल्पलाइन-1800-599-0019 (13 भाषाओं में उपलब्ध)
इंस्टीट्यूट ऑफ़ ह्यमून बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज-9868396824, 9868396841, 011-22574820
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस-080 – 26995000
गौरतलब है कि अवसाद गहरा, लंबा और ज़्यादा दुखद होता है, ये एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है। इसे हल्के में लेने की कोशिश न करें सही समय पर सलाह और परामर्श से आत्महत्याओं को काफ़ी हद तक रोका जा सकता है। इसिलए जागरूक और समझदार बनिए।
Courtesy: Newsclick
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी यानी बीएचयू एक बार फिर एक छात्र की आत्महत्या को लेकर सुर्खियों में है। खबरों की मानें तो विश्वविद्यालय के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट के एक फाइनल ईयर छात्र ने कथित तौर पर प्लेसमेंट ना होने और अवसाद के चलते अपनी जान गंवा दी। वैसे ये पहला मामला नहीं है, जब किसी छात्र ने बेरोज़गारी, कर्ज या अवसाद के चलते ऐसा कदम उठाया हो। इससे पहले भी बीएचयू और अन्य विश्वविद्यालयों से ऐसे कई मामले संज्ञान में आए हैं, जहां छात्रों ने मौत को गले लगा लिया है।
बता दें कि साल 1995 के बाद से देश में साल 2021 में आत्महत्या के कारण सबसे अधिक छात्रों की मृत्यु हुई,जबकि पिछले 25 वर्षों में आत्महत्या करने वाले छात्रों का आँकड़ा लगभग 2 लाख है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट 2021 के अनुसार, साल 2021 में प्रतिदिन 35 से अधिक की औसत से 13,000 से अधिक छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई। ये साल 2020 के मुकाबले 4.5 प्रतिशत की वृद्धि थी। इस साल 12,526 छात्रों ने अपनी जान दी थी।
युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति चिंता का विषय
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, हर 4 मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। दुनियाभर में हर साल लगभग 8 लाख से ज़्यादा लोग अवसाद यानी डिप्रेशन में आत्महत्या कर लेते हैं, जिसमें अकेले 17% की संख्या भारत की है। जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। संगठन के मुताबिक युवाओं के बीच मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है। लोग अवसाद, लाचारी और जीवन में कुछ नहीं कर पाने की हताशा के चलते आत्महत्या करते हैं। यह स्थिति बहुत डराने वाली है और इससे पता चलता है कि वर्तमान में लोग किस स्तर के मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। कोरोना काल में आत्महत्या करने की यह प्रवृत्ति खतरनाक रूप से बढ़ी है।
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2014-21 में आईआईटी,एनआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के 122 छात्रों ने आत्महत्या की। इन 122 में से 68अनुसूचित जाति (SC) अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के थे। इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए जाने जाना वाला केंद्र कोटा, भारत में होने वाली आत्महत्याएं एक बढ़ती हुई चिंता है। वहीं देश में आत्महत्या की कई कहानियां बेरोज़गारी की बढ़ती समस्या का इशारा भी दे रही हैं। बीएचयू के जिस छात्र ने आत्महत्या की उसके साथियों के अनुसार उसका प्लेसमेंट नहीं हुआ था यानी उसे नौकरी की दरकार थी। बीते साल राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि बेरोज़गारी की वजह से 2018 से 2020 तक9,140 लोगों ने आत्महत्या की है। साल 2018 में 2,741, 2019 में 2,851 और 2020 में 3,548 लोगों ने बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या की है। 2014 की तुलना में 2020में बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या के मामलों में 60प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
बेरोज़गारी से बढ़ती आत्महत्या
सामाजिक कार्यकर्ता और युवाओं के बेरोज़गारी आंदोलन से जुड़े दिनेश सिंह न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि 2020 में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या के मामलों में अचानक से बड़ा उछाल देखने को मिला था। 2019 में ही ये बात सामने आ गई थी कि देश में बेरोज़गारी ने बीते 45 सालों का रिकॉर्ड ब्रेक कर दिया है। छह साल में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने को मिली, जो खतरनाक स्थिति की ओर इशारा करती है।
दिनेश कहते हैं, “युवाओं को नौकरी चाहिए, वो काम करना चाहते हैं, लेकिन देश के मौजूदा हालात में नौकरी का संकट इतना बड़ा है कि लाखों युवक सालों-साल नौकरी की तैयारी करते हैं और फिर पेपर लीक हो जाता है, कोई बड़ा घोटाला सामने आ जाता है। उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है और उम्र के साथ ही वर्क फोर्स भी हर नए साल बढ़ रहा है। ऐसे में युवा लगातार अवसाद और तनाव से गुजर रहे हैं। जिसके चलते की बार उन्हें गंभीर कदम भी उठाते हुए देखा गया है।"
अवसाद क्या है?
स्पष्ट रूप से ये कहना तो मुश्किल है कि अवसाद क्या है और किस वजह से होता है, मगर माना जाता है कि इसमें कई छोटी-बड़ी चीज़ों की अहम भूमिका होती है। जब किसी की ज़िंदगी से रुचि ख़त्म होने लगती है और रोज़मर्रा के कामकाज से मन उचट जाता है। किसी चीज का प्रेशर महसूस होने लगता है, जैसे कर्ज, दिवालियापन,किसी नज़दीक़ी की मौत, नौकरी चले जाना, कुछ बुरा होने की आशंका या कोई मेडिकल कारण आम तौर पर अवसाद की वजह बनते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अवसाद बिना किसी एक ख़ास कारण के भी हो सकता है। ये धीरे-धीरे घर कर लेता है और बजाए मदद की कोशिश के आप उसी से संघर्ष करते रहते हैं। दिमाग़ के रसायन अवसाद की हालत में किस तरह की भूमिका अदा करते हैं अभी तक ये भी पूरी तरह नहीं समझा जा सका है। मगर ज़्यादातर विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि ये सिर्फ़ दिमाग़ में किसी तरह के असंतुलन की वजह से ही नहीं होता और ये किसी को भी हो सकता है।
मनोचिकित्सक मनिला बताती हैं कि अगर किसी को आत्महत्या का ख्याल आए तो दोस्तों, रिश्तेदारों या हेल्पलाइन की मदद ले। काउंसलिंग, सकारात्मक सोच और चिकित्सकीय मदद से भी आप नकारात्मक विचारों से खुद को दूर सकते हैं। ध्यान रहे कि मानसिक समस्याओं का इलाज दवा और थेरेपी से संभव है।
इसके लिए आपको मनोचिकित्सक से मदद लेनी चाहिए,आप इन हेल्पलाइन से भी संपर्क कर सकते हैं-
समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की हेल्पलाइन-1800-599-0019 (13 भाषाओं में उपलब्ध)
इंस्टीट्यूट ऑफ़ ह्यमून बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज-9868396824, 9868396841, 011-22574820
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस-080 – 26995000
गौरतलब है कि अवसाद गहरा, लंबा और ज़्यादा दुखद होता है, ये एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है। इसे हल्के में लेने की कोशिश न करें सही समय पर सलाह और परामर्श से आत्महत्याओं को काफ़ी हद तक रोका जा सकता है। इसिलए जागरूक और समझदार बनिए।
Courtesy: Newsclick